"लोक प्रशासन": अवतरणों में अंतर

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06:36, 4 मई 2012 का अवतरण

मोटे तौर पर शासकीय नीति (government policy) के विभिन्न पहलुओं का विकास, उन पर अमल, एवं उनका अध्यन लोक प्रशासन (Public administration) कहलाता है। बहुत सरल ढंग से कहें तो इसका अर्थ वह जनसेवा है जिसे ‘सरकार’ कहा जानेवाला व्यक्तियों का एक संगठन करता है। जिसका प्रमुख उद्देश्य और अस्तित्व का आधार ‘सेवा’ है। इस प्रकार की सेवा का वित्तीय बोझ उठाने के लिए सरकार को जनता से करों और महसूलों के रूप में राजस्व वसूल कर संसाधन जुटाने पड़ते हैं। जिनकी कुछ आय है उनसे कुछ लेकर सेवाओं के माध्यम से उसका समतापूर्ण वितरण करना इसका उद्देश्य है।

किसी भी देश में लोक प्रशासन के उद्देश्य वहां की संस्थाओं, प्रक्रियाओं, कार्मिक-राजनीतिक व्यवस्था की संरचनाओं तथा उस देश के संविधान में व्यक्त शासन के सिद्धातों पर निर्भर होते हैं। प्रतिनिधित्व, उत्तरदायित्व, औचित्य और समता की दृष्टि से शासन का स्वरूप महत्व रखता है, लेकिन सरकार एक अच्छे प्रशासन के माध्यम से इन्हें साकार करने का प्रयास करती है।

लोक प्रशासन के सिद्धांत और मूल तत्व

लोक प्रशासन का विषय बहुत व्यापक और विविधतापूर्ण है। इसका सिद्धांत अंतः अनुशासनात्मक (इन्टर-डिसिप्लिनरी) है क्योंकि यह अपने दायरे में अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, प्रबंधशास्त्र और समाजशास्त्र जैसे अनेक सामाजिक विज्ञानों को समेटता है।

लोक प्रशासन या सुशासन के मूल तत्व पूरी दुनिया में एक ही हैं - दक्षता, मितव्ययिता और समता उसके मूलाधार हैं। शासन के स्वरूपों, आर्थिक विकास के स्तर, राजनीतिक और सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों, अतीत के प्रभावों तथा भविष्य संबंधी लक्ष्यों या स्वप्नों के आधार पर विभिन्न देशों की व्यवस्थाओं में अंतर अपरिहार्य हैं। लोकतंत्र में लोक प्रशासन का उद्देश्य ऐसे उचित साधनों द्वारा, जो पारदर्शी तथा सुस्पष्ट हों, अधिकतम जनता का अधिकतम कल्याण है।

लोक प्रशासन: एक व्यावहारिक शास्त्र

लोक प्रशासन चाहे कला हो या विज्ञान हो, यह एक व्यावहारिक शास्त्र है, जो सर्वव्यापी बन चुके राजनीति और राजकीय कार्यकलापों से गहराई से जुड़ा हुआ है। व्यवहार में भी लोक प्रशासन एक सर्व-समावेशी (आल-इन-वन) शास्त्र बन चुका है क्योंकि यह जन्म से लेकर मृत्यु तक (पेंशन, क्षतिपूर्ति, अनुग्रह राशि आदि के रूप में) व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करता है। (वास्तव में यह व्यक्ति को उसके जन्म के पहले से भी प्रभावित करता है, जैसे भ्रूण परीक्षण पर प्रतिबंध या महिलाओं और बच्चों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान जैसी नीतियों के द्वारा)। लोक प्रशशन क अर्थः

                    लोक प्रशासन उन सभी कार्यो को कह्ते है जिनके उद्देश्य उपर्युक्त सत्ता के आधार पे घोशित किये गऐ नीति को लागू करना या पूरा करना होता है।

लोक प्रशासन की प्रकृति और उसके कार्यभार

लोक प्रशासन में बहुत-सी अबूझ बातें होती हैं, कारण कि इसमें अनेकानेक प्रकार के प्रकार्य शामिल होते हैं जो राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों के घटनाक्रमों से प्रभावित होते हैं। सरकार के अनेक दूरगामी लक्ष्य होते हैं जिनमें से अनेक एक-दूसरे से टकराते हैं (जैसे संवृद्धि बनाम समता), और ये स्पष्ट निरूपित नहीं होते। इसके कारण व्यक्ति अपने पेशे, कार्य और भूमिका की पर्याप्त समझ विकसित नहीं कर पाता। साथ ही कारगुजारी के वस्तुगत मूल्यांकन के लिए मापन के उपकरणों का भी अभाव है।

इसके अलावा लोक प्रशासन द्वारा किए गए कार्यों तथा जुटाई गई सेवाओं या लाभों की अदृश्यता भी एक समस्या है। यह इस तथ्य से भी धूमिल होती है कि किसी सेवा विशेष को चाहनेवाले व्यक्तियों की संख्या बड़ी होती है मगर वह थोड़े-से लोगों तक ही पहुंचती है। किसी परियोजना या कार्यक्रम का परिपक्वता काल इतना लंबा हो सकता है कि उसके आगे बढ़ने पर मूल लक्ष्य ही किसी और लक्ष्य में समाहित होकर बदल जाए। कभी-कभी व्यक्ति यह नहीं जान पाता कि अंतिम परिणाम में उसका योगदान क्या रहा है। किसी कारखाने का मजदूर, जो मिसाल के लिए एक बल्ब या एक कार का बहुत छोटा-सा टुकड़ा बनाता है, अंतिम परिणाम को देखकर गर्व का अनुभव करता है क्योंकि उसके निर्माण में उसकी भी भूमिका रही है। लेकिन सिविल अधिकारी किस बात का श्रेय लें ? परिणाम दिखाई नहीं देता: ‘वह न तो गोचर होता है और न उसका परिमाणीकरण संभव है।’ शायद वर्षों बाद कुछ हो और कोई परिणाम दिखाई पड़े, मगर तब तक वह सेवानिवृत्त हो जाता है या जीवित नहीं रहता। लेकिन मान्यता और पुरस्कार (मौखिक प्रशंसा तक भी) उत्साहवर्धक होते हैं और लोक प्रशासन लगभग अकेला क्षेत्र है जिसमें इसकी भी उपेक्षा की जाती है। लोक प्रशासन एक अर्थ में गृहस्थी चलाने जैसा होता है। जब तक काम सुचारु रुप से चलता रहता है, कोई उस पर ध्यान नहीं देता, लेकिन जहां कोई बात गड़बड़ हुई कि सिविल अधिकारी पर दोष धरा जाता है। किसी गृहिणी के काम पर तब ही ध्यान जाता है जब वह सब्जी में नमक या मसाला कुछ ज्यादा डाल देती है। उसमें और लोक प्रशासक में यही एक बात साझी है !

कार्यों की पारस्परिक निर्भरता और उनका समन्वित संचालन, हाल में ये बातें लोक प्रशासन के कुछ क्षेत्रों की साझी विशेषताएं बन गई हैं, तथा व्यक्तियों के काम और उनकी योग्यता के मूल्यांकन में इनका ध्यान रखना आवश्यक है। इस ‘सामूहिक कार्य’ का समुचित मूल्यांकन कैसे किया जाए, इस पर अध्ययन की आवश्यकता है। कभी-कभी सेवा की आपात आवश्यकता के कारण अतिरिक्त कर्तव्य भी निभाने पड़ते हैं। किए जानेवाले कार्य की गुणवत्ता या परिमाण के बारे में कोई सुस्पष्ट मानक या सूचक नहीं होते। इस कारण यह तय करना कठिन हो जाता है कि किसी इकाई में आवश्यकता से अधिक स्टाफ है या कम, या क्या वह दक्षतापूर्ण है। इस तरह हम कह सकते हैं कि उद्देश्यों की स्पष्ट समझ का अभाव लोक प्रशासन में मूल्याकंन या जवाबदेही का काम मुश्किल बना देता है जिससे काम की संस्कृति में गिरावट आती है।

नीतियों और योजनाओं का निर्धारण, कार्यक्रमों का क्रियान्वयन और उनकी निगरानी, कानूनों और नियम-कायदों का निर्धारण तथा उनके क्रियान्वयन के लिए विभागों एवं संगठनों की स्थापना और उनकी निगरानी जैसे कार्य लोक प्रशासन में शामिल हैं। प्रशासन से आशा की जाती है कि वह हमारी सीमाओं की देखभाल और रक्षा, संचार और बुनियादी ढांचे, विदेश नीति, जमीन के दस्तावेजों के (अब भूमि के उपयोग संबंधी नियमों के भी) रखरखाव, कानून-व्यवस्था की रक्षा, राजस्व की वसूली, कृषि, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, उद्योग तथा देशी-विदेशी व्यापार की उन्नति, बैंकिंग, बीमा, खनिज और समुद्री संपदा, यातायात और संचार, शिक्षा, समाज-कल्याण, परिवार नियोजन, स्वास्थ्य तथा सभी संबद्ध बिषयों पर ध्यान देगा। प्रशासन का काम राष्ट्र, राज्य तथा जिला और प्रखंड जैसे स्थानीय स्तरों पर चलता है।लोक प्रशासन

इन्हें भी देखें

वाह्य सूत्र

पठनीय सामग्री

  • Smith, Kevin B. and Licari, Michael J. Public Administration — Power and Politics in the Fourth Branch of Government, ISBN 1-933220-04-X