"टकलामकान": अवतरणों में अंतर

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07:13, 1 नवम्बर 2012 का अवतरण

अंतरिक्ष से ली गई टकलामकान की एक तस्वीर
टकलामकान रेगिस्तान का एक दृश्य
नक़्शे में टकलामकान

टकलामकान मरुस्थल (उइग़ुर: تەكلىماكان قۇملۇقى‎, तेकलीमाकान क़ुम्लुक़ी) मध्य एशिया में स्थित एक रेगिस्तान है। इसका अधिकाँश भाग चीन द्वारा नियंत्रित श़िञ्जियांग प्रांत में पड़ता है। यह दक्षिण से कुनलुन पर्वत शृंखला, पश्चिम से पामीर पर्वतमाला और उत्तर से तियन शान की पहाड़ियों द्वारा घिरा हुआ है।[1]

नाम की उत्पत्ति

भूवैज्ञानिकों में 'टकलामकान' के नाम के स्रोत को लेकर मतभेद है। कुछ कहते हैं कि यह अरबी भाषा के 'तर्क' (यानी 'अलग करना') और 'मकान' (यानी 'जगह') के मिश्रण से बना है। यह दोनों शब्द अरबी से उइग़ुर भाषा में भी आये हैं और हिंदी में भी। दुसरे विशेषज्ञों की राय है कि यह तुर्की भाषाओँ के 'तक़लार माकान' से आया है, जिसका अर्थ है 'खंडहरों की जगह'। यह अफ़वाह भी आम है कि 'टकलामकान' का मतलब 'अन्दर जाओगे तो बाहर कभी नहीं निकलोगे' या फिर 'मौत का रेगिस्तान' है, लेकिन यह महज़ ग़लत अवधारणाएं ही है।

भूगोल

टकलामकान का कुल क्षेत्रफल ३,३७,००० वर्ग किमी है, जिसमें तारिम द्रोणी भी शामिल है। इसके उत्तरी और दक्षिणी छोरों से रेशम मार्ग की दो अलग शाखाएँ निकलती हैं, क्योंकि प्राचीन यात्री इस रेगिस्तान के बीच से निकलने से कतराते थे। इसमें ८५% इलाक़ा हिलती हुए रेत के टीलों का है और यह दुनिया का दूसरा सब से बड़ा खिसकने वाले रेतीले टीलों का रेगिस्तान है। चीन ने २०वीं शताब्दी में इसके दक्षिणी भाग में स्थित ख़ोतान नगर से उत्तरी भाग में स्थित लुनताई शहर के बीच एक सड़क बना दी है जो बीच रेगिस्तान से गुज़रती है। पिछले कुछ सालों से कुछ उपजाऊ इलाक़े भी रेत की चपेट में आ गए हैं और टकलामकान थोड़ा सा फैल गया है।

मौसम

टकलामकान एक ठंडा रेगिस्तान है क्योंकि साइबेरिया से समीप होने से यहाँ सर्द हवाएँ आसानी से पहुँच जाती हैं। सर्दियों में यहाँ तापमान −२० °सेंटीग्रेड तक गिर जाता है, हालांकि शुष्क परिस्थितियों की वजह से यहाँ ज़्यादा बर्फ़ नहीं गिरती। फिर भी सन् २००८ में पूरे टकलामकान में बर्फ़ की एक पतली परत जम गई थी।

इतिहास और संस्कृति

टकलामकान के अंदरूनी भाग में पानी बहुत कम है और इसमें प्रवेश करना ख़तरनाक है। फिर भी इसके इर्द-गिर्द के कुछ शहरों में मरूद्यान (ओएसिस) थे जहाँ रेशम मार्ग पर चल रहे यात्री सस्ताने के लिए रुकते थे। इनमें से बहुत से नगर अब खँडहर बन चुके हैं, और इतिहासकारों को यहाँ खोजने पर तुषारी, प्राचीन यूनानी, भारतीय और बौद्ध प्रभाव के चिह्न मिलते हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. John Schettler. "Taklamakan: The Land of No Return". Authorhouse, 2001. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780759655737.