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'''भूगोलीय सूचना प्रणाली (भूसूप्रण) ''' ([[अंग्रेज़ी]]:''जियोग्राफिक इनफॉरमेशन सिस्टम'' जीआईएस) उपलब्ध [[हार्डवेयर]], [[सॉफ्टवेयर]] को एकीकृत कर के भौगोलिक संदर्भ सूचनाओं के लिए आंकड़े एकत्र, प्रबंधन, विश्लेषित और प्रदर्शित करता है।<ref name="हिन्दुस्तान">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-99870.html जी.आई.एस.]।हिन्दुस्तान लाइव।१० मार्च, २०१०</ref> इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग वैज्ञानिक अनुसंधान, संसाधन प्रबंधन (रिसोर्स मैनेजमेंट), संपत्ति प्रबंधन, पुरातात्त्विक कार्य, शहरीकरण व अपराध विज्ञान में होता है। उदाहरण के तौर पर भूसूप्रण (जीआईएस) के द्वारा ये पता लगाया जा सकता है कि कौन से क्षेत्रों में प्रदूषण कितना है? इस प्रणाली के माध्यम से आकड़ों को सरलता से समझा और बांटा जा सकता है।
'''भौगोलिक सूचना तंत्र''' या '''भौगोलिक सूचना प्रणाली''' अथवा संक्षेप में जी॰आई॰एस॰, ([[अंग्रेज़ी]] [[:en:Geographic information system|Geographic information system]] कंप्यूटर [[हार्डवेयर]] और [[सॉफ्टवेयर]] को [[भौगोलिक सूचना]] के साथ एकीकृत कर इनके लिए आंकड़े एकत्रण, प्रबंधन, विश्लेषण, संरक्षण और निरूपण की व्यवस्था करता है।<ref name="हिन्दुस्तान">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-99870.html जी॰आई॰एस]।हिन्दुस्तान लाइव।१० मार्च, २०१०</ref> इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग वैज्ञानिक अनुसंधान, संसाधन प्रबंधन (रिसोर्स मैनेजमेंट), संपत्ति प्रबंधन, पुरातात्त्विक कार्य, शहरीकरण व अपराध विज्ञान में होता है। उदाहरण के तौर पर (जी॰आई॰एस) के द्वारा ये पता लगाया जा सकता है कि कौन से क्षेत्रों में प्रदूषण कितना है? इस प्रणाली के माध्यम से आकड़ों को सरलता से समझा और वर्गीकृत जा सकता है।


सन् [[१९६२]] में [[कनाडा]] के [[ऑन्टेरियो]] में प्रथम भूगोलीय निर्देशांक प्रणाली बनायी गई थी। यह कनाडा के संघीय वन एवं ग्रामीण विकास विभाग (''फेडरल डिपॉर्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री और रूरल डेवलपमेंट'') द्वारा बनायी गई थी। इसका निर्माण डॉ. रॉजर टॉमलिसन ने किया था। इस प्रणाली को कनाडा ज्योग्राफिक इनफॉरमेशन सिस्टम कहा जाता है और इसका प्रयोग कनाडा लैंड इन्वेंटरी द्वारा आंकड़े एकत्रित और विश्लेषित करने हेतु किया जाता है। इसके माध्यम से कनाडा के ग्रामीण क्षेत्रों की जमीन, कृषि, पानी, वन्य-जीवन आदि के बारे में जानकारी एकत्रित की जाती थी। [[भारत]] में भी [[जनसंख्या स्थिरता कोष]] इस कार्य को कर रहा है। मानचित्रों और [[जनसंख्या]] आंकड़ों के अद्वितीय एकीकरण के जरिए समस्त भारत में ४८५ जिलों के मानचित्र तैयार कर चुका है जो प्रत्येक जिले, इसके उप-प्रभागों और प्रत्येक गांव की जनसंख्या तथा स्वास्थ्य सुविधाओं से दूरी की स्थिति दर्शाते हैं। प्रत्येक गांव तक पहुंचाई गई सुविधाओं की विषमता को भी मानचित्रों में दर्शाया गया है वे सुविधाएं वहाँ उपलब्ध कराई जाएं जहाँ उनकी अत्यधिक आवश्यकता है।<ref>[http://www.jsk.gov.in/hindi/whatjskwilldo.asp जनसंख्या स्थिरता कोष के कार्य क्या होंगे?]</ref>[[भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान]] सुदूर संवेदन, जी.आई.एस., अनुकरण मॉडल्स तथा संबंधित डेटाबेस आंकड़ों का उपयोग करते हुए गंगा-यमुना क्षेत्रों में फसलों की उत्पादकता का निर्धार करता है।<ref>[http://www.iari.res.in/krishisewa/Center5/Center5.htm भारतीय कृषि अनुसंधान संस्था- कृषि भौतिकी संभाग]</ref>
सन् [[१९६२]] में [[कनाडा]] के [[ऑन्टेरियो]] में प्रथम भूगोलीय निर्देशांक प्रणाली बनायी गई थी। यह कनाडा के संघीय वन एवं ग्रामीण विकास विभाग (''फेडरल डिपॉर्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री और रूरल डेवलपमेंट'') द्वारा बनायी गई थी। इसका निर्माण डॉ. रॉजर टॉमलिसन ने किया था। इस प्रणाली को कनाडा ज्योग्राफिक इनफॉरमेशन सिस्टम कहा जाता है और इसका प्रयोग कनाडा लैंड इन्वेंटरी द्वारा आंकड़े एकत्रित और विश्लेषित करने हेतु किया जाता है। इसके माध्यम से कनाडा के ग्रामीण क्षेत्रों की जमीन, कृषि, पानी, वन्य-जीवन आदि के बारे में जानकारी एकत्रित की जाती थी। [[भारत]] में भी [[जनसंख्या स्थिरता कोष]] इस कार्य को कर रहा है। मानचित्रों और [[जनसंख्या]] आंकड़ों के अद्वितीय एकीकरण के जरिए समस्त भारत में ४८५ जिलों के मानचित्र तैयार कर चुका है जो प्रत्येक जिले, इसके उप-प्रभागों और प्रत्येक गांव की जनसंख्या तथा स्वास्थ्य सुविधाओं से दूरी की स्थिति दर्शाते हैं। प्रत्येक गांव तक पहुंचाई गई सुविधाओं की विषमता को भी मानचित्रों में दर्शाया गया है वे सुविधाएं वहाँ उपलब्ध कराई जाएं जहाँ उनकी अत्यधिक आवश्यकता है।<ref>[http://www.jsk.gov.in/hindi/whatjskwilldo.asp जनसंख्या स्थिरता कोष के कार्य क्या होंगे?]</ref>[[भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान]] सुदूर संवेदन, जी.आई.एस., अनुकरण मॉडल्स तथा संबंधित डेटाबेस आंकड़ों का उपयोग करते हुए गंगा-यमुना क्षेत्रों में फसलों की उत्पादकता का निर्धार करता है।<ref>[http://www.iari.res.in/krishisewa/Center5/Center5.htm भारतीय कृषि अनुसंधान संस्था- कृषि भौतिकी संभाग]</ref>

08:17, 17 जुलाई 2014 का अवतरण

डिजिटल एलिवेशन प्रतिरूप, मानचित्र, और वेक्टर डाटा

भौगोलिक सूचना तंत्र या भौगोलिक सूचना प्रणाली अथवा संक्षेप में जी॰आई॰एस॰, (अंग्रेज़ी Geographic information system कंप्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर को भौगोलिक सूचना के साथ एकीकृत कर इनके लिए आंकड़े एकत्रण, प्रबंधन, विश्लेषण, संरक्षण और निरूपण की व्यवस्था करता है।[1] इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग वैज्ञानिक अनुसंधान, संसाधन प्रबंधन (रिसोर्स मैनेजमेंट), संपत्ति प्रबंधन, पुरातात्त्विक कार्य, शहरीकरण व अपराध विज्ञान में होता है। उदाहरण के तौर पर (जी॰आई॰एस) के द्वारा ये पता लगाया जा सकता है कि कौन से क्षेत्रों में प्रदूषण कितना है? इस प्रणाली के माध्यम से आकड़ों को सरलता से समझा और वर्गीकृत जा सकता है।

सन् १९६२ में कनाडा के ऑन्टेरियो में प्रथम भूगोलीय निर्देशांक प्रणाली बनायी गई थी। यह कनाडा के संघीय वन एवं ग्रामीण विकास विभाग (फेडरल डिपॉर्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री और रूरल डेवलपमेंट) द्वारा बनायी गई थी। इसका निर्माण डॉ. रॉजर टॉमलिसन ने किया था। इस प्रणाली को कनाडा ज्योग्राफिक इनफॉरमेशन सिस्टम कहा जाता है और इसका प्रयोग कनाडा लैंड इन्वेंटरी द्वारा आंकड़े एकत्रित और विश्लेषित करने हेतु किया जाता है। इसके माध्यम से कनाडा के ग्रामीण क्षेत्रों की जमीन, कृषि, पानी, वन्य-जीवन आदि के बारे में जानकारी एकत्रित की जाती थी। भारत में भी जनसंख्या स्थिरता कोष इस कार्य को कर रहा है। मानचित्रों और जनसंख्या आंकड़ों के अद्वितीय एकीकरण के जरिए समस्त भारत में ४८५ जिलों के मानचित्र तैयार कर चुका है जो प्रत्येक जिले, इसके उप-प्रभागों और प्रत्येक गांव की जनसंख्या तथा स्वास्थ्य सुविधाओं से दूरी की स्थिति दर्शाते हैं। प्रत्येक गांव तक पहुंचाई गई सुविधाओं की विषमता को भी मानचित्रों में दर्शाया गया है वे सुविधाएं वहाँ उपलब्ध कराई जाएं जहाँ उनकी अत्यधिक आवश्यकता है।[2]भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान सुदूर संवेदन, जी.आई.एस., अनुकरण मॉडल्स तथा संबंधित डेटाबेस आंकड़ों का उपयोग करते हुए गंगा-यमुना क्षेत्रों में फसलों की उत्पादकता का निर्धार करता है।[3]

भूगोलीय निर्देशांक प्रणाली को मुख्यत: तीन तरीकों से देखा जा सकता है।

  • डाटाबेस : यह डाटाबेस संसार का अनन्य तरीके का डाटाबेस होता है। एक तरह से यह भूज्ञान की सूचना प्रणाली होती है। बुनियादी तौर पर भूसूप्रण (जीआईएस) प्रणाली मुख्यत: संरचनात्मक डाटाबेस पर आधारित होती है, जो कि विश्व के बारे में भौगोलिक शब्दों के आधार पर बताती है।
  • मानचित्र : यह ऐसे मानचित्रों का समूह होता है जो पृथ्वी की सतह सबंधी बातें विस्तार से बताते है।
  • प्रतिरूप : यह सूचना परिवर्तन उपकरणों का समूह होता है जिसके माध्यम से वर्तमान डाटाबेस द्वारा नया डाटाबेस बनाया जाता है।

इन्हें भी देखें

संदर्भ

  1. जी॰आई॰एस।हिन्दुस्तान लाइव।१० मार्च, २०१०
  2. जनसंख्या स्थिरता कोष के कार्य क्या होंगे?
  3. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्था- कृषि भौतिकी संभाग

बाहरी सूत्र