"देवराज यज्वा": अवतरणों में अंतर

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देवराज यज्वा ने अपनी व्याख्या में निघंटु के प्रत्येक शब्द की व्याख्या की है। ये प्राय: अपने पूर्ववर्ती [[स्कंदस्वामी]], [[माधव]] आदि भाष्यकारों के पाठों को प्रस्तुत करते हैं विशेषत: जहाँ उनसे उनका मतभेद होता है।
देवराज यज्वा ने अपनी व्याख्या में निघंटु के प्रत्येक शब्द की व्याख्या की है। ये प्राय: अपने पूर्ववर्ती [[स्कंदस्वामी]], [[माधव]] आदि भाष्यकारों के पाठों को प्रस्तुत करते हैं विशेषत: जहाँ उनसे उनका मतभेद होता है।


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[[श्रेणी:संस्कृत साहित्यकार]]
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16:39, 6 सितंबर 2014 का अवतरण

देवराज यज्वा निघंटु के व्याख्याकार। इनके भाष्य का वास्तविक नाम 'निघंटुनिर्वचन' है जो तत्कालीन निघंटु ग्रंथ के स्वरूप को परिचित कराने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। प्राचीन उपलब्ध निघंटु के निर्वचनकार होने के नाते देवराज यज्वा का नाम उल्लेखनीय है।

परिचय

वेद के सामान्यत: कठिन शब्दों के संकलन को 'निघंटु' कहा जाता है। निघंटु ग्रंथों की परंपरा अत्यंत प्राचीन काल से प्रचलित प्रतीत होती है। वर्तमान उपलब्ध निघंटु यास्क के भाष्यरूप निरुक्त का ही आधार है। इस निघंटु के लेखक के विषय में पर्याप्त मतभेद है। कुछ लोग यास्क को ही निघंटुकार मानते हैं, किंतु यास्क वास्तव में निघंटु के व्याख्याकार हैं, रचयिता नहीं। वर्तमान उपलब्ध निघंटु तीन कांडों में विभक्त है - नैघंटुक कांड, नैगमकांड तथा दैवतकांड।

देवराज यज्वा यज्ञेश्वर के पुत्र थे। कहा जाता है इनके पितामह का नाम भी देवराज यज्वा था। इनका नाम दक्षिण भारत में प्रचलित नामों जैसा है, जो इनके दक्षिणी होने की सूचना देता है। इनका निश्चित समय क्या है, कहना कठिन है। ये सायण से प्राचीन हैं अथवा अर्वाचीन, इस विषय में भी मतभेद है। कुछ विद्वान् इन्हें सायण से परवर्ती ठहराते हैं। इसके विपरीत कुछ प्रमाण इन्हें सायण से पूर्ववर्ती सिद्ध करते हैं। सायणाचार्य ने ऋग्वेद की एक ऋचा (१-६२-३) की व्याख्या में 'निघंटु भाष्य' की कतिपय पंक्तियाँ उद्धृत की हैं, जो कुछ पाठांतर के साथ देवराज यज्वा के भाष्य में भी उपलब्ध होती हैं। यह 'निघंटुभाष्य' देवराजयज्वा का ही भाष्य प्रतीत होता है।

इनके भाष्य का वास्तविक नाम 'निघंटुनिर्वचन' है, जिसमें इन्होंने निघंटु के अन्य कांडों की अपेक्षा, नैघंटुक कांड पर ही विस्तृत निर्वचन किया है। वे स्वयं कहते हैं- 'विचारयति देवराजो नैघंटुक कांडनिर्वचनम्'। देवराज यज्वा ने अपने भाष्य की भूमिका में अमरकोश के टीकाकार क्षीरस्वामी तथा निघंटु के अन्य व्याख्याकारों अनंताचार्य आदि का संकेत किया है। इसके अतिरिक्त जो उन्होंने अपनी भाष्य भूमिका में तत्कालीन निघंटु की प्राप्त विभिन्न पांडुलिपियों के संबंध में सामान्य विवरण प्रस्तुत किया है, वह अत्यंत उपादेय है।

देवराज यज्वा निघंटु के शुद्ध संस्करण प्रस्तुत करने में भी प्रयत्नशील दिखाई देते हैं, जैसा कि उनकी निम्नलिखित पंक्तियों से विदित होता है-

अन्येषां च पदानामस्मत्कुले समाम्राध्ययनस्याविच्छेदात् भाष्यस्य बहुश: पर्यालोचनात् बहुदेशसमानीतात् बहुकोशनिरीक्षणच्च पाठ: संशोधित:

देवराज यज्वा ने अपनी व्याख्या में निघंटु के प्रत्येक शब्द की व्याख्या की है। ये प्राय: अपने पूर्ववर्ती स्कंदस्वामी, माधव आदि भाष्यकारों के पाठों को प्रस्तुत करते हैं विशेषत: जहाँ उनसे उनका मतभेद होता है।

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