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[[बुद्धघोसुपत्ति सद्धम्मसंगह]], [[गंधवंश]] और [[शासन वंश]] में बुद्धघोष का जीवनचरित्र विस्तार से मिलता है, किंतु ये रचनाएँ 14वीं से 19वीं शती तक की हैं। इनसे पूर्व का एकमात्र [[महावंश]] के चूलवंश नामक उत्तर भाग का 37वाँ परिच्छेद ऐसा है जिसकी 215 से 246 गाथाओं में बुद्धघोष का जीवनवृत्त पाया जाता है।
यद्यपि इसकी रचना [[धर्मकीर्ति]] नामक भिक्षु द्वारा १३वीं शती में की गई है, तथापि वह किसी अविच्छिन्न श्रुतिपरंपरा के आधार पर लिखा गया प्रतीत होता है। इसके अनुसार बुद्धघोष का जन्म बिहार प्रदेश के अंतर्गत गया में बोधिवृक्ष के समीप ही कहीं हुआ था। बालक प्रतिभाशाली था
इस जीवनवृत्त में जो यह उल्लेख पाया जाता है कि बुद्धघोष राजा महानाम के शासनकाल में लंका पहुँचे थे, उससे उनके काल का निर्णय हो जाता है, क्योंकि महानाम का शासनकाल ई. की चौथी शती का प्रारंभिक भाग सुनिश्चित है। अतएव यही समय बुद्धघोष की रचनाओं का माना गया है। विसुद्धिमग्ग में अंत में उल्लेख है कि मोरंड खेटक निवासी बुद्धघोष ने बिसुद्धमग्ग की रचना की। उसी प्रकार मज्झिमनिकाय की अट्टकथा में उसके मयूर सुत्त पट्टण में रहते हुए बुद्धमित्र नामक स्थविर की प्रार्थना से लिखे जाने का उल्लेख मिलता है। अंगुत्तरनिकाय की अट्टकथाओं में उल्लेख है कि उन्होंने उसे स्थविर ज्योतिपालकी प्रार्थना से कांचीपुर आदि स्थानों में रहते हुए लिखा। इन उल्लेखों से ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी अट्टकथाएँ लंका में नहीं,बल्कि भारत में, संभवत: दक्षिण प्रदेश में, लिखी गई थीं। कंबोडिया में एक बुद्धघोष विहार नामक अति प्राचीन संस्थान है, तथा वहाँ के लागों का विश्वास है कि वहीं पर उनका निर्वाण हुआ था और उसी स्मृति में वह बिहार बना।
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