"स्मार्त सूत्र": अवतरणों में अंतर

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[[वेद]] द्वारा प्रतिपादित विषयों को स्मरणकर उन्हीं के आधार पर आचार-विचार को प्रकाशित करनेवाली शब्दराशि को "स्मृति" कहते हैं। स्मृति से विहित कर्म स्मार्त कर्म हैं। इन कर्मों की समस्त विधियाँ '''स्मार्त सूत्रों''' से नियंत्रित हैं। स्मार्त सूत्र का नामांतर '''गृह्यसूत्र''' है। अतीत में वेद की अनेक शाखाएँ थीं। प्रत्येक शाखा के निमित्त गृह्यसूत्र भी होंगे। वर्तमानकाल में जो गृह्यूत्र उपलब्ध हैं वे अपनी शाखा के कर्मकांड को प्रतिपादित करते हैं।
[[वेद]] द्वारा प्रतिपादित विषयों को स्मरणकर उन्हीं के आधार पर आचार-विचार को प्रकाशित करनेवाली शब्दराशि को "स्मृति" कहते हैं। स्मृति से विहित कर्म '''स्मार्त''' कर्म हैं। इन कर्मों की समस्त विधियाँ '''स्मार्त सूत्रों''' से नियंत्रित हैं। स्मार्त सूत्र का नामांतर '''गृह्यसूत्र''' है। अतीत में वेद की अनेक शाखाएँ थीं। प्रत्येक शाखा के निमित्त गृह्यसूत्र भी होंगे। वर्तमानकाल में जो गृह्यूत्र उपलब्ध हैं वे अपनी शाखा के कर्मकांड को प्रतिपादित करते हैं।


==परिचय==
[[शिक्षा]], [[कल्प]], [[व्याकरण]], [[निरुक्त]], [[छंद]] और [[ज्योतिष]] - ये छह [[वेदांग]] हैं। गृह्यसूत्र की गणना कल्पसूत्र में की गई है। अन्य पाँच वेदांगों के द्वारा स्मार्त कर्म की प्रक्रियाएँ नहीं जानी जा सकतीं। उन्हीं प्रक्रियाओं एवं विधियों को व्यवस्थित रूप से प्रकाशित करने के निमित्त आचार्यों एवं ऋषियों ने स्मार्त सूत्रों की रचना की है। इन स्मार्त सूत्रों के द्वारा सप्तपाकसंस्था एवं समस्त संस्कारों के विधान तथा नियमों का विस्तार के साथ विवेचन किया गया है।
[[शिक्षा]], [[कल्प]], [[व्याकरण]], [[निरुक्त]], [[छंद]] और [[ज्योतिष]] - ये छह [[वेदांग]] हैं। गृह्यसूत्र की गणना कल्पसूत्र में की गई है। अन्य पाँच वेदांगों के द्वारा स्मार्त कर्म की प्रक्रियाएँ नहीं जानी जा सकतीं। उन्हीं प्रक्रियाओं एवं विधियों को व्यवस्थित रूप से प्रकाशित करने के निमित्त आचार्यों एवं ऋषियों ने स्मार्त सूत्रों की रचना की है। इन स्मार्त सूत्रों के द्वारा सप्तपाकसंस्था एवं समस्त संस्कारों के विधान तथा नियमों का विस्तार के साथ विवेचन किया गया है।


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गोभिलगृह्यसूत्र सामवेद की कौथुम शाखा से संबद्ध है। इसपर भट्टनारायण का भाष्य है। इसमें चार प्रपाठक हैं। प्रथम में नौ और शेष में दस दस कंडिकाएँ हैं। कलकत्ता संस्कृत सिरीज़ से 1936 ई. में प्रकाशित हैं। द्राह्यायणगृह्यसूत्र, जैमिनिगृह्यसूत्र और कौथुम गृह्यसूत्र सामवेद से संबद्ध है। खादिरगृह्यसूत्र भी सामवेद से संबद्ध गृह्यसूत्र है।
गोभिलगृह्यसूत्र सामवेद की कौथुम शाखा से संबद्ध है। इसपर भट्टनारायण का भाष्य है। इसमें चार प्रपाठक हैं। प्रथम में नौ और शेष में दस दस कंडिकाएँ हैं। कलकत्ता संस्कृत सिरीज़ से 1936 ई. में प्रकाशित हैं। द्राह्यायणगृह्यसूत्र, जैमिनिगृह्यसूत्र और कौथुम गृह्यसूत्र सामवेद से संबद्ध है। खादिरगृह्यसूत्र भी सामवेद से संबद्ध गृह्यसूत्र है।


कोशिकागृह्यसूत्र का संबंध अथर्ववेद से है। ये सब गृह्यसूत्र विभिन्न स्थलों से प्रकाशित हैं।
कोशिकागृह्यसूत्र का संबंध [[अथर्ववेद]] से है। ये सब गृह्यसूत्र विभिन्न स्थलों से प्रकाशित हैं।


==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.sankaracharya.org Adi Sankaracharya and Advaita Vedanta Library]
*[http://www.advaita-vedanta.org Advaita Vedanta Homepage]
*[http://www.sringeri.net/ Jagadguru Mahasamsthanam, Sringeri Sharada Peetam]
*[http://www.advaita-vedanta.org/series/shankara_sampradaya/sankara_sampradayam_top.htm Shankara Sampradayam]
*[http://www.hinduism-today.com/archives/2003/10-12/44-49_four_sects.shtml Hinduism Today - Description of Smartism among the four major divisions of Hinduism.]
*[http://www.ikashmir.org/hindudharma/7.html Overview of the three major divisions, from the book, ''Hindu Dharma'', [[Saivism]], [[Shaktism]], [[Vaishnavism]], and the three other schools devoted to [[Ganesh]], [[Murugan|Skanda]] and [[Surya]].]
* [http://web.archive.org/web/20091027104357/http://geocities.com/srigant/sitemap.html Six schools of smarta hinduism]
*[http://www.kamakoti.org/hindudharma/part14/chap9.htm Oneness of God from Kanchi Kamakoti Peetham]
*[http://hinduism.iskcon.com/tradition/1204.htm Description of smarta tradition.]

[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]
[[श्रेणी:वेद]]
[[श्रेणी:वेद]]


[[en:Kalpa (Vedanga)]]
[[en:Smarth tradition]]
[[es:Kalpa (Vedanga)]]
[[es:Smarta]]
[[id:Kalpa (Wedangga)]]
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12:56, 24 सितंबर 2012 का अवतरण

वेद द्वारा प्रतिपादित विषयों को स्मरणकर उन्हीं के आधार पर आचार-विचार को प्रकाशित करनेवाली शब्दराशि को "स्मृति" कहते हैं। स्मृति से विहित कर्म स्मार्त कर्म हैं। इन कर्मों की समस्त विधियाँ स्मार्त सूत्रों से नियंत्रित हैं। स्मार्त सूत्र का नामांतर गृह्यसूत्र है। अतीत में वेद की अनेक शाखाएँ थीं। प्रत्येक शाखा के निमित्त गृह्यसूत्र भी होंगे। वर्तमानकाल में जो गृह्यूत्र उपलब्ध हैं वे अपनी शाखा के कर्मकांड को प्रतिपादित करते हैं।

परिचय

शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष - ये छह वेदांग हैं। गृह्यसूत्र की गणना कल्पसूत्र में की गई है। अन्य पाँच वेदांगों के द्वारा स्मार्त कर्म की प्रक्रियाएँ नहीं जानी जा सकतीं। उन्हीं प्रक्रियाओं एवं विधियों को व्यवस्थित रूप से प्रकाशित करने के निमित्त आचार्यों एवं ऋषियों ने स्मार्त सूत्रों की रचना की है। इन स्मार्त सूत्रों के द्वारा सप्तपाकसंस्था एवं समस्त संस्कारों के विधान तथा नियमों का विस्तार के साथ विवेचन किया गया है।

सामान्यत: गृह्यकर्मों के दो विभाग होते हैं। प्रथम सप्तपाकसंस्था और द्वितीय संस्कार। त्रेताग्नि पर अनुष्ठेय कर्मों से अतिरिक्त कर्म स्मार्त कर्म कहे जाते हैं। इन स्मार्त कर्मों में सप्तपाकसंस्थाओं का अनुष्ठान स्मार्त अग्नि पर विहित है। इनको वही व्यक्ति संपादित कर सकता है जिसने गृह्यसूत्र द्वारा प्रतिपादित विधान के अनुसार स्मार्त अग्नि का परिग्रहण किया हो। स्मार्त अग्नि का विधान विवाह के समय अथवा पैतृक संपत्ति के विभाजन के समय हो सकता है। औपासन, गृह्य अथवा आवसथ्य, ये स्मार्त अग्नि के नामांतर हैं। याग की इक्कीस संस्थाओं में पहली सात पाकसंस्था के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं : औपासन होम, वैश्वदैव, पार्वण, अष्टका, मासिश्राद्ध, श्रमणकर्म और शूलगव। एक बार इस अग्नि का परिग्रह कर लेने पर जीवनपर्यत उसकी उपासना एवं संरक्षण करना अनिवार्य है। इस प्रकार से उपासना करते हुए जब उपासक की मृत्यु होती है, तब उसी अग्नि से उसका दाहसंस्कार होता है। उसके अनंतर उस अग्नि का विसर्जन हो जाता है।

गर्भाधान प्रभृति संस्कार के निमित्त विहित समय तथा शुभ मुहूर्त का होना आवश्यक है। संस्कार के समय अग्नि का साक्ष्य परमावश्यक है। उसी अग्नि पर हवन किया जाता है। अग्नि और देवताओं की विविध स्तुतियाँ और प्रार्थनाएँ होती हैं। देवताओं का आवाहन तथा पूजन होता है। संस्कार्य व्यक्ति का अभिषेक होता है। उसकी भलाई के लिए अनेक आर्शीर्वाद दिए जाते हैं। कौटुंबिक सहभोज, जातिभोज और ब्रह्मभोज प्रभृति मांगलिक विधान के साथ कर्म की समाप्ति होती है। समस्त गृह्यसूत्रों के संस्कार एवं उनके क्रम में एकरूपता नहीं है।

विभिन्न शाखाओं के गृह्यसूत्रों का प्रकाशन अनेक स्थानों से हुआ है। "शांखायनगृह्यसूत्र" ऋग्वेद की शांखायन शाखा से संबद्ध है। इस शाखा का प्रचार गुजरात में अधिक है। कौशीतकि गृह्यसूत्र का भी ऋग्वेद से संबंध है। शांखायनगृह्यसूत्र से इसका शब्दगत अर्थगत पूर्णत: साम्य है। इसका प्रकाशन मद्रास युनिवर्सिटी संस्कृत ग्रंथमाला से 1944 ई. में हुआ है। आश्वलायन गृह्यसूत्र ऋग्वेद की आश्वलायन शाखा से संबंद्ध है। यह गुजरात तथा महाराष्ट्र में प्रचलित है।

पारस्करगृह्यसूत्र शुक्ल यजुर्वेद का एकमात्र गृह्यसूत्र है। यह गुजराती मुद्रणालय (मुंबई) से प्रकाशित है।

यहाँ से लौगाक्षिगृह्यसूत्र तक समस्त गृह्यसूत्र कृष्ण यजुर्वेद की विभिन्न शाखाओं से संबंद्ध हैं। बौधायान गृह्यसूत्र के अंत में गृह्यपरिभाषा, गृह्यशेषसूत्र और पितृमेध सूत्र हैं। मानव गृह्यसूत्र पर अष्टावक्र का भाष्य है। भारद्वाजगृह्यसूत्र के विभाजक प्रश्न हैं। वैखानसस्मार्त सूत्र के विभाजक प्रश्न की संख्या दस हैं। आपस्तंब गृह्यसूत्र के विभाजक आठ पटल हैं। हिरण्यकेशिगृह्यसूत्र के विभाजक दो प्रश्न हैं। वाराहगृह्यसूत्र मैत्रायणी शाखा से संबंद्ध हैं। इसमें एक खंड है। काठकगृह्यसूत्र चरक शाखा से संबंद्ध है। लौगक्षिगृह्यसूत्र पर देवपाल का भाष्य है।

गोभिलगृह्यसूत्र सामवेद की कौथुम शाखा से संबद्ध है। इसपर भट्टनारायण का भाष्य है। इसमें चार प्रपाठक हैं। प्रथम में नौ और शेष में दस दस कंडिकाएँ हैं। कलकत्ता संस्कृत सिरीज़ से 1936 ई. में प्रकाशित हैं। द्राह्यायणगृह्यसूत्र, जैमिनिगृह्यसूत्र और कौथुम गृह्यसूत्र सामवेद से संबद्ध है। खादिरगृह्यसूत्र भी सामवेद से संबद्ध गृह्यसूत्र है।

कोशिकागृह्यसूत्र का संबंध अथर्ववेद से है। ये सब गृह्यसूत्र विभिन्न स्थलों से प्रकाशित हैं।

बाहरी कड़ियाँ