"नालंदा": अवतरणों में अंतर
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22:43, 11 जुलाई 2012 का अवतरण
नालंदा | |||||||
— कस्बा — | |||||||
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |||||||
देश | भारत | ||||||
राज्य | बिहार | ||||||
ज़िला | नालंदा | ||||||
निकटतम नगर | राजगीर | ||||||
संसदीय निर्वाचन क्षेत्र | नालंदा | ||||||
विधायक निर्वाचन क्षेत्र | नालंदा | ||||||
विभिन्न कोड
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आधिकारिक जालस्थल: http://nalanda.bih.nic.in/ |
निर्देशांक: 25°05′N 85°16′E / 25.08°N 85.27°E विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालय के अवशेषों को अपने आंचल में समेटे नालन्दा बिहार का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह नालंदा जिला मुख्यालय भी है। यहां पर्यटक विश्वविद्यालय के अवशेष, संग्रहालय, नव नालंदा महाविहार तथा ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल देख सकते हैं। इसके अलावा इसके आस-पास में भी घूमने के लिए बहुत से पर्यटक स्थल है। राजगीर, पावापुरी, गया तथा बोध-गया यहां के नजदीकी पर्यटन स्थल हैं। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। भगवान बुद्ध ने सम्राट अशोक को यहाँ उपदेश दिया था। भगवान महावीर भी यहीं रहे थे। प्रसिद्ध बौद्ध सारिपुत्र का जन्म यहीं पर हुआ था।
नालन्दा विश्वविद्यालय
तीर्थ यात्रा बौद्ध धार्मिक स्थल |
चार मुख्य स्थल |
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लुंबिनी · बोध गया सारनाथ · कुशीनगर |
चार अन्य स्थल |
श्रावस्ती · राजगीर सनकिस्सा · वैशाली |
अन्य स्थल |
पटना · गया कौशांबी · मथुरा कपिलवस्तु · देवदह केसरिया · पावा नालंदा · वाराणसी |
बाद के स्थल |
साँची · रत्नागिरी एल्लोरा · अजंता भरहुत · दीक्षाभूमि |
नालन्दा विश्वविद्यालय के अवशेषों की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। माना जाता है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई. में गप्त शासक कुमारगुप्त ने की थी। [1][2] इस विश्वविद्यालय को इसके बाद आने वाले सभी शासक वंशों का समर्थन मिला। महान शासक हर्षवर्द्धन ने भी इस विश्वविद्यालय को दान दिया था। हर्षवर्द्धन के बाद पाल शासकों का भी इसे संरक्षण मिला। केवल यहां के स्थानीय शासक वंशों ने ही नहीं वरन विदेशी शासकों से भी इसे दान मिला था। इस विश्वविद्यालय का अस्तित्व 12वीं शताब्दी तक बना रहा। 12वीं शताब्दी में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खलजी ने इस विश्वविद्यालय को जला डाला।
प्रमुख आकर्षण
नालंदा प्राचीन काल का सबसे बड़ा अध्ययन केंद्र था तथा इसकी स्थापना पांचवी शताब्दी ईसवी में हुई थी। दुनिया के इस सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष बोधगया से 62 किलोमीटर दूर एवं पटना से 90 किलोमीटर दक्षिण में स्थित हैं। माना जाता है कि बुद्ध कई बार यहां आए थे। यही वजह है कि पांचवी से बारहवीं शताब्दी में इसे बौद्ध शिक्षा के केंद्र के रूप में भी जाना जाता था। सातवी शताब्दी ईसवी में ह्वेनसांग भी यहां अध्ययन के लिए आया था तथा उसने यहां की अध्ययन प्रणाली, अभ्यास और मठवासी जीवन की पवित्रता का उत्कृष्टता से वर्णन किया। उसने प्राचीनकाल के इस विश्वविद्यालय के अनूठेपन का वर्णन किया था। दुनिया के इस पहले आवासीय अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में दुनिया भर से आए 10,000 छात्र रहकर शिक्षा लेते थे, तथा 2,000 शिक्षक उन्हें दीक्षित करते थे। यहां आने वाले छात्रों में बौद्ध यतियों की संख्या ज्यादा थी। गुप्त राजवंश ने प्राचीन कुषाण वास्तुशैली से निर्मित इन मठों का संरक्षण किया। यह किसी आंगन के चारों ओर लगे कक्षों की पंक्तियों के समान दिखाई देते हैं। सम्राठ अशोक तथा हर्षवर्धन ने यहां सबसे ज्यादा मठों, विहार तथा मंदिरों का निर्माण करवाया था। हाल ही में विस्तृत खुदाई यहां संरचनाओं का पता लगाया गया है। यहां पर सन 1951 में एक अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शिक्षा केंद्र की स्थापना की गई थी। इसके नजदीक की बिहारशरीफ है, जहां मलिक इब्राहिम बाया की दरगाह पर हर वर्ष उर्स का आयोजन किया जाता है। छठ पूजा के लिए प्रसिद्ध सूर्य मंदिर भी यहां से दो किलोमीटर दूर बडागांव में स्थित है। यहां आने वाले नालंदा के महान खंडहरों के अलावा 'नव नालंदा महाविहार संग्रहालय भी देख सकते हैं।
प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेषों का परिसर
14 हेक्टेयर क्षेत्र में इस विश्वविद्यालय के अवशेष मिले हैं। खुदाई में मिले सभी इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया था। यह परिसर दक्षिण से उत्तर की ओर बना हुआ है। मठ या विहार इस परिसर के पूर्व दिशा में स्थित थे। जबकि मंदिर या चैत्य पश्िचम दिशा में। इस परिसर की सबसे मुख्य इमारत विहार-1 थी। वर्तमान समय में भी यहां दो मंजिला इमारत मौजूद है। यह इमारत परिसर के मुख्य आंगन के समीप बना हुई है। संभवत: यहां ही शिक्षक अपने छात्रों को संबोधित किया करते थे। इस विहार में एक छोटा सा प्रार्थनालय भी अभी सुरक्षित अवस्था में बचा हुआ है। इस प्रार्थनालय में भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा भग्न अवस्था में है।
यहां स्थित मंदिर नं 3 इस परिसर का सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर से समूचे क्षेत्र का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यह मंदिर कई छोटे-बड़े स्तूपों से घिरा हुआ है। इन सभी स्तूपो में भगवान बुद्ध की मूर्तियां बनी हुई है। ये मूर्तियां विभिन्न मुद्राओं में बनी हुई है।
नालन्दा पुरातत्वीय संग्रहालय
विश्वविद्यालय परिसर के विपरीत दिशा में एक छोटा सा पुरातत्वीय संग्रहालय बना हुआ है। इस संग्रहालय में खुदाई से प्राप्त अवशेषों को रखा गया है। इसमें भगवान बुद्ध की विभिन्न प्रकार की मूर्तियों का अच्छा संग्रह है। साथ ही बुद्ध की टेराकोटा मूर्तियां और प्रथम शताब्दी का दो जार भी इस संग्रहालय में रखा हुआ है। इसके अलावा इस संग्रहालय में तांबे की प्लेट, पत्थर पर खुदा अभिलेख, सिक्के, बर्त्तन तथा 12वीं सदी के चावल के जले हुए दाने रखे हुए हैं।
- खुलने का समय: सुबह 10 बजे से शाम 7 बजे तक। शुक्रवार को बंद।
नव नालन्दा महाविहार
यह एक शिक्षा संस्थान है। इसमें पाली साहित्य तथा बौद्ध धर्म की पढ़ाई तथा अनुसंधान होता है। यह एक नया संस्थान है। इसमें दूसरे देशों के छात्र भी पढ़ाई के लिए यहां आते हैं।
ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल
यह एक नवर्निमित भवन है। यह भवन चीन के महान तीर्थयात्री ह्वेनसांग की याद में बनवाया गया है। इसमें ह्वेनसांग से संबंधित वस्तुओं तथा उनकी मूर्ति देखी जा सकता है।
ये स्थन मैने देख हुअ है
नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों जलाया गया था..? जानिए सच्चाई ...?? एक सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव वाला तुर्क मियां लूटेरा था ....बख्तियार खिलजी. इसने ११९९ इसे जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया। उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था. एक बार वह बहुत बीमार पड़ा उसके हकीमों ने उसको बचाने की पूरी कोशिश कर ली ... मगर वह ठीक नहीं हो सका.
किसी ने उसको सलाह दी... नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र जी को बुलाया जाय और उनसे भारतीय विधियों से इलाज कराया जाय उसे यह सलाह पसंद नहीं थी कि कोई भारतीय वैद्य ...उसके हकीमों से उत्तम ज्ञान रखते हो और वह किसी काफ़िर से .उसका इलाज करवाए फिर भी उसे अपनी जान बचाने के लिए उनको बुलाना पड़ा उसने वैद्यराज के सामने शर्त रखी... मैं तुम्हारी दी हुई कोई दवा नहीं खाऊंगा... किसी भी तरह मुझे ठीक करों ...वर्ना ...मरने के लिए तैयार रहो. बेचारे वैद्यराज को नींद नहीं आई... बहुत उपाय सोचा... अगले दिन उस सनकी के पास कुरान लेकर चले गए.. कहा...इस कुरान की पृष्ठ संख्या ... इतने से इतने तक पढ़ लीजिये... ठीक हो जायेंगे...! उसने पढ़ा और ठीक हो गया .. जी गया...
उसको बड़ी झुंझलाहट हुई...उसको ख़ुशी नहीं हुई उसको बहुत गुस्सा आया कि ... उसके मुसलमानी हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है...!
बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले ...उनको पुरस्कार देना तो दूर ... उसने नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दिया ...पुस्तकालयों को ही जला के राख कर दिया...!
वहां इतनी पुस्तकें थीं कि ...आग लगी भी तो तीन माह तक पुस्तकें धू धू करके जलती रहीं उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले.
आज भी बेशरम सरकारें...उस नालायक बख्तियार खिलजी के नाम पर रेलवे स्टेशन बनाये पड़ी हैं... ! उखाड़ फेंको इन अपमानजनक नामों को... मैंने यह तो बताया ही नहीं... कुरान पढ़ के वह कैसे ठीक हुआ था. हम हिन्दू किसी भी धर्म ग्रन्थ को जमीन पर रख के नहीं पढ़ते... थूक लगा के उसके पृष्ठ नहीं पलटते मिएँ ठीक उलटा करते हैं..... कुरान के हर पेज को थूक लगा लगा के पलटते हैं...!
बस... वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था... वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज चाट गया...ठीक हो गया और उसने इस एहसान का बदला नालंदा को नेस्तनाबूत करके दिया
आईये अब थोड़ा नालंदा के बारे में भी जान लेते है
यह प्राचीन भारत में उच्च् शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे। वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण--पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं। अनेक पुराभिलेखों और सातवीं शती में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था। स्थापना व संरक्षण
इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० को प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय को कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग मिला। गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा। इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। स्थानिए शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला। स्वरूप
यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था। विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब १०,००० एवं अध्यापकों की संख्या २००० थी। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे। इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं शती तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी। परिसर
अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुन्दर मूर्तियाँ स्थापित थीं। केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे। इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। अभी तक खुदाई में तेरह मठ मिले हैं। वैसे इससे भी अधिक मठों के होने ही संभावना है। मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे। कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी। दीपक, पुस्तक इत्यादि रखने के लिए आले बने हुए थे। प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी। प्रबंधन
समस्त विश्वविद्यालय का प्रबंध कुलपति या प्रमुख आचार्य करते थे जो भिक्षुओं द्वारा निर्वाचित होते थे। कुलपति दो परामर्शदात्री समितियों के परामर्श से सारा प्रबंध करते थे। प्रथम समिति शिक्षा तथा पाठ्यक्रम संबंधी कार्य देखती थी और द्वितीय समिति सारे विश्वविद्यालय की आर्थिक व्यवस्था तथा प्रशासन की देख--भाल करती थी। विश्वविद्यालय को दान में मिले दो सौ गाँवों से प्राप्त उपज और आय की देख--रेख यही समिति करती थी। इसी से सहस्त्रों विद्यार्थियों के भोजन, कपड़े तथा आवास का प्रबंध होता था। आचार्य
इस विश्वविद्यालय में तीन श्रेणियों के आचार्य थे जो अपनी योग्यतानुसार प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी में आते थे। नालंदा के प्रसिद्ध आचार्यों में शीलभद्र, धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और स्थिरमति प्रमुख थे। 7वीं सदी में ह्वेनसांग के समय इस विश्व विद्यालय के प्रमुख शीलभद्र थे जो एक महान आचार्य, शिक्षक और विद्वान थे। एक प्राचीन श्लोक से ज्ञात होता है, प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यभट भी इस विश्वविद्यालय के प्रमुख रहे थे। उनके लिखे जिन तीन ग्रंथों की जानकारी भी उपलब्ध है वे हैं: दशगीतिका, आर्यभट्टीय और तंत्र। ज्ञाता बताते हैं, कि उनका एक अन्य ग्रन्थ आर्यभट्ट सिद्धांत भी था, जिसके आज मात्र ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस ग्रंथ का ७वीं शताब्दी में बहुत उपयोग होता था। प्रवेश के नियम
प्रवेश परीक्षा अत्यंत कठिन होती थी और उसके कारण प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही प्रवेश पा सकते थे। उन्हें तीन कठिन परीक्षा स्तरों को उत्तीर्ण करना होता था। यह विश्व का प्रथम ऐसा दृष्टांत है। शुद्ध आचरण और संघ के नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक था। अध्ययन-अध्यापन पद्धति
इस विश्वविद्यालय में आचार्य छात्रों को मौखिक व्याख्यान द्वारा शिक्षा देते थे। इसके अतिरिक्त पुस्तकों की व्याख्या भी होती थी। शास्त्रार्थ होता रहता था। दिन के हर पहर में अध्ययन तथा शंका समाधान चलता रहता था। अध्ययन क्षेत्र
यहाँ महायान के प्रवर्तक नागार्जुन, वसुबन्धु, असंग तथा धर्मकीर्ति की रचनाओं का सविस्तार अध्ययन होता था। वेद, वेदांत और सांख्य भी पढ़ाये जाते थे। व्याकरण, दर्शन, शल्यविद्या, ज्योतिष, योगशास्त्र तथा चिकित्साशास्त्र भी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत थे। नालंदा कि खुदाई में मिलि अनेक काँसे की मूर्तियोँ के आधार पर कुछ विद्वानों का मत है कि कदाचित् धातु की मूर्तियाँ बनाने के विज्ञान का भी अध्ययन होता था। यहाँ खगोलशास्त्र अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था। पुस्तकालय
नालंदा में सहस्रों विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन के लिए, नौ तल का एक विराट पुस्तकालय था जिसमें ३ लाख से अधिक पुस्तकों का अनुपम संग्रह था। इस पुस्तकालय में सभी विषयों से संबंधित पुस्तकें थी। यह 'रत्नरंजक' 'रत्नोदधि' 'रत्नसागर' नामक तीन विशाल भवनों में स्थित था। 'रत्नोदधि' पुस्तकालय में अनेक अप्राप्य हस्तलिखित पुस्तकें संग्रहीत थी। इनमें से अनेक पुस्तकों की प्रतिलिपियाँ चीनी यात्री अपने साथ ले गये थे।
निकटवर्ती स्थल
सिलाव
यह गांव नालन्दा और राजगीर के मध्य स्थित है। यहां बनने वाली प्रसिद्ध मिठाई खाजा का स्वाद लिया जा सकता है। इससे १५ किमी दुर पशिचम मे लारनपुर गांव और हाई स्कूल लारनपुर है।
सूरजपुर बड़गांव
यहां भगवान सूर्य का प्रसिद्ध मंदिर तथा एक झील है। यहां वर्ष में दो बार मेले का आयोजन होता है। एक वैशाख (अप्रैल-मई) तथा दूसराकार्तिक (अक्टूबर- नवंबर) महीने में। इन दोनों महीनों में यहां प्रसिद्ध छठ त्योहार मनाया जाता है। दूर-दूर से लोग छठ उत्सव मनाने यहां आते हैं।
आवागमन
- वायु मार्ग
यहां का नजदीकी हवाई अड्डा पटना का जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा है। जो यहां से 89 किलोमीटर दूर है। कलकत्ता, रांची, बांबे, दिल्ली तथा लखनऊ से पटना के लिए सीधी हवाई सेवा है।
- रेल मार्ग
नालन्दा में रेलवे स्टेशन है। लेकिन यहां का प्रमुख रेलवे स्टेश्ान राजगीर है। राजगीर जाने वाली सभी ट्रेने नालंदा होकर जाती है।
- सड़क मार्ग
नालंदा सड़क मार्ग द्वारा राजगीर (12 किमी), बोध-गया (110 किमी), गया (95 किमी), पटना (90 किमी), पावापुरी (26 किमी) तथा बिहार शरीफ (13 किमी) से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
यह भी देखें
- भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय
- बनारस
- तक्षशिला विश्वविद्यालय
- पुष्पगिरि विश्वविद्यालय
- तक्षिला
- विक्रमशिला विश्वविद्यालय
संदर्भ
- ↑ Altekar, Anant Sadashiv (1965). Education in Ancient India, Sixth, Varanasi: Nand Kishore & Bros.
- ↑ "Really Old School," Garten, Jeffrey E. New York Times, December 9, 2006.
बाहरी सूत्र
विकिमीडिया कॉमन्स पर Nalanda से सम्बन्धित मीडिया है। |
- विश्व धरोहर
- साँचा:Wikitravel
- एक प्राचीन आभा
- नालंदा की मूल मनुस्मृतियां
- नव नालंदा महाविहार, बिहार राज्य, भारत
- NY टाइम्स नालंदा के पुनरुद्धार की योजना
- नालंदा से जुड़े ग्राम ढूंढे गए
- नालंदा जिले की आधिकारिक जालस्थल
- नालंदा विश्वविद्यालय, जहाँ ज्ञान प्राप्त किए बिना शिक्षा अधूरी मानी जाती थी (ई-विश्वा)
- नालंदा विश्वविद्यालय की वेबसाइट
- पांचवी शताब्दी की स्थापनाएं
- बौद्ध विश्वविद्यालय
- पूर्व बौद्ध मंदिर
- भारत में अवशेष
- बिहार में शिक्षा
- बिहार का इतिहास
- जैन धर्म से जुड़े स्थान
- भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय
- बौद्ध तीर्थ
- बिहार के शहर
- इस्लाम द्वारा नष्ट किए गए शहर
- Anti-Buddhism
- भारत में धार्मिक हिंसा
- पूजा स्थल पर मैसेकर
- Massacres in India
- भारत के प्राचीन शहर
- बिहार के पुरातात्विक स्थल