"मित्र वरुण": अवतरणों में अंतर

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{{हिन्दू देवी देवता ज्ञानसन्दूक | <!--Wikipedia:WikiProject Hindu mythology-->
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| Name = मित्र - वरुण
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सात स्वर्ण हंसों वाले रथ
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'''[[मित्र]] और [[वरुण]]''' दो [[हिन्दू देवी देवता|हिन्दू देवता]] है। इनका वर्णन या उल्लेख [[ऋगवेद]] में मिलता है। ये द्वादश [[आदित्य]] में भी गिने जाते हैं। इनका संबंध इतना गहरा है कि इन्हें द्वंद्व संघटकों के रूप में गिना जाता है। इन्हें गहन अंतरंग मित्रता या भाइयों के रूप में उल्लेख किया गया है। ये दोनों [[कश्यप ऋषि]] की पत्नी [[अदिति]] के पुत्र हैं। ये दोनों जल पर सार्वभौमिक राज करते हैं, जहां मित्र सागर की गहराईयों एवं गहनता से संबद्ध है वहीं वरुण सागर के ऊपरी क्षेत्रों, नदियों एवं तटरेखा पर शासन करते हैं। मित्र सूर्योदय और दिवस से संबद्ध हैं जो कि सागर से उदय होता है, जबकि वरुण सूर्यास्त एवं रात्रि से संबद्ध हैं जो सागर में अस्त होती है।
'''[[मित्र]] और [[वरुण]]''' दो [[हिन्दू देवी देवता|हिन्दू देवता]] है। इनका वर्णन या उल्लेख [[ऋगवेद]] में मिलता है। ये द्वादश [[आदित्य]] में भी गिने जाते हैं। इनका संबंध इतना गहरा है कि इन्हें द्वंद्व संघटकों के रूप में गिना जाता है। इन्हें गहन अंतरंग मित्रता या भाइयों के रूप में उल्लेख किया गया है। ये दोनों [[कश्यप ऋषि]] की पत्नी [[अदिति]] के पुत्र हैं। ये दोनों जल पर सार्वभौमिक राज करते हैं, जहां मित्र सागर की गहराईयों एवं गहनता से संबद्ध है वहीं वरुण सागर के ऊपरी क्षेत्रों, नदियों एवं तटरेखा पर शासन करते हैं। मित्र सूर्योदय और दिवस से संबद्ध हैं जो कि सागर से उदय होता है, जबकि वरुण सूर्यास्त एवं रात्रि से संबद्ध हैं जो सागर में अस्त होती है।
दोनों देवता पृथ्वी एवं आकाश को जल से संबद्ध किये रहते हैं तथा दोनों ही चंद्रमा, सागर एवं ज्वार से जुड़े रहते हैं। भौतिक मानव शरीर में मित्र शरीर से मल को बाहर निकालते हैं जबकि वरुण पोषण को अंदर लेते हैं, इस प्रकार मित्र शरीर के निचले भागों (गुदा एवं मलाशय) से जुड़े हैं वहीं वरुण शरीर के ऊपरी भागों (मुख एवं जिह्वा) पर शसन करते हैं।<ref>[www.galva108.org/deities.html#Mitra_Varuna द गे एण्ड लेस्बियन वैष्णव एसोसियेशन इंका]- मित्र एण्ड वरुण। द्वारा अमर दास विल्हैल्म। गाल्वा-१०८।अभिगमन तिथि: २७ सितंबर, २०१२</ref>
दोनों देवता पृथ्वी एवं आकाश को जल से संबद्ध किये रहते हैं तथा दोनों ही चंद्रमा, सागर एवं ज्वार से जुड़े रहते हैं। भौतिक मानव शरीर में मित्र शरीर से मल को बाहर निकालते हैं जबकि वरुण पोषण को अंदर लेते हैं, इस प्रकार मित्र शरीर के निचले भागों (गुदा एवं मलाशय) से जुड़े हैं वहीं वरुण शरीर के ऊपरी भागों (मुख एवं जिह्वा) पर शसन करते हैं।<ref>[www.galva108.org/deities.html#Mitra_Varuna द गे एण्ड लेस्बियन वैष्णव एसोसियेशन इंका]- मित्र एण्ड वरुण। द्वारा अमर दास विल्हैल्म। गाल्वा-१०८।अभिगमन तिथि: २७ सितंबर, २०१२</ref>


वैदिक साहित्य में मित्रा - वरुण को पुरुषों में भ्रातृसदृश स्नेह का प्रतीक दिखाया गया है। मित्र का शाब्दिक अर्थ ही दोस्त होता है। ये अंतरंग मित्रता या दोस्ती के प्रतीक हैं। इन्हें एक शार्क मत्स्य पर सवार दिखाया जाता है और इनके हाथों में त्रिशूल, पाश, शंख और पानी के बर्तन दिखाये जाते हैं। कई स्थानों पर इन्हें सात हंसों द्वारा खींचे गये स्वर्ण रथ पर साथ-साथ आरूढ भी दिखाया जाता है। प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार इन्हें चंद्रमा के दो रूपों या कलाओं के रूप में दिखाया जाता है, बढ़ता चंद्रमा वरुण एवं घटता चंद्रमा मित्र का प्रतीक दिखाया जाता है। इसी रात्रि में मित्र अपने बीज को वरुण में स्थापित करते हैं।<ref>शतपथ ब्राह्मण, २.४.४.१९</ref> इसी प्रकार वरुण मित्र में अपने बीज की स्थापना पूर्णिमा की रात्रि को करते हैं।
[[वैदिक साहित्य]] में मित्रा - वरुण को पुरुषों में भ्रातृसदृश स्नेह का प्रतीक दिखाया गया है। मित्र का शाब्दिक अर्थ ही दोस्त होता है। ये अंतरंग मित्रता या दोस्ती के प्रतीक हैं। इन्हें एक शार्क मत्स्य पर सवार दिखाया जाता है और इनके हाथों में त्रिशूल, पाश, शंख और पानी के बर्तन दिखाये जाते हैं। कई स्थानों पर इन्हें सात हंसों द्वारा खींचे गये स्वर्ण रथ पर साथ-साथ आरूढ भी दिखाया जाता है। प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार इन्हें चंद्रमा के दो रूपों या कलाओं के रूप में दिखाया जाता है, बढ़ता चंद्रमा वरुण एवं घटता चंद्रमा मित्र का प्रतीक दिखाया जाता है। इसी रात्रि में मित्र अपने बीज को वरुण में स्थापित करते हैं।<ref>शतपथ ब्राह्मण, २.४.४.१९</ref> इसी प्रकार वरुण मित्र में अपने बीज की स्थापना पूर्णिमा की रात्रि को करते हैं।


[[भागवत पुराण]] के अनुसार<ref>[[श्रीमद्भाग्वत पुराण]] ६.१८.३-६</ref> वरुण और मित्र को अदिति की क्रमशः नौंवीं तथा दसवीं संतान बताया गया है। इन दोनों की संतानें भी अयोनि मैथुन यानि असामान्य मैथुन के परिणामस्वरूप हुई बतायी गयी हैं। उदाहरणार्थ वरुण के दीमक की बांबी (वल्मीक) पर वीर्यपात स्वरूप ऋषि [[वाल्मीकि]] की उत्पत्ति हुई। जब मित्र एवं वरुण के वीर्य अप्सरा [[उर्वशी]] की उपस्थिति में एक घड़े में गिये तब ऋषि [[अगस्त्य]] एवं [[वशिष्ठ]] की उत्पत्ति हुई। इसी प्रकार वरुण की एक उत्पत्ति थी - वारुणी, अर्थात मधु और मद्य की देवी। मित्र की संतान उत्सर्ग, अरिष्ट एवं पिप्पल हुए जिनका गोबर, बेर वृक्ष एवं बरगद वृक्ष पर शासन रहता है। महाभारत के अनुसा मित्र, याणि [[इंद्र]] के भ्राता [[अर्जुन]] के जन्म के समय आकाश में उपस्थित थे। क्योंकि मित्र एवं वरुण आकाश एवं पृथ्वी पर अपने सागर के जलस्वरूप छाये रहते हैं, इन दोनों देवताओं की पूजा अर्चना [[ज्येष्ठ]] माह में अच्छी वर्षा की कामना से की जाती है। मित्र -वरुण की संयुक्त रूप से [[प्रतिपदा]] एवं [[पूर्णिमा]] के दिन अर्चना की जाती है, जबकि मित्र की अकेले [[शुक्ल पक्ष]] सप्तमी एवं वरुण की [[कृष्ण पक्ष]] [[सप्तमी]] को अर्चना की जाती है।<ref>[www.galva108.org/deities.html#Mitra_Varuna द गे एण्ड लेस्बियन वैष्णव एसोसियेशन इंका]- मित्र एण्ड वरुण। द्वारा अमर दास विल्हैल्म। गाल्वा-१०८।अभिगमन तिथि: २७ सितंबर, २०१२</ref>
[[भागवत पुराण]] के अनुसार<ref>[[श्रीमद्भाग्वत पुराण]] ६.१८.३-६</ref> वरुण और मित्र को अदिति की क्रमशः नौंवीं तथा दसवीं संतान बताया गया है। इन दोनों की संतानें भी अयोनि मैथुन यानि असामान्य मैथुन के परिणामस्वरूप हुई बतायी गयी हैं। उदाहरणार्थ वरुण के दीमक की बांबी (वल्मीक) पर वीर्यपात स्वरूप ऋषि [[वाल्मीकि]] की उत्पत्ति हुई। जब मित्र एवं वरुण के वीर्य अप्सरा [[उर्वशी]] की उपस्थिति में एक घड़े में गिये तब ऋषि [[अगस्त्य]] एवं [[वशिष्ठ]] की उत्पत्ति हुई। इसी प्रकार वरुण की एक उत्पत्ति थी - वारुणी, अर्थात मधु और मद्य की देवी। मित्र की संतान उत्सर्ग, अरिष्ट एवं पिप्पल हुए जिनका गोबर, बेर वृक्ष एवं बरगद वृक्ष पर शासन रहता है। महाभारत के अनुसा मित्र, याणि [[इंद्र]] के भ्राता [[अर्जुन]] के जन्म के समय आकाश में उपस्थित थे। क्योंकि मित्र एवं वरुण आकाश एवं पृथ्वी पर अपने सागर के जलस्वरूप छाये रहते हैं, इन दोनों देवताओं की पूजा अर्चना [[ज्येष्ठ]] माह में अच्छी वर्षा की कामना से की जाती है। मित्र -वरुण की संयुक्त रूप से [[प्रतिपदा]] एवं [[पूर्णिमा]] के दिन अर्चना की जाती है, जबकि मित्र की अकेले [[शुक्ल पक्ष]] सप्तमी एवं वरुण की [[कृष्ण पक्ष]] [[सप्तमी]] को अर्चना की जाती है।<ref>[www.galva108.org/deities.html#Mitra_Varuna द गे एण्ड लेस्बियन वैष्णव एसोसियेशन इंका]- मित्र एण्ड वरुण। द्वारा अमर दास विल्हैल्म। गाल्वा-१०८।अभिगमन तिथि: २७ सितंबर, २०१२</ref>
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
==इन्हें भी देखें==
* [[वरुण]]


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16:59, 27 सितंबर 2012 का अवतरण

मित्र - वरुण
संस्कृत लिप्यंतरण मित्रावरुण
तमिल लिपि மித்ர்-வருண்
संबंध देवता
अस्त्र त्रिशूल, पाश, शंख और पानी के बर्तन
सवारी

शार्क मछली या

सात स्वर्ण हंसों वाले रथ

मित्र और वरुण दो हिन्दू देवता है। इनका वर्णन या उल्लेख ऋगवेद में मिलता है। ये द्वादश आदित्य में भी गिने जाते हैं। इनका संबंध इतना गहरा है कि इन्हें द्वंद्व संघटकों के रूप में गिना जाता है। इन्हें गहन अंतरंग मित्रता या भाइयों के रूप में उल्लेख किया गया है। ये दोनों कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के पुत्र हैं। ये दोनों जल पर सार्वभौमिक राज करते हैं, जहां मित्र सागर की गहराईयों एवं गहनता से संबद्ध है वहीं वरुण सागर के ऊपरी क्षेत्रों, नदियों एवं तटरेखा पर शासन करते हैं। मित्र सूर्योदय और दिवस से संबद्ध हैं जो कि सागर से उदय होता है, जबकि वरुण सूर्यास्त एवं रात्रि से संबद्ध हैं जो सागर में अस्त होती है। दोनों देवता पृथ्वी एवं आकाश को जल से संबद्ध किये रहते हैं तथा दोनों ही चंद्रमा, सागर एवं ज्वार से जुड़े रहते हैं। भौतिक मानव शरीर में मित्र शरीर से मल को बाहर निकालते हैं जबकि वरुण पोषण को अंदर लेते हैं, इस प्रकार मित्र शरीर के निचले भागों (गुदा एवं मलाशय) से जुड़े हैं वहीं वरुण शरीर के ऊपरी भागों (मुख एवं जिह्वा) पर शसन करते हैं।[1]

वैदिक साहित्य में मित्रा - वरुण को पुरुषों में भ्रातृसदृश स्नेह का प्रतीक दिखाया गया है। मित्र का शाब्दिक अर्थ ही दोस्त होता है। ये अंतरंग मित्रता या दोस्ती के प्रतीक हैं। इन्हें एक शार्क मत्स्य पर सवार दिखाया जाता है और इनके हाथों में त्रिशूल, पाश, शंख और पानी के बर्तन दिखाये जाते हैं। कई स्थानों पर इन्हें सात हंसों द्वारा खींचे गये स्वर्ण रथ पर साथ-साथ आरूढ भी दिखाया जाता है। प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार इन्हें चंद्रमा के दो रूपों या कलाओं के रूप में दिखाया जाता है, बढ़ता चंद्रमा वरुण एवं घटता चंद्रमा मित्र का प्रतीक दिखाया जाता है। इसी रात्रि में मित्र अपने बीज को वरुण में स्थापित करते हैं।[2] इसी प्रकार वरुण मित्र में अपने बीज की स्थापना पूर्णिमा की रात्रि को करते हैं।

भागवत पुराण के अनुसार[3] वरुण और मित्र को अदिति की क्रमशः नौंवीं तथा दसवीं संतान बताया गया है। इन दोनों की संतानें भी अयोनि मैथुन यानि असामान्य मैथुन के परिणामस्वरूप हुई बतायी गयी हैं। उदाहरणार्थ वरुण के दीमक की बांबी (वल्मीक) पर वीर्यपात स्वरूप ऋषि वाल्मीकि की उत्पत्ति हुई। जब मित्र एवं वरुण के वीर्य अप्सरा उर्वशी की उपस्थिति में एक घड़े में गिये तब ऋषि अगस्त्य एवं वशिष्ठ की उत्पत्ति हुई। इसी प्रकार वरुण की एक उत्पत्ति थी - वारुणी, अर्थात मधु और मद्य की देवी। मित्र की संतान उत्सर्ग, अरिष्ट एवं पिप्पल हुए जिनका गोबर, बेर वृक्ष एवं बरगद वृक्ष पर शासन रहता है। महाभारत के अनुसा मित्र, याणि इंद्र के भ्राता अर्जुन के जन्म के समय आकाश में उपस्थित थे। क्योंकि मित्र एवं वरुण आकाश एवं पृथ्वी पर अपने सागर के जलस्वरूप छाये रहते हैं, इन दोनों देवताओं की पूजा अर्चना ज्येष्ठ माह में अच्छी वर्षा की कामना से की जाती है। मित्र -वरुण की संयुक्त रूप से प्रतिपदा एवं पूर्णिमा के दिन अर्चना की जाती है, जबकि मित्र की अकेले शुक्ल पक्ष सप्तमी एवं वरुण की कृष्ण पक्ष सप्तमी को अर्चना की जाती है।[4]

सन्दर्भ

  1. [www.galva108.org/deities.html#Mitra_Varuna द गे एण्ड लेस्बियन वैष्णव एसोसियेशन इंका]- मित्र एण्ड वरुण। द्वारा अमर दास विल्हैल्म। गाल्वा-१०८।अभिगमन तिथि: २७ सितंबर, २०१२
  2. शतपथ ब्राह्मण, २.४.४.१९
  3. श्रीमद्भाग्वत पुराण ६.१८.३-६
  4. [www.galva108.org/deities.html#Mitra_Varuna द गे एण्ड लेस्बियन वैष्णव एसोसियेशन इंका]- मित्र एण्ड वरुण। द्वारा अमर दास विल्हैल्म। गाल्वा-१०८।अभिगमन तिथि: २७ सितंबर, २०१२

इन्हें भी देखें