"कैथी": अवतरणों में अंतर

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==वाह्य सूत्र==
==वाह्य सूत्र==
*[http://www.in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_8908293.html गुमनामी के अंधेरे में गुम हो गई कैथी]
*[http://www.inextlive.jagran.com/Kaithi-albhabet-is-in-danger-201203140011 कहीं पन्नों में दफन न हो जाए कैथी]
* [http://www-personal.umich.edu/~pandey/kaithi.pdf Proposal to Encode the Kaithi Script in ISO/IEC 10646]
* [http://www-personal.umich.edu/~pandey/kaithi.pdf Proposal to Encode the Kaithi Script in ISO/IEC 10646]



06:30, 15 दिसम्बर 2012 का अवतरण

कैथी लिपि का प्रिन्ट रूप (१९वीं शताब्दी के मध्य)

कैथी एक ऐतिहासिक लिपि है जिसे मध्यकालीन भारत में प्रमुख रूप से उत्तर-पूर्व और उत्तर भारत में काफी बृहत रूप से प्रयोग किया जाता था। खासकर आज के उत्तर प्रदेश एवं बिहार के क्षेत्रों में इस लिपि में वैधानिक एवं प्रशासनिक कार्य किये जाने के भी प्रमाण पाये जाते हैं [1]। । इसे "कयथी" या "कायस्थी", के नाम से भी जाना जाता है। पूर्ववर्ती उत्तर-पश्चिम प्रांत, मिथिला, बंगाल, उड़ीसा और अवध में। इसका प्रयोग खासकर न्यायिक, प्रशासनिक एवं निजी आँकड़ों के संग्रहण में किया जाता था।

उतपत्ति

कैथी शब्द की उतपत्ति

उत्पत्ति

'कैथी' की उत्पत्ति 'कायस्थ' शब्द से हुई है जो कि उत्तर भारत का एक सामाजिक समूह है। इन्हीं के द्वारा मुख्य रूप से व्यापार संबधी ब्यौरा सुरक्षित रखने के लिए सबसे पहले इस लिपी का प्रयोग किया गया था। कायस्थ समुदाय का पुराने रजवाड़ों एवं ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों से काफी नजदीक का रिश्ता रहा है। ये उनके यहाँ विभिन्न प्रकार के आँकड़ों का प्रबंधन एवं भंडारण करने के लिये नियुक्त किये जाते थे। कायस्थों द्वारा प्रयुक्त इस लिपि को बाद में कैथी के नाम से जाना जाने लगा।

इतिहास

कैथी एक पुरानी लिपि है जिसका प्रयोग कम से कम 16 वी सदी मे धड़ल्ले से होता था। मुगल सल्तनत के दौरान इसका प्रयोग काफी व्यापक था। 1880 के दशक में ब्रिटिश राज के दौरान इसे प्राचीन बिहार के न्यायलयों में आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया था। इसे खगड़िया जिले के न्यायालय में वैधानिक लिपि का दर्ज़ा दिया गया था।

यूनिकोड

कैथी लिपि को सन २००९ में यूनिकोड मानक 5.2 में शामिल किया गया। कैथी का यूनिकोड में स्थान U+11080 से U+110CF है। इस सीमा में कुछ खाली स्थान भी है जिनके कोड बिन्दु निर्धारित नहीं किए गए हैं।

कैथी के विलोप का खतरा

अभी भी बिहार समेत देश के उत्‍तर पूर्वी राज्‍यों में इस लिपि में लिखे हजारों अभिलेख हैं। समस्‍या तब होती है जब इन अभिलेखों से संबंधित कानूनी अडचनें आती हैं। दैनिक जागरण के पटना संस्‍करण में नौ सितंबर 2009 को पेज बीस पर बक्‍सर से छपी कंचन किशोर की एक खबर का संदर्भ लें तो इस लिपि के जानकार अब उस जिले में केवल दो लोग बचे हैं। दोनों काफी उम्र वाले हैं। ऐसे में निकट भविष्‍य में इस लिपि को जानने वाला शायद कोई न बचेगा और तक इस लिपि में लिखे भू-अभिलेखों का अनुवाद आज की प्रचलित लिपियों में करना कितना कठिन होगा इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। भाषा के जानकारों के अनुसार यही स्थिति सभी जगह है। ऐसे में जरूरत है इस लिपि के संरक्षण की।

कैथी का यूनिकोड चार्ट ( यूनिकोड संस्करण 6.1 के अनुसार)
  0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 A B C D E F
U+1108x 𑂀 𑂁 𑂂 𑂃 𑂄 𑂅 𑂆 𑂇 𑂈 𑂉 𑂊 𑂋 𑂌 𑂍 𑂎 𑂏
U+1109x 𑂐 𑂑 𑂒 𑂓 𑂔 𑂕 𑂖 𑂗 𑂘 𑂙 𑂚 𑂛 𑂜 𑂝 𑂞 𑂟
U+110Ax 𑂠 𑂡 𑂢 𑂣 𑂤 𑂥 𑂦 𑂧 𑂨 𑂩 𑂪 𑂫 𑂬 𑂭 𑂮 𑂯
U+110Bx 𑂰 𑂱 𑂲 𑂳 𑂴 𑂵 𑂶 𑂷 𑂸 𑂹 𑂺 𑂻 𑂼 𑂽 𑂾 𑂿
U+110Cx 𑃀 𑃁

संदर्भ

  1. अंशुमान पांडे. 2006. Proposal to Encode the Kaithi Script in Plane 1 of ISO/IEC 10646

वाह्य सूत्र