"कांचबिंदु": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छो r2.6.2) (रोबॉट: fa:آب سیاه की जगह fa:آب‌سیاه जोड़ रहा है
छो Bot: अंगराग परिवर्तन
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
'''कांच बिंदु रोग''' ([[अंग्रेज़ी]]:''ग्लूकोमा'') या [[काला मोतिया]] [[नेत्र]] का रोग है। यह रोग तंत्र में गंभीर एवं निरंतर क्षति करते हुए धीरे-धीरे दृष्टि को समाप्त ही कर देता है। किसी वस्तु से प्रकाश की किरणें आंखों तक पहुंचती हैं, व उसकी छवि दृष्टि पटल पर बनाती हैं। दृष्टि पटल (रेटिना) से ये सूचना विद्युत तरंगों द्वारा मस्तिष्क तक नेत्र तंतुओं द्वारा पहुंचाई जाती है।<ref name="इंडिया">[http://indg.in/health/diseases/systemic_diseases/906902916947902 अंधत्‍व तथा दृष्टि की क्षीणता के कारण]।इंडिया डवलपमेंट गेटवे</ref> आंख में एक तरल पदार्थ भरा होता है। इससे लगातार एक तरल पदार्थ आंख के गोले को चिकना किए रहता है। यदि यह तरल पदार्थ रुक जाए तो अंतःनेत्र दाब (इंट्राऑक्यूलर प्रेशर) बढ़ जाता है।<ref name="हिन्दुस्तान">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-100445.html ग्लूकोमा]।हिन्दुस्तान लाइव।११ मार्च,२०१०</ref><ref name="चाणक्य">[http://chankay.blogspot.com/2009/02/blog-post_18.html ग्लूकोमा यानि काला मोतिया]।१८ फ़रवरी, २००९</ref> कांच बिंदु में अंत:नेत्र पर दाब, प्रभावित आँखों की सहने की क्षमता से अधिक हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप नेत्र तंतु को क्षति पहुँचती है जिससे दृष्टि चली जाती है। किसी वस्तु को देखते समय कांच बिंदु वाले व्यक्ति को केवल वस्‍तु का केन्‍द्र दिखाई देता है। समय बीतने के साथ स्थिति बद से बदतर होती जाती है, व व्यक्ति यह क्षमता भी खो देता है। सामान्यत:, लोग इस पर कदाचित ही ध्यान देते हैं जबतक कि काफी क्षति न हो गई हो। प्रायः ये रोग बिना किसी लक्षण के विकसित होता है व दोनों आँखों को एक साथ प्रभावित करता है। हालाँकि यह ४० वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों के बीच में पाया जाता है, फिर भी कुछ मामलों में यह नवजात शिशुओं को भी प्रभावित कर सकता हैं।<ref name="इंडिया"/> [[मधुमेह]], [[आनुवांशिकी|आनुवांशिकता]], [[उच्च रक्तचाप]] व [[हृदय रोग]] इस रोग के प्रमुख कारणों में से हैं।<ref name="दुनिया">[http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/health/disease/0902/18/1090218037_2.htm ग्लूकोमा यानि काला मोतिया]।वेब दुनिया</ref>
'''कांच बिंदु रोग''' ([[अंग्रेज़ी]]:''ग्लूकोमा'') या [[काला मोतिया]] [[नेत्र]] का रोग है। यह रोग तंत्र में गंभीर एवं निरंतर क्षति करते हुए धीरे-धीरे दृष्टि को समाप्त ही कर देता है। किसी वस्तु से प्रकाश की किरणें आंखों तक पहुंचती हैं, व उसकी छवि दृष्टि पटल पर बनाती हैं। दृष्टि पटल (रेटिना) से ये सूचना विद्युत तरंगों द्वारा मस्तिष्क तक नेत्र तंतुओं द्वारा पहुंचाई जाती है।<ref name="इंडिया">[http://indg.in/health/diseases/systemic_diseases/906902916947902 अंधत्‍व तथा दृष्टि की क्षीणता के कारण]।इंडिया डवलपमेंट गेटवे</ref> आंख में एक तरल पदार्थ भरा होता है। इससे लगातार एक तरल पदार्थ आंख के गोले को चिकना किए रहता है। यदि यह तरल पदार्थ रुक जाए तो अंतःनेत्र दाब (इंट्राऑक्यूलर प्रेशर) बढ़ जाता है।<ref name="हिन्दुस्तान">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-100445.html ग्लूकोमा]।हिन्दुस्तान लाइव।११ मार्च,२०१०</ref><ref name="चाणक्य">[http://chankay.blogspot.com/2009/02/blog-post_18.html ग्लूकोमा यानि काला मोतिया]।१८ फ़रवरी, २००९</ref> कांच बिंदु में अंत:नेत्र पर दाब, प्रभावित आँखों की सहने की क्षमता से अधिक हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप नेत्र तंतु को क्षति पहुँचती है जिससे दृष्टि चली जाती है। किसी वस्तु को देखते समय कांच बिंदु वाले व्यक्ति को केवल वस्‍तु का केन्‍द्र दिखाई देता है। समय बीतने के साथ स्थिति बद से बदतर होती जाती है, व व्यक्ति यह क्षमता भी खो देता है। सामान्यत:, लोग इस पर कदाचित ही ध्यान देते हैं जबतक कि काफी क्षति न हो गई हो। प्रायः ये रोग बिना किसी लक्षण के विकसित होता है व दोनों आँखों को एक साथ प्रभावित करता है। हालाँकि यह ४० वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों के बीच में पाया जाता है, फिर भी कुछ मामलों में यह नवजात शिशुओं को भी प्रभावित कर सकता हैं।<ref name="इंडिया"/> [[मधुमेह]], [[आनुवांशिकी|आनुवांशिकता]], [[उच्च रक्तचाप]] व [[हृदय रोग]] इस रोग के प्रमुख कारणों में से हैं।<ref name="दुनिया">[http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/health/disease/0902/18/1090218037_2.htm ग्लूकोमा यानि काला मोतिया]।वेब दुनिया</ref>
==कारण==
== कारण ==
मानव आँख में स्थित कॉर्निया के पीछे आँखों को सही आकार और पोषण देने वाला तरल पदार्थ होता है, जिसे एक्वेस ह्यूमर कहते हैं।लेंस के चारों ओर स्थित सीलियरी ऊतक इस तरल पदार्थ को लगातार बनाते रहते हैं। यह तरल पुतलियों के द्वारा आँखों के भीतरी हिस्से में जाता है। इस तरह से आँखों में एक्वेस ह्यूमर का बनना और बहना लगातार होता रहता है, स्वस्थ आँखों के लिए यह आवश्यक है।आँखों के भीतरी हिस्से में कितना दबाव रहे यह तरल पदार्थ की मात्रा पर निर्भर रहता है। ग्लूकोमा रोगियों की आंखों में इस तरल पदार्थ का दबाव अत्यधिक बढ़ जाता है। कभी-कभी आँखों की बहाव नलिकाओं का मार्ग रुक जाता है, लेकिन सीलियरी ऊतक इसे लगातार बनाते ही जाते हैं। ऐसे में जब आँखों में दृष्टि-तंतु के ऊपर तरल का दबाव अचानक बढ़ जाता है तो ग्लूकोमा हो जाता है। यदि आँखों में तरल का इतना ही दबाव लंबे समय तक बना रहता है तो इससे आँखों की तंतु नष्ट भी हो सकती है। समय रहते यदि इस बीमारी का इलाज नहीं कराया जाता तो इससे दृष्टि पूरी तरह जा सकती है।<ref name="दुनिया"/>
मानव आँख में स्थित कॉर्निया के पीछे आँखों को सही आकार और पोषण देने वाला तरल पदार्थ होता है, जिसे एक्वेस ह्यूमर कहते हैं।लेंस के चारों ओर स्थित सीलियरी ऊतक इस तरल पदार्थ को लगातार बनाते रहते हैं। यह तरल पुतलियों के द्वारा आँखों के भीतरी हिस्से में जाता है। इस तरह से आँखों में एक्वेस ह्यूमर का बनना और बहना लगातार होता रहता है, स्वस्थ आँखों के लिए यह आवश्यक है।आँखों के भीतरी हिस्से में कितना दबाव रहे यह तरल पदार्थ की मात्रा पर निर्भर रहता है। ग्लूकोमा रोगियों की आंखों में इस तरल पदार्थ का दबाव अत्यधिक बढ़ जाता है। कभी-कभी आँखों की बहाव नलिकाओं का मार्ग रुक जाता है, लेकिन सीलियरी ऊतक इसे लगातार बनाते ही जाते हैं। ऐसे में जब आँखों में दृष्टि-तंतु के ऊपर तरल का दबाव अचानक बढ़ जाता है तो ग्लूकोमा हो जाता है। यदि आँखों में तरल का इतना ही दबाव लंबे समय तक बना रहता है तो इससे आँखों की तंतु नष्ट भी हो सकती है। समय रहते यदि इस बीमारी का इलाज नहीं कराया जाता तो इससे दृष्टि पूरी तरह जा सकती है।<ref name="दुनिया"/>
== प्रकार ==
== प्रकार ==
[[चित्र:Human eyesight two children and ball normal vision.jpg|thumb|right|दृष्टि का सामान्य क्षेत्र]]
[[चित्र:Human eyesight two children and ball normal vision.jpg|thumb|right|दृष्टि का सामान्य क्षेत्र]]
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
ये एक तीव्र प्रकार का कांच बिंदु होता है। इस स्थिति में आंखों में दबाव तेजी से बढ़ता है।<ref name="इंडिया"/> आईरिस एवं कॉर्निया की चौड़ाई कम होती है, परिणामस्वरूप तरल-निकासी नली के आकार में कमी होती है। वयस्कों में परिधीय दृष्टि की हानि होती है और कुण्‍डल या इंद्रधनुष-रंग के गोले या रोशनी दिखाई देती है। उनकी दृष्टि मटमैली या धुँधली हो जाती है। रोगी आंख में दर्द एवं लालिमा अनुभव करते हैं तथा दृष्टि का क्षेत्र इतना कम होता है कि रोगी स्वतंत्र रूप से नहीं चल भी नहीं पाते हैं। जब भी आंखों की चोट के बाद दर्द या दृष्टि में कमी हो तो माध्यमिक कांच बिंदु की आशंका करनी चाहिए। मधुमेह के रोगी भी कांच बिंदु से पीड़ित हो सकते हैं।
ये एक तीव्र प्रकार का कांच बिंदु होता है। इस स्थिति में आंखों में दबाव तेजी से बढ़ता है।<ref name="इंडिया"/> आईरिस एवं कॉर्निया की चौड़ाई कम होती है, परिणामस्वरूप तरल-निकासी नली के आकार में कमी होती है। वयस्कों में परिधीय दृष्टि की हानि होती है और कुण्‍डल या इंद्रधनुष-रंग के गोले या रोशनी दिखाई देती है। उनकी दृष्टि मटमैली या धुँधली हो जाती है। रोगी आंख में दर्द एवं लालिमा अनुभव करते हैं तथा दृष्टि का क्षेत्र इतना कम होता है कि रोगी स्वतंत्र रूप से नहीं चल भी नहीं पाते हैं। जब भी आंखों की चोट के बाद दर्द या दृष्टि में कमी हो तो माध्यमिक कांच बिंदु की आशंका करनी चाहिए। मधुमेह के रोगी भी कांच बिंदु से पीड़ित हो सकते हैं।


===कन्जनाइटल ग्लूकोमा===
=== कन्जनाइटल ग्लूकोमा ===
कन्जनाइटल ग्लूकोमा शिशुओं एवं बच्चों में जन्मजात होता है। इसके लक्षणों मे लालिमा,पानी आना, आँखों का बड़ा होना, कॉर्निया का धुंधलापन एवं प्रकाश भीति शामिल है।<ref name="दुनिया"/>
कन्जनाइटल ग्लूकोमा शिशुओं एवं बच्चों में जन्मजात होता है। इसके लक्षणों मे लालिमा,पानी आना, आँखों का बड़ा होना, कॉर्निया का धुंधलापन एवं प्रकाश भीति शामिल है।<ref name="दुनिया"/>


==जाँच==
== जाँच ==
[[चित्र:Conventional surgery to treat glaucoma EDA11.JPG|thumb|ग्लूकोमा उपचार की पारंपरिक विधि। इसमें तंतु जाल में नया छिद्र खोल दिया जाता है। इससे अत्यधिक तरल निकल जाता है व अंतःअक्षि दाब कम हो जाता है।]]
[[चित्र:Conventional surgery to treat glaucoma EDA11.JPG|thumb|ग्लूकोमा उपचार की पारंपरिक विधि। इसमें तंतु जाल में नया छिद्र खोल दिया जाता है। इससे अत्यधिक तरल निकल जाता है व अंतःअक्षि दाब कम हो जाता है।]]
कालेमोतिया का कारण अक्षि-चिकित्सक (ऑप्थैल्मोलॉजिस्ट) ही बेहतर पहचान सकता है। नियमित जांच से इसकी पहचान संभव हो सकती है। इसकी जाँच मुख्यतः चार भागों में की जाती है- पहले सामान्य नेत्र परीक्षण किया जाता है, जिससे आँखों की दृष्टि क्षमता मापी जाती है। इसके बाद आँखों में थोड़ी देर तक आई ड्राप डालकर रखते हैं। उसके बाद मशीन से रेटिना और आँखों की तंत्रिका की गहन जाँच की जाती है। आँखों के साइड विजन की जाँच में वह कमजोर निकलता है तो इसका अर्थ यह है कि ऐसा व्यक्ति ग्लूकोमा से पीड़ित है।<ref name="दुनिया"/>
कालेमोतिया का कारण अक्षि-चिकित्सक (ऑप्थैल्मोलॉजिस्ट) ही बेहतर पहचान सकता है। नियमित जांच से इसकी पहचान संभव हो सकती है। इसकी जाँच मुख्यतः चार भागों में की जाती है- पहले सामान्य नेत्र परीक्षण किया जाता है, जिससे आँखों की दृष्टि क्षमता मापी जाती है। इसके बाद आँखों में थोड़ी देर तक आई ड्राप डालकर रखते हैं। उसके बाद मशीन से रेटिना और आँखों की तंत्रिका की गहन जाँच की जाती है। आँखों के साइड विजन की जाँच में वह कमजोर निकलता है तो इसका अर्थ यह है कि ऐसा व्यक्ति ग्लूकोमा से पीड़ित है।<ref name="दुनिया"/>


==लक्षण एवं उपचार==
== लक्षण एवं उपचार ==
जाँच के बाद उपचार की प्रक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि यह बीमारी अभी किस अवस्था में है। शुरुआती दौर में दवाओं से उपचार किया जाता है लेकिन यदि बीमारी गंभीर अवस्था में हो तो सर्जरी द्वारा भी इसका उपचार किया जाता है। ऑपरेशन के 15 दिनों के बाद रोगी बिल्कुल ठीक हो जाता है लेकिन ऑपरेशन के बाद भी डॉक्टर द्वारा नियमित जाँच और डॉक्टर द्वारा बताए निर्देशों का पालन जरूरी है।
जाँच के बाद उपचार की प्रक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि यह बीमारी अभी किस अवस्था में है। शुरुआती दौर में दवाओं से उपचार किया जाता है लेकिन यदि बीमारी गंभीर अवस्था में हो तो सर्जरी द्वारा भी इसका उपचार किया जाता है। ऑपरेशन के 15 दिनों के बाद रोगी बिल्कुल ठीक हो जाता है लेकिन ऑपरेशन के बाद भी डॉक्टर द्वारा नियमित जाँच और डॉक्टर द्वारा बताए निर्देशों का पालन जरूरी है।


पंक्ति 57: पंक्ति 57:
{{legend|#cb0000|more than 250}}
{{legend|#cb0000|more than 250}}
</div>]]
</div>]]
ग्लूकोमा के उपचार की कई विधियां होती हैं जिनमें आंखों में दवा डालना, लेजर उपचार और शल्य-क्रिया शामिल हैं। यदि ग्लूकोमा रोगी उसके प्रति असावधानी व लापरवाही से रहें, तो आंखों की रोशनी भी जा सकती है।<ref name="चाणक्य"/> अतएव इसके उपचार को शीघ्रातिशीघ्र एवं सावधानी से कराना चाहिए। शल्य-क्रिया उन्हीं रोगियों के लिए आवश्यक होती है जिनका रोग उन्नत स्तर में पहुंच चुका होता है।<ref name="हिन्दुस्तान"/> ऐसे रोगियों में तरल दवा अधिक प्रभाव नहीं छोड़ती है। इसका लेजर से भी ऑपरेशन किया जाता है। कई मामलों में यह बीमारी आनुवांशिक प्रभावी भी देखी गई है। एक आंख में यदि काला मोतिया उतरा है तो उसके दूसरी आंख में भी होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए इसकी प्रारंभिक आईओपी जांच के परिणामों पर गंभीरता से निर्णय लेकर उपचार करा लेना चाहिए।<ref name="हिन्दुस्तान"/>
ग्लूकोमा के उपचार की कई विधियां होती हैं जिनमें आंखों में दवा डालना, लेजर उपचार और शल्य-क्रिया शामिल हैं। यदि ग्लूकोमा रोगी उसके प्रति असावधानी व लापरवाही से रहें, तो आंखों की रोशनी भी जा सकती है।<ref name="चाणक्य"/> अतएव इसके उपचार को शीघ्रातिशीघ्र एवं सावधानी से कराना चाहिए। शल्य-क्रिया उन्हीं रोगियों के लिए आवश्यक होती है जिनका रोग उन्नत स्तर में पहुंच चुका होता है।<ref name="हिन्दुस्तान"/> ऐसे रोगियों में तरल दवा अधिक प्रभाव नहीं छोड़ती है। इसका लेजर से भी ऑपरेशन किया जाता है। कई मामलों में यह बीमारी आनुवांशिक प्रभावी भी देखी गई है। एक आंख में यदि काला मोतिया उतरा है तो उसके दूसरी आंख में भी होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए इसकी प्रारंभिक आईओपी जांच के परिणामों पर गंभीरता से निर्णय लेकर उपचार करा लेना चाहिए।<ref name="हिन्दुस्तान"/>


विश्व स्तर पर कांच बिंदु लगभग छह करोड़ लोगों को प्रभावित करता है और भारत में यह अंधत्‍व का दूसरा सबसे आम कारण है। लगभग एक करोड़ भारतीय कांच बिंद से पीड़ित हैं जिनमें से १.५ लाख नेत्रहीन हैं।
विश्व स्तर पर कांच बिंदु लगभग छह करोड़ लोगों को प्रभावित करता है और भारत में यह अंधत्‍व का दूसरा सबसे आम कारण है। लगभग एक करोड़ भारतीय कांच बिंद से पीड़ित हैं जिनमें से १.५ लाख नेत्रहीन हैं।


==संदर्भ==
== संदर्भ ==
{{Reflist}}
{{Reflist}}


==बाहरी सूत्र==
== बाहरी सूत्र ==
* [http://www.glaucoma.net/gany/about/definition.asp ग्लौकोमा हेतु जालस्थल]
* [http://www.glaucoma.net/gany/about/definition.asp ग्लौकोमा हेतु जालस्थल]
* [http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6249849.html सतर्कता बचा सकता है ग्लूकोमा से]
* [http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6249849.html सतर्कता बचा सकता है ग्लूकोमा से]

14:51, 10 फ़रवरी 2013 का अवतरण

कांच बिंदु रोग
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
मानव आंख का पार-अनुभाग दृश्य
आईसीडी-१० H40.-H42.
आईसीडी- 365
डिज़ीज़-डीबी 5226
ईमेडिसिन oph/578 
एम.ईएसएच D005901

कांच बिंदु रोग (अंग्रेज़ी:ग्लूकोमा) या काला मोतिया नेत्र का रोग है। यह रोग तंत्र में गंभीर एवं निरंतर क्षति करते हुए धीरे-धीरे दृष्टि को समाप्त ही कर देता है। किसी वस्तु से प्रकाश की किरणें आंखों तक पहुंचती हैं, व उसकी छवि दृष्टि पटल पर बनाती हैं। दृष्टि पटल (रेटिना) से ये सूचना विद्युत तरंगों द्वारा मस्तिष्क तक नेत्र तंतुओं द्वारा पहुंचाई जाती है।[1] आंख में एक तरल पदार्थ भरा होता है। इससे लगातार एक तरल पदार्थ आंख के गोले को चिकना किए रहता है। यदि यह तरल पदार्थ रुक जाए तो अंतःनेत्र दाब (इंट्राऑक्यूलर प्रेशर) बढ़ जाता है।[2][3] कांच बिंदु में अंत:नेत्र पर दाब, प्रभावित आँखों की सहने की क्षमता से अधिक हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप नेत्र तंतु को क्षति पहुँचती है जिससे दृष्टि चली जाती है। किसी वस्तु को देखते समय कांच बिंदु वाले व्यक्ति को केवल वस्‍तु का केन्‍द्र दिखाई देता है। समय बीतने के साथ स्थिति बद से बदतर होती जाती है, व व्यक्ति यह क्षमता भी खो देता है। सामान्यत:, लोग इस पर कदाचित ही ध्यान देते हैं जबतक कि काफी क्षति न हो गई हो। प्रायः ये रोग बिना किसी लक्षण के विकसित होता है व दोनों आँखों को एक साथ प्रभावित करता है। हालाँकि यह ४० वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों के बीच में पाया जाता है, फिर भी कुछ मामलों में यह नवजात शिशुओं को भी प्रभावित कर सकता हैं।[1] मधुमेह, आनुवांशिकता, उच्च रक्तचापहृदय रोग इस रोग के प्रमुख कारणों में से हैं।[4]

कारण

मानव आँख में स्थित कॉर्निया के पीछे आँखों को सही आकार और पोषण देने वाला तरल पदार्थ होता है, जिसे एक्वेस ह्यूमर कहते हैं।लेंस के चारों ओर स्थित सीलियरी ऊतक इस तरल पदार्थ को लगातार बनाते रहते हैं। यह तरल पुतलियों के द्वारा आँखों के भीतरी हिस्से में जाता है। इस तरह से आँखों में एक्वेस ह्यूमर का बनना और बहना लगातार होता रहता है, स्वस्थ आँखों के लिए यह आवश्यक है।आँखों के भीतरी हिस्से में कितना दबाव रहे यह तरल पदार्थ की मात्रा पर निर्भर रहता है। ग्लूकोमा रोगियों की आंखों में इस तरल पदार्थ का दबाव अत्यधिक बढ़ जाता है। कभी-कभी आँखों की बहाव नलिकाओं का मार्ग रुक जाता है, लेकिन सीलियरी ऊतक इसे लगातार बनाते ही जाते हैं। ऐसे में जब आँखों में दृष्टि-तंतु के ऊपर तरल का दबाव अचानक बढ़ जाता है तो ग्लूकोमा हो जाता है। यदि आँखों में तरल का इतना ही दबाव लंबे समय तक बना रहता है तो इससे आँखों की तंतु नष्ट भी हो सकती है। समय रहते यदि इस बीमारी का इलाज नहीं कराया जाता तो इससे दृष्टि पूरी तरह जा सकती है।[4]

प्रकार

दृष्टि का सामान्य क्षेत्र
यही क्षेत्र ग्लौकोमा के रोगी के लिए

कांच बिंदु रोग मुख्यतः दो प्रकार का होता है: प्राथमिक खुला कोण और बंद कोण कांच बिंदु। इसके अलावा ये सैकेंडरी भी हो सकता है। बच्चों को होने वाला कालामोतिया भी एक प्रकार में अलग से रखा गया है, जिसे कन्जनाइटल ग्लूकोमा कहते हैं।[3]

प्राथमिक खुला कोण

इस प्रकार के कांच बिंदु में आँख की तरल निकासी नली धीरे-धीरे बंद होती जाती है।[1] तरल निकासी प्रणाली ठीक ढंग से कार्य नहीं करने के कारण आंख का आंतरिक दाब बढ़ जाता है। यहां हालाँकि, तरल-निकासी नली का प्रवेश प्रायः काम कर रहा होता हैं एवं अवरुद्ध नहीं होता हैं, किन्तु रुकावट अंदर होती है एवं द्रव बाहर नहीं आ पाता है, इस कारण आंख के अंदर दबाव में वृद्धि होती है। इस प्रकार के कांच बिंदु से सबंधित कोई विशेष लक्षण नहीं होते हैं। निश्चित अंतराल पर किया जाने वाला आँख परीक्षण कांच बिंदु को शीश्ग्रातिशीघ्र पहचान करने के लिए आवश्यक है। इसके द्वारा इसे औषधि द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।

कोण बंद

ये एक तीव्र प्रकार का कांच बिंदु होता है। इस स्थिति में आंखों में दबाव तेजी से बढ़ता है।[1] आईरिस एवं कॉर्निया की चौड़ाई कम होती है, परिणामस्वरूप तरल-निकासी नली के आकार में कमी होती है। वयस्कों में परिधीय दृष्टि की हानि होती है और कुण्‍डल या इंद्रधनुष-रंग के गोले या रोशनी दिखाई देती है। उनकी दृष्टि मटमैली या धुँधली हो जाती है। रोगी आंख में दर्द एवं लालिमा अनुभव करते हैं तथा दृष्टि का क्षेत्र इतना कम होता है कि रोगी स्वतंत्र रूप से नहीं चल भी नहीं पाते हैं। जब भी आंखों की चोट के बाद दर्द या दृष्टि में कमी हो तो माध्यमिक कांच बिंदु की आशंका करनी चाहिए। मधुमेह के रोगी भी कांच बिंदु से पीड़ित हो सकते हैं।

कन्जनाइटल ग्लूकोमा

कन्जनाइटल ग्लूकोमा शिशुओं एवं बच्चों में जन्मजात होता है। इसके लक्षणों मे लालिमा,पानी आना, आँखों का बड़ा होना, कॉर्निया का धुंधलापन एवं प्रकाश भीति शामिल है।[4]

जाँच

ग्लूकोमा उपचार की पारंपरिक विधि। इसमें तंतु जाल में नया छिद्र खोल दिया जाता है। इससे अत्यधिक तरल निकल जाता है व अंतःअक्षि दाब कम हो जाता है।

कालेमोतिया का कारण अक्षि-चिकित्सक (ऑप्थैल्मोलॉजिस्ट) ही बेहतर पहचान सकता है। नियमित जांच से इसकी पहचान संभव हो सकती है। इसकी जाँच मुख्यतः चार भागों में की जाती है- पहले सामान्य नेत्र परीक्षण किया जाता है, जिससे आँखों की दृष्टि क्षमता मापी जाती है। इसके बाद आँखों में थोड़ी देर तक आई ड्राप डालकर रखते हैं। उसके बाद मशीन से रेटिना और आँखों की तंत्रिका की गहन जाँच की जाती है। आँखों के साइड विजन की जाँच में वह कमजोर निकलता है तो इसका अर्थ यह है कि ऐसा व्यक्ति ग्लूकोमा से पीड़ित है।[4]

लक्षण एवं उपचार

जाँच के बाद उपचार की प्रक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि यह बीमारी अभी किस अवस्था में है। शुरुआती दौर में दवाओं से उपचार किया जाता है लेकिन यदि बीमारी गंभीर अवस्था में हो तो सर्जरी द्वारा भी इसका उपचार किया जाता है। ऑपरेशन के 15 दिनों के बाद रोगी बिल्कुल ठीक हो जाता है लेकिन ऑपरेशन के बाद भी डॉक्टर द्वारा नियमित जाँच और डॉक्टर द्वारा बताए निर्देशों का पालन जरूरी है।

इस रोग में रोगी को सिरदर्द, मितली और धुंधला आना शुरू हो जाता है। कई रोगियों को रात में दिखना बंद भी हो जाता है। टय़ूब लाइट या बल्ब की रोशनी चारों ओर से धुंधली दिखने लगती है। आंखों में तेज दर्द भी होने लगता है। ओपन एंगल ग्लूकोमा में चश्मे के नंबर तेजी से बदलना पड़ता है। इसकी जांच में विशेषज्ञ दृष्टि-तंतु (ऑप्टिक नर्व) के मस्तिष्क से जुड़ने वाले स्थान पर होने वाले परिवर्तन की जांच करते हैं।[1]

ग्लूकोमा के लिये प्रति १ लाख निवासियों के लिये २००४ के विकलांगता समायोजित जीवन वर्ष। [5]
██ no data ██ less than 20 ██ 20-43 ██ 43-66 ██ 66-89 ██ 89-112 ██ 112-135 ██ 135-158 ██ 158-181 ██ 181-204 ██ 204-227 ██ 227-250 ██ more than 250

ग्लूकोमा के उपचार की कई विधियां होती हैं जिनमें आंखों में दवा डालना, लेजर उपचार और शल्य-क्रिया शामिल हैं। यदि ग्लूकोमा रोगी उसके प्रति असावधानी व लापरवाही से रहें, तो आंखों की रोशनी भी जा सकती है।[3] अतएव इसके उपचार को शीघ्रातिशीघ्र एवं सावधानी से कराना चाहिए। शल्य-क्रिया उन्हीं रोगियों के लिए आवश्यक होती है जिनका रोग उन्नत स्तर में पहुंच चुका होता है।[2] ऐसे रोगियों में तरल दवा अधिक प्रभाव नहीं छोड़ती है। इसका लेजर से भी ऑपरेशन किया जाता है। कई मामलों में यह बीमारी आनुवांशिक प्रभावी भी देखी गई है। एक आंख में यदि काला मोतिया उतरा है तो उसके दूसरी आंख में भी होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए इसकी प्रारंभिक आईओपी जांच के परिणामों पर गंभीरता से निर्णय लेकर उपचार करा लेना चाहिए।[2]

विश्व स्तर पर कांच बिंदु लगभग छह करोड़ लोगों को प्रभावित करता है और भारत में यह अंधत्‍व का दूसरा सबसे आम कारण है। लगभग एक करोड़ भारतीय कांच बिंद से पीड़ित हैं जिनमें से १.५ लाख नेत्रहीन हैं।

संदर्भ

  1. अंधत्‍व तथा दृष्टि की क्षीणता के कारण।इंडिया डवलपमेंट गेटवे
  2. ग्लूकोमा।हिन्दुस्तान लाइव।११ मार्च,२०१०
  3. ग्लूकोमा यानि काला मोतिया।१८ फ़रवरी, २००९
  4. ग्लूकोमा यानि काला मोतिया।वेब दुनिया
  5. "डेथ एण्ड डेली एस्टिमेट्स फ़ोर २००४ बाय कॉज़ फ़ोर WHO मेंबर स्टेट्स" (एक्सेल). विश्व स्वास्थ्य संगठन. २००४.

बाहरी सूत्र