"नीबू": अवतरणों में अंतर

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== उत्पादन ==
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विश्व में सबसे अधिक नीबू का उत्पादन [[भारत]] में होता है। यह विश्व के कुल नीबू उत्पादन का १६ प्रतिशत भाग उत्पन्न करता है। [[मैक्सिको]], [[अर्जन्टीना]], [[ब्राजील]] एवं [[स्पेन]] अन्य मुख्य उत्पादक देश हैं। दाहिनी ओर विश्व के दस शीर्ष नीबू उत्पादक देशो की सूची है(२००७ के अनुसार)। नीबू,लगभग सभी प्रकार की भूमियों में सफलतापूर्वक उत्पादन देता है परन्तु जीवांश पदार्थ की अधिकता वाली,उत्तम जल निकास युक्त दोमट भूमि,जिसकी गहराई २-२.५ मी.या अधिक हो,आदर्श मानी जाती है। भूमि का पी-एच ६.५-७.० होने से सर्वोत्तम वृद्धि और उपज मिलती है।
विश्व में सबसे अधिक नीबू का उत्पादन [[भारत]] में होता है। यह विश्व के कुल नीबू उत्पादन का १६ प्रतिशत भाग उत्पन्न करता है। [[मैक्सिको]], [[अर्जन्टीना]], [[ब्राजील]] एवं [[स्पेन]] अन्य मुख्य उत्पादक देश हैं। दाहिनी ओर विश्व के दस शीर्ष नीबू उत्पादक देशो की सूची है (२००७ के अनुसार)। नीबू,लगभग सभी प्रकार की भूमियों में सफलतापूर्वक उत्पादन देता है परन्तु जीवांश पदार्थ की अधिकता वाली,उत्तम जल निकास युक्त दोमट भूमि,जिसकी गहराई २-२.५ मी.या अधिक हो,आदर्श मानी जाती है। भूमि का पी-एच ६.५-७.० होने से सर्वोत्तम वृद्धि और उपज मिलती है।


इसकी कुछ प्रमुख किस्में हैं [[नीबू की किस्में|कागजी नीबू]], [[नीबू की किस्में|प्रमालिनी]], [[नीबू की किस्में|विक्रम]], [[नीबू की किस्में|चक्रधर]], [[नीबू की किस्में|पी के एम-१]] (P K M-1) और [[नीबू की किस्में|साईं शर्बती]]। इनमें से कागजी नीबू सर्वाधिक महत्वपूर्ण किस्म है। इसकी व्यापक लोकप्रियता के कारण इसे खट्टा नीबू का पर्याय माना जाता है। प्रमालिनी किस्म गुच्छे में फलती है,जिसमें ३ से ७ तक फल होते हैं। यह कागजी नीबू की तुलना में ३० प्रतिशत अधिक उपज देती है। इसके फल में ५७ प्रतिशत (कागजी नीबू में ५२ प्रतिशत) रस पाया जाता है। विक्रम नामक किस्म भी गुच्छों में फलन करती है। एक गुच्छे में ५-१० तक फल आते हैं। कभी-कभी [[मई]]-[[जून]] तथा [[दिसंबर|दिसम्बर]] में बेमौसमी फल भी आते हैं। कागजी नीबू की अपेक्षा यह ३०-३२ प्रतिशत अधिक उत्पादन देती है। चक्रधर नामक किस्म खट्टा नीबू की बीज रहित किस्म है जो [[रोपण]] के चौथे वर्ष से फल देना प्रारम्भ कर देती है। इसमें ६०-६६ प्रतिशत [[रस (वनस्पति)|रस]] पाया जाता है। इसके फल प्राय:[[जनवरी]] - [[फरवरी]], जून-[[जुलाई]] तथा [[सितम्बर]]-[[अक्टूबर]] में मिलते हैं। पी के एम-१ नामक किस्म उच्च उत्पादन देने वाली किस्म है, जिसके फल गोल,मध्यम से लेकर बड़े आकार के होते हैं। पीले रंग के फलों में लगभग ५२ प्रतिशत तक रस मिलता है। साई शरबती उच्च उत्पादन क्षमता वाली किस्म है। इसमें ग्रीष्म फलन की प्रवृत्ति पाई जाती है। बीजरहित (सीडलेस) नीबू- यह एक नया चयन है जो अन्य किस्मों से दोगुना उत्पादन देता है। यह एक पछैती किस्म है जिसके फल हल्के गुलाबी रंग वाले और पतले छिलके वाले होते हैं। इसके अतिरिक्त ताहिती या पर्शियन वर्ग के नीबू [[गुणसूत्र]] त्रिगुणित होते हैं। फल आकार में बड़े व बीजरहित होते हैं। [[असम]] के कुछ क्षेत्रों में [[नीबू की किस्में|अभयपुरी लाइम]] तथा [[नीबू की किस्में|करीमगंज लाइम]] भी उगाये जाते हैं।<ref>{{cite web |url= http://opaals.iitk.ac.in/deal/embed.jsp?url=crops-type.jsp&url2=94&url3=&url4=%E0%A4%AB%E0%A4%B2&url5=%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%82%E0%A4%AC%E0%A5%82&url6=HI|title=फल नीबू|accessmonthday=[[९ मार्च]]|accessyear=[[२००९]]|format=जेएसपी|publisher=डील|language=}}</ref>
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12:38, 1 सितंबर 2014 का अवतरण

नीबू का वृक्ष

नीबू (Citrus limon, Linn.) छोटा पेड़ अथवा सघन झाड़ीदार पौधा है। इसकी शाखाएँ काँटेदार, पत्तियाँ छोटी, डंठल पतला तथा पत्तीदार होता है। फूल की कली छोटी और मामूली रंगीन, या बिल्कुल सफेद, होती है। प्रारूपिक (टिपिकल) नीबू गोल या अंडाकार होता है। छिलका पतला होता है, जो गूदे से भली भाँति चिपका रहता है। पकने पर यह पीले रंग का या हरापन लिए हुए होता है। गूदा पांडुर हरा, अम्लीय तथा सुगंधित होता है। कोष रसयुक्त, सुंदर एवं चमकदार होते हैं।

नीबू अधिकांशत: उष्णदेशीय भागों में पाया जाता है। इसका आदिस्थान संभवत: भारत ही है। यह हिमालय की उष्ण घाटियों में जंगली रूप में उगता हुआ पाया जाता है तथा मैदानों में समुद्रतट से 4,000 फुट की ऊँचाई तक पैदा होता है। इसकी कई किस्में होती हैं, जो प्राय: प्रकंद के काम में आती हैं, उदाहरणार्थ फ्लोरिडा रफ़, करना या खट्टा नीबू, जंबीरी आदि। कागजी नीबू, कागजी कलाँ, गलगल तथा लाइम सिलहट ही अधिकतर घरेलू उपयोग में आते हैं। इनमें कागजी नीबू सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसके उत्पादन के स्थान मद्रास, बंबई, बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र हैदराबाद, दिल्ली, पटियाला, उत्तर प्रदेश, मैसूर तथा बड़ौदा हैं।

नीबू की उपयोगिता जीवन में बहुत अधिक है। इसका प्रयोग अधिकता से भोज्य पदार्थों में किया जाता है। इससे विभिन्न प्रकार के पदार्थ, जैसे तेल, पेक्टिन, सिट्रिक अम्ल, रस, स्क्वाश तथा सार (essence) आदि तैयार किए जाते हैं।

परिचय

विटामिन सी से भरपूर नीबू स्फूर्तिदायक और रोग निवारक फल है। इसका रंग पीला या हरा तथा स्वाद खट्टा होता है। इसके रस में ५% साइट्रिक अम्ल होता है तथा जिसका pH २ से ३ तक होता है। किण्वन पद्धति के विकास के पहले नीबू ही साइट्रिक अम्ल का सर्वप्रमुख स्त्रोत था। साधारणतः नीबू के पौधे आकार में छोटे ही होते हैं पर कुछ प्रजातियाँ ६ मीटर तक लम्बी उग सकती हैं। नींबू की उत्पत्ति कहाँ हुई इसके बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं है परन्तु आमतौर पर लोग यही मानते हैं कि यह पौधा मूल रूप से भारत, उत्तरी म्यांमार एवं चीन का निवासी है।[1][2] खाने में नीबू का प्रयोग कब से हो रहा है इसके निश्चित प्रमाण तो नहीं हैं लेकिन यूरोप और अरब देशों में लिखे गए दसवीं सदी के साहित्य में इसका उल्लेख मिलता है। मुगल काल में नीबू को शाही फल माना जाता था। कहा जाता है कि भारत में पहली बार असम में नीबू की पैदावार हुई।[3]

पौष्टिक गुण

नीबू

नीबू में ए, बी और सी विटामिनों की भरपूर मात्रा है-विटामिन ए अगर एक भाग है तो विटामिन बी दो भाग और विटामिन सी तीन भाग। इसमें -पोटेशियम, लोहा, सोडियम, मैगनेशियम, तांबा, फास्फोरस और क्लोरीन तत्त्व तो हैं ही, प्रोटीन, वसा और कार्बोज भी पर्याप्त मात्रा में हैं।[4] विटामिन सी से भरपूर नीबू शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही एंटी आक्सीडेंट का काम भी करता है और कोलेस्ट्राल भी कम करता है। नीबू में मौजूद विटामिन सी और पोटेशियम घुलनशील होते हैं, जिसके कारण ज्यादा मात्रा में इसका सेवन भी नुकसानदायक नहीं होता। रक्ताल्पता से पीडि़त मरीजों को भी नीबू के रस के सेवन से फायदा होता है। यही नहीं, नीबू का सेवन करने वाले लोग जुकाम से भी दूर रहते हैं। एक नीबू दिन भर की विटामिन सी की जरूरत पूरी कर देता है। नीबू के कुछ घरेलू प्रयोगों पर लगभग हर भारतीय का विश्वास हैं। ऐसा माना जाता है कि दिन भर तरोताजा रहने और स्फूर्ति बनाए रखने के लिए एक गिलास गुनगुने पानी में एक नीबू का रस व एक चम्मच शहद मिलाकर पीना चाहिए। एक बाल्टी पानी में एक नीबू के रस को मिलाकर गर्मियों में नहाने से दिनभर ताजगी बनी रहती है। गर्मी के मौसम में हैजे से बचने के लिए नीबू को प्याजपुदीने के साथ मिलाकर सेवन करना चाहिए। लू से बचाव के लिए नीबू को काले नमक वाले पानी में मिलाकर पीने से दोपहर में बाहर रहने पर भी लू नहीं लगती। इसके अलावा इसमें विटामिन ए, सेलेनियम और जिंक भी होता है। गले में मछली का कांटा फंस जाए तो नीबू के रस को पीने से निकल जाता है।[5]

खेती

नींबू के पौधे के लिए पाला अत्यंत हानिकारक है। यह दक्षिण भारत में अच्छी तरह पैदा हो सकता है, क्योंकि वहाँ का जलवायु उष्ण होता है और पाला तथा शीतवायु का नितांत अभाव रहता है। पौधे विभिन्न प्रकार की भूमि में भली प्रकार उगते हैं, परंतु उपजाऊ तथा समान बनावट की दोमट मिट्टी, जो आठ फुट की गहराई तक एक सी हो, आदर्श समझी जाती है। स्थायी रूप से पानी एकत्रित रहना, अथवा सदैव ऊँचे स्तर तक पानी विद्यमान रहना, या जहाँ पानी का स्तर घटता बढ़ता रहे, ऐसे स्थान पौधों की वृद्धि के लिए अनुपयुक्त हैं।

नीबू के पौधे साधारणतया बीज तथा गूटी से उत्पन्न किए जाते हैं। नियमानुसार पौधों को 20-20 फुट के अंतर पर लगाना चाहिए। इसके लिए, ढाई फुट x ढाई फुट x ढाई फुट के गड्ढे उपयुक्त हैं। इनमें बरसात के ठीक पहले गोबर की सड़ी हुई खाद, या कंपोस्ट खाद, एक मन प्रति गड्ढे के हिसाब से डालनी चाहिए। पौधे लगाते समय गड्ढे के मध्य से थोड़ी मिट्टी हटाकर उसमें पौधा लगा देना चाहिए और उस स्थान से निकली हुई मिट्टी जड़ के चारों ओर लगाकर दबा देनी चाहिए। जुलाई की वर्षा के बाद जब मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाए तभी पौधा लगाना चाहिए। पौधे लगाते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जमीन में इनकी गहराई उतनी ही रहे जितनी रोप में थी। पौधे लगाने के बाद तुंरत ही पानी दे देना चाहिए। जलवृष्टि पर निर्भर रहनेवाले क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में कई बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। सिंचाई का परिमाण जलवृष्टि के वितरण एवं मात्रा पर निर्भर है।

हर सिंचाई में पानी इतनी ही मात्रा में देना चाहिए जिससे भूमि में पानी की आर्द्रता 4-6 प्रति शत तक विद्यमान रहे। सिंचाई करने की सबसे उपयुक्त विधि 'रिंग' रीति है।

नीबू प्रजाति के सभी प्रकार के फलों के लिए खाद की कोई निश्चित मात्रा अभिस्तावित नहीं की जा सकती है। पर साधारण रूप से नीबू के लिए 40 सेर गोबर की खाद, एक सेर

सुपरफॉस्फेट तथा आधार सेर पोटासियम सल्फेट पर्याप्त होता है। गौण तत्वों की भी इसको आवश्यकता पड़ती है, जिनमें मुख्य जस्ता, बोरन, ताँबा तथा मैंगनीज़ हैं।

जहाँ पर सिंचाई के साधन हैं, वहाँ पर अंतराशस्य लगाना लाभप्रद होगा। दक्षिण भारत तथा असम में अनन्नास तथा पपीता नीबू के पेड़ों के बीच में लगाते हैं। इनके अतिरिक्त तरकारियाँ, जैसे गाजर, टमाटर, मूली, मिर्चा तथा बैगन आदि भी, सरलतापूर्वक उत्पन्न किए जा सकते हैं।

नीबू प्रजाति के पौधों को सिद्धांत: कम काट छाँट की आवश्यकता पड़ती है। जो कुछ काट छाँट की भी जाति है, वह पेड़ों की वांछनीय आकार देने के लिए और अच्छी दशा में रखने के लिए की जाती है।

उत्तरी भारत में साधारणत: फल साल में दो बार आते हैं, परंतु इनके फूलने का प्रमुख समय वसंत ऋतु (फरवरी-मार्च) है। इसके उत्पादन की कोई विश्वसनीय संख्या प्राप्त नहीं है, किंतु नीबू की विभिन्न किस्मों का उत्पादन प्रति पेड़ 150 से 1,000 फलों के लगभग होता है।

नीबू को अनेक प्रकार के रोग तथा कीड़े भी हानि पहुँचाते हैं। इनमें से शल्क (scab), नीबू कैंकर, साइट्रस रेड माइट (Citrus red mite), ग्रीन मोल्ड (Penicillium digitatum), मीली बग (mealy bugs) इत्यादि प्रमुख हैं।

देश उत्पादन (टन में)
 भारत २,०६०,०००F
 मेक्सिको १,८८०,०००F
 अर्जेंटीना १,२६०,०००F
 ब्राज़ील १,०६०,०००F
 स्पेन ८८०,०००F
 चीनी जनवादी गणराज्य ७४५,१००F
 संयुक्त राज्य अमेरिका ७२२,०००
 तुर्की ७०६,६५२
 ईरान ६१५,०००F
 इटली ५४६,५८४
साँचा:Country data World १३,०३२,३८८F
कोई प्रतीक नहीं = आधिकारिक आंकड़े, F = FAO अनुमानितः, A = सकल (आधिकारिक, अर्ध आधिकारिक और अनुमानित: आंकडे़ शामिल हो सकते हैं);

स्त्रोत: संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन: आर्थिक और सामाजिक विभागः सांख्यकीय शाखा

उत्पादन

विश्व में सबसे अधिक नीबू का उत्पादन भारत में होता है। यह विश्व के कुल नीबू उत्पादन का १६ प्रतिशत भाग उत्पन्न करता है। मैक्सिको, अर्जन्टीना, ब्राजील एवं स्पेन अन्य मुख्य उत्पादक देश हैं। दाहिनी ओर विश्व के दस शीर्ष नीबू उत्पादक देशो की सूची है (२००७ के अनुसार)। नीबू,लगभग सभी प्रकार की भूमियों में सफलतापूर्वक उत्पादन देता है परन्तु जीवांश पदार्थ की अधिकता वाली,उत्तम जल निकास युक्त दोमट भूमि,जिसकी गहराई २-२.५ मी.या अधिक हो,आदर्श मानी जाती है। भूमि का पी-एच ६.५-७.० होने से सर्वोत्तम वृद्धि और उपज मिलती है।

इसकी कुछ प्रमुख किस्में हैं कागजी नीबू, प्रमालिनी, विक्रम, चक्रधर, पी के एम-१ (P K M-1) और साईं शर्बती। इनमें से कागजी नीबू सर्वाधिक महत्वपूर्ण किस्म है। इसकी व्यापक लोकप्रियता के कारण इसे खट्टा नीबू का पर्याय माना जाता है। प्रमालिनी किस्म गुच्छे में फलती है,जिसमें ३ से ७ तक फल होते हैं। यह कागजी नीबू की तुलना में ३० प्रतिशत अधिक उपज देती है। इसके फल में ५७ प्रतिशत (कागजी नीबू में ५२ प्रतिशत) रस पाया जाता है। विक्रम नामक किस्म भी गुच्छों में फलन करती है। एक गुच्छे में ५-१० तक फल आते हैं। कभी-कभी मई-जून तथा दिसम्बर में बेमौसमी फल भी आते हैं। कागजी नीबू की अपेक्षा यह ३०-३२ प्रतिशत अधिक उत्पादन देती है। चक्रधर नामक किस्म खट्टा नीबू की बीज रहित किस्म है जो रोपण के चौथे वर्ष से फल देना प्रारम्भ कर देती है। इसमें ६०-६६ प्रतिशत रस पाया जाता है। इसके फल प्राय:जनवरी - फरवरी, जून-जुलाई तथा सितम्बर-अक्टूबर में मिलते हैं। पी के एम-१ नामक किस्म उच्च उत्पादन देने वाली किस्म है, जिसके फल गोल,मध्यम से लेकर बड़े आकार के होते हैं। पीले रंग के फलों में लगभग ५२ प्रतिशत तक रस मिलता है। साई शरबती उच्च उत्पादन क्षमता वाली किस्म है। इसमें ग्रीष्म फलन की प्रवृत्ति पाई जाती है। बीजरहित (सीडलेस) नीबू- यह एक नया चयन है जो अन्य किस्मों से दोगुना उत्पादन देता है। यह एक पछैती किस्म है जिसके फल हल्के गुलाबी रंग वाले और पतले छिलके वाले होते हैं। इसके अतिरिक्त ताहिती या पर्शियन वर्ग के नीबू गुणसूत्र त्रिगुणित होते हैं। फल आकार में बड़े व बीजरहित होते हैं। असम के कुछ क्षेत्रों में अभयपुरी लाइम तथा करीमगंज लाइम भी उगाये जाते हैं।[6]

पुराने समय से ही नीबू एक गर्भ निरोधक के रूप मे इस्तेमाल होता रहा है, पर आधुनिक युग मे इसके इस गुण की ओर लोगों ने ध्यान कम ही दिया है। ऑस्ट्रेलिया के कुछ वैज्ञानिकों ने अपने एक शोध के दौरान पाया है कि नीबू का रस मानव शुक्राणु को मारने मे सक्षम है, साथ ही यह एच आई वी विषाणु को भी मार देता है।[7]

नींबू के फायदे

(1) झुर्रियों के लिए: नींबू के प्रयोग से झुर्रियों की समस्‍या से निजात मिलती है। यह एक अच्छा एंटीऑक्सीडेंट भी है, जो त्वचा की झुर्रियों से छुटकारा दिलाता है। झुर्रियों की समस्‍या के लिए आप फेस पैक बना सकते हैं। इसके लिए कुछ बूंद नींबू के रस में एक बूंद मीठा बादाम तेल मिलाएं। इस पैक को अपने चेहरे पर 20 मिनट तक लगाकर रखें। नींबू के रस और सेब के सिरके को बराबर मात्रा में मिलाकर भी चेहरे पर लगा सकते हैं। इससे झुर्रियों से निजात मिलेगी।

(2)त्‍वचा में निखार: यह त्वचा निखार लाता है और साथ ही साथ त्‍वचा को नर्म और मुलायम भी बनाता है। चेहरे, घुटने और कोहनी की त्वचा को मुलायम और चमकदार बनाने के लिए नींबू का रस लगाएं। इसके अलावा नींबू का छिलका एक नैचुरल टॉनिक की तरह काम करता है और इसको त्वचा पर रगड़ने से परतों को उखाड़ने में मदद मिलती है। नींबू युक्त तेल के प्रयोग से रूखी त्वचा में भी निखार आता है।

(3) पाचन ठीक रखता है: नींबू का सेवन करने से पाचन तंत्र भी ठीक रहता है। इसमें फ्लेवनॉयड्स मौजूद होते हैं जो पाचन तंत्र को ठीक रखते हैं। यही वजह है कि पेट खराब होने पर नींबू पानी पिलाया जाता है। इसमें मौजूद विटामिन सी शरीर में पेप्टिक अल्सर नहीं बनने देता है। खाने के बाद नींबू का टुकड़ा चूसने से पाचन क्रिया ठीक रखने में मदद मिलती है।

(4) प्रतिरोधक क्षमता के लिए: नींबू में एंटीऑक्सीडेंट्स, विटामिन सी आदि बहुत अधिक मात्रा में होते हैं जिससे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर रोगों व संक्रमणों से दूर रहता है। इसके अलावा यह शरीर को श्वास संबंधी बीमारियों से भी दूर रखता है। इसमें सैपोनि‌न नामक तत्व होता है जो शरीर को फ्लू से बचाने में मदद करता है।

(5) खून साफ रखता है: खून को साफ रखने में भी नींबू अहम भूमिका निभाता है। नींबू में मौजूद साइट्रिक और एस्कोर्बिक एसिड रक्त से तमाम तरह के एसिड को दूर करने में मदद करते हैं। यह मेटाबॉलिज्म का स्‍तर बढ़ाता है जिससे एसिड बाहर निकलते हैं। इसलिए खून को साफ रखने के लिए नींबू का सेवन करना चाहिए।

(6) ऊर्जा के लिए: नींबू शरीर में ताजगी लाता है और थकान दूर कर शरीर को ऊर्जावान बनाता है। अगर दिन की शुरुआत ही ताजगी भरी हो तो दिन भी ताजा ही बीतेगा, ऐसा माना जाता है, ऐसे में रोज सुबह नींबू पानी का सेवन न सिर्फ आपको तरोताजा रखता है बल्कि यह दिनभर आपको ऊर्जावान भी बनाये रखता है।

(7) वजन कम करने के लिए: वजन कई लोगों के लिए बड़ी समस्‍या की तरह है, इसपर आसानी से काबू नहीं पाया जा सकता है। लेकिन लोग कहते हैं कि मोटापा घटाना है तो सुबह सुबह नींबू पानी का सेवन करो। लेकिन सुबह के समय नींबू पानी सिर्फ मोटे ही नहीं बल्क‌ि हर व्यक्ति के लिए जरूरी है जो दिन की शुरूआत ताजगी से करना चाहते हैं। खाली पेट गरम पानी में नींबू और शहद मिला कर पीने से आप अपना वजन एक महीने में कम कर सकते हैं।

(8) मसूड़े की समस्‍या: नींबू का रस विटामिन सी, विटामिन, बी, कैल्शियम, फास्‍फोरस मैग्नीशियम, प्रोटीन और कार्बोहाईड्रेट से भरपूर होता है। विशेषज्ञों की मानें तो यदि मसूढ़ों से खून का रिसवा हो रहा है तो प्रभावित जगह पर नींबू का रस लगाने खून का रिसना बंद हो जाता है और मसूढ़े स्वस्थ हो जाते हैं। यही नहीं नींबू का रस पानी में मिलाकर गरारा करने से गला भी खुल जाता है

(9) बालों की समस्‍या: बालों की समस्‍या को दूर करने के लिए नींबू का इस्‍तेमाल कीजिए, यह बालों से डैंड्रफ निकालकर बालों को घना और चमकदार बनाता है। नींबू का रस बालों में लगाकर 15-20 मिनट के लिए छोड़ दीजिए, उसके बाद बालों को सामान्‍य पानी से धो लीजिए। अदरक और नींबू के रस का बराबर मात्रा में मिलाकर सर में लगाने से जूएं मर जाती हैं।

(10) पेट की समस्‍या के लिए: नींबू के रस में अदरक का रस मिलाकर और थोड़ी सी शक्कर मिलाकर पीने से पेट दर्द से निजात मिलती है। नींबू का रस पानी में मिलाकर गर्मियों में पीने से गर्मी शांत होती और पेट में गैस नहीं बनती। सब्जियों और दालों पर नींबू निचोड़ कर खाने से सब्जियों के स्वाद और पोषकता में वृध्दि होती है और यह आसानी से पच भी जाता है। इसके अलावा नींबू का रस पूरे शरीर की सफाई करता है और पेट के कीड़ों को भी मारता है।सन्दर्भ त्रुटि: अमान्य <ref> टैग; (संभवतः कई) अमान्य नाम

संदर्भ

  1. Wright, A. Clifford. History of Lemonade, CliffordAWright.com
  2. The origins, limmi.it.
  3. "गुणों की खान है नीबू" (एचटीएमएल). ओरलैंडो झाँसी. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  4. "प्रकृति द्वारा स्वास्थ्य नीबू और आँवला" (पीएचपी). भारतीय साहित्य संग्रह. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  5. "नीबू एक फ़ायदे अनेक". जागरण. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  6. "फल नीबू" (जेएसपी). डील. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  7. नीबू परिवार नियोजन में सहायक=

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ