"उत्तररामचरितम्": अवतरणों में अंतर

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== टीकाएँ ==
== टीकाएँ ==
उत्तररामचरित पर अनेक टीकाएँ उपलब्ध हैं जिनमें घनश्याम, वीरराघव, नारायण और रामचंद्र बुधेंद्र की टीकाएँ प्रसिद्ध हैं। इसके अनेक भारतीय संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इनके अधिक प्रचलित निर्णयसागर संस्करण है, जिसका प्रथम संस्करण सन् 1899 में मुंबई से प्रकाशित हुआ था। इसके और भी अनेक संपादन निकल चुके हैं। इनमें प्रसिद्ध संस्करण ये हैं : सी.एच्. टॉनी द्वारा अंग्रेजी अनुवाद सहित प्रकाशित (कलकत्ता, 1871), फ्रेंच अनुवाद सहित फ़ेलीनेव (क़ड्ढ"थ्त्न् ग़्ड्ढ"ध्ड्ढ) द्वारा ब्रूसेल्स तथा पॉरिस से 1880 में प्रकाशित, डॉ. बेलवलकर द्वारा केवल अंग्रेजी अनुवाद तथा भूमिका के रूप में हॉर्वर्ड ओरिएंटल् सीरीज़ में संपादित (1915 ई.)।
उत्तररामचरित पर अनेक टीकाएँ उपलब्ध हैं जिनमें घनश्याम, वीरराघव, नारायण और रामचंद्र बुधेंद्र की टीकाएँ प्रसिद्ध हैं। इसके अनेक भारतीय संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इनके अधिक प्रचलित निर्णयसागर संस्करण है, जिसका प्रथम संस्करण सन् 1899 में मुंबई से प्रकाशित हुआ था। इसके और भी अनेक संपादन निकल चुके हैं। इनमें प्रसिद्ध संस्करण ये हैं : सी.एच्. टॉनी द्वारा अंग्रेजी अनुवाद सहित प्रकाशित (कलकत्ता, 1871), फ्रेंच अनुवाद सहित फ़ेलीनेव (क़ड्ढ"थ्त्न् ग़्ड्ढ"ध्ड्ढ) द्वारा ब्रूसेल्स तथा पॉरिस से 1880 में प्रकाशित, डॉ॰ बेलवलकर द्वारा केवल अंग्रेजी अनुवाद तथा भूमिका के रूप में हॉर्वर्ड ओरिएंटल् सीरीज़ में संपादित (1915 ई.)।


== बाहरी कड़ियाँ ==
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12:34, 8 सितंबर 2014 का अवतरण

उत्तररामचरितम् महाकवि भवभूति का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है, जिसके सात अंकों में राम के उत्तर जीवन की कथा है।

कथा

जनापवाद के कारण राम न चाहते हुए भी सीता का परित्याग कर देते हैं। सीतात्याग के बाद विरही राम की दशा का तृतीय अंक में करुण चित्र प्रस्तुत किया गया है, जो काव्य की दृष्टि से इस नाटक की जान है। भवभूति ने इस दृश्यकाव्य में दांपत्य प्रणय के आदर्श रूप को अंकित किया है। कोमल एवं कठोर भावों की रुचिर व्यंजना, रमणीय और भयावह प्रकृति चित्रों का कुशल अंकन इस नाटक की विशेषताएँ हैं। उत्तररामचरित में नाटकीय व्यापार की गतिमत्ता अवश्य शिथिल है और यह कृति नाटकत्व की अपेक्षा काव्यतत्व और गीति नाट्यत्व की अधिक परिचायक है। भवभूति की भावुकता और पांडित्यपूर्ण शैली का चरम परिपाक इस कृति में पूर्णत: लक्षित होता है।

टीकाएँ

उत्तररामचरित पर अनेक टीकाएँ उपलब्ध हैं जिनमें घनश्याम, वीरराघव, नारायण और रामचंद्र बुधेंद्र की टीकाएँ प्रसिद्ध हैं। इसके अनेक भारतीय संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इनके अधिक प्रचलित निर्णयसागर संस्करण है, जिसका प्रथम संस्करण सन् 1899 में मुंबई से प्रकाशित हुआ था। इसके और भी अनेक संपादन निकल चुके हैं। इनमें प्रसिद्ध संस्करण ये हैं : सी.एच्. टॉनी द्वारा अंग्रेजी अनुवाद सहित प्रकाशित (कलकत्ता, 1871), फ्रेंच अनुवाद सहित फ़ेलीनेव (क़ड्ढ"थ्त्न् ग़्ड्ढ"ध्ड्ढ) द्वारा ब्रूसेल्स तथा पॉरिस से 1880 में प्रकाशित, डॉ॰ बेलवलकर द्वारा केवल अंग्रेजी अनुवाद तथा भूमिका के रूप में हॉर्वर्ड ओरिएंटल् सीरीज़ में संपादित (1915 ई.)।

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