"श्लेष अलंकार": अवतरणों में अंतर

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जब किसी [[शब्द]] का प्रयोग एक बार ही किया जाता है पर उसके एक से अधिक [[अर्थ]] निकलते हैं तब [[श्लेष]] [[अलंकार]] होता है।
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'श्लेष' का शाब्दिक अर्थ होता है - 'एक में सटने यो लगने का भाव' ; संयोग, जोड़ या मिलान । इस अलंकार में एक ही शब्द में दो अर्थ 'सटे' या मिले होते हैं, इसीलिए इसे श्लेष कहा जाता है।
'श्लेष' का शाब्दिक अर्थ होता है - 'एक में सटने यो लगने का भाव' ; संयोग, जोड़ या मिलान। इस अलंकार में एक ही शब्द में दो अर्थ 'सटे' या मिले होते हैं, इसीलिए इसे श्लेष कहा जाता है।


== उदाहरण ==
== उदाहरण ==

01:15, 7 सितंबर 2014 का अवतरण

जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही किया जाता है पर उसके एक से अधिक अर्थ निकलते हैं तब श्लेष अलंकार होता है।

'श्लेष' का शाब्दिक अर्थ होता है - 'एक में सटने यो लगने का भाव' ; संयोग, जोड़ या मिलान। इस अलंकार में एक ही शब्द में दो अर्थ 'सटे' या मिले होते हैं, इसीलिए इसे श्लेष कहा जाता है।

उदाहरण

रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।

यहां पानी शब्द का प्रयोग यद्यपि तीन बार किया गया है, किन्तु दूसरी पंक्ति में प्रयुक्त एक ही पानी शब्द के तीन विभिन्न अर्थ हैं - मोती के लिये पानी का अर्थ चमक, मनुष्य के लिये इज्जत (सम्मान) और चूने के लिये पानी (जल) है। अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।

"वह प्रकृति जिसको ढूंढ रहा था मैं अब तक, है संयोग से मेरे साथ मगर मैं तन्हा हूँ।"
उक्त उद्हरण में प्रकृति का संयोगवश साथ होना सामान्य अर्थ प्रतीत होता है किन्तु इसके दूसरे अर्थ में प्रकृति कवि कंटीला की सुपुत्री व संयोग धर्मपत्नि का नाम है और पत्नी के माध्यम से पुत्री का साथ होना ही इसका वास्तविक अर्थ है। अतः यहाँ भी श्लेष अलंकार है।

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