"मीठा नीम": अवतरणों में अंतर

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== विवरण ==
== विवरण ==
यह पेड़ छोटा होता है जिसकी उंचाई 4-6 मीटर होती है और जिसके तने का व्यास 40 सें.मी. तक होता है. इसकी पत्तियां नुकीली होतीं हैं, हर टहनी में 11-21 पत्तीदार कमानियां होती हैं और हर कमानी 2-4 सें.मी. लम्बी व 1-2 सें.मी. चौड़ी होती है. ये पत्तियां बहुत ही ख़ुशबूदार होतीं हैं. इसके फूल छोटे-छोटे, सफ़ेद रंग के और ख़ुशबूदार होते हैं. इसके छोटे-छोटे, चमकीले काले रंग के फल तो खाए जा सकते हैं, लेकिन इनके बीज ज़हरीले होते हैं।
यह पेड़ छोटा होता है जिसकी उंचाई 4-6 मीटर होती है और जिसके तने का व्यास 40 सें.मी. तक होता है. इसकी पत्तियां नुकीली होतीं हैं, हर टहनी में 11-21 पत्तीदार कमानियां होती हैं और हर कमानी 2-4 सें.मी. लम्बी व 1-2 सें.मी. चौड़ी होती है. ये पत्तियां बहुत ही ख़ुशबूदार होतीं हैं। इसके फूल छोटे-छोटे, सफ़ेद रंग के और ख़ुशबूदार होते हैं। इसके छोटे-छोटे, चमकीले काले रंग के फल तो खाए जा सकते हैं, लेकिन इनके बीज ज़हरीले होते हैं।


इस प्रजाति को वनस्पतिज्ञ जोहान कॉनिग का नाम दिया गया है।
इस प्रजाति को वनस्पतिज्ञ जोहान कॉनिग का नाम दिया गया है।


== उपयोग ==
== उपयोग ==
दक्षिण भारत व पश्चिमी-तट के राज्यों और [[श्रीलंका|श्री लंका]] के व्यंजनों के छौंक में, खासकर रसेदार व्यंजनों में, बिलकुल तेज पत्तों की तरह, इसकी पत्तियों का उपयोग बहुत महत्त्व रखता है. साधारणतया इसे पकाने की विधि की शुरुआत में कटे प्याज़ के साथ भुना जाता है. इसका उपयोग थोरण, वड़ा, रसम और कढ़ी बनाने में भी किया जाता है. इसकी ताज़ी पत्तियां न तो खुले में और न ही फ्रिज में ज़्यादा दिनों तक ताज़ा रहतीं हैं. वैसे ये पत्तियां सूखी हुई भी मिलती हैं पर उनमें ख़ुशबू बिलकुल नहीं के बराबर होती है.
दक्षिण भारत व पश्चिमी-तट के राज्यों और [[श्रीलंका|श्री लंका]] के व्यंजनों के छौंक में, खासकर रसेदार व्यंजनों में, बिलकुल तेज पत्तों की तरह, इसकी पत्तियों का उपयोग बहुत महत्त्व रखता है. साधारणतया इसे पकाने की विधि की शुरुआत में कटे प्याज़ के साथ भुना जाता है. इसका उपयोग थोरण, वड़ा, रसम और कढ़ी बनाने में भी किया जाता है. इसकी ताज़ी पत्तियां न तो खुले में और न ही फ्रिज में ज़्यादा दिनों तक ताज़ा रहतीं हैं। वैसे ये पत्तियां सूखी हुई भी मिलती हैं पर उनमें ख़ुशबू बिलकुल नहीं के बराबर होती है.


''मुराया कोएनिजी (Murraya koenigii)'' की पत्तियों का आयुर्वेदिक चिकित्सा में जड़ी-बूटी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. इनके औषधीय गुणों में ऐंटी-डायबिटीक (anti-diabetic),<ref>{{cite journal |author=Arulselvan P, Senthilkumar GP, Sathish Kumar D, Subramanian S |title=Anti-diabetic effect of Murraya koenigii leaves on streptozotocin induced diabetic rats |journal=Pharmazie |volume=61 |issue=10 |pages=874–7 |year=2006 |month=Oct |pmid=17069429 }}</ref> ऐंटीऑक्सीडेंट (antioxidant),<ref name="pmid">{{cite journal | author = Arulselvan P, Subramanian SP | title = Beneficial effects of Murraya koenigii leaves on antioxidant defense system and ultra structural changes of pancreatic beta-cells in experimental diabetes in rats | journal = [[Chem Biol Interact]]. | volume =165 | issue = 2| pages = 155–64 | year = 2007 |month=Jan |pmid=17188670 |doi=10.1016/j.cbi.2006.10.014 | url = http://linkinghub.elsevier.com/retrieve/pii/S0009-2797(06)00342-5}}</ref> ऐंटीमाइक्रोबियल (antimicrobial), ऐंटी-इन्फ्लेमेटरी (anti-inflammatory), हिपैटोप्रोटेक्टिव (hepatoprotective), ऐंटी-हाइपरकोलेस्ट्रौलेमिक (anti-hypercholesterolemic) इत्यादि शामिल हैं.
''मुराया कोएनिजी (Murraya koenigii)'' की पत्तियों का आयुर्वेदिक चिकित्सा में जड़ी-बूटी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. इनके औषधीय गुणों में ऐंटी-डायबिटीक (anti-diabetic),<ref>{{cite journal |author=Arulselvan P, Senthilkumar GP, Sathish Kumar D, Subramanian S |title=Anti-diabetic effect of Murraya koenigii leaves on streptozotocin induced diabetic rats |journal=Pharmazie |volume=61 |issue=10 |pages=874–7 |year=2006 |month=Oct |pmid=17069429 }}</ref> ऐंटीऑक्सीडेंट (antioxidant),<ref name="pmid">{{cite journal | author = Arulselvan P, Subramanian SP | title = Beneficial effects of Murraya koenigii leaves on antioxidant defense system and ultra structural changes of pancreatic beta-cells in experimental diabetes in rats | journal = [[Chem Biol Interact]]. | volume =165 | issue = 2| pages = 155–64 | year = 2007 |month=Jan |pmid=17188670 |doi=10.1016/j.cbi.2006.10.014 | url = http://linkinghub.elsevier.com/retrieve/pii/S0009-2797(06)00342-5}}</ref> ऐंटीमाइक्रोबियल (antimicrobial), ऐंटी-इन्फ्लेमेटरी (anti-inflammatory), हिपैटोप्रोटेक्टिव (hepatoprotective), ऐंटी-हाइपरकोलेस्ट्रौलेमिक (anti-hypercholesterolemic) इत्यादि शामिल हैं।
कढ़ी पत्ता लम्बे और स्वस्थ बालों के लिए भी बहुत लाभकारी माना जाता है.{{Citation needed|date=August 2009}}
कढ़ी पत्ता लम्बे और स्वस्थ बालों के लिए भी बहुत लाभकारी माना जाता है.{{Citation needed|date=August 2009}}



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वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: Plantae
अश्रेणीत: Angiosperms
अश्रेणीत: Eudicots
अश्रेणीत: Rosids
गण: Sapindales
कुल: Rutaceae
वंश: Murraya
जाति: M. koenigii
द्विपद नाम
Murraya koenigii
(L.) Sprengel[1]
छोटे सफेद फूल और उनकी सुगंध.
'कढ़ीपत्ते' की पत्तियाँ
परिपक्व और अपरिपक्व फल
पश्चिम बंगाल, भारत के जलपाईगुड़ी जिले में बुक्सा टाइगर रिजर्व में जयंती.

कढ़ी पत्ते का पेड़ (मुराया कोएनिजी, (Murraya koenigii; ) ; अन्य नाम: बर्गेरा कोएनिजी, (Bergera koenigii), चल्कास कोएनिजी (Chalcas koenigii)) उष्णकटिबंधीय तथा उप-उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में पाया जाने वाला रुतासी (Rutaceae) परिवार का एक पेड़ है, जो मूलतः भारत का देशज है। अकसर रसेदार व्यंजनों में इस्तेमाल होने वाले इसके पत्तों को "कढ़ी पत्ता" कहते हैं। कुछ लोग इसे "मीठी नीम की पत्तियां" भी कहते हैं। इसके तमिल नाम का अर्थ है, 'वो पत्तियां जिनका इस्तेमाल रसेदार व्यंजनों में होता है'। कन्नड़ भाषा में इसका शब्दार्थ निकलता है - "काला नीम", क्योंकि इसकी पत्तियां देखने में कड़वे नीम की पत्तियों से मिलती-जुलती हैं। लेकिन इस कढ़ी पत्ते के पेड़ का नीम के पेड़ से कोई संबंध नहीं है। असल में कढ़ी पत्ता, तेज पत्ता या तुलसी के पत्तों, जो भूमध्यसागर में मिलनेवाली ख़ुशबूदार पत्तियां हैं, से बहुत अलग है।

विवरण

यह पेड़ छोटा होता है जिसकी उंचाई 4-6 मीटर होती है और जिसके तने का व्यास 40 सें.मी. तक होता है. इसकी पत्तियां नुकीली होतीं हैं, हर टहनी में 11-21 पत्तीदार कमानियां होती हैं और हर कमानी 2-4 सें.मी. लम्बी व 1-2 सें.मी. चौड़ी होती है. ये पत्तियां बहुत ही ख़ुशबूदार होतीं हैं। इसके फूल छोटे-छोटे, सफ़ेद रंग के और ख़ुशबूदार होते हैं। इसके छोटे-छोटे, चमकीले काले रंग के फल तो खाए जा सकते हैं, लेकिन इनके बीज ज़हरीले होते हैं।

इस प्रजाति को वनस्पतिज्ञ जोहान कॉनिग का नाम दिया गया है।

उपयोग

दक्षिण भारत व पश्चिमी-तट के राज्यों और श्री लंका के व्यंजनों के छौंक में, खासकर रसेदार व्यंजनों में, बिलकुल तेज पत्तों की तरह, इसकी पत्तियों का उपयोग बहुत महत्त्व रखता है. साधारणतया इसे पकाने की विधि की शुरुआत में कटे प्याज़ के साथ भुना जाता है. इसका उपयोग थोरण, वड़ा, रसम और कढ़ी बनाने में भी किया जाता है. इसकी ताज़ी पत्तियां न तो खुले में और न ही फ्रिज में ज़्यादा दिनों तक ताज़ा रहतीं हैं। वैसे ये पत्तियां सूखी हुई भी मिलती हैं पर उनमें ख़ुशबू बिलकुल नहीं के बराबर होती है.

मुराया कोएनिजी (Murraya koenigii) की पत्तियों का आयुर्वेदिक चिकित्सा में जड़ी-बूटी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. इनके औषधीय गुणों में ऐंटी-डायबिटीक (anti-diabetic),[2] ऐंटीऑक्सीडेंट (antioxidant),[3] ऐंटीमाइक्रोबियल (antimicrobial), ऐंटी-इन्फ्लेमेटरी (anti-inflammatory), हिपैटोप्रोटेक्टिव (hepatoprotective), ऐंटी-हाइपरकोलेस्ट्रौलेमिक (anti-hypercholesterolemic) इत्यादि शामिल हैं। कढ़ी पत्ता लम्बे और स्वस्थ बालों के लिए भी बहुत लाभकारी माना जाता है.[उद्धरण चाहिए]

हालांकि कढ़ी पत्ते का सबसे अधिक उपयोग रसेदार व्यंजनों में होता है, पर इनके अलावा भी अन्य कई व्यंजनों में मसाले के साथ इसका इस्तेमाल किया जाता है.

उपजाना

पौधे उगाने के लिए ताज़े बीजों को बोना चाहिए, सूखे या मुरझाये फलों में अंकुर-क्षमता नहीं होती. फल को या तो सम्पूर्ण रूप से (या गूदा निकालकर) गमले के मिश्रण में गाड़ दीजिये और उसे गीला नहीं बल्कि सिर्फ़ नम बनाए रखिये.[मूल शोध?]

संदर्भ

  1. "Murraya koenigii information from NPGS/GRIN". www.ars-grin.gov. अभिगमन तिथि 2008-03-11.
  2. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  3. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर

बाहरी कड़ियाँ