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[[आयुर्वेद]] में अलसी को मंदगंधयुक्त, मधुर, बलकारक, किंचित कफवात-कारक, पित्तनाशक, स्निग्ध, पचने में भारी, गरम, पौष्टिक, कामोद्दीपक, पीठ के दर्द ओर सूजन को मिटानेवाली कहा गया है। गरम पानी में डालकर केवल बीजों का या इसके साथ एक तिहाई भाग [[मुलेठी]] का चूर्ण मिलाकर, [[क्वाथ]] (काढ़ा) बनाया जाता है, जो [[रक्तातिसार]] और मूत्र संबंधी रोगों में उपयोगी कहा गया है।
[[आयुर्वेद]] में अलसी को मंदगंधयुक्त, मधुर, बलकारक, किंचित कफवात-कारक, पित्तनाशक, स्निग्ध, पचने में भारी, गरम, पौष्टिक, कामोद्दीपक, पीठ के दर्द ओर सूजन को मिटानेवाली कहा गया है। गरम पानी में डालकर केवल बीजों का या इसके साथ एक तिहाई भाग [[मुलेठी]] का चूर्ण मिलाकर, [[क्वाथ]] (काढ़ा) बनाया जाता है, जो [[रक्तातिसार]] और मूत्र संबंधी रोगों में उपयोगी कहा गया है।
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चित्र:Illustration Linum usitatissimum0.jpg|तीसी का पौधा
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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[http://uthojago.wordpress.com/2011/03/22/अलसी-का-सेवन-किस-रोग-में-व-क/ अलसी का सेवन किस रोग में व कैसे करें?]
*[http://uthojago.wordpress.com/2011/03/22/अलसी-का-सेवन-किस-रोग-में-व-क/ अलसी का सेवन किस रोग में व कैसे करें?]

09:20, 4 सितंबर 2012 का अवतरण

अलसी
अलसी का पौधा
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: पादप
अश्रेणीत: पुष्पीय पौधे
अश्रेणीत: एकबीजपत्री
अश्रेणीत: रोज़िड्स
गण: मैल्पिजिएल्स
कुल: लिनेसी
वंश: लाइनम
जाति: L. usitatissimum
द्विपद नाम
Linum usitatissimum
लीनियस.

अलसी या तीसी समशीतोष्ण प्रदेशों का पौधा है। रेशेदार फसलों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। इसके रेशे से मोटे कपड़े, डोरी, रस्सी और टाट बनाए जाते हैं। इसके बीज से तेल निकाला जाता है और तेल का प्रयोग वार्निश, रंग, साबुन, रोगन, पेन्ट तैयार करने में किया जाता है। चीन सन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। रेशे के लिए सन को उपजाने वाले देशों में रूस, पोलैण्ड, नीदरलैण्ड, फ्रांस, चीन तथा बेल्जियम प्रमुख हैं और बीज निकालने वाले देशों में भारत, संयुक्त राज्य अमरीका तथा अर्जेण्टाइना के नाम उल्लेखनीय हैं। सन के प्रमुख निर्यातक रूस, बेल्जियम तथा अर्जेण्टाइना हैं।

तीसी भारतवर्ष में भी पैदा होती है। लाल, श्वेत तथा धूसर रंग के भेद से इसकी तीन उपजातियाँ हैं इसके पौधे दो या ढाई फुट ऊँचे, डालियां बंधती हैं, जिनमें बीज रहता है। इन बीजों से तेल निकलता है, जिसमें यह गुण होता है कि वायु के संपर्क में रहने के कुछ समय में यह ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। विशेषकर जब इसे विशेष रासायनिक पदार्थो के साथ उबला दिया जाता है। तब यह क्रिया बहुत शीघ्र पूरी होती है। इसी कारण अलसी का तेल रंग, वारनिश, और छापने की स्याही बनाने के काम आता है। इस पौधे के एँठलों से एक प्रकार का रेशा प्राप्त होता है जिसको निरंगकर लिनेन (एक प्रकार का कपड़ा) बनाया जाता है। तेल निकालने के बाद बची हुई सीठी को खली कहते हैं जो गाय तथा भैंस को बड़ी प्रिय होती है। इससे बहुधा पुल्टिस बनाई जाती है।

आयुर्वेद में अलसी को मंदगंधयुक्त, मधुर, बलकारक, किंचित कफवात-कारक, पित्तनाशक, स्निग्ध, पचने में भारी, गरम, पौष्टिक, कामोद्दीपक, पीठ के दर्द ओर सूजन को मिटानेवाली कहा गया है। गरम पानी में डालकर केवल बीजों का या इसके साथ एक तिहाई भाग मुलेठी का चूर्ण मिलाकर, क्वाथ (काढ़ा) बनाया जाता है, जो रक्तातिसार और मूत्र संबंधी रोगों में उपयोगी कहा गया है।

चित्र दीर्घा

बाहरी कड़ियाँ