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शरीर के अन्य अंगों की भाँति [[नेत्र]] भी रोगग्रस्त होते हैं। यह मानव नेत्र रोगों और विकारों की एक आंशिक सूची है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित वर्गीकरण, बीमारियों और चोटों में जाना जाता है, रोग और संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकी वर्गीकरण की सूची इस प्रकार है।
शरीर के अन्य अंगों की भाँति [[नेत्र]] भी रोगग्रस्त होते हैं। यह मानव नेत्र रोगों और विकारों की एक आंशिक सूची है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित वर्गीकरण, बीमारियों और चोटों में जाना जाता है, रोग और संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकी वर्गीकरण की सूची इस प्रकार है।
==पलक, अश्रु प्रणाली और कक्षा (औरबिट) के विकार==
== पलक, अश्रु प्रणाली और कक्षा (औरबिट) के विकार ==
===बिलनी (Sty या Stye)===
=== बिलनी (Sty या Stye) ===
पलकों में [[बिलनी]] निकल आती है। जिसे अन्जनी भी कहते हैं। पलकों (eyelashes) के वसामय ग्रंथियों (Sebaceous glands) में एक जीवाणु संक्रमण है।
पलकों में [[बिलनी]] निकल आती है। जिसे अन्जनी भी कहते हैं। पलकों (eyelashes) के वसामय ग्रंथियों (Sebaceous glands) में एक जीवाणु संक्रमण है।
===नेत्रवर्त्मग्रन्थि (Chalazion)===
=== नेत्रवर्त्मग्रन्थि (Chalazion) ===
पलक में एक पुटी (cyst) (आमतौर पर ऊपरी पलक में)
पलक में एक पुटी (cyst) (आमतौर पर ऊपरी पलक में)
===वर्त्मांतशोध (Blepharitis)===
=== वर्त्मांतशोध (Blepharitis) ===
पलकें और eyelashes सूजन, eyelashes के पास सफेद परतदार त्वचा
पलकें और eyelashes सूजन, eyelashes के पास सफेद परतदार त्वचा
== कंजाक्तिवा (Conjunctiva) के विकार,==
== कंजाक्तिवा (Conjunctiva) के विकार, ==
==श्वेतपटल (Sclera), कॉर्निया (Cornea), परितारिका (Iris) और रोमक शरीर (Ciliary body) के विकार,==
==श्वेतपटल (Sclera), कॉर्निया (Cornea), परितारिका (Iris) और रोमक शरीर (Ciliary body) के विकार,==
==लेंस (Lens) के विकार,==
== लेंस (Lens) के विकार, ==
==रक्तक (Choroid) और चित्रपट-पऱदा (Retina) के विकार,==
==रक्तक (Choroid) और चित्रपट-पऱदा (Retina) के विकार,==
===1 रक्तकचित्रपट में सूजन (Chorioretinal Inflammetion),===
=== 1 रक्तकचित्रपट में सूजन (Chorioretinal Inflammetion), ===
===2 रक्तक (Choroid) के अन्य विकार,===
===2 रक्तक (Choroid) के अन्य विकार,===
===3 किसी अन्य दुसरी बिमारियों मैं रक्तकचित्रपट (Chorioretinal) विकार का वगॊकरण===
=== 3 किसी अन्य दुसरी बिमारियों मैं रक्तकचित्रपट (Chorioretinal) विकार का वगॊकरण ===
===4 पऱदा (Retina) का उखड़ना और टूटना===
===4 पऱदा (Retina) का उखड़ना और टूटना===
===5 पऱदा की संवहनी (Vascular) में रुकावट आना===
=== 5 पऱदा की संवहनी (Vascular) में रुकावट आना ===
===6 पऱदा के अन्य विकार===
===6 पऱदा के अन्य विकार===
===7 किसी अन्य दुसरी बिमारियों मैं पऱदा के विकारों का वगॊकरण===
=== 7 किसी अन्य दुसरी बिमारियों मैं पऱदा के विकारों का वगॊकरण ===
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==नेत्र की चोटें==
== नेत्र की चोटें ==
नेत्र में चोट लगना खतरनाक होता है। साधारण खरोंच शीघ्र अच्छी हो जाती है। भेदक धाव भयंकर होते हैं। इनमें सांद्र द्रव के बाहर निकल आने, लेंस के विस्थापन, उपसर्ग आदि का खतरा होता है। भोथरे हथियार की चोट में अंत:क्षति होती हैं, यथा दृष्टिपटल का विलगन, लेंस विस्थापन आदि। नेत्र में बाहरी चीज का गिरना एक आम घटना है। मुख्य बात यह है कि किरकिरी अगर कार्निया पर है तो उसे नेत्र चिकित्सक को ही निकालने दें।
नेत्र में चोट लगना खतरनाक होता है। साधारण खरोंच शीघ्र अच्छी हो जाती है। भेदक धाव भयंकर होते हैं। इनमें सांद्र द्रव के बाहर निकल आने, लेंस के विस्थापन, उपसर्ग आदि का खतरा होता है। भोथरे हथियार की चोट में अंत:क्षति होती हैं, यथा दृष्टिपटल का विलगन, लेंस विस्थापन आदि। नेत्र में बाहरी चीज का गिरना एक आम घटना है। मुख्य बात यह है कि किरकिरी अगर कार्निया पर है तो उसे नेत्र चिकित्सक को ही निकालने दें।


==नेत्र उपसर्ग (eye infection)==
== नेत्र उपसर्ग (eye infection) ==
पलकों में [[बिलनी]] निकल आती है। अश्रुवाहिनी और अश्रुकोश के प्रदाह में आँखों से पानी अधिक आता है। कंज़ंक्टाइवा में कई प्रकार के प्रदाह होते हैं। इनमें विषाणु जन्य [[रोहा]] [[भारत]] में अंधेपन का मुख्य कारण है। सौभाग्य से अब 'रोहे' का निराकरण संभव है। सूजाकजन्य प्रदाह भयंकर होता है। कॉर्निया में उपदंश और तपेदिक के कारण प्रदाह होते हैं। पिलक्टेनुलर प्रदाह में कॉर्निया के किनारे पीले दाने निकल आते हैं। यह क्षय रोग या एलर्जी के कारण होता है। फालिक्यूलर प्रदाह में सफेदी पर लाल दाने निकलते हैं। जीवाणुओं से 'आँख आने' की बीमारी होती है। कॉर्निया के घाव खतरनाक होते हैं, क्योंकि अच्छे होने पर उस स्थान पर सफेदी आ जाती है, जिसे जाला, माड़ा आदि कहते हैं। इस प्रकार की अंधता दूर करना संभव नहीं था, पर अब नेत्रदाता से स्वस्थ कॉर्निया लेकर विकृत कॉर्निया के स्थान पर रोपित किया जा सकता है। नेत्र बैंक आज विशेष चर्चा के विषय हैं।
पलकों में [[बिलनी]] निकल आती है। अश्रुवाहिनी और अश्रुकोश के प्रदाह में आँखों से पानी अधिक आता है। कंज़ंक्टाइवा में कई प्रकार के प्रदाह होते हैं। इनमें विषाणु जन्य [[रोहा]] [[भारत]] में अंधेपन का मुख्य कारण है। सौभाग्य से अब 'रोहे' का निराकरण संभव है। सूजाकजन्य प्रदाह भयंकर होता है। कॉर्निया में उपदंश और तपेदिक के कारण प्रदाह होते हैं। पिलक्टेनुलर प्रदाह में कॉर्निया के किनारे पीले दाने निकल आते हैं। यह क्षय रोग या एलर्जी के कारण होता है। फालिक्यूलर प्रदाह में सफेदी पर लाल दाने निकलते हैं। जीवाणुओं से 'आँख आने' की बीमारी होती है। कॉर्निया के घाव खतरनाक होते हैं, क्योंकि अच्छे होने पर उस स्थान पर सफेदी आ जाती है, जिसे जाला, माड़ा आदि कहते हैं। इस प्रकार की अंधता दूर करना संभव नहीं था, पर अब नेत्रदाता से स्वस्थ कॉर्निया लेकर विकृत कॉर्निया के स्थान पर रोपित किया जा सकता है। नेत्र बैंक आज विशेष चर्चा के विषय हैं।


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दृष्टिपटल में प्रदाह, विलगन, रक्तस्त्राव आदि प्रमुख रोग हैं। शरीर के रोगों का नेत्र पर प्रभाव होता है, यथा केंद्रीय तंत्रिका के रोग [[मधुमेह]], [[विटामिन हीनता]], [[उपदंश]], [[क्षय]], गुर्दे के रोग और [[कैंसर]] आदि। नेत्र में साधु और दुर्दम्य [[अर्बुद]] भी होते हैं। [[नेत्रोद]] का चाप बढ़ने से '[[ग्लॉकोमा]]' होता है। यह अचानक आरंभ हो सकता है, या फिर शनै: शनै: होता है। इससे तीव्र नेत्र पीड़ा, सिरदर्द, वमन, प्रकाश के चारों ओर रंगीन चक्कर, दृष्टि का धुंधलापन, थकान आदि लक्षण् होते हैं और अंत में नेत्रज्योति चली जाती है। इसकी चिकित्सा शीघ्र करानी चाहिए। इसमें औषधियाँ (जैसे एसरीन, डायमाक्स आदि) और शल्यचिकित्सा संभव हैं। ग्लॉकोमा का एक व्यापक कारण है, बेरी बेरी। खनिकों में [[अक्षिदोलन रोग]] होता है, जिसमें आँख की पुतली स्थिर नहीं रहती। कान के रोगों से भी यह लक्षण प्रकट हो सकता है। बहुधा यह स्वाभाविक जन्मजात, अथवा जानबूझ कर पैदा किया, हो सकता है।
दृष्टिपटल में प्रदाह, विलगन, रक्तस्त्राव आदि प्रमुख रोग हैं। शरीर के रोगों का नेत्र पर प्रभाव होता है, यथा केंद्रीय तंत्रिका के रोग [[मधुमेह]], [[विटामिन हीनता]], [[उपदंश]], [[क्षय]], गुर्दे के रोग और [[कैंसर]] आदि। नेत्र में साधु और दुर्दम्य [[अर्बुद]] भी होते हैं। [[नेत्रोद]] का चाप बढ़ने से '[[ग्लॉकोमा]]' होता है। यह अचानक आरंभ हो सकता है, या फिर शनै: शनै: होता है। इससे तीव्र नेत्र पीड़ा, सिरदर्द, वमन, प्रकाश के चारों ओर रंगीन चक्कर, दृष्टि का धुंधलापन, थकान आदि लक्षण् होते हैं और अंत में नेत्रज्योति चली जाती है। इसकी चिकित्सा शीघ्र करानी चाहिए। इसमें औषधियाँ (जैसे एसरीन, डायमाक्स आदि) और शल्यचिकित्सा संभव हैं। ग्लॉकोमा का एक व्यापक कारण है, बेरी बेरी। खनिकों में [[अक्षिदोलन रोग]] होता है, जिसमें आँख की पुतली स्थिर नहीं रहती। कान के रोगों से भी यह लक्षण प्रकट हो सकता है। बहुधा यह स्वाभाविक जन्मजात, अथवा जानबूझ कर पैदा किया, हो सकता है।


==नेत्रपरीक्षा का यंत्र==
== नेत्रपरीक्षा का यंत्र ==
नेत्रपरीक्षा में प्रमुख यंत्र है नेत्रदर्शी (ऑफ्थै ल्मॉस्कोप), जिससे दृष्टिपटल देख सकते हैं। स्लिट लैंप से नेत्र की सूक्ष्म परीक्षा करते हैं। सामान्य परीक्षा के लिए पेन टॉर्च, कॉर्नियल लुप, और रैटिनॉस्कोप का उपयोग होता है। पैरीमीटर, वर्णांधता परीक्षा के यंत्र तथा स्टीरियॉस्कोप का पहले उल्लेख हो चुका है।
नेत्रपरीक्षा में प्रमुख यंत्र है नेत्रदर्शी (ऑफ्थै ल्मॉस्कोप), जिससे दृष्टिपटल देख सकते हैं। स्लिट लैंप से नेत्र की सूक्ष्म परीक्षा करते हैं। सामान्य परीक्षा के लिए पेन टॉर्च, कॉर्नियल लुप, और रैटिनॉस्कोप का उपयोग होता है। पैरीमीटर, वर्णांधता परीक्षा के यंत्र तथा स्टीरियॉस्कोप का पहले उल्लेख हो चुका है।


==नेत्र को देखरेख==
== नेत्र को देखरेख ==
भारतीय कवियों ने यही कामना की है कि ''हम स्वस्थ नेत्रों से देखते हुए सौ शरद् जिएँ''। नेत्रस्वास्थ्य सामान्य स्वाथ्य से विलग नहीं है। आहार-विहार के नियमों का पालन करने से नेत्र भी स्वस्थ रहेंगे। नेत्र के लिए विटामिन ए और बी का विशेष महत्व है। आँख की रक्षा लाइसोज़ाइम करते हैं, अतएव शौकिया दवाओं से नेत्र धोना ठीक नहीं है।
भारतीय कवियों ने यही कामना की है कि ''हम स्वस्थ नेत्रों से देखते हुए सौ शरद् जिएँ''। नेत्रस्वास्थ्य सामान्य स्वाथ्य से विलग नहीं है। आहार-विहार के नियमों का पालन करने से नेत्र भी स्वस्थ रहेंगे। नेत्र के लिए विटामिन ए और बी का विशेष महत्व है। आँख की रक्षा लाइसोज़ाइम करते हैं, अतएव शौकिया दवाओं से नेत्र धोना ठीक नहीं है।


==प्रकाशव्यवस्था ==
== प्रकाशव्यवस्था ==
सामान्य कार्य के लिए 5 फुट-कैंडिल रोशनी पर्याप्त है। पीत प्रकाश सबसे अच्छा होता है। चमक से बचना चाहिए। प्रकाश वैषम्य से भी दूर रहें। पढ़ते समय रोशनी पीछे या बाएँ से आनी चाहिए। अच्छी स्याही, अच्छे आकार के अक्षर तथा पंक्तियों की सही दूर पढ़ने में सहायक होते हैं। किस काम में कितनी रोशनी चाहिए, यह संलग्न चार्ट में दिया गया है। नेत्र की रक्षा करें, क्योंकि नेत्रज्योति के बिना जीवन सूना हो जाता है।
सामान्य कार्य के लिए 5 फुट-कैंडिल रोशनी पर्याप्त है। पीत प्रकाश सबसे अच्छा होता है। चमक से बचना चाहिए। प्रकाश वैषम्य से भी दूर रहें। पढ़ते समय रोशनी पीछे या बाएँ से आनी चाहिए। अच्छी स्याही, अच्छे आकार के अक्षर तथा पंक्तियों की सही दूर पढ़ने में सहायक होते हैं। किस काम में कितनी रोशनी चाहिए, यह संलग्न चार्ट में दिया गया है। नेत्र की रक्षा करें, क्योंकि नेत्रज्योति के बिना जीवन सूना हो जाता है।


; प्रकाश की मात्रा (इल्युमिनेटिंग सोसाइटी की सिफारिश)
; प्रकाश की मात्रा (इल्युमिनेटिंग सोसाइटी की सिफारिश)


फुट-कैंडिल --- कार्य
फुट-कैंडिल --- कार्य


50 से ऊपर -- अत्यंत बारीक विशुद्धता का, विभेदक कार्य।
50 से ऊपर -- अत्यंत बारीक विशुद्धता का, विभेदक कार्य।


25 से 50 -- देर तक दृष्टि का उपयोग माँगनेवाले काम; क्षीण वैषम्य और बारीकीवाले काम।
25 से 50 -- देर तक दृष्टि का उपयोग माँगनेवाले काम; क्षीण वैषम्य और बारीकीवाले काम।
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2 से 4 -- सामान्य, कोई विशेष कार्य नहीं।
2 से 4 -- सामान्य, कोई विशेष कार्य नहीं।


==बाहरी कड़ियाँ==
== बाहरी कड़ियाँ ==
*[http://apps.who.int/classifications/icd10/browse/2010/en#/VII WHO ICD-10 — Chapter VII Diseases of the eye and adnexa (H00-H59)]
* [http://apps.who.int/classifications/icd10/browse/2010/en#/VII WHO ICD-10 — Chapter VII Diseases of the eye and adnexa (H00-H59)]
*[http://www.aboutfloaters.com/vision-problems.htm Vision Problems - Comprehensive List of Eye Problems]
* [http://www.aboutfloaters.com/vision-problems.htm Vision Problems - Comprehensive List of Eye Problems]


[[श्रेणी:नेत्र रोग]]
[[श्रेणी:नेत्र रोग]]

04:47, 15 फ़रवरी 2013 का अवतरण

शरीर के अन्य अंगों की भाँति नेत्र भी रोगग्रस्त होते हैं। यह मानव नेत्र रोगों और विकारों की एक आंशिक सूची है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित वर्गीकरण, बीमारियों और चोटों में जाना जाता है, रोग और संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकी वर्गीकरण की सूची इस प्रकार है।

पलक, अश्रु प्रणाली और कक्षा (औरबिट) के विकार

बिलनी (Sty या Stye)

पलकों में बिलनी निकल आती है। जिसे अन्जनी भी कहते हैं। पलकों (eyelashes) के वसामय ग्रंथियों (Sebaceous glands) में एक जीवाणु संक्रमण है।

नेत्रवर्त्मग्रन्थि (Chalazion)

पलक में एक पुटी (cyst) (आमतौर पर ऊपरी पलक में)

वर्त्मांतशोध (Blepharitis)

पलकें और eyelashes सूजन, eyelashes के पास सफेद परतदार त्वचा

कंजाक्तिवा (Conjunctiva) के विकार,

श्वेतपटल (Sclera), कॉर्निया (Cornea), परितारिका (Iris) और रोमक शरीर (Ciliary body) के विकार,

लेंस (Lens) के विकार,

रक्तक (Choroid) और चित्रपट-पऱदा (Retina) के विकार,

1 रक्तकचित्रपट में सूजन (Chorioretinal Inflammetion),

2 रक्तक (Choroid) के अन्य विकार,

3 किसी अन्य दुसरी बिमारियों मैं रक्तकचित्रपट (Chorioretinal) विकार का वगॊकरण

4 पऱदा (Retina) का उखड़ना और टूटना

5 पऱदा की संवहनी (Vascular) में रुकावट आना

6 पऱदा के अन्य विकार

7 किसी अन्य दुसरी बिमारियों मैं पऱदा के विकारों का वगॊकरण

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नेत्र की चोटें

नेत्र में चोट लगना खतरनाक होता है। साधारण खरोंच शीघ्र अच्छी हो जाती है। भेदक धाव भयंकर होते हैं। इनमें सांद्र द्रव के बाहर निकल आने, लेंस के विस्थापन, उपसर्ग आदि का खतरा होता है। भोथरे हथियार की चोट में अंत:क्षति होती हैं, यथा दृष्टिपटल का विलगन, लेंस विस्थापन आदि। नेत्र में बाहरी चीज का गिरना एक आम घटना है। मुख्य बात यह है कि किरकिरी अगर कार्निया पर है तो उसे नेत्र चिकित्सक को ही निकालने दें।

नेत्र उपसर्ग (eye infection)

पलकों में बिलनी निकल आती है। अश्रुवाहिनी और अश्रुकोश के प्रदाह में आँखों से पानी अधिक आता है। कंज़ंक्टाइवा में कई प्रकार के प्रदाह होते हैं। इनमें विषाणु जन्य रोहा भारत में अंधेपन का मुख्य कारण है। सौभाग्य से अब 'रोहे' का निराकरण संभव है। सूजाकजन्य प्रदाह भयंकर होता है। कॉर्निया में उपदंश और तपेदिक के कारण प्रदाह होते हैं। पिलक्टेनुलर प्रदाह में कॉर्निया के किनारे पीले दाने निकल आते हैं। यह क्षय रोग या एलर्जी के कारण होता है। फालिक्यूलर प्रदाह में सफेदी पर लाल दाने निकलते हैं। जीवाणुओं से 'आँख आने' की बीमारी होती है। कॉर्निया के घाव खतरनाक होते हैं, क्योंकि अच्छे होने पर उस स्थान पर सफेदी आ जाती है, जिसे जाला, माड़ा आदि कहते हैं। इस प्रकार की अंधता दूर करना संभव नहीं था, पर अब नेत्रदाता से स्वस्थ कॉर्निया लेकर विकृत कॉर्निया के स्थान पर रोपित किया जा सकता है। नेत्र बैंक आज विशेष चर्चा के विषय हैं।

आइरिस और रोमक पिंड के प्रदाह, आइराइडो साइक्लाइटिस, कष्टकारक होते हैं और बहुधा उपदंश, क्षय या एलर्जी के कारण होते हैं।

लेंस में कोई भी रोग होने पर वह अपारदर्शी हो जाता है। वृद्धावस्था में सामान्य रूप से भी लेंस निकाल दिया जाता है, और उसी की शक्ति का चश्मा पहनने से पुन: दृष्टि आ जाती है। सुश्रुत ने मोतियाबिंद निकालने की चर्चा की है। वर्तमान यग में प्रथम बार फ्रांस के जैक्यूस डेवियल ने यह शल्यक्रिया आरंभ की। यद्यपि आज उन्नत रूप में यह ऑपरेशन सभी को सुलभ है, फिर भी लोग अनाड़ी साथियों से इलाज कराते हैं। ये लोग सूजे से कोंचकार लेंस को पश्च भाग में ठेल देते हैं, जिसे तुरंत दृष्टि आ जाती है, किंतु बाद में विघटन के फलस्वरूप सदा के लिए नेत्र ज्योतिहीन हो जाते हैं।

दृष्टिपटल में प्रदाह, विलगन, रक्तस्त्राव आदि प्रमुख रोग हैं। शरीर के रोगों का नेत्र पर प्रभाव होता है, यथा केंद्रीय तंत्रिका के रोग मधुमेह, विटामिन हीनता, उपदंश, क्षय, गुर्दे के रोग और कैंसर आदि। नेत्र में साधु और दुर्दम्य अर्बुद भी होते हैं। नेत्रोद का चाप बढ़ने से 'ग्लॉकोमा' होता है। यह अचानक आरंभ हो सकता है, या फिर शनै: शनै: होता है। इससे तीव्र नेत्र पीड़ा, सिरदर्द, वमन, प्रकाश के चारों ओर रंगीन चक्कर, दृष्टि का धुंधलापन, थकान आदि लक्षण् होते हैं और अंत में नेत्रज्योति चली जाती है। इसकी चिकित्सा शीघ्र करानी चाहिए। इसमें औषधियाँ (जैसे एसरीन, डायमाक्स आदि) और शल्यचिकित्सा संभव हैं। ग्लॉकोमा का एक व्यापक कारण है, बेरी बेरी। खनिकों में अक्षिदोलन रोग होता है, जिसमें आँख की पुतली स्थिर नहीं रहती। कान के रोगों से भी यह लक्षण प्रकट हो सकता है। बहुधा यह स्वाभाविक जन्मजात, अथवा जानबूझ कर पैदा किया, हो सकता है।

नेत्रपरीक्षा का यंत्र

नेत्रपरीक्षा में प्रमुख यंत्र है नेत्रदर्शी (ऑफ्थै ल्मॉस्कोप), जिससे दृष्टिपटल देख सकते हैं। स्लिट लैंप से नेत्र की सूक्ष्म परीक्षा करते हैं। सामान्य परीक्षा के लिए पेन टॉर्च, कॉर्नियल लुप, और रैटिनॉस्कोप का उपयोग होता है। पैरीमीटर, वर्णांधता परीक्षा के यंत्र तथा स्टीरियॉस्कोप का पहले उल्लेख हो चुका है।

नेत्र को देखरेख

भारतीय कवियों ने यही कामना की है कि हम स्वस्थ नेत्रों से देखते हुए सौ शरद् जिएँ। नेत्रस्वास्थ्य सामान्य स्वाथ्य से विलग नहीं है। आहार-विहार के नियमों का पालन करने से नेत्र भी स्वस्थ रहेंगे। नेत्र के लिए विटामिन ए और बी का विशेष महत्व है। आँख की रक्षा लाइसोज़ाइम करते हैं, अतएव शौकिया दवाओं से नेत्र धोना ठीक नहीं है।

प्रकाशव्यवस्था

सामान्य कार्य के लिए 5 फुट-कैंडिल रोशनी पर्याप्त है। पीत प्रकाश सबसे अच्छा होता है। चमक से बचना चाहिए। प्रकाश वैषम्य से भी दूर रहें। पढ़ते समय रोशनी पीछे या बाएँ से आनी चाहिए। अच्छी स्याही, अच्छे आकार के अक्षर तथा पंक्तियों की सही दूर पढ़ने में सहायक होते हैं। किस काम में कितनी रोशनी चाहिए, यह संलग्न चार्ट में दिया गया है। नेत्र की रक्षा करें, क्योंकि नेत्रज्योति के बिना जीवन सूना हो जाता है।

प्रकाश की मात्रा (इल्युमिनेटिंग सोसाइटी की सिफारिश)

फुट-कैंडिल --- कार्य

50 से ऊपर -- अत्यंत बारीक विशुद्धता का, विभेदक कार्य।

25 से 50 -- देर तक दृष्टि का उपयोग माँगनेवाले काम; क्षीण वैषम्य और बारीकीवाले काम।

15 से 25 -- लंबी अवधि के निर्णयात्मक नेत्र के काम, जैसे प्रूफ पढ़ना, मशीन के पुर्जें फिट करना।

10 से 15 -- बैठकर करने के काम, जैसे पढ़ना, सीना आदि।

6 से 10 -- मामूली पढ़ाई, बड़ी मशीनों के पुर्जे फिट करना।

2 से 4 -- सामान्य, कोई विशेष कार्य नहीं।

बाहरी कड़ियाँ