"राग हंसध्वनि": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो विराम चिह्न की स्थिति सुधारी। |
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो बॉट: कोष्टक () की स्थिति सुधारी। |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
आरोह-सा रे,ग प नि सां |
आरोह-सा रे,ग प नि सां |
||
अवरोह-सां नि प ग रे,ग रे,नि (मन्द्र) प(मन्द्र) सा। |
अवरोह-सां नि प ग रे,ग रे,नि (मन्द्र) प (मन्द्र) सा। |
||
पकड़-नि प ग रे,रे ग प रे सा |
पकड़-नि प ग रे,रे ग प रे सा |
19:29, 17 सितंबर 2014 का अवतरण
राग हंसध्वनि कनार्टक पद्धति का राग है परन्तु आजकल इसका उत्तर भारत मे भी काफी प्रचार है। इसके थाट के विषय में दो मत हैं कुछ विद्वान इसे बिलावल थाट तो कुछ कल्याण थाट जन्य भी मानते हैं। इस राग में मध्यम तथा धैवत स्वर वर्जित हैं अत: इसकी जाति औडव-औडव मानी जाती है। सभी शुद्ध स्वरों के प्रयोग के साथ ही पंचम रिषभ,रिषभ निषाद एवम षडज पंचम की स्वर संगतियाँ बार बार प्रयुक्त होती हैं। इसके निकट के रागो में राग शंकरा का नाम लिया जाता है। गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर है।
राग का संक्षिप्त परिचय
आरोह-सा रे,ग प नि सां
अवरोह-सां नि प ग रे,ग रे,नि (मन्द्र) प (मन्द्र) सा।
पकड़-नि प ग रे,रे ग प रे सा
स्रोत्र
बाहरी कड़ियाँ
- इस राग को सही तरीके से जानने के लिये अगर इसे सुना जाये तो ज्यादा सही होगा। इस राग पर हिन्दी फिल्मों में कई गाने बने हैं हैं जिनमें सबसे मशहूर है जा तोसे नाहीं बोलूं कन्हैया। आप पारुल के चिट्ठे पर उस्ताद राशिद खां साहब की आवाज में एक बंदिश सुन सकते हैं। बंदिश का मुखड़ा है लागी लगन पति सखी संग पारुल चांद पुखराज का।