"फ़ाहियान": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छो r2.7.1) (Robot: Adding uk:Фа Сянь
छो Bot: अंगराग परिवर्तन
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[File:Faxian zhuan.JPG|thumb|220px|फ़ाहियान के यात्रा-वृत्तान्त का पहला पन्ना]]
[[चित्र:Faxian zhuan.JPG|thumb|220px|फ़ाहियान के यात्रा-वृत्तान्त का पहला पन्ना]]
'''फ़ाहियान''' या '''फ़ाशियान''' (<small>[[चीनी भाषा|चीनी]]: 法顯 या 法显, [[अंग्रेज़ी]]: Faxian या Fa Hien</small>; जन्म: ३३७ ई; मृत्यु: ४२२ ई अनुमानित) एक [[हान चीनी|चीनी]] [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] भिक्षु थे जो ३९९ ईसवी से लेकर ४१२ ईसवी तक [[भारत]], [[श्रीलंका]] और आधुनिक [[नेपाल]] में स्थित [[गौतम बुद्ध]] के जन्मस्थल कपिलवस्तु धर्मयात्रा पर आए। उनका ध्येय यहाँ से बौद्ध ग्रन्थ एकत्रित करके उन्हें वापस [[चीन]] ले जाना था। उन्होंने अपनी यात्रा का वर्णन अपने वृत्तांत में लिखा जिसका नाम 'बौद्ध राज्यों का एक अभिलेख: चीनी भिक्षु फ़ा-शियान की बौद्ध अभ्यास-पुस्तकों की खोज में भारत और सीलोन की यात्रा' था। उनकी यात्रा के समय भारत में [[गुप्त राजवंश]] के [[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य]] का काल था और चीन में [[जिन राजवंश]] काल चल रहा था।
'''फ़ाहियान''' या '''फ़ाशियान''' (<small>[[चीनी भाषा|चीनी]]: 法顯 या 法显, [[अंग्रेज़ी]]: Faxian या Fa Hien</small>; जन्म: ३३७ ई; मृत्यु: ४२२ ई अनुमानित) एक [[हान चीनी|चीनी]] [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] भिक्षु थे जो ३९९ ईसवी से लेकर ४१२ ईसवी तक [[भारत]], [[श्रीलंका]] और आधुनिक [[नेपाल]] में स्थित [[गौतम बुद्ध]] के जन्मस्थल कपिलवस्तु धर्मयात्रा पर आए। उनका ध्येय यहाँ से बौद्ध ग्रन्थ एकत्रित करके उन्हें वापस [[चीन]] ले जाना था। उन्होंने अपनी यात्रा का वर्णन अपने वृत्तांत में लिखा जिसका नाम 'बौद्ध राज्यों का एक अभिलेख: चीनी भिक्षु फ़ा-शियान की बौद्ध अभ्यास-पुस्तकों की खोज में भारत और सीलोन की यात्रा' था। उनकी यात्रा के समय भारत में [[गुप्त राजवंश]] के [[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य]] का काल था और चीन में [[जिन राजवंश]] काल चल रहा था।


==यात्रा==
== यात्रा ==
फ़ाहियान चीन से [[रेशम मार्ग]] पर होते हुए आये और उन्होने अपने यात्रा-वृत्तांत में रास्ते के [[मध्य एशिया|मध्य एशियाई]] देशों के बारे में लिखा है। सर्द [[रेगिस्तानों]] और विषम [[पहाड़ी दर्रों]] से गुज़रते हुए वे [[भारतीय उपमहाद्वीप]] के पश्चिमोत्तरी क्षेत्र में दाख़िल हुए और [[पाटलिपुत्र]] पहुँचे। फिर वे दक्षिण में श्रीलंका भी गए जहाँ उन्होंने कहा कि वहाँ के मूल निवासी दैत्य और [[अझ़दहे]] (ड्रैगन) हुआ करते थे।<ref name="ref26qohih">[http://books.google.com/books?id=ZLFXAAAAMAAJ&pg=PA506 The Medical times and gazette, Volume 1], John Churchill, 1867, ''... According to Fa Hian, the Chinese traveller, the first people in Ceylon were demons and dragons, who are probably intended for the original Yakkahs ...''</ref> स्थान-स्थान से एकत्रित की बौद्ध ग्रन्थ और प्रतिमाएँ लेकर वे समुद्री रास्ते से श्रीलंका से पूर्व को निकले जहाँ एक भयंकर तूफ़ान ने उनके जहाज़ को भटका दिया और १०० दिनों तक सागर में भटककर वे [[जावा द्वीप]] (आधुनिक [[इंडोनेशिया]]) पर जा पहुँचें। वहाँ से वे आगे निकले और चीन के आधुनिक [[शानदोंग प्रान्त]] में लाओशान पहुँचे।<ref name="ref71riyer">[http://books.google.com/books?id=TV6f2XWG6t4C Maritime silk road], Qingxin Li, China Intercontinental Press, 2006, ISBN 9787508509327, ''... In the autumn of 411 AD, Faxian set sail for home on a commercial ship carrying over 200 passengers. ... Lao Mountain in Qingdao, Shandong Province ... warm hospitality from Li Yi, the viceroy of Changguang Prefecture ...''</ref> फिर शानदोंग की उस समय की राजधानी, चिंगझोऊ नगर, में उन्होने एक वर्ष तक रूककर अपने साथ लाइ गई सामग्री को संगठित और अनुवादित किया।
फ़ाहियान चीन से [[रेशम मार्ग]] पर होते हुए आये और उन्होने अपने यात्रा-वृत्तांत में रास्ते के [[मध्य एशिया|मध्य एशियाई]] देशों के बारे में लिखा है। सर्द [[रेगिस्तानों]] और विषम [[पहाड़ी दर्रों]] से गुज़रते हुए वे [[भारतीय उपमहाद्वीप]] के पश्चिमोत्तरी क्षेत्र में दाख़िल हुए और [[पाटलिपुत्र]] पहुँचे। फिर वे दक्षिण में श्रीलंका भी गए जहाँ उन्होंने कहा कि वहाँ के मूल निवासी दैत्य और [[अझ़दहे]] (ड्रैगन) हुआ करते थे।<ref name="ref26qohih">[http://books.google.com/books?id=ZLFXAAAAMAAJ&pg=PA506 The Medical times and gazette, Volume 1], John Churchill, 1867, ''... According to Fa Hian, the Chinese traveller, the first people in Ceylon were demons and dragons, who are probably intended for the original Yakkahs ...''</ref> स्थान-स्थान से एकत्रित की बौद्ध ग्रन्थ और प्रतिमाएँ लेकर वे समुद्री रास्ते से श्रीलंका से पूर्व को निकले जहाँ एक भयंकर तूफ़ान ने उनके जहाज़ को भटका दिया और १०० दिनों तक सागर में भटककर वे [[जावा द्वीप]] (आधुनिक [[इंडोनेशिया]]) पर जा पहुँचें। वहाँ से वे आगे निकले और चीन के आधुनिक [[शानदोंग प्रान्त]] में लाओशान पहुँचे।<ref name="ref71riyer">[http://books.google.com/books?id=TV6f2XWG6t4C Maritime silk road], Qingxin Li, China Intercontinental Press, 2006, ISBN 978-7-5085-0932-7, ''... In the autumn of 411 AD, Faxian set sail for home on a commercial ship carrying over 200 passengers. ... Lao Mountain in Qingdao, Shandong Province ... warm hospitality from Li Yi, the viceroy of Changguang Prefecture ...''</ref> फिर शानदोंग की उस समय की राजधानी, चिंगझोऊ नगर, में उन्होने एक वर्ष तक रूककर अपने साथ लाइ गई सामग्री को संगठित और अनुवादित किया।


==इन्हें भी देखें==
== इन्हें भी देखें ==
*[[ह्वेन त्सांग]]
* [[ह्वेन त्सांग]]
*[[बौद्ध धर्म]]
* [[बौद्ध धर्म]]


==सन्दर्भ==
== सन्दर्भ ==
<small>{{reflist|2}}</small>
<small>{{reflist|2}}</small>



16:13, 15 फ़रवरी 2013 का अवतरण

फ़ाहियान के यात्रा-वृत्तान्त का पहला पन्ना

फ़ाहियान या फ़ाशियान (चीनी: 法顯 या 法显, अंग्रेज़ी: Faxian या Fa Hien; जन्म: ३३७ ई; मृत्यु: ४२२ ई अनुमानित) एक चीनी बौद्ध भिक्षु थे जो ३९९ ईसवी से लेकर ४१२ ईसवी तक भारत, श्रीलंका और आधुनिक नेपाल में स्थित गौतम बुद्ध के जन्मस्थल कपिलवस्तु धर्मयात्रा पर आए। उनका ध्येय यहाँ से बौद्ध ग्रन्थ एकत्रित करके उन्हें वापस चीन ले जाना था। उन्होंने अपनी यात्रा का वर्णन अपने वृत्तांत में लिखा जिसका नाम 'बौद्ध राज्यों का एक अभिलेख: चीनी भिक्षु फ़ा-शियान की बौद्ध अभ्यास-पुस्तकों की खोज में भारत और सीलोन की यात्रा' था। उनकी यात्रा के समय भारत में गुप्त राजवंश के चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का काल था और चीन में जिन राजवंश काल चल रहा था।

यात्रा

फ़ाहियान चीन से रेशम मार्ग पर होते हुए आये और उन्होने अपने यात्रा-वृत्तांत में रास्ते के मध्य एशियाई देशों के बारे में लिखा है। सर्द रेगिस्तानों और विषम पहाड़ी दर्रों से गुज़रते हुए वे भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तरी क्षेत्र में दाख़िल हुए और पाटलिपुत्र पहुँचे। फिर वे दक्षिण में श्रीलंका भी गए जहाँ उन्होंने कहा कि वहाँ के मूल निवासी दैत्य और अझ़दहे (ड्रैगन) हुआ करते थे।[1] स्थान-स्थान से एकत्रित की बौद्ध ग्रन्थ और प्रतिमाएँ लेकर वे समुद्री रास्ते से श्रीलंका से पूर्व को निकले जहाँ एक भयंकर तूफ़ान ने उनके जहाज़ को भटका दिया और १०० दिनों तक सागर में भटककर वे जावा द्वीप (आधुनिक इंडोनेशिया) पर जा पहुँचें। वहाँ से वे आगे निकले और चीन के आधुनिक शानदोंग प्रान्त में लाओशान पहुँचे।[2] फिर शानदोंग की उस समय की राजधानी, चिंगझोऊ नगर, में उन्होने एक वर्ष तक रूककर अपने साथ लाइ गई सामग्री को संगठित और अनुवादित किया।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. The Medical times and gazette, Volume 1, John Churchill, 1867, ... According to Fa Hian, the Chinese traveller, the first people in Ceylon were demons and dragons, who are probably intended for the original Yakkahs ...
  2. Maritime silk road, Qingxin Li, China Intercontinental Press, 2006, ISBN 978-7-5085-0932-7, ... In the autumn of 411 AD, Faxian set sail for home on a commercial ship carrying over 200 passengers. ... Lao Mountain in Qingdao, Shandong Province ... warm hospitality from Li Yi, the viceroy of Changguang Prefecture ...