"पृथ्वी का वायुमण्डल": अवतरणों में अंतर

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वायुमंडलीय आर्द्रता में दो बातों पर ध्यान देना चाहिए:
वायुमंडलीय आर्द्रता में दो बातों पर ध्यान देना चाहिए:
#'''परम आद्र्रता''' - किसी विशेष ताप पर वायु के इकाई आयतन में विद्यमान भाप की मात्रा को कहते हैं और
# '''परम आद्र्रता''' - किसी विशेष ताप पर वायु के इकाई आयतन में विद्यमान भाप की मात्रा को कहते हैं और
#'''आपेक्षिक आद्र्रता''' - प्रति शत में व्यक्त वह संबंध है जो उस वायु में विद्यमान भाप की मात्रा में और उसी ताप पर उसी आयतन की संतृप्त वायु की भाप मात्रा में होता है।
# '''आपेक्षिक आद्र्रता''' - प्रति शत में व्यक्त वह संबंध है जो उस वायु में विद्यमान भाप की मात्रा में और उसी ताप पर उसी आयतन की संतृप्त वायु की भाप मात्रा में होता है।


वायुमंडलीय आद्र्रता को मुख्यत: दो प्रकार के मापियों से मापते हैं:
वायुमंडलीय आद्र्रता को मुख्यत: दो प्रकार के मापियों से मापते हैं:
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* [[क्षोभमण्डल]]
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क्षोभमण्डल वायुमंडल का सबसे निचली परत है।
क्षोभमण्डल वायुमंडल का सबसे निचली परत है।
इसकी ऊँचाई ध्रुवो पर 8 कि.मी. तथा विषुवत रेखा पर लगभग 18 कि.मी. होती है।
इसकी ऊँचाई ध्रुवो पर 8 कि.मी. तथा विषुवत रेखा पर लगभग 18 कि.मी. होती है।


=== समतापमण्डल ===
=== समतापमण्डल ===
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* [[बाह्यमण्डल]]
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==इन्हें भी देखें==
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*[[अंतरिक्ष]]
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*[[वांतरिक्ष]]
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[[श्रेणी:पर्यावरण]]
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18:08, 15 फ़रवरी 2013 का अवतरण

अंतरिक्ष से पृथ्वी का दृश्य वायुमंडल नीला दिख रहा है।

पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल (Litho sphere) ठोस पदार्थों से बना, और जलमंडल (Hydro sphere) जल से बना होते हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है। वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्राय: चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल (Troposphere), उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल (Stratosphere) और उसके और ऊपर के भाग को आयनमंडल (Ionosphere) कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को "शांतमंडल" (Topopause) और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ (Stratopause) कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं।

प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय (weathering) पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति (aurora borealis), दक्षिण ध्रुवीय ज्योति (aurora australis) प्रभामंडल (halo), किरीट (corona), मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं।

वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव इतना होता है कि वह पारे के स्तंभ को 29.92 इंच या 76 सेंटीमीटर उठाता है। प्रति वर्ग इंच यह 15.5 पाउंड दबाव के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है।

सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप - 68रू सें. 55रू सें. के बीच ही रहता है। 60 मील के ऊपर पराबैंगनी (ultraviolet) प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयन मंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं।

वायुमंडल संगठन

वायुमंडल की वायु गैसों का मिश्रण है। ऊँचाई में गैसों की आपेक्षिक मात्रा में परिवर्तन पाया जाता है। पृथ्वीतल पर की सूखी वायु का औसत संगठन इस प्रकार है-

गैस प्रतिशत आयतन
नाइट्रोजन 78.09
ऑक्सीजन 20.95
आर्गन 0.93
कार्बन डाइआक्साइड 0.03
नीऑन 0.0018
हाइड्रोजन 0.001
हीलियम 0.000524
क्रिप्टन 0.0001
ज़ीनान 0.000008
ओज़ोन 0.000001

वायुमंडलीय आर्द्रता

वायुमंडलीय आर्द्रता वायु में उपस्थित जलवाष्प के ऊपर निर्भर करती है। यह जलवाष्प वायुमंडल के निचले स्तरों में रहता है। इसकी मात्रा सभी स्थानों में तथा सदैव एक सी नहीं रहती। समयानुसार उसमें अंतर होते रहते हैं। यह जलवाष्प नदी, तालाब, झील, सागर आदि के जल के वाष्पीकरण से बनता है।

वायुमंडलीय आर्द्रता में दो बातों पर ध्यान देना चाहिए:

  1. परम आद्र्रता - किसी विशेष ताप पर वायु के इकाई आयतन में विद्यमान भाप की मात्रा को कहते हैं और
  2. आपेक्षिक आद्र्रता - प्रति शत में व्यक्त वह संबंध है जो उस वायु में विद्यमान भाप की मात्रा में और उसी ताप पर उसी आयतन की संतृप्त वायु की भाप मात्रा में होता है।

वायुमंडलीय आद्र्रता को मुख्यत: दो प्रकार के मापियों से मापते हैं:

  1. रासायनिक आद्र्रतामापी
  2. भौतिक आद्र्रतामापी

वायुमंडलीय ताप का मूलस्रोत सूर्य है। वायु को सूर्य की अपेक्षा पृथ्वी के संस्पर्श से अधिक ऊष्मा मिलती है, क्योंकि उसपर धूलिकणों का प्रभाव पड़ता है। ये धूलिकण, जो ऊष्मा के कुचालक होते हैं भूपृष्ठ पर एवं उसके निकट अधिक होते हैं और वायुमंडल में ऊँचाई के अनुसार कम होते जाते हैं। अत: प्रारंभ में सूर्य की किरणें धरातल को गरम करती हैं। फिर वही ऊष्मा संचालन द्वारा क्रमश: वायुमंडल के निचले स्तर से ऊपरी स्तर की ओर फैलत जाती है। इसके अतिरिक्त गरम होकर वायु ऊपर उठी है, रिक्त स्थान की पूर्ति अपेक्षाकृत ठंढी वायु करती है; फिर वह भी गरम होकर ऊपर उठती है। फलत: संवाहन धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। अत: ऊष्मा के ऊपर फैलने में संचालन और संवाहन काम करते हैं। धरातल से वायुमंडल में ऊपर जाने पर ताप क्रमश: प्रत्येक 320फ़ की ऊँचाई पर 1रू फादृ घटता जाता है।

वायुमंडलीय दबाव

वायुमंडलीय दबाव किसी स्थान के इकाई क्षेत्रफल पर वायुमंडल के स्तंभ का भार होता है। किसी भी समतल पर वायुका मंडल दबाव उसके ऊपर की वायु का भार होता है। यह दबाव भूपृष्ठ के निकट ऊँचाई के साथ शीघ्रता से, तथा वायुमंडल में अधिक दबाव पर धीरे धीरे, घटता है। परंतु किसी भी स्थान पर वायु का ऊँचाई स्थिर नहीं है। मौसम और ऋतुओं के परिवर्तन के साथ उसमें अंतर होते रहते हैं।

वायुमंडलीय दबाव विभिन्न बैरोमीटरों द्वारा नापा जाता है। सागर समतल पर वायुमंडलीय दबाव 14.7 पाउंड प्रति वर्ग इंच, अथवा बैरोमीटर का दबाव ७६० मिमि पारास्तम्भ का दाब। इनका अर्थ एक ही है। इसके आधार पर मानचित्र पर इसे समभार रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इन्हीं पर वायु-भार-पेटियाँ, हवाओं की दिशा, वेग, दिशा परिवर्तन आदि निर्भर करते हैं।

परतें

क्षोभमण्डल

क्षोभमण्डल वायुमंडल का सबसे निचली परत है। इसकी ऊँचाई ध्रुवो पर 8 कि.मी. तथा विषुवत रेखा पर लगभग 18 कि.मी. होती है।

समतापमण्डल

मध्यमण्डल

तापमण्डल

आयनमण्डल

बाह्यमण्डल

इन्हें भी देखें