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'''विनय मजूमदार''' ( १७ सितम्बर [[१९३४]] - ११ दिसम्बर [[२००६]] ) ( বিনয় মজুমদার ) बर्मा में पैदा हुए। आधुनिक बांगला साहित्य की 'भूखी पीढ़ी' के वह भी प्रमुख कवियों में रहे हैं। [[जीवनानंद दास]] के बाद के [[बांग्ला साहित्य]] में उनको सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। २००५ में उनको '''हासपाताले लेखा कवितागौच्चो''' के लिये [[साहित्य अकादमी]] पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उस से पहले उन्हें रबीन्द्र पुरस्कार, सुधीन्द्रनाथ दत्ता पुरस्कार एवम कृत्तिवास पुरस्कार दिये गये थे। १९८०-१९९० के बीच वह अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठे थे। तब उन्होंने कविता लिखना ही त्याग दिया था। इन्होंने चार बार आत्महत्या की कोशिश भी की। पर वह मित्रों की सहायता से कोलकाता से बाहर ठाकुरनगर गांव जा कर ग्रामीण लोगों के बीच रहने लगे और फिर से लिखना शुरु किया। गणित में माहिर, वह इन्जीनीयरिंग के पण्डित थे। कविता में भी वे गणित का प्रयोग किया करते थे। मजुमदार ने रूसी भाषा की गणित की बहुत सी किताबों के अनुवाद किये थे।
'''विनय मजूमदार''' (१७ सितम्बर [[१९३४]] - ११ दिसम्बर [[२००६]]) (বিনয় মজুমদার) बर्मा में पैदा हुए। आधुनिक बांगला साहित्य की 'भूखी पीढ़ी' के वह भी प्रमुख कवियों में रहे हैं। [[जीवनानंद दास]] के बाद के [[बांग्ला साहित्य]] में उनको सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। २००५ में उनको '''हासपाताले लेखा कवितागौच्चो''' के लिये [[साहित्य अकादमी]] पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उस से पहले उन्हें रबीन्द्र पुरस्कार, सुधीन्द्रनाथ दत्ता पुरस्कार एवम कृत्तिवास पुरस्कार दिये गये थे। १९८०-१९९० के बीच वह अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठे थे। तब उन्होंने कविता लिखना ही त्याग दिया था। इन्होंने चार बार आत्महत्या की कोशिश भी की। पर वह मित्रों की सहायता से कोलकाता से बाहर ठाकुरनगर गांव जा कर ग्रामीण लोगों के बीच रहने लगे और फिर से लिखना शुरु किया। गणित में माहिर, वह इन्जीनीयरिंग के पण्डित थे। कविता में भी वे गणित का प्रयोग किया करते थे। मजुमदार ने रूसी भाषा की गणित की बहुत सी किताबों के अनुवाद किये थे।


== कृतियां ==
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* [[देबी राय]]
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* [[सुबिमल बसाक]]
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* [[भूखी पीढी ( हंगरी जनरेशन )]]
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== बाह्यसूत्र ==
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01:01, 18 सितंबर 2014 का अवतरण

विनय मजूमदार (१७ सितम्बर १९३४ - ११ दिसम्बर २००६) (বিনয় মজুমদার) बर्मा में पैदा हुए। आधुनिक बांगला साहित्य की 'भूखी पीढ़ी' के वह भी प्रमुख कवियों में रहे हैं। जीवनानंद दास के बाद के बांग्ला साहित्य में उनको सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। २००५ में उनको हासपाताले लेखा कवितागौच्चो के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उस से पहले उन्हें रबीन्द्र पुरस्कार, सुधीन्द्रनाथ दत्ता पुरस्कार एवम कृत्तिवास पुरस्कार दिये गये थे। १९८०-१९९० के बीच वह अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठे थे। तब उन्होंने कविता लिखना ही त्याग दिया था। इन्होंने चार बार आत्महत्या की कोशिश भी की। पर वह मित्रों की सहायता से कोलकाता से बाहर ठाकुरनगर गांव जा कर ग्रामीण लोगों के बीच रहने लगे और फिर से लिखना शुरु किया। गणित में माहिर, वह इन्जीनीयरिंग के पण्डित थे। कविता में भी वे गणित का प्रयोग किया करते थे। मजुमदार ने रूसी भाषा की गणित की बहुत सी किताबों के अनुवाद किये थे।

कृतियां

  • फिरे एसो चक
  • नक्षत्रेर आलोय
  • अधिकन्तु
  • अघ्राणेर अनुभूतिमाला
  • बाल्मिकीर कविता
  • विनय मजुमदारेर श्रेष्ठो कविता
  • विनय मजुमदारेर चोटोगल्पो
  • कविता बुझिनि आमि
  • धूसर जीबनानंद
  • शिमूलपुरे लेखा कविता
  • पृथिबीर मानचित्रो
  • गोद्यो ओ पोद्यो

सन्दर्भ

  • विनय मजुमदार्: अनुध्याने अनुभबे। २५ विश्लेषकों द्वारा विनय के जीवन एवम लेखन आलोचित। अमलकुमार मन्डल सम्पादित। कवितीर्थ प्रकाशनी, कोलकाता ७०० ०२३।

इन्हें भी देखें

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