"एयर इंडिया फ़्लाइट 182": अवतरणों में अंतर

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07:03, 6 मार्च 2013 का अवतरण

एयर इंडिया फ़्लाइट 182 मॉन्ट्रियल-लंदन-दिल्ली-मुंबई मार्ग के बीच परिचालित होने वाली एयर इंडिया की उड़ान थी. 23 जून, 1985 को मार्ग — पर परिचालित होने वाला एक हवाई जहाज़, बोइंग 747-237B (c/n 21473/330, reg VT-EFO) जिसका नाम सम्राट कनिष्क — के नाम पर रखा गया था, आयरिश हवाई क्षेत्र में उड़ते समय, 31,000 फीट (9,400 मी॰) की ऊंचाई पर, बम से उड़ा दिया गया और वह अटलांटिक महासागर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया. 329 लोगों की मृत्यु हुई, जिनमें अधिकांश भारत में जन्मे या भारतीय मूल के 280 कनाडाई नागरिक और 22 भारतीय शामिल थे.[1] यह घटना आधुनिक कनाडा के इतिहास में सबसे बड़ी सामूहिक हत्या थी. विस्फोट और वाहन का गिरना, संबंधित नारिटा हवाई अड्डे की बमबारी के एक घंटे के भीतर घटित हुआ.

जांच और अभियोजन में लगभग 20 वर्ष लगे और यह कनाडा के इतिहास में, लगभग CAD $130 मिलियन की लागत के साथ, सबसे महंगा परीक्षण था. एक विशेष आयोग ने प्रतिवादियों को दोषी नहीं पाया और उन्हें छोड़ दिया गया. 2003 में मानव-हत्या की अपराध स्वीकृति के बाद, केवल एक व्यक्ति को बम विस्फोट में लिप्त होने का दोषी पाया गया. परिषद के गवर्नर जनरल ने 2006 में भूतपूर्व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जॉन मेजर को जांच आयोग के संचालन के लिए नियुक्त किया और उनकी रिपोर्ट 17 जून 2010 को पूरी हुई और जारी की गई. यह पाया गया कि कनाडा सरकार, रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस, और कैनेडियन सेक्युरिटी इंटलिजेन्स सर्विस द्वारा "त्रुटियों की क्रमिक श्रृंखला" की वजह से आतंकवादी हमले को मौक़ा मिला.[2]

घटना-पूर्व समय-रेखा

26 जून 1978 को एयर इंडिया को सुपुर्द बोइंग 747-237B सम्राट कनिष्क AI181 के रूप में टोरंटो से मॉन्ट्रियल तक, और AI182 के रूप में मॉन्ट्रियल से लंदन और दिल्ली के ज़रिए बंबई तक की उड़ान पर था.

20 जून 1985 को, 0100 GMT बजे, एक व्यक्ति ने, जिसने ख़ुद को मि.सिंह बतलाया, 22 जून की दो उड़ानों के लिए आरक्षण करवाया: एक "जसवंत सिंह" के लिए कैनेडियन पैसिफ़िक (CP) एयर लाइंस फ़्लाइट 086 पर वैंकूवर से टोरंटो के लिए, और एक "मोहिंदरबेल सिंह" के लिए CP एयर लाइंस फ़्लाइट 003 पर वैंकूवर से टोक्यो और आगे बैंकॉक जाने वाली एयर इंडिया (AI) फ़्लाइट 301 में कनेक्ट उड़ान के लिए. उसी दिन 0220 GMT बजे, "जसवंत सिंह" के नाम पर CP 086 से CP 060 में आरक्षण बदलते हुए एक और फ़ोन किया गया, जो वैंकूवर से टोरंटो के लिए उड़ान भरने वाले थे. फ़ोन करने वाले ने आगे यह भी अनुरोध किया कि टोरंटो से मॉन्ट्रियल के लिए AI 181 पर और मॉन्ट्रियल से बंबई AI 182 पर उन्हें प्रतीक्षा सूची में रखा जाए. GMT 1910 बजे, एक व्यक्ति ने वैंकूवर के CP टिकट कार्यालय में $3,005 नकद के साथ दो टिकटों के लिए भुगतान किया. आरक्षणों पर नाम परिवर्तित किए गए: "जसवंत सिंह" बन गए "एम.सिंह" और "मोहिंदरबेल सिंह" बन गए "एल.सिंह".

22 जून 1985 को GMT 1330 बजे, एक व्यक्ति ने अपना नाम "मंजीत सिंह" बता कर AI फ़्लाइट 181/182 पर अपने आरक्षण की पुष्टि जाननी चाही. उन्हें बताया गया वे अभी भी प्रतीक्षा सूची में हैं, और वैकल्पिक व्यवस्था की पेशकश की गई, जिसे उन्होंने मना कर दिया.

बम विस्फोट

22 जून को GMT 15:50 बजे सिंह ने टोरंटो की कैनेडियन पैसिफ़िक एयर लाइंस फ़्लाइट 60 के लिए वैंकूवर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर चेक-इन किया और उन्हें 10B सीट दी गई. उन्होंने चाहा कि उनका सूटकेस, जो एक गहरे भूरे रंग का हार्ड-साइडेड सैमसोनाइट सूटकेस था, एयर इंडिया फ़्लाइट 181 और फिर फ़्लाइट 182 में स्थानांतरित किया जाए. पहले एक कैनेडियन पैसिफ़िक एयर लाइंस एजेंट ने उनके सामान का अंतर-परिवर्तन करने से मना कर दिया, चूंकि टोरंटो से मॉन्ट्रियल के लिए और मॉन्ट्रियल से बंबई के लिए सीट की पुष्टि नहीं हुई थी, लेकिन बाद में वह मान गया.[3]

GMT 16:18 बजे, कैनेडियन पैसिफ़िक एयर लाइंस फ्लाइट 60 बिना मि.सिंह के टोरंटो पियरसन इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए रवाना हुआ.

GMT 20:22 बजे, कैनेडियन पैसिफ़िक एयर लाइंस फ़्लाइट 60 बारह मिनट देर से टोरंटो पहुंचा. कुछ यात्री और मि.सिंह द्वारा चेक-इन कराए गए बैग सहित लोगों का सामान, एयर इंडिया फ़्लाइट 181 में स्थानांतरित किया गया.

GMT 00:15 बजे (अब 23 जून), एयर इंडिया फ़्लाइट 181 1 घंटा 40 मिनट देरी के साथ टोरंटो पियरसन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से मॉन्ट्रियल-मिराबेल इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए रवाना हुई. विमान में देरी की वजह थी कि एक "पांचवां पॉड", एक अतिरिक्त इंजन का बाएं पंख के नीचे लगाया जाना, ताकि मरम्मत के लिए भारत भेज सकें. GMT 01:00 बजे विमान मॉन्ट्रियल-मिराबेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचा. मॉन्ट्रियल में, एयर इंडिया की उड़ान फ़्लाइट 182 बन गई.

एयर इंडिया फ़्लाइट 182 मॉन्ट्रियल से लंदन के लिए दिल्ली और मुंबई के रास्ते, निकल पड़ी. 329 लोग विमान में सवार थे; 307 यात्री और 22 चालक दल. कैप्टन हंसे सिंह नरेंद्र कमांडर के रूप में,[4] और कैप्टन सतिंदर सिंह भिंदर प्रथम अधिकारी के रूप में सेवारत थे;[5] दारा दुमासिया फ़्लाइट इंजीनियर के रूप में सेवारत थे.[6] कई यात्री अपने परिवार और दोस्तों से मिलने जा रहे थे.[7]

GMT 07:14:01 बजे, बोइंग 747 बोइंग, "स्क्वैक्ड 2005",[8] (इसके विमानन ट्रांसपॉन्डर का एक नियमित सक्रियण), ग़ायब हो गया और विमान बीच हवा में बिखरना शुरू हो गया. शान्नोन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के एयर ट्रैफ़िक नियंत्रण (ATC) ने कोई 'मे डे' कॉल प्राप्त नहीं किया. ATC ने क्षेत्र के विमान से एयर इंडिया से संपर्क करने की कोशिश करने के लिए कहा, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ. GMT 07:30:00 बजे तक ATC ने आपातकाल की घोषणा की और निकटवर्ती माल जहाजों और आयरिश नौसैनिक सेवा पोत LÉ Aisling से विमान की तलाश करने का अनुरोध किया.

एयर इंडिया फ़्लाइट 182 के पीड़ितों के परिवारों के प्रति निवासियों की दया और सहानुभूति के लिए कनाडा सरकार द्वारा बैंट्री, आयरलैंड के नागरिकों को प्रस्तुत एक स्मारक पट्टिका.

आगे रखे कार्गो के एक सूटकेस में स्थित Sanyo[9] ट्यूनर में मौजूद एक बम विस्फोटित हुआ जब विमान 51°3.6′N 12°49′W / 51.0600°N 12.817°W / 51.0600; -12.817निर्देशांक: 51°3.6′N 12°49′W / 51.0600°N 12.817°W / 51.0600; -12.817पर 31,000 फ़ीट की मध्य-उड़ान पर था[10]. बम तेजी से विसंपीड़न और परिणामी उड़ान विघटन का कारण बना. मलबा अपतटीय काउंटी कॉर्क से 120 मील (190 कि.मी.) दक्षिण-पश्चिम आयरिश तट पर 6,700 फीट (2,000 मी.) गहरे पानी में जा गिरा.

विमान के गुम होने के पचपन मिनट बाद, दोषी अपराधियों में से एक द्वारा चेक-इन कराया गया सूटकेस, जापान के नारिटा हवाई अड्डे में विस्फोटित हुआ, जिससे दो बैगेज संचालक मारे गए और निकटवर्ती चार अन्य व्यक्ति घायल हो गए. सूटकेस नारिटा में एक और विमान के लिए मार्गस्थ था.

बरामदगी

GMT 09:13:00 बजे तक, मालवाहक जहाज़ लॉरेंशियन फ़ॉरेस्ट ने विमान के मलबे और पानी में तैरते कई शवों की खोज की.

बम से चालक दल के सभी 22 कर्मी और 307 यात्री मारे गए. दुर्घटना के बाद की मेडिकल रिपोर्ट ने ग्राफ़िक तौर पर यात्रियों और चालक दल के परिणाम सचित्र दर्शाए. विमान पर मौजूद 329 लोगों में से, 131 शरीर बरामद हुए; 198 समुद्र में खो गए थे. आठ शव ने "मूसलघात पैटर्न" की चोटें दर्शाईं, जो यह संकेत देता है कि पानी में डूबने से पहले वे विमान से बाहर निकले थे. यह, बदले में यह संकेत है कि हवाई जहाज़ बीच हवा में फट पड़ा था. छब्बीस शवों ने हाइपॉक्सिया (ऑक्सीजन की कमी) के लक्षण दिखाए. पच्चीस शवों ने, जो ज्यादातर ऐसे पीड़ितों के थे जो खिड़कियों के पास बैठे थे, विस्फोटक विसंपीड़न के संकेत दर्शाए. तेईस शवों पर एक "ऊर्ध्वाधर बल से चोटों" के निशान थे. इक्कीस यात्रियों के बदन पर कम या लगभग नहीं के बराबर कपड़े थे. [उद्धरण चाहिए]

रिपोर्ट में उद्धृत एक अधिकारी ने कहा, "PM रिपोर्टों में कथित सभी पीड़ितों की कई चोटों के कारण मृत्यु हुई है. मृत में दो, एक शिशु और एक बच्चे की मृत्यु, कथित तौर पर दम घुटने की वजह से हुई है. शिशु की मौत दम घुटने से होने के बारे में कोई संदेह नहीं है. दूसरे बच्चे (शव सं. 93) के मामले में कुछ संदेह था, क्योंकि निष्कर्ष यह भी हो सकता है कि बच्चा एंकर पॉइंट सहित एडियों के बल पर गिरा या चक्कर खाया हो. तीन अन्य पीड़ितों की मौत बेशक डूबने की वजह से हुई."[11]

ब्रिटेन से गार्डलाइन लोकेटर पोत, जिस पर परिष्कृत सोनार उपकरण लगे थे, और अपने रोबोट पनडुब्बी स्कैरब के साथ फ़्रेंच केबल बिछाने वाला पोत Léon Thévenin को फ़्लाइट-डेटा रिकॉर्डर (FDR) और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) बक्सों को खोजने के लिए रवाना किया गया. बॉक्स खोजना मुश्किल हो सकता था और यह जरूरी था कि खोज जल्दी शुरू की जाए. 4 जुलाई तक, गार्डलाइन लोकेटर उपकरण ने समुद्र तल पर संकेतों का पता लगाया और 9 जुलाई को CVR का ठीक-ठीक पता चल चुका था और स्कैरब द्वारा सतह पर उठाया गया. अगले दिन FDR का पता चला और बरामद किया गया.

शिकार

राष्ट्रीयता यात्री कर्मीदल कुल
 कनाडा 270 0 270
 ब्रिटेन 27 0 27
 भारत 1 21 22
 सोवियत संघ 3 0 3
 ब्राज़ील 2 0 2
 संयुक्त राज्य अमेरिका 2 0 2
 स्पेन 2 0 2
 फिनलैंड 1 0 1
 अर्जेंटीना 0 1 1
कुल 307 22 329

हताहतों की सूची कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन द्वारा उपलब्ध कराई गई.[12]

संदिग्ध

बम विस्फोट के मुख्य संदिग्धों में शामिल थे बब्बर खालसा नामक सिख अलगाववादी गुट (जो यूरोप और अमेरिका में ग़ैर-क़ानूनी आतंकवादी समूह के रूप में प्रतिबंधित था) के सदस्य और अन्य संबंधित दल जो उस समय पंजाब, भारत में खालिस्तान नामक अलग एक सिख राज्य की मांग के लिए आंदोलन कर रहे थे.[13]

  • तलविंदर सिंह परमार, पंजाब में पैदा होने वाला एक कनाडाई नागरिक, ब्रिटिश कोलंबिया में बसे बब्बर खालसा का उच्च पदस्थ अधिकारी था, और उसका फ़ोन बम विस्फोट से तीन महीने पहले से कनाडाई खुफिया सुरक्षा सेवा (CSIS) द्वारा टैप किया जा रहा था.[14] वह 1992 में पंजाब पुलिस द्वारा हिरासत में मारा गया.
  • इंद्रजीत सिंह रेयात वैंकूवर द्वीप पर डंकन में बसा था और एक ऑटो मैकेनिक तथा बिजली मिस्त्री के रूप में काम कर रहा था.[15]
  • रिपुदमन सिंह मलिक वैंकूवर का एक व्यापारी था, जिसने एक क्रेडिट संघ और कई खालसा स्कूलों के लिए निधि देकर मदद की थी. हाल ही में उसे विस्फोटों में किसी भी प्रकार शामिल होने के लिए दोषी नहीं पाया गया.[16]
  • अजायब सिंह बागड़ी कामलूप्स में बसा एक मिल मज़दूर था. रिपुदमन सिंह मलिक सिंह के साथ उसे भी 2007 में दोषी नहीं पाया गया था.[17]
  • सुरजन सिंह गिल वैंकूवर में बसा खालिस्तान का स्वयंभू महा-सलाहकार था. बाद में वह कनाडा से फ़रार हो गया और माना जाता है कि वह लंदन, इंग्लैंड में छिपा है.[18]
  • हरदयाल सिंह जोहल और मनमोहन सिंह दोनों परमार के अनुयायियों में थे और उनके द्वारा जिन गुरुद्वारों में प्रवचन किया जाता था, वहां पर वे सक्रिय थे. 15 नवम्बर 2002 को प्राकृतिक कारणों से जोहल की मृत्यु हो गई. उन्होंने कथित तौर पर वैंकूवर स्कूल के एक तहखाने में सूटकेसों में बम रखा था, पर मामले में उन पर कभी भी आरोप नहीं लगाया गया.[19]
  • दलजीत संधू को बाद में एक शीर्ष गवाह द्वारा बमबारी के लिए टिकटें संग्रहित करने वाले व्यक्ति के रूप में नामित किया गया. परीक्षण के दौरान उसने जनवरी 1989 का एक वीडियो चलाया, जिसमें संधू ने इंदिरा गांधी के हत्यारों के परिवार वालों को बधाई दी और कहा कि "वे उसी के लायक़ हैं और उन्होंने ख़ुद अपनी मौत को न्योता दिया है और इसी कारण उनके साथ ऐसा हुआ". अपने 16 मार्च के फ़ैसले में न्यायाधीश जोसेफ़सन ने संधू को बरी कर दिया.[20]
  • लखबीर सिंह बराड़ रोडे, सिख अलगाववादी संगठन इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन (ISYF) के नेता. परमार के एक कथित बयान में मुखिया के रूप में नामित,[21] लेकिन विवरण उपलब्ध अन्य सबूतों के साथ मेल नहीं खाते हैं.[22]

6 नवंबर 1985 को RCMP ने संदिग्ध सिख अलगाववादी तलविंदर सिंह परमार, इंद्रजीत सिंह रेयात, सुरजन सिंह गिल, हरदयाल सिंह जोहल और मनमोहन सिंह के घरों पर छापा मारा.[23]

सितम्बर 2007 में, आयोग ने रिपोर्टों की जांच की, जिनका शुरूआत में भारतीय खोजी समाचार पत्रिका तहलका में खुलासा किया गया था[24] कि अब तक एक अनामित व्यक्ति, लखबीर सिंह बराड़ रोडे ने विस्फोटों की साज़िश रचाई थी. इस रिपोर्ट की रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) को ज्ञात अन्य सबूतों से कोई संगति बैठती प्रतीत नहीं होती.[22]

जांच

बाद में छह वर्षों तक दुनिया भर में चलने वाली जांच में षड्यंत्र के कई सूत्रों का खुलासा हुआ:

  • बमबारी, कनाडा, अमेरिका, इंग्लैंड और भारत में व्यापक सदस्यता वाले कम से कम दो सिख आतंकवादी समूहों की संयुक्त परियोजना थी. उनके ग़ुस्से की चिंगारी जून 1984 में अमृतसर के पवित्रतम सिख मंदिर, स्वर्ण मंदिर पर हुए हमले की वजह से भड़की थी.[25]
  • दो व्यक्तियों ने, जिनकी टिकट पर एम.सिंह और एल.सिंह के रूप में पहचान कराई गई थी, 22 जून 1985 को कुछ घंटों के अंतराल पर वैंकूवर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अपने बम वाले बैगों को चेक-इन करवाया. दोनों व्यक्ति अपने विमानों में सवार नहीं हुए.[26]
  • एम. सिंह द्वारा चेक-इन कराया गया बैग एयर इंडिया उड़ान 182 में विस्फोटित हुआ.
  • एल.सिंह द्वारा चेक-इन कराया गया दूसरा बैग, वैंकूवर से टोक्यो के लिए कैनेडियन पैसिफ़िक एयर लाइंस फ़्लाइट 003 पर रवाना हुआ. इसका लक्ष्य था बैंकाक-डॉन म्युअंग के लिए 177 यात्री और चालक दल के साथ रवाना होने वाला एयर इंडिया फ़्लाइट 301, लेकिन यह नारिटा हवाई अड्डे पर टर्मिनल में ही विस्फोटित हुआ. दो जापानी बैगेज संचालक मारे गए और अन्य चार लोग घायल हो गए.[27]
  • इन दो व्यक्तियों की पहचान अज्ञात है.[उद्धरण चाहिए]
  • एक प्रमुख व्यक्ति, जिसे पुलिस "तीसरा आदमी" या "अज्ञात पुरुष" जैसे विभिन्न नामों से जानती थी, 4 जून 1985 को तलविंदर सिंह परमार का पीछा करने वाले CSIS एजेंटों द्वारा देखा गया. "युवा पुरुष" के रूप में वर्णित,[25] वह व्यक्ति वैंकूवर द्वीप पर परमार के साथ वैंकूवर से डंकन तक नौका सैर पर गया और उसने तथा परमार ने इंद्रजीत सिंह रेयात द्वारा निर्मित उपकरण के विस्फोट परीक्षण में भाग लिया. तीसरे आदमी को "एल.सिंह" या "लाल सिंह" के नाम से खरीदे गए टिकटों पर यात्रा करने वाले से भी जोड़ा गया है.[28]

एयर इंडिया मुक़दमा

बम विस्फोट के आरोपी, सिख अलगाववादी रिपुदमन सिंह मलिक और अजायब सिंह बागड़ी की सुनवाई, "एयर इंडिया मुक़दमा" के रूप में विख्यात है.[29]

दोषारोप और दोषसिद्धि

इंग्लैंड से रेयात के प्रत्यर्पण के लिए लंबी कार्यवाही के बाद 10 मई 1991 को, उन्हें दो हत्या के मामलों और नारिटा हवाई अड्डे की बमबारी से संबंधित चार विस्फोट आरोपों के लिए दोषी पाया गया. उन्हें 10 साल के कारावास की सजा सुनाई गई.[30]

बमबारी के पंद्रह साल बाद, 27 अक्तूबर 2000 को, RCMP ने मलिक और बागड़ी को गिरफ्तार किया. उन पर एयर इंडिया फ़्लाइट 182 पर सवार लोगों की मृत्यु के मामले में प्रथम दर्जे की 329 हत्या का आरोप, हत्या करने की साज़िश, जापान के न्यू टोक्यो इंटरनेशनल एयरपोर्ट (संप्रति नारिटा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा) में कैनेडियन पैसिफ़िक फ़्लाइट के यात्रियों और चालक दल की हत्या का प्रयास, और न्यू टोक्यो इंटरनेशनल एयरपोर्ट के दो बैगेज संचालकों की हत्या का अभियोग लगाया गया.[31][32]

6 जून 2001 को, RCMP ने हत्या, हत्या का प्रयास, और एयर इंडिया बमबारी के षड्यंत्र में शामिल होने के आरोप में रेयात को गिरफ्तार किया. 10 फरवरी 2003 को रेयात एक हत्या और बम बनाने में मदद देने के अभियोग पर दोषी पाया गया. उसे पांच साल कारावास की सज़ा सुनाई गई.[33] मलिक और बागड़ी की सुनवाई में उसके द्वारा गवाही देने की प्रत्याशा थी, लेकिन अभियोजन पक्ष अस्पष्ट था.[उद्धरण चाहिए]

अप्रैल 2003 से दिसंबर 2004 तक अदालत कक्ष 20 में होने वाली सुनवाई,[34] सामान्यतः "एयर इंडिया कोर्टरूम" के रूप में विख्यात है. उच्च सुरक्षा वाला यह अदालती-कक्ष $7.2 मिलियन की लागत पर वैंकूवर लॉ कोर्ट्स में सुनवाई के लिए विशेष रूप से बनाया गया था.[35]

16 मार्च 2005 को, न्यायमूर्ति इयान जोसेफ़सन ने सभी आरोपों के संबंध में मलिक और बागड़ी को दोषी नहीं माना, क्योंकि सबूत अपर्याप्त पाए गए:

मैंने आतंकवाद के इन क्रूर कृत्यों की भीषण प्रकृति के वर्णन द्वारा शुरूआत की, ऐसे कार्य जिनके लिए न्याय की पुकार मची है. लेकिन न्याय हासिल नहीं होता, यदि व्यक्ति को उचित संदेह से परे सबूत के अपेक्षित मानक से कम स्तर पर दोषी ठहराया जाता है. पुलिस और क्राउन द्वारा अच्छे और सर्वोत्तम प्रयास लगने के बावजूद, सबूत स्पष्ट रूप से मानकों से कम ठहरते हैं.[36]

ब्रिटिश कोलंबिया के अटार्नी जनरल को लिखे गए एक पत्र में मलिक ने अपनी गिरफ़्तारी और सुनवाई के ग़लत अभियोजन के लिए कनाडा की सरकार से मुआवज़ा मांगा है. क़ानूनी शुल्क के तौर पर सरकार को मलिक द्वारा $6.4 मिलियन और बागरी द्वारा $9.7 मिलियन बकाया है.[37]

जुलाई 2007 में भारतीय खोजी साप्ताहिक, तहलका ने रिपोर्ट किया कि 15 अक्तूबर 1992 को पंजाब पुलिस द्वारा अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले आतंकवादी तलविंदर सिंह परमार द्वारा पंजाब पुलिस को दिए गए एक अपराध-स्वीकृति बयान से ताज़ा सबूत उभरे हैं.[24] इस लेख के अनुसार, सात साल से ज़्यादा समय से परमार के साथियों का साक्षात्कार लेने वाले एक चंडीगढ़ स्थित समूह, पंजाब मानवाधिकार संगठन (PHRO) द्वारा यह साक्ष्य संग्रहित किया गया.

बाद में, 24 सितंबर को जांच आयोग के समक्ष अपराध-स्वीकृति का अनुवाद प्रस्तुत किया गया. अपराध-स्वीकृति में, जिसे "भूकंपी सबूत" के रूप में घोषित किया गया था, ऐसे तत्व थे, जिनकी RCMP द्वारा पहले ही जांच की गई थी, और कुछ विवरण ग़लत पाए गए.[22]

अपराध-स्वीकृति बयान ने रहस्यमय तीसरे आदमी या "मिस्टर X" की पहचान लखबीर सिंह बराड़ रोडे के रूप में की, जोकि विख्यात सिख उग्रवादी और जरनैल सिंह भिंदरांवाले का भतीजा है. इंस्पेक्टर लोर्ने श्वार्ट्ज़ ने कहा कि RCMP ने 2001 में लखबीर का पाकिस्तान में साक्षात्कार किया था. उस समय, उसने बम विस्फोट में कई अन्य लोगों का हाथ होने के बारे में संकेत दिया था. इसके अलावा, श्वार्ट्ज़ का दावा था कि लखबीर सिंह के मिस्टर X होने की संभावना कम है, क्योंकि मिस्टर X काफ़ी छोटे लगते हैं.[21]

इसके अलावा, RCMP को कई वर्षों से कथित बयान के बारे में जानकारी थी. आधिकारिक मनाही के बावजूद उनका मानना था कि परमार को जिंदा पकड़ा गया, पूछताछ की गई और उसके बाद ही मार डाला गया था.

PHRO के अधिकारियों द्वारा नए सबूत पेश किए गए, जिसने सात साल तक जांच की थी. पंजाब पुलिस के सेवानिवृत्त DSP हरमायल सिंह चंडी ने, जो निजी तौर पर बयान में शामिल थे, गवाही नहीं दी. चंडी ने जांच आयोग के सामने सबूत पेश करने के लिए जून में कनाडा की यात्रा की थी, लेकिन उन्होंने गवाही नहीं दी क्योंकि वे गुमनामी की गारंटी नहीं प्राप्त कर सके.[21] उनकी भारत वापसी के बाद इस ख़बर का रहस्योद्घाटन तहलका में हुआ.

एयर इंडिया फ़्लाइट 182 के बम विस्फोट पर जांच करने वाले जांच आयोग ने अपनी फ़ाइल पर यह विचार व्यक्त किया कि "तलविंदर सिंह परमार कट्टरपंथी उग्रवाद के केंद्र में स्थित एक खालिस्तान समर्थक संगठन, बब्बर खालसा के नेता थे, और अब यह माना जाता है कि एयर इंडिया की उड़ानों को बम से उड़ाने की साज़िश के नेता वे ही हैं.[38]

रेयात की झूठी गवाही परीक्षण

फरवरी 2006 में, इंद्रजीत सिंह रेयात को मुकदमे में अपनी गवाही के संबंध में झूठी गवाही का आरोप लगाया गया था.[39] अभियोग ब्रिटिश कोलंबिया के सुप्रीम कोर्ट में दायर किया था और ऐसी 27 घटनाओं को सूचिबद्ध किया गया है जहां उन्होंने कथित तौर पर अपनी गवाही के दौरान अदालत को गुमराह किया था. रेयात ने बम बनाने का अपराध स्वीकृत किया था लेकिन शपथ के अधीन इस बात से इनकार कर दिया कि उसे साज़िश की कोई जानकारी थी.

फ़ैसले में न्यायमूर्ति इयान जोसेफ़सन ने कहा: "मैं उसे शपथ के अधीन पक्का झूठा पाता हूं. सबसे सहानुभूतिशील श्रोता भी केवल मेरे समान यही निष्कर्ष निकालेंगे कि उसकी गवाही इस प्रयास में खुले तौर पर और भावुकता से गढ़ी गई है ताकि अपराध में उसकी भागीदारी ज़्यादा हद तक कम हो सके, जबकि उसने वह संबद्ध जानकारी ज़ाहिर करने से मना कर दिया है जो स्पष्ट रूप से उसके पास मौजूद है."[40]

3 जुलाई 2007 को, झूठी गवाही की कार्यवाही अब भी लंबित रहते हुए, रेयात को नेशनल पैरोल बोर्ड द्वारा पैरोल देने से मनाही हुई, जिन्होंने निष्कर्ष निकाला कि वह जनता के लिए निरंतर जोखिम है. निर्णय का मतलब था रेयात को पूरे पांच साल की सज़ा पूरी करनी होगी, जो 9 फरवरी 2008 को समाप्त हुआ.[41]

रेयात की झूठी गवाही का परीक्षण वैंकूवर में मार्च 2010 में शुरू हुआ, लेकिन अचानक 8 मार्च 2010 को खारिज कर दिया गया. एक महिला जूरर द्वारा रेयात के बारे में 'पक्षपाती' टिप्पणियों के बाद जूरी को ख़ारिज कर दिया गया.[42] 15 मार्च तक एक नई जूरी का चयन किया जाएगा.

साज़िश के विवरण

कथित बयान ने निम्नलिखित कहानी प्रस्तुत की:

"लगभग मई 1985 में, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन का एक पदाधिकारी मेरे पास (परमार) आया और अपना परिचय लखबीर सिंह के रूप में दिया और सिखों की नाराज़गी व्यक्त करने के लिए कुछ हिंसक गतिविधियों के संचालन में मेरी मदद चाही. मैंने उससे कुछ दिनों के बाद आने के लिए कहा ताकि मैं डायनामाइट और बैटरी आदि की व्यवस्था कर सकूं. उसने मुझसे कहा कि वह पहले विस्फोट के एक परीक्षण को देखना चाहता है...लगभग चार दिनों के बाद, लखबीर सिंह और एक अन्य युवा, इंद्रजीत सिंह रेयात, दोनों मेरे पास आए. हम (ब्रिटिश कोलंबिया के) जंगल में गए. वहां हमने एक डायनामाइट को एक बैटरी के साथ जोड़ा और विस्फोट किया. ...
तब लखबीर सिंह, इंद्रजीत सिंह और उनके साथी, मंजीत सिंह ने टोरंटो से लंदन के ज़रिए दिल्ली जाने वाले एक एयर इंडिया विमान और टोक्यो से बैंकॉक के लिए रवाना होने वाली एक और उड़ान में बम रखने की योजना बनाई. लखबीर सिंह ने वैंकूवर से टोक्यो और फिर आगे बैंकॉक के लिए एक सीट आरक्षित किया, जबकि मंजीत सिंह ने वैंकूवर से टोरंटो और फिर टोरंटो से दिल्ली के लिए एक सीट आरक्षित किया. इंद्रजीत ने उड़ानों के लिए बैग तैयार किए जो बैटरी और ट्रांससिस्टर के साथ जुड़े डायनामाइट से भरे थे."- तलविंदर सिंह परमार द्वारा अपराध स्वीकृति से [24]

लखबीर सिंह बराड़ रोडे के खिलाफ़, जो प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन का अध्यक्ष है, इंटरपोल रेड कॉर्नर वारंट A-23/1-1997 मौजूद है.[24] 1998 में उसे काठमांडू, नेपाल के समीप 20 किलो विस्फोटक RDX ले जाने के लिए गिरफ्तार किया गया.[43] PHRO ने कहा है कि उड़ान 182 के समय, रोडे एक भारतीय गुप्त एजेंट था और उसकी पहचान तथा बम विस्फोट में भारत की भूमिका के बचाव के उद्देश्य से परमार की हत्या कर दी गई थी.[24] इस कहानी के कई विवरण जांच दल के पास उपलब्ध अन्य साक्ष्यों के साथ मेल नहीं खाते.[22]

सरकार के पास पूर्व जानकारी

कनाडा सरकार को कनाडा के एयर इंडिया फ़्लाइटों में आतंकवादी बमों के होने की संभावना के बारे में भारत सरकार द्वारा चेतावनी दी गई थी. और दुर्घटना के दो सप्ताह पहले CSIS ने RCMP को एयर इंडिया और कनाडा में भारतीय दूतावासों के जोखिम की उच्च संभावना की रिपोर्ट दी थी.[44]

नष्ट किए गए सबूत

अपने फ़ैसले में न्यायाधीश जोसेफ़सेन ने CSIS द्वारा "अस्वीकार्य लापरवाही"[45] का हवाला दिया जब सैकड़ों संदिग्धों के वायरटैप नष्ट कर दिए गए. बम विस्फोट से पहले और बाद में, महीनों रिकॉर्ड किए गए 210 वायरटैपों में से 156 मिटा दिए गए. बमबारी में आतंकवादी प्राथमिक संदिग्ध बन जाने के बाद भी इन टेपों को मिटाना जारी रखा गया.[46]

CSIS का दावा था कि वायरटैपों में कोई प्रासंगिक जानकारी नहीं थी, लेकिन RCMP का एक ज्ञापन कहता है कि "इसकी बहुत संभावना है कि मार्च और अगस्त 1985 के बीच CSIS ने टेपों को बनाए रखा होता, तो कम से कम दोनों बम विस्फोटों में कुछ मुख्य अपराधियों का सफल अभियोजन संपन्न हो सकता था."[47]

4 जून 1985 को, CSIS एजेंट लैरी लोव और लिन मॅकएडम्स ने वैंकूवर द्वीप तक तलविंदर सिंह परमार और इंदरजीत सिंह रेयात का पीछा किया. एजेंटों ने RCMP को सूचना दी कि उन्होंने जंगल में "ज़ोरदार बंदूक की गोली चलने" जैसा शोर सुना था. बाद में उस महीने फ़्लाइट 182 उड़ा दिया गया. बमबारी के बाद RCMP साइट पर गया और विद्युतीय विस्फोटक खोल के अवशेषों को पाया.[44]

बम विस्फोट के संदिग्धों को ज़ाहिरा तौर पर यह मालूम था कि उन पर निगरानी रखी जा रही है, क्योंकि उन्होंने पे-फ़ोन का इस्तेमाल किया और कोड में बात की. अनुवादक द्वारा तलविंदर परमार और हरदयाल सिंह जोहल नामक एक अनुयायी के बीच वायरटेप रिकॉर्ड्स के नोट उसी दिन के हैं जब 20 जून 1985 को टिकट खरीदे गए थे.
परमार: क्या उसने कहानी लिखी?
जोहल: नहीं, उसने नहीं लिखा.
परमार: पहले वह काम करो.[48]

इस कॉल के बाद एक व्यक्ति ने CP एयर से संपर्क किया और टिकटें बुक कीं तथा जोहल का नंबर छोड़ा. उसके तुरंत बाद, जोहल ने परमार को कॉल किया और उनसे पूछा कि क्या वह "वहां पर आ सकता है और वह कहानी पढ़ सकता है जिसके बारे में उसने पूछा था." परमार ने कहा कि वह शीघ्र ही वहां पहुंचेगा.[उद्धरण चाहिए]

यह वार्तालाप विमानों को बम से उड़ाने के लिए प्रयुक्त टिकटों को बुक करने का परमार से आदेश प्रतीत होता है.[49] क्योंकि मूल वायरटैप को CSIS ने मिटा दिया था, वे अदालत में साक्ष्य के रूप में अस्वीकार्य थे.[50]

गवाह की हत्या

तारा सिंह हेयर, इंडो-कनाडा टाइम्स के प्रकाशक और ब्रिटिश कोलंबियाई धर्म संघ के सदस्य ने 1995 में RCMP को इस दावे के साथ एक हलफ़नामा उपल्ब्ध कराया था कि वे उस बातचीत के दौरान मौजूद थे जब बागडी ने बम विस्फोट में अपने शामिल होने की बात को स्वीकार किया था.[51]

जब वे अपने सहयोगी सिख अख़बार के प्रकाशक तरसेम सिंह पुरेवाल के लंदन कार्यालय में थे, तब हेयर ने दावा किया कि उन्होंने पुरेवाल और बागड़ी के बीच बैठक में संयोग से उनकी बात सुनी थी. हेयर का दावा है कि उस बैठक में बागड़ी ने कहा कि "अगर सब कुछ योजना के अनुसार घटित हुआ होता तो हीथ्रो हवाई अड्डे पर बिना किसी यात्री के विमान की धज्जियां उड़ी होती. लेकिन विमान के आने में आधा-पौन घंटे देरी की वजह से वह समुद्र के ऊपर फट पड़ा."[52]

उसी वर्ष 24 जनवरी को साउथहॉल, इंग्लैंड के देस परदेस अख़बार के कार्यालय के पास पुरेवाल मारा गया, जिससे दूसरे गवाह के रूप में केवर हेयर बचा रहा.[53]

18 नवंबर 1998 को, हेयर जब सर्रे में स्थित अपने घर के गैरेज में कार से बाहर निकल रहा था तब गोली मार कर उसकी हत्या कर दी गई.[54] हेयर इससे पहले 1988 में उस पर की गई जानलेवा कोशिश में बच गया था, लेकिन उसे पक्षाघात हो गया और बाद में वह व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने लगा था.[54] उसकी हत्या के परिणामस्वरूप, शपथ पत्र साक्ष्य के रूप में अमान्य था. [उद्धरण चाहिए]

CSIS संबंध

28 अक्तूबर 2000 को बागड़ी के साथ एक साक्षात्कार के दौरान, RCMP एजेंटों ने सुरजन सिंह गिल को यह कहते हुए CSIS के एजेंट के रूप में वर्णित किया कि बब्बर खालसा से उन्होंने इसलिए इस्तीफा दिया क्योंकि CSIS के संचालकों ने उन्हें बाहर निकलने के लिए कहा.[55]

फ़्लाइट 182 की बमबारी को रोकने में CSIS की विफलता के पश्चात, CSIS के अध्यक्ष के रूप में रीड मॉर्डेन का प्रतिस्थापन हुआ. CBC टेलीविजन के समाचार कार्यक्रम द नेशनल में एक साक्षात्कार के दौरान, मॉर्डेन ने दावा किया कि CSIS ने मामले को निपटाने की जगह "उसे अपने हाथ से जाने दिया". एक खुफिया सुरक्षा समीक्षा समिति ने CSIS के दोषों को मंजूरी दे दी. तथापि, वह रिपोर्ट आज तक रहस्य बना हुआ है. कनाडा सरकार इसी बात पर अड़ी है कि मामले में कोई बात गुप्त नहीं है.[56]

सार्वजनिक पूछताछ

1 मई 2006 को, क्राउन-इन-काउंसिल ने, प्रधानमंत्री स्टीफ़न हार्पर[57] की सलाह पर सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जॉन मेजर की अध्यक्षता में एक परिपूर्ण सार्वजनिक जांच की घोषणा की, ताकि "कनाडा के इतिहास में सबसे ख़राब सामूहिक हत्या के बारे में कई प्रमुख सवालों के जवाब" हासिल कर सकें.[58] बाद में जून में प्रवर्तित, एयर इंडिया फ़्लाइट 182 के बम विस्फोट की छानबीन संबंधी जांच आयोग द्वारा विचार किया जाएगा कि किस तरह कनाडाई क़ानून ने आतंकवादी समूहों के लिए धन सहायता को प्रतिबंधित किया है,[59] कितनी अच्छी तरह आतंकवादी मामलों में गवाह संरक्षण उपलब्ध कराया जाता है, क्या कनाडा की विमानन सुरक्षा को उन्नत करने की ज़रूरत है, तथा क्या रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस, कैनेडियन सेक्युरिटी इंटलिजेन्स सर्विस और अन्य क़ानून प्रवर्तक एजेंसियों के बीच सहयोग के मुद्दे सुलझा लिए गए हैं. यह ऐसा मंच भी प्रदान करता है जहां पीड़ितों के परिवार बम विस्फोट के प्रभाव पर गवाही दे सकें और कोई अपराधी परीक्षण ना दोहराया जाए.[60]

जांच की छानबीन संपन्न हुई और 17 जून 2010 को हुआ. मेजर ने क्राउन मंत्रालयों, रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस, और कैनेडियन सेक्युरिटी इंटलिजेन्स सर्विस द्वारा "त्रुटियों की क्रमिक श्रृंखला" की वजह से आतंकवादी हमले को मौक़ा मिला.[2][61]

विरासत

'कनाडा की एक त्रासदी'

टोरंटो में एयर इंडिया फ़्लाइट 182 स्मारक
फ़्लाइट 182 के पीड़ितों की याद में स्टैंनले पार्क, वैंकूवर में स्मारक और स्टेनली पार्क में जुलाई 2007 में समर्पित स्मारक और खेल का मैदान

एयर इंडिया फ़्लाइट 182 को गिराने के बीस साल बाद, अहकिस्ता, आयरलैंड में परिवार शोक प्रकट करने के लिए एकत्रित हुए. प्रधानमंत्री पॉल मार्टिन की सलाह पर गवर्नर जनरल एडरियन क्लार्कसन ने राष्ट्रीय शोक दिवस की जयंती की घोषणा की. जयंती मनाने के दौरान, मार्टिन ने कहा कि बम एक कनाडाई समस्या है, एक विदेशी समस्या नहीं, यह कहते हुए कि: "कोई गलती मत करो: उड़ान एयर इंडिया की हो सकती है, आयरलैंड के तट के पास हो सकती है, लेकिन यह एक कनाडा की त्रासदी है." [62]

मई 2007 में, एंगस रीड स्ट्रैटजीस ने सार्वजनिक राय मतदान के परिणाम जारी किए कि कनाडाई एयर इंडिया बमबारी को कनाडाई त्रासदी के रूप में देखते हैं या भारतीय त्रासदी के रूप में, जिन्हें उन्होंने दोष दिया. अडतालीस प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बमबारी को एक कनाडाई घटना माना, जबकि 22 प्रतिशत लोगों ने आतंकवादी हमले को ज्यादातर भारतीय मामला माना. चौंतीस प्रतिशत लोगों ने पूछे जाने पर बताया कि CSIS और हवाई अड्डे के सुरक्षा कर्मी, दोनों ही इसके लिए बहुत हद तक दोषी हैं, साथ ही, सत्ताईस प्रतिशत लोगों का मानना था कि बड़े पैमाने पर RCMP इसके लिए दोषी है. अठारह प्रतिशत ने कनाडा परिवहन का उल्लेख किया.[63]

मॅकक्लीन्स के केन मॅकक्वीन और जॉन गेडेस ने कहा कि एयर इंडिया बमबारी को "कनाडाई 9/11" के रूप में हवाला दिया गया है. उन्होंने कहा "असल में यह उसके समान कभी नहीं था. तारीख़, 23 जून 1985 ने देश की आत्मा को झुलसाया नहीं है. उस दिन की घटनाओं ने सैकड़ों निर्दोष लोगों की ज़िंदगी ली और हज़ारों की नियति बदल डाली, लेकिन इसने न तो सरकार की नींव हिला कर रख दी, और ना ही उनकी नीतियों को बदला. इसे मुख्य रूप से, सरकारी तौर पर भी आतंकवादी कार्यवाही के रूप में स्वीकार नहीं किया गया."[64]

कनाडा और अन्य जगहों पर पीड़ितों की स्मृति में स्मारक बनवाए गए. 1986 में बमबारी की पहली जयंती पर अहकिस्ता, वेस्ट कॉर्क, आयरलैंड में स्मारक का अनावरण किया गया.[65] इसके बाद, एक खेल के मैदान पर 11 अगस्त 2006 को निर्माण की शुरूआत में एक भूमि-पूजन समारोह संपन्न हुआ जो वैंकूवर, ब्रिटिश कोलंबिया के स्टैनले पार्क में स्मारक का हिस्सा बना.[66] 22 जून 2007 को एक अन्य स्मारक का टोरंटो में अनावरण किया गया, जो वह शहर था जहां मरने वाले अधिकांश लोग बसे थे. स्मारक की विशेषता थी एक धूपघड़ी, जिसका आधार कनाडा के सभी प्रांतों और प्रदेशों, और साथ ही, अन्य पीड़ितों के देशों से लाए गए पत्थरों से बना था, और आयरलैंड की ओर उन्मुख एक दीवार, जिसमें मृत व्यक्तियों के नाम अंकित किए गए.[67]

2010 में सार्वजनिक जांच के निष्कर्षों को जारी करने के बाद, स्टीफ़न हार्पर ने आपदा की 25वीं जयंती पर मीडिया में घोषणा की कि वे "खुफ़िया पुलिस, और हवाई सुरक्षा दलों की भयंकर विफलताओं को स्वीकार करते हैं, जिसकी वजह से बम विस्फोट और उत्तरवर्ती अभियोजक चूक संभव हुए" और वर्तमान मंत्रीमंडल की ओर से माफ़ी मांगते हैं.[57]

मीडिया में मान्यता

बम विस्फोट के बारे में वृत्तचित्र कनाडाई टेलीविजन दर्शकों के लिए बनाया गया था. CBC टेलीविज़न ने स्टुर्ला गनरसन के निर्देशन में, त्रासदी के बारे में फ़्लाइट 182 वृत्तचित्र के फ़िल्मांकन के शुरूआत की घोषणा की.[68] अप्रैल 2008 में टोरंटो में आयोजित हॉट डॉक्स कनाडाई अंतर्राष्ट्रीय वृत्तचित्र महोत्सव में पहली बार प्रदर्शन से पूर्व उसका नाम एयर इंडिया 182 में बदल दिया गया. बाद में उसका टी.वी. प्रीमियर जून में CBC टेलीविज़न पर आयोजित हुआ.[69] मे डे, एक टीवी शो जो अनेक विमान दुर्घटनाओं और घटनाओं की जांच करता है, ने भी अपने अंक "एक्सप्लोसिव एविडेन्स" में बमबारी को चित्रित किया.[70]

कई पत्रकारों ने बमबारी घटित होने से लेकर दशकों तक उस पर टिप्पणी की है. ग्लोब एंड मेल से कनाडाई पत्रकार ब्रायन मॅकएंड्र्यू और ज़ूहेर कश्मीरी ने सॉफ़्ट टार्गेट लिखा. पत्रकार इसमें असली बमबारी से पहले की विभिन्न गतिविधियों के विवरण प्रस्तुत करते हैं और उनका आरोप है कि CSIS और भारतीय उच्चायोग को पहले से इस घटना की जानकारी थी. लेखक यह भी आरोप लगाते हैं कि कनाडा में भारतीय उच्चायोग ने बरसों RCMP और CSIS को गुमराह किया और कनाडा में सिख समुदाय पर जासूसी और उन्हें उखाड़ने का काम करते रहे. 1992 में, रॉयल केनेडियन माउंटेड पुलिस ने संकेत दिया कि उसके पास पुस्तक में उल्लिखित इस आरोप के समर्थन में कोई साक्ष्य मौजूद नहीं हैं कि एयर इंडिया के विस्फोट में भारत सरकार का हाथ था.[71] बमबारी के आठ महीने बाद, प्राविन्स अख़बार के रिपोर्टर सलीम जिवा ने "डेथ ऑफ़ एयर इंडिया फ़्लाइट 182" प्रकाशित किया.[72] मई 2005 में वैंकूवर सन के संवाददाता किम बोलन ने हाऊ द एयर-इंडिया बॉम्बर्स गॉट अवे विथ मर्डर प्रकाशित किया.[73] जिवा और साथी पत्रकार डॉन हॉवका ने मार्जिन ऑफ़ टेरर: ए रिपोर्टर्स ट्वेंटी इयर ओडिसी कवरिंग द ट्रैजडीज़ ऑफ़ द एयर इंडिया बॉम्बिंग प्रकाशित किया.[74]

किताबें भी प्रकाशित की गईं. द मिडलमैन एंड अदर स्टोरीज़ संग्रह में भारती मुखर्जी की "द मैनेजमेंट ऑफ़ ग्रीफ़" में एक भारतीय-कनाडाई महिला, जिसने इस बमबारी में अपने पूरे परिवार को खो दिया, अपने अनुभव सुनाती है. मुखर्जी ने अपने पति क्लार्क ब्लेज़ के साथ द सॉरो एंड द टेरर: द हॉन्टिंग लीगसी ऑफ़ द एयर इंडिया ट्रैजडी (1987) का सह-लेखन भी किया.[75] एयर इंडिया त्रासदी की मुख्यधारा कनाडाई सांस्कृतिक इनकार से प्रेरित होकर, नील बिसोनदत्त ने द सोल ऑफ़ ऑल ग्रेट डिज़ाइन लिखा.[76]

घटनाओं की समय-रेखा

संक्षिप्त समय-रेखा के लिए, देखें टाइमलाइन ऑफ़ द एयर इंडिया फ़्लाइट 182 अफ़ेयर.

इन्हें भी देखें

  • सिख चरमपंथ
  • वाणिज्यिक विमानों पर दुर्घटनाओं और घटनाओं की सूची
  • इंडियन एयरलाइंस उड़ान 814
  • UTA उड़ान 772
  • ऑपरेशन ब्लू स्टार
  • हरमंदिर साहिब
  • इंदिरा गांधी
  • कनाडा में सिख धर्म
  • एलवर्ती नायुडम्मा
  • कोरियाई एयर लाइन्स उड़ान 007


संदर्भ

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