"अरिहन्त": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छो Bot: Migrating 1 interwiki links, now provided by Wikidata on d:q4790595 (translate me)
छो हलान्त शब्द की पारम्परिक वर्तनी को आधुनिक वर्तनी से बदला।
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''अर्हत्''' ([[संस्कृत]]) और '''अरिहंत''' (प्रकृत) [[पर्यायवाची]] शब्द हैं। अतिशय पूजासत्कार के योग्य होने से इन्हें (अर्ह योग्य होना) कहा गया है। मोहरूपी शत्रु (अरि) का अथवा आठ कर्मों का नाश करने के कारण ये 'अरिहंत' (अरि का नाश करनेवाला) कहे जाते हैं। अर्हत, [[सिद्ध]] से एक चरण पूर्व की स्थिति है।
'''अर्हत्''' ([[संस्कृत]]) और '''अरिहंत''' (प्रकृत) [[पर्यायवाची]] शब्द हैं। अतिशय पूजासत्कार के योग्य होने से इन्हें (अर्ह योग्य होना) कहा गया है। मोहरूपी शत्रु (अरि) का अथवा आठ कर्मों का नाश करने के कारण ये 'अरिहंत' (अरि का नाश करनेवाला) कहे जाते हैं। अर्हत, [[सिद्ध]] से एक चरण पूर्व की स्थिति है।


[[जैन धर्म|जैनों]] के [[णमोकार मंत्र]] में पंचपरमेष्ठियों में सर्वप्रथम अरिहंतों को नमस्कार किया गया है। सिद्ध परमात्मा हैं लेकिन अरिहंत भगवान् लोक के परम उपकारक हैं, इसलिए इन्हें सर्वोत्तम कहा गया है। एक में एक ही अरिहंत जन्म लेते हैं। [[आगम (जैन)|जैन आगमों]] को अर्हत् द्वारा भाषित कहा गया है। अरिहंत तीर्थकर, केवली और सर्वज्ञ होते हैं। [[महावीर स्वामी|महावीर]] जैन धर्म के चौबीसवें (अंतिम) तीर्थकर माने जाते हैं। बुरे कर्मों का नाश होने पर केवल ज्ञान द्वारा वे समस्त पदार्थों को जानते हैं इसलिए उन्हें 'केवली' कहा है। सर्वज्ञ भी उसे ही कहते हैं।
[[जैन धर्म|जैनों]] के [[णमोकार मंत्र]] में पंचपरमेष्ठियों में सर्वप्रथम अरिहंतों को नमस्कार किया गया है। सिद्ध परमात्मा हैं लेकिन अरिहंत भगवान लोक के परम उपकारक हैं, इसलिए इन्हें सर्वोत्तम कहा गया है। एक में एक ही अरिहंत जन्म लेते हैं। [[आगम (जैन)|जैन आगमों]] को अर्हत् द्वारा भाषित कहा गया है। अरिहंत तीर्थकर, केवली और सर्वज्ञ होते हैं। [[महावीर स्वामी|महावीर]] जैन धर्म के चौबीसवें (अंतिम) तीर्थकर माने जाते हैं। बुरे कर्मों का नाश होने पर केवल ज्ञान द्वारा वे समस्त पदार्थों को जानते हैं इसलिए उन्हें 'केवली' कहा है। सर्वज्ञ भी उसे ही कहते हैं।


[[श्रेणी:जैन धर्म]]
[[श्रेणी:जैन धर्म]]

19:35, 19 सितंबर 2014 का अवतरण

अर्हत् (संस्कृत) और अरिहंत (प्रकृत) पर्यायवाची शब्द हैं। अतिशय पूजासत्कार के योग्य होने से इन्हें (अर्ह योग्य होना) कहा गया है। मोहरूपी शत्रु (अरि) का अथवा आठ कर्मों का नाश करने के कारण ये 'अरिहंत' (अरि का नाश करनेवाला) कहे जाते हैं। अर्हत, सिद्ध से एक चरण पूर्व की स्थिति है।

जैनों के णमोकार मंत्र में पंचपरमेष्ठियों में सर्वप्रथम अरिहंतों को नमस्कार किया गया है। सिद्ध परमात्मा हैं लेकिन अरिहंत भगवान लोक के परम उपकारक हैं, इसलिए इन्हें सर्वोत्तम कहा गया है। एक में एक ही अरिहंत जन्म लेते हैं। जैन आगमों को अर्हत् द्वारा भाषित कहा गया है। अरिहंत तीर्थकर, केवली और सर्वज्ञ होते हैं। महावीर जैन धर्म के चौबीसवें (अंतिम) तीर्थकर माने जाते हैं। बुरे कर्मों का नाश होने पर केवल ज्ञान द्वारा वे समस्त पदार्थों को जानते हैं इसलिए उन्हें 'केवली' कहा है। सर्वज्ञ भी उसे ही कहते हैं।