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[[बिहार]] की राजधानी [[पटना]] से पाँच किलोमीटर उत्तर में [[गंगा]] और [[गंडक]] के [[संगम]] पर स्थित '[[सोनपुर]]' नामक कस्बे को ही प्राचीन काल में '''हरिहरक्षेत्र''' कहते थे। ऋषियों और मुनियों ने इसे [[प्रयाग]] और [[गया]] से भी श्रेष्ठ तीर्थ माना है। ऐसा कहा जाता है कि इस संगम की धारा में स्नान करने से हजारों वर्ष के पाप कट जाते हैं। कर्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ एक विशाल मेला लगता है जो मवेशियों के लिए [[एशिया]] का सबसे बड़ा [[मेला]] समझा जाता है। यहाँ [[हाथी]], [[घोड़ा|घोड़े]], [[गाय]], [[बैल]] एवं चिड़ियों आदि के अतिरिक्त सभी प्रकार के आधुनिक सामान, कंबल दरियाँ, नाना प्रकार के खिलौने और लकड़ी के सामान बिकने को आते हैं। यह मेला लगभग एक मास तक चलता है। इस मेले के संबंध में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं।
[[बिहार]] की राजधानी [[पटना]] से पाँच किलोमीटर उत्तर में [[गंगा]] और [[गंडक]] के [[संगम]] पर स्थित '[[सोनपुर]]' नामक कस्बे को ही प्राचीन काल में '''हरिहरक्षेत्र''' कहते थे। ऋषियों और मुनियों ने इसे [[प्रयाग]] और [[गया]] से भी श्रेष्ठ तीर्थ माना है। ऐसा कहा जाता है कि इस संगम की धारा में स्नान करने से हजारों वर्ष के पाप कट जाते हैं। कर्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ एक विशाल मेला लगता है जो मवेशियों के लिए [[एशिया]] का सबसे बड़ा [[मेला]] समझा जाता है। यहाँ [[हाथी]], [[घोड़ा|घोड़े]], [[गाय]], [[बैल]] एवं चिड़ियों आदि के अतिरिक्त सभी प्रकार के आधुनिक सामान, कंबल दरियाँ, नाना प्रकार के खिलौने और लकड़ी के सामान बिकने को आते हैं। यह मेला लगभग एक मास तक चलता है। इस मेले के संबंध में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं।


इसी के पास कोनहराघाट में पौराणिक कथा के अनुसार गज और ग्राह का वर्षों चलनेवाला युद्ध हुआ था। बाद में भगवान् [[विष्णु]] की सहायता से गज की विजय हुई थी। एक अन्य किंवदंती के अनुसार जय और विजय दो भाई थे। जय शिव के तथा विजय विष्णु के भक्त थे। इन दोनों में झगड़ा हो गया तथा दोनों गज और ग्राह बन गए। बाद में दोनों में मित्रता हो गई वहाँ शिव और विष्णु दोनों के मंदिर साथ साथ बने जिससे इसका नाम हरिहरक्षेत्र पड़ा। कुछ लोगों के अनुसार प्राचीन काल में यहाँ ऋषियों और साधुओं का एक विशाल सम्मेलन हुआ तथा शैव और वैष्णव के बीच गंभीर वादविवाद खड़ा हो किंतु बाद में दोनों में सुलह हो गई और शिव तथा विष्णु दोनों की मूर्तियों की एक ही मंदिर में स्थापना की गई, उसी को स्मृति में यहाँ कार्तिक में पूर्णिमा के अवसर पर मेला आयोजित किया जाता है।
इसी के पास कोनहराघाट में पौराणिक कथा के अनुसार गज और ग्राह का वर्षों चलनेवाला युद्ध हुआ था। बाद में भगवान [[विष्णु]] की सहायता से गज की विजय हुई थी। एक अन्य किंवदंती के अनुसार जय और विजय दो भाई थे। जय शिव के तथा विजय विष्णु के भक्त थे। इन दोनों में झगड़ा हो गया तथा दोनों गज और ग्राह बन गए। बाद में दोनों में मित्रता हो गई वहाँ शिव और विष्णु दोनों के मंदिर साथ साथ बने जिससे इसका नाम हरिहरक्षेत्र पड़ा। कुछ लोगों के अनुसार प्राचीन काल में यहाँ ऋषियों और साधुओं का एक विशाल सम्मेलन हुआ तथा शैव और वैष्णव के बीच गंभीर वादविवाद खड़ा हो किंतु बाद में दोनों में सुलह हो गई और शिव तथा विष्णु दोनों की मूर्तियों की एक ही मंदिर में स्थापना की गई, उसी को स्मृति में यहाँ कार्तिक में पूर्णिमा के अवसर पर मेला आयोजित किया जाता है।


इस मेले का आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से बड़ा महत्व है।
इस मेले का आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से बड़ा महत्व है।

01:46, 20 सितंबर 2014 का अवतरण

बिहार की राजधानी पटना से पाँच किलोमीटर उत्तर में गंगा और गंडक के संगम पर स्थित 'सोनपुर' नामक कस्बे को ही प्राचीन काल में हरिहरक्षेत्र कहते थे। ऋषियों और मुनियों ने इसे प्रयाग और गया से भी श्रेष्ठ तीर्थ माना है। ऐसा कहा जाता है कि इस संगम की धारा में स्नान करने से हजारों वर्ष के पाप कट जाते हैं। कर्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ एक विशाल मेला लगता है जो मवेशियों के लिए एशिया का सबसे बड़ा मेला समझा जाता है। यहाँ हाथी, घोड़े, गाय, बैल एवं चिड़ियों आदि के अतिरिक्त सभी प्रकार के आधुनिक सामान, कंबल दरियाँ, नाना प्रकार के खिलौने और लकड़ी के सामान बिकने को आते हैं। यह मेला लगभग एक मास तक चलता है। इस मेले के संबंध में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं।

इसी के पास कोनहराघाट में पौराणिक कथा के अनुसार गज और ग्राह का वर्षों चलनेवाला युद्ध हुआ था। बाद में भगवान विष्णु की सहायता से गज की विजय हुई थी। एक अन्य किंवदंती के अनुसार जय और विजय दो भाई थे। जय शिव के तथा विजय विष्णु के भक्त थे। इन दोनों में झगड़ा हो गया तथा दोनों गज और ग्राह बन गए। बाद में दोनों में मित्रता हो गई वहाँ शिव और विष्णु दोनों के मंदिर साथ साथ बने जिससे इसका नाम हरिहरक्षेत्र पड़ा। कुछ लोगों के अनुसार प्राचीन काल में यहाँ ऋषियों और साधुओं का एक विशाल सम्मेलन हुआ तथा शैव और वैष्णव के बीच गंभीर वादविवाद खड़ा हो किंतु बाद में दोनों में सुलह हो गई और शिव तथा विष्णु दोनों की मूर्तियों की एक ही मंदिर में स्थापना की गई, उसी को स्मृति में यहाँ कार्तिक में पूर्णिमा के अवसर पर मेला आयोजित किया जाता है।

इस मेले का आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से बड़ा महत्व है।