"नक्षत्र": अवतरणों में अंतर
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[[आकाश]] में [[तारा]]-समूह को '''नक्षत्र''' कहते हैं। साधारणतः यह [[चन्द्रमा]] के पथ से जुडे हैं, पर वास्तव में किसी भी तारा-समूह को नक्षत्र कहना उचित है। [[ऋग्वेद]] में एक स्थान सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में [[सप्तर्षि]] और [[अगस्त्य]] हैं। |
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नक्षत्र सूची [[अथर्ववेद]], [[तैत्तिरीय संहिता]], [[शतपथ ब्राह्मण]] और [[लगध]] के [[वेदाङ्ग ज्योतिष]] में मिलती है। |
नक्षत्र सूची [[अथर्ववेद]], [[तैत्तिरीय संहिता]], [[शतपथ ब्राह्मण]] और [[लगध]] के [[वेदाङ्ग ज्योतिष]] में मिलती है। |
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==परिचय== |
== परिचय == |
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तारे हमारे सौर जगत् के भीतर नहीं है । ये सूर्य से बहुत दूर हैं और सुर्य की परिक्रमा न करने के कारण स्थिर जान पड़ते हैं—अर्थात् एक तारा दूसरे तारे से जिस और और जितनी दूर आज देखा जायगा उसी ओर और उतनी ही दूर पर सदा देखा जायगा । इस प्रकार ऐसे दो चार पास पास रहनेवाले तारों की परस्पर स्थिति का ध्यान एक बार कर लेने से हम उन सबको दूसरी बार देखने से पहचान सकते हैं । पहचान के लिये यदि हम उन सब तारों के मिलने से जो आकार बने उसे निर्दिष्ट करके समूचे तारकपुंज का कोई नाम रख लें तो और भी सुभीता होगा । नक्षत्रों का विभाग इसीलिये और इसी प्रकार किया गया है। |
तारे हमारे सौर जगत् के भीतर नहीं है । ये सूर्य से बहुत दूर हैं और सुर्य की परिक्रमा न करने के कारण स्थिर जान पड़ते हैं—अर्थात् एक तारा दूसरे तारे से जिस और और जितनी दूर आज देखा जायगा उसी ओर और उतनी ही दूर पर सदा देखा जायगा । इस प्रकार ऐसे दो चार पास पास रहनेवाले तारों की परस्पर स्थिति का ध्यान एक बार कर लेने से हम उन सबको दूसरी बार देखने से पहचान सकते हैं । पहचान के लिये यदि हम उन सब तारों के मिलने से जो आकार बने उसे निर्दिष्ट करके समूचे तारकपुंज का कोई नाम रख लें तो और भी सुभीता होगा । नक्षत्रों का विभाग इसीलिये और इसी प्रकार किया गया है। |
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;नक्षत्र -- तारासंख्या -- आकृति और पहचान |
;नक्षत्र -- तारासंख्या -- आकृति और पहचान |
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#अश्विनी -- ३ -- घोड़ा |
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#भरणी -- ३ -- त्रिकोण |
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#कृत्तिका -- ६ -- अग्निशिखा |
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#रोहिणी -- ५ -- गाड़ी |
# रोहिणी -- ५ -- गाड़ी |
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#मृगशिरा -- ३ -- हरिणमस्तक वा विडालपद |
# मृगशिरा -- ३ -- हरिणमस्तक वा विडालपद |
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#आर्द्रा -- १ -- उज्वल |
# आर्द्रा -- १ -- उज्वल |
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#पुनर्वसु |
# पुनर्वसु ५ या ६ धनुष या धर |
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#पुष्य -- १ वा ३ -- माणिक्य वर्ण |
# पुष्य -- १ वा ३ -- माणिक्य वर्ण |
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#अश्लेषा -- ५ -- कुत्ते की पूँछ वा कुलावचक्र |
# अश्लेषा -- ५ -- कुत्ते की पूँछ वा कुलावचक्र |
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#मघा -- ५ -- हल |
# मघा -- ५ -- हल |
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#पूर्वाफाल्गुनी -- २ -- खट्वाकार X उत्तर दक्षिण |
# पूर्वाफाल्गुनी -- २ -- खट्वाकार X उत्तर दक्षिण |
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#उत्तराफाल्गुनी -- २ -- शय्याकारX उत्तर दक्षिण |
# उत्तराफाल्गुनी -- २ -- शय्याकारX उत्तर दक्षिण |
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#हस्त -- ५ -- हाथ का पंजा |
# हस्त -- ५ -- हाथ का पंजा |
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#चित्रा -- १ -- मुक्तावत् उज्वल |
# चित्रा -- १ -- मुक्तावत् उज्वल |
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#स्वाती -- १ -- कुंकुं वर्ण |
# स्वाती -- १ -- कुंकुं वर्ण |
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#विशाखा -- ५ व ६ -- तोरण या माला |
# विशाखा -- ५ व ६ -- तोरण या माला |
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#अनुराधा -- ७ -- सूप या जलधारा |
# अनुराधा -- ७ -- सूप या जलधारा |
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#ज्येष्ठा -- ३ -- सर्प या कुंडल |
# ज्येष्ठा -- ३ -- सर्प या कुंडल |
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#मुल -- ९ या ११ -- शंख या सिंह की पूँछ |
# मुल -- ९ या ११ -- शंख या सिंह की पूँछ |
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#पुर्वाषाढा -- ४ -- सूप या हाथी का दाँत |
# पुर्वाषाढा -- ४ -- सूप या हाथी का दाँत |
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#उत्तरषाढा -- ४ -- सूप |
# उत्तरषाढा -- ४ -- सूप |
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#श्रवण -- ३ -- बाण या त्रिशूल |
# श्रवण -- ३ -- बाण या त्रिशूल |
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#धनिष्ठा -- ५ -- मर्दल बाजा |
# धनिष्ठा -- ५ -- मर्दल बाजा |
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#शतभिषा -- १०० -- मंडलाकार |
# शतभिषा -- १०० -- मंडलाकार |
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#पूर्वभाद्रपद -- २ -- भारवत् या घंटाकार |
# पूर्वभाद्रपद -- २ -- भारवत् या घंटाकार |
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#उत्तरभाद्रपद -- २ -- दो मस्तक |
# उत्तरभाद्रपद -- २ -- दो मस्तक |
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#रेवती -- ३२ -- मछली या मृदंग |
# रेवती -- ३२ -- मछली या मृदंग |
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इन २७ नक्षत्रों के अतिरिक्त 'अभिजित्' नाम का एक और नक्षत्र पहले माना जाता था पर वह पूर्वाषाढ़ा के भीतर ही आ जाता है, इससे अब २७ ही नक्षत्र गिने जाते हैं । इन्हीं नक्षत्रों के नाम पर महीनों के नाम रखे गए हैं । महीने की [[पूर्णिमा]] को चंद्रमा जिस नक्षत्र पर रहेगा उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के अनुसार होगा, जैसे कार्तिक की पूर्णिमा को चंद्रमा कृत्तिका वा रोहिणी नक्षत्र पर रहेगा, अग्रहायण |
इन २७ नक्षत्रों के अतिरिक्त 'अभिजित्' नाम का एक और नक्षत्र पहले माना जाता था पर वह पूर्वाषाढ़ा के भीतर ही आ जाता है, इससे अब २७ ही नक्षत्र गिने जाते हैं । इन्हीं नक्षत्रों के नाम पर महीनों के नाम रखे गए हैं । महीने की [[पूर्णिमा]] को चंद्रमा जिस नक्षत्र पर रहेगा उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के अनुसार होगा, जैसे कार्तिक की पूर्णिमा को चंद्रमा कृत्तिका वा रोहिणी नक्षत्र पर रहेगा, अग्रहायण की पूर्णिमा को मृगशिरा वा आर्दा पर; इसी प्रकार और समझिए। |
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| 2|| [[भरणी]] (Bharanī)||[[शुक्र]] (Venus)|| [[35 Arietis|35]], [[39 Arietis|39]], and [[41 Arietis|41]] [[Aries (constellation)|Arietis]] || [[चित्र:Aries constellation map.png|100px]] || 13AR20-26AR40 |
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| 25 || [[पूर्वभाद्र्पद]] (Pūrva Bhādrapadā)||[[बृहस्पति]]|| [[Alpha Pegasi|α]] and [[Beta Pegasi|β]] [[Pegasus (constellation)|Pegasi]] || [[चित्र:Pegasus constellation map.png|100px]]|| 20AQ00-03PI20 |
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| 26 || [[उत्तरभाद्रपदा]] (Uttara Bhādrapadā)||[[शनि]]|| [[Gamma Pegasi|γ]] [[Pegasus (constellation)|Pegasi]] and [[Alpha Andromedae|α]] [[Andromeda (constellation)|Andromedae]] || [[चित्र:Andromeda constellation map.png|100px]] || 03PI20-16PI40 |
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===28वें नक्षत्र का नाम=== |
=== 28वें नक्षत्र का नाम === |
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28वें नक्षत्र का नाम [[अभिजित]] (Abhijit)([[Alpha Lyrae|α]], [[Epsilon Lyrae|ε]] and ζ [[Lyra (constellation)|Lyrae]] - [[Vega]] - उत्तराषाढ़ा और श्रवण मध्ये) |
28वें नक्षत्र का नाम [[अभिजित]] (Abhijit)([[Alpha Lyrae|α]], [[Epsilon Lyrae|ε]] and ζ [[Lyra (constellation)|Lyrae]] - [[Vega]] - उत्तराषाढ़ा और श्रवण मध्ये) |
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==राशि== |
== राशि == |
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जिस प्रकार चंद्रमा के पथ का विभाग किया गया है उसी प्रकार उस पथ का विभाग भी हुआ है जिसे सूर्य १२ महीनों में पूरा करता हुआ जान पड़ता है । इस पथ के १२ विभाग किए गए हैं जिन्हें राशि कहते हैं । जिन तारों के बीच से होकर चंद्रमा घूमता है उन्हीं पर से होकर सूर्य भी गमन करता हुआ जान पड़ता है; खचक्र एक ही है, विभाग में अंतर है । राशिचक्र के विभाग बड़े हैं जिनसें से किसी किसी के अंतर्गत तीन तीन नक्षत्र तक आ जाते हैं । कुछ विद्वानों का मत है कि यह राशि-विभाग पहले पहल मिस्रवालों ने किया जिसे यवन लोगों (यूनानियों) ने लेकर और और स्थानों में फैलाया । पश्चिमी ज्योतिषियों ने जब देखा कि बारह राशियों से सारे अंतरिक्ष के तारों और नक्षत्रों का निर्देश नहीं होता है तब उन्होंने और बहुत सी राशियों के नाम रखे । इस प्रकार राशियों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती गई । पर भारतीय ज्योतिषियों ने खगोल के उत्तर और दक्षिण खंड में जो तारे हैं उन्हें नक्षत्रों में बाँधकर निर्दिष्ट नहीं किया । |
जिस प्रकार चंद्रमा के पथ का विभाग किया गया है उसी प्रकार उस पथ का विभाग भी हुआ है जिसे सूर्य १२ महीनों में पूरा करता हुआ जान पड़ता है । इस पथ के १२ विभाग किए गए हैं जिन्हें राशि कहते हैं । जिन तारों के बीच से होकर चंद्रमा घूमता है उन्हीं पर से होकर सूर्य भी गमन करता हुआ जान पड़ता है; खचक्र एक ही है, विभाग में अंतर है । राशिचक्र के विभाग बड़े हैं जिनसें से किसी किसी के अंतर्गत तीन तीन नक्षत्र तक आ जाते हैं । कुछ विद्वानों का मत है कि यह राशि-विभाग पहले पहल मिस्रवालों ने किया जिसे यवन लोगों (यूनानियों) ने लेकर और और स्थानों में फैलाया । पश्चिमी ज्योतिषियों ने जब देखा कि बारह राशियों से सारे अंतरिक्ष के तारों और नक्षत्रों का निर्देश नहीं होता है तब उन्होंने और बहुत सी राशियों के नाम रखे । इस प्रकार राशियों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती गई । पर भारतीय ज्योतिषियों ने खगोल के उत्तर और दक्षिण खंड में जो तारे हैं उन्हें नक्षत्रों में बाँधकर निर्दिष्ट नहीं किया । |
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{{नक्षत्र}} |
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[[श्रेणी:ज्योतिष]] |
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[[be:Накшатра]] |
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15:29, 14 फ़रवरी 2013 का अवतरण
आकाश में तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चन्द्रमा के पथ से जुडे हैं, पर वास्तव में किसी भी तारा-समूह को नक्षत्र कहना उचित है। ऋग्वेद में एक स्थान सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं।
नक्षत्र सूची अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण और लगध के वेदाङ्ग ज्योतिष में मिलती है।
परिचय
तारे हमारे सौर जगत् के भीतर नहीं है । ये सूर्य से बहुत दूर हैं और सुर्य की परिक्रमा न करने के कारण स्थिर जान पड़ते हैं—अर्थात् एक तारा दूसरे तारे से जिस और और जितनी दूर आज देखा जायगा उसी ओर और उतनी ही दूर पर सदा देखा जायगा । इस प्रकार ऐसे दो चार पास पास रहनेवाले तारों की परस्पर स्थिति का ध्यान एक बार कर लेने से हम उन सबको दूसरी बार देखने से पहचान सकते हैं । पहचान के लिये यदि हम उन सब तारों के मिलने से जो आकार बने उसे निर्दिष्ट करके समूचे तारकपुंज का कोई नाम रख लें तो और भी सुभीता होगा । नक्षत्रों का विभाग इसीलिये और इसी प्रकार किया गया है।
चंद्रमा २७-२८ दिनों में पृथ्वी के चारों ओर घूम आता है । खगोल में यह भ्रमणपथ इन्हीं तारों के बीच से होकर गया हुआ जान पड़ता है । इसी पथ में पड़नेवाले तारों के अलग अलग दल बाँधकर एक एक तारकपुंज का नाम नक्षत्र रखा गया है । इस रीति से सारा पथ इन २७ नक्षत्रों में विभक्त होकर 'नक्षत्र चक्र' कहलाता है । नीचे तारों की संख्या और आकृति सहित २७ नक्षत्रों के नाम दिए जाते हैं—
- नक्षत्र -- तारासंख्या -- आकृति और पहचान
- अश्विनी -- ३ -- घोड़ा
- भरणी -- ३ -- त्रिकोण
- कृत्तिका -- ६ -- अग्निशिखा
- रोहिणी -- ५ -- गाड़ी
- मृगशिरा -- ३ -- हरिणमस्तक वा विडालपद
- आर्द्रा -- १ -- उज्वल
- पुनर्वसु ५ या ६ धनुष या धर
- पुष्य -- १ वा ३ -- माणिक्य वर्ण
- अश्लेषा -- ५ -- कुत्ते की पूँछ वा कुलावचक्र
- मघा -- ५ -- हल
- पूर्वाफाल्गुनी -- २ -- खट्वाकार X उत्तर दक्षिण
- उत्तराफाल्गुनी -- २ -- शय्याकारX उत्तर दक्षिण
- हस्त -- ५ -- हाथ का पंजा
- चित्रा -- १ -- मुक्तावत् उज्वल
- स्वाती -- १ -- कुंकुं वर्ण
- विशाखा -- ५ व ६ -- तोरण या माला
- अनुराधा -- ७ -- सूप या जलधारा
- ज्येष्ठा -- ३ -- सर्प या कुंडल
- मुल -- ९ या ११ -- शंख या सिंह की पूँछ
- पुर्वाषाढा -- ४ -- सूप या हाथी का दाँत
- उत्तरषाढा -- ४ -- सूप
- श्रवण -- ३ -- बाण या त्रिशूल
- धनिष्ठा -- ५ -- मर्दल बाजा
- शतभिषा -- १०० -- मंडलाकार
- पूर्वभाद्रपद -- २ -- भारवत् या घंटाकार
- उत्तरभाद्रपद -- २ -- दो मस्तक
- रेवती -- ३२ -- मछली या मृदंग
इन २७ नक्षत्रों के अतिरिक्त 'अभिजित्' नाम का एक और नक्षत्र पहले माना जाता था पर वह पूर्वाषाढ़ा के भीतर ही आ जाता है, इससे अब २७ ही नक्षत्र गिने जाते हैं । इन्हीं नक्षत्रों के नाम पर महीनों के नाम रखे गए हैं । महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र पर रहेगा उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के अनुसार होगा, जैसे कार्तिक की पूर्णिमा को चंद्रमा कृत्तिका वा रोहिणी नक्षत्र पर रहेगा, अग्रहायण की पूर्णिमा को मृगशिरा वा आर्दा पर; इसी प्रकार और समझिए।
# | नाम | देवता | पाश्चात्य नाम | मानचित्र | स्थिति |
---|---|---|---|---|---|
1 | अश्विनी (Ashvinī) | केतु | β and γ Arietis | 00AR00-13AR20 | |
2 | भरणी (Bharanī) | शुक्र (Venus) | 35, 39, and 41 Arietis | 13AR20-26AR40 | |
3 | कृत्तिका (Krittikā) | रवि (Sun) | Pleiades | 26AR40-10TA00 | |
4 | रोहिणी (Rohinī) | चन्द्र (Moon) | Aldebaran | 10TA00-23TA20 | |
5 | मॄगशिरा (Mrigashīrsha) | मङ्गल (Mars) | λ, φ Orionis | 23TA40-06GE40 | |
6 | आद्रा (Ārdrā) | राहु | Betelgeuse | 06GE40-20GE00 | |
7 | पुनर्वसु (Punarvasu) | बृहस्पति(Jupiter) | Castor and Pollux | 20GE00-03CA20 | |
8 | पुष्य (Pushya) | शनि (Saturn) | γ, δ and θ Cancri | 03CA20-16CA40 | |
9 | अश्लेशा (Āshleshā) | बुध (Mercury) | δ, ε, η, ρ, and σ Hydrae | 16CA40-30CA500 | |
10 | मघा (Maghā) | केतु | Regulus | 00LE00-13LE20 | |
11 | पूर्वाफाल्गुनी (Pūrva Phalgunī) | शुक्र (Venus) | δ and θ Leonis | 13LE20-26LE40 | |
12 | उत्तराफाल्गुनी (Uttara Phalgunī) | रवि | Denebola | 26LE40-10VI00 | |
13 | हस्त (Hasta) | चन्द्र | α, β, γ, δ and ε Corvi | 10VI00-23VI20 | |
14 | चित्रा (Chitrā) | चित्रगुप्त | Spica | 23VI20-06LI40 | |
15 | स्वाती (Svātī) | राहु | Arcturus | 06LI40-20LI00 | |
16 | विशाखा (Vishākhā) | बृहस्पति | α, β, γ and ι Librae | 20LI00-03SC20 | |
17 | अनुराधा (Anurādhā) | शनि | β, δ and π Scorpionis | 03SC20-16SC40 | |
18 | ज्येष्ठा (Jyeshtha) | बुध | α, σ, and τ Scorpionis | 16SC40-30SC00 | |
19 | मूल (Mūla) | केतु | ε, ζ, η, θ, ι, κ, λ, μ and ν Scorpionis | 00SG00-13SG20 | |
20 | पूर्वाषाढा (Pūrva Ashādhā) | शुक्र | δ and ε Sagittarii | 13SG20-26SG40 | |
21 | उत्तराषाढा (Uttara Ashādhā) | रवि | ζ and σ Sagittarii | 26SG40-10CP00 | |
22 | श्रवण (Shravana) | चन्द्र | α, β and γ Aquilae | 10CP00-23CP20 | |
23 | श्रविष्ठा (Shravishthā) or धनिष्ठा | मङ्गल | α to δ Delphinus | 23CP20-06AQ40 | |
2 | 4शतभिषा (Shatabhishaj) | राहु | γ Aquarii | 06AQ40-20AQ00 | |
25 | पूर्वभाद्र्पद (Pūrva Bhādrapadā) | बृहस्पति | α and β Pegasi | 20AQ00-03PI20 | |
26 | उत्तरभाद्रपदा (Uttara Bhādrapadā) | शनि | γ Pegasi and α Andromedae | 03PI20-16PI40 | |
27 | रेवती (Revatī) | बुध | ζ Piscium | 16PI40-30PI00 |
28वें नक्षत्र का नाम
28वें नक्षत्र का नाम अभिजित (Abhijit)(α, ε and ζ Lyrae - Vega - उत्तराषाढ़ा और श्रवण मध्ये)
राशि
जिस प्रकार चंद्रमा के पथ का विभाग किया गया है उसी प्रकार उस पथ का विभाग भी हुआ है जिसे सूर्य १२ महीनों में पूरा करता हुआ जान पड़ता है । इस पथ के १२ विभाग किए गए हैं जिन्हें राशि कहते हैं । जिन तारों के बीच से होकर चंद्रमा घूमता है उन्हीं पर से होकर सूर्य भी गमन करता हुआ जान पड़ता है; खचक्र एक ही है, विभाग में अंतर है । राशिचक्र के विभाग बड़े हैं जिनसें से किसी किसी के अंतर्गत तीन तीन नक्षत्र तक आ जाते हैं । कुछ विद्वानों का मत है कि यह राशि-विभाग पहले पहल मिस्रवालों ने किया जिसे यवन लोगों (यूनानियों) ने लेकर और और स्थानों में फैलाया । पश्चिमी ज्योतिषियों ने जब देखा कि बारह राशियों से सारे अंतरिक्ष के तारों और नक्षत्रों का निर्देश नहीं होता है तब उन्होंने और बहुत सी राशियों के नाम रखे । इस प्रकार राशियों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती गई । पर भारतीय ज्योतिषियों ने खगोल के उत्तर और दक्षिण खंड में जो तारे हैं उन्हें नक्षत्रों में बाँधकर निर्दिष्ट नहीं किया ।
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• पुनर्वसु • पुष्य • अश्लेषा • मघा • पूर्वाफाल्गुनी • उत्तराफाल्गुनी • हस्त • चित्रा • स्वाती • विशाखा • अनुराधा • ज्येष्ठा • मूल • पूर्वाषाढ़ा • उत्तराषाढा • श्रवण • धनिष्ठा • शतभिषा • पूर्वाभाद्रपद • उत्तराभाद्रपद • रेवती
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|group5=अन्य सिद्धांत |list5= आत्मकारक • अयनमास • भाव • चौघड़िया • दशा • द्वादशम • गंडांत • लग्न • नाड़ी • पंचांग • पंजिका • राहुकाल
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