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भारत का राज्य

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भारत के मानचित्र पर
भारत के मानचित्र पर

राजधानी तिरुवनन्तपुरम
सबसे बड़ा शहर तिरुवनन्तपुरम
जनसंख्या 31,838,619
 - घनत्व 819 /किमी²
क्षेत्रफल {{{क्षेत्रफल}}} किमी² 
 - ज़िले {{{ज़िले}}}
राजभाषा मलयालम
गठन {{{गठन}}}
सरकार
 - राज्यपाल आर एस गवई
 - मुख्यमंत्री वी एस अच्चुतानंदन
 - विधानमण्डल {{{विधानमण्डल}}}
 - भारतीय संसद {{{भारतीय संसद}}}
 - उच्च न्यायालय {{{उच्च न्यायालय}}}
डाक सूचक संख्या {{{डाक सूचक संख्या}}}
वाहन अक्षर {{{वाहन अक्षर}}}
आइएसओ 3166-2 {{{आइएसओ}}}
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केरल (मलयालम: കേരളം, केरळम्) भारत का एक प्रान्त है। इसकी राजधानी तिरुवनन्तपुरम (त्रिवेन्द्रम) है। मलयालम (മലയാളം, मलयाळम्) यहां की मुख्य भाषा है। हिन्दुओं तथा मुसलमानों के अलावा यहां ईसाई भी बड़ी संख्या में रहते हैं। भारत की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर अरब सागर और सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य एक खूबसूरत भूभाग स्थित है, जिसे केरल के नाम से जाना जाता है । इस राज्य का क्षेत्रफल 38863 वर्ग किलोमीटर है और यहाँ मलयालम भाषा बोली जाती है । अपनी संस्कृति और भाषा-वैशिष्ट्य के कारण पहचाने जाने वाले भारत के दक्षिण में स्थित चार राज्यों में केरल प्रमुख स्थान रखता है । इसके प्रमुख पडोसी राज्य तमिलनाडु और कर्नाटक हैं । पुदुच्चेरी (पांडिचेरि) राज्य का मय्यष़ि (माहि) नाम से जाता जाने वाला भूभाग भी केरल राज्य के अन्तर्गत स्थित है । अरब सागर में स्थित केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप का भी भाषा और संस्कृति की दृष्टि से केरल के साथ अटूट संबन्ध है । स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व केरल में राजाओं की रियासतें थीं । जुलाई 1949 में तिरुवितांकूर और कोच्चिन रियासतों को जोडकर 'तिरुकोच्चि' राज्य का गठन किया गया । उस समय मलाबार प्रदेश मद्रास राज्य (वर्तमान तमिलनाडु) का एक जिला मात्र था । नवंबर 1956 में तिरुकोच्चि के साथ मलबार को भी जोडा गया और इस तरह वर्तमान केरल की स्थापना हुई । इस प्रकार 'ऐक्य केरलम' के गठन के द्वारा इस भूभाग की जनता की दीर्घकालीन अभिलाषा पूर्ण हुई । * केरल में शिशुओं की मृत्यु दर भारत के राज्यों में सबसे कम है और स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है (2001 की जनगणना के आधार पर) । * यह यूनिसेफ (UNICEF) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा मान्यता प्राप्त विश्व का प्रथम शिशु सौहार्द राज्य (Baby Friendly State)है ।

इतिहास

पौराणिक कथाओं के अनुसार परशुराम ने अपना परशु समुद्र में फेंका जिसकी वजह से उस आकार की भूमि समुद्र से बाहर निकली और केरल अस्तित्व में आया । यहां 10वीं सदी ईसा पूर्व से मानव बसाव के प्रमाण मिले हैं।

केरल शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर विद्वानों में एकमत नहीं है । कहा जाता है कि "चेर - स्थल", 'कीचड' और "अलम-प्रदेश" शब्दों के योग से चेरलम बना था, जो बाद में केरल बन गया । केरल शब्द का एक और अर्थ है : - वह भूभाग जो समुद्र से निकला हो । समुद्र और पर्वत के संगम स्थान को भी केरल कहा जाता है। प्राचीन विदेशी यायावरों ने इस स्थल को 'मलबार' नाम से भी सम्बोधित किया है । काफी लबे अरसे तक यह भूभाग चेरा राजाओं के आधीन था एवं इस कारण भी चेरलम (चेरा का राज्य) और फिर केरलम नाम पडा होगा।

केरल की संस्कृति हज़ारों साल पुरानी है । इसके इतिहास का प्रथम काल 1000 ईं. पूर्व से 300 ईस्वी तक माना जाता है । अधिकतर महाप्रस्तर युगीन स्मारिकाएँ पहाड़ी क्षेत्रों से प्राप्त हुई । अतः यह सिद्ध होता है कि केरल में अतिप्राचीन काल से मानव का वास था ।केरल में आवास केन्द्रों के विकास का दूसरा चरण संगमकाल माना जाता है । यही प्राचीन तमिल साहित्य के निर्माण का काल है । संगमकाल सन् 300 ई. से 800 ई तक रहा । प्राचीन केरल को इतिहासकार तमिल भूभाग का अंग समझते थे । सुविधा की दृष्टि से केरल के इतिहास को प्राचीन, मध्यकालीन एवं आधुनिक कालीन - तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं ।

भूगोल

विज्ञापनों में केरल को 'ईश्वर का अपना घर' (God's Own Country) कहा जाता है, यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है । जिन कारणों से केरल विश्व भर में पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना है, वे हैं : समशीतोष्ण मौसम, समृद्ध वर्षा, सुंदर प्रकृति, जल की प्रचुरता, सघन वन, लम्बे समुद्र तट और चालीस से अधिक नदियाँ । भौगोलिक दृष्टि से केरल उत्तर अक्षांश 8 डिग्री 17' 30" और 12 डिग्री 47' 40" के बीच तथा पूर्व देशांतर 74 डिग्री 7' 47" और 77 डिग्री 37' 12" के बीच स्थित है ।

भौगोलिक प्रकृति के आधार पर केरल को अनेक क्षेत्रों में विभक्त किया जाता है । सर्वप्रचलित विभाज्य प्रदेश हैं, पर्वतीय क्षेत्र, मध्य क्षेत्र, समुद्री क्षेत्र आदि । अधिक स्पष्टता की दृष्टि से इस प्रकार विभाजन किया गया है - पूर्वी मलनाड (Eastern Highland), अडिवारम (तराई - Foot Hill Zone), ऊँचा पहाडी क्षेत्र (Hilly Uplands), पालक्काड दर्रा, तृश्शूर-कांजगाड समतल, एरणाकुलम - तिरुवनन्तपुरम रोलिंग समतल और पश्चिमी तटीय समतल । यहाँ की भौगोलिक प्रकृति में पहाड़ और समतल दोनों का समावेश है ।

केरल को जल समृद्ध बनाने वाली 41 नदियाँ पश्चिमी दिशा में स्थित समुद्र अथवा झीलों में जा मिलती हैं । इनके अतिरिक्त पूर्वी दिशा की ओर बहने वाली तीन नदियाँ, अनेक झीलें और नहरें हैं ।

जलवायु

भूमध्यरेखा से केवल 8 डिग्री की दूरी पर स्थित होने के कारण केरल में गर्म मौसम है । लेकिन वन एवं पेडपौधों एवं वर्षा की अधिकता के कारन मौसम समशीतोष्ण रहता है। यहाँ की धरती की उच्च-निम्न स्थिति भी जलवायु पर बड़ा प्रभाव डालती है । केरल की जलवायु की विशेषता है शीतल मन्द हवा और भारी वर्षा । प्रमुख वर्षाकाल इडवप्पाति अथवा पश्चिमी मानसून है । दूसरा वर्षाकाल तुलावर्षम अथवा उत्तरी-पश्चिमी मानसून है । प्रत्येक वर्ष करीब 120 से लेकर 140 दिन वर्षा होती है । औसत वार्षिक वर्षा 3017 मिली मीटर मानी जाती है । भारी वर्षा से बाढ़ें आती हैं और जन-धन की हानि भी होती है । दूसरी ओर ऐसी वर्षा के कारण केरल में पर्याप्त कृषि होती है। बिजली का मुख्य उत्पादन भी इस कारण से पनबिजली द्वारा होता है।

अर्थ व्यवस्था

भारत के एक राज्य के रूप में केरल की आर्थिक व्यवस्था की अपनी विशेषताएँ हैं । मानव संसाधन विकास की आधारभूत सूचना के अनुसार केरल की उपलब्धियाँ प्रशंसनीय है। मानव संसाधन विकास के बुनियादी तत्त्वों में उल्लेखनीय हैं - भारत के अन्य राज्यों की तुलना में आबादी की कम वृद्धि दर, राष्ट्रीय औसत सघनता से ऊँची दर, ऊँची आयु-दर, गंभीर स्वास्थ्य चेतना, कम शिशु मृत्यु दर, ऊँची साक्षरता, प्राथमिक शिक्षा की सार्वजनिकता, उच्च शिक्षा की सुविधा आदि आर्थिक प्रगति के अनुकूल हैं ।

वैश्वीकरण के प्रतिकूल प्रभाव ने कृषि तथा अन्य परम्परागत क्षेत्रों को बहुत कम कर दिया है ।स्वातंत्र्य पूर्व तिरुवितांकूर, कोच्चि, मलबार क्षेत्रों का विकास आधुनिक केरल की आर्थिक व्यवस्था की पृष्ठभूमि है । भौगोलिक एवं प्राकृतिक विशेषताएँ केरल की आर्थिक व्यवस्था को प्राकृतिक संपदा के वैविध्य के साथ श्रम संबन्धी वैविध्य भी प्रदान करती हैं । केरल में कृषि खाद्यान्न और निर्यात की जानेवाली फसलों के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। शासन व्यवस्था तथा व्यापार के कारण निर्यात की जानेवाली फसलों बढ़ोतरी हुई है। कयर (नारियल रेशा) उद्योग, लकडी उद्योग, खाद्य तेल उत्पादन आदि भी कृषि पर आधारित हैं

आधुनिक केरल की आर्थिक व्यवस्था में आप्रवासी केरलीयों का मुख्य योगदान है। केरल की आर्थिक व्यवस्था के सुदृढ आधार हैं - वाणिज्य बैंक, सहकारी बैंक, मुद्रा विनिमय व्यवस्था, यातायात का विकास, शिक्षा - स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में हुई प्रगति, शक्तिशाली श्रमिक आन्दोलन, सहकारी आन्दोलन आदि ।

उत्सव और त्यौहार

केरलीय जीवन की छवि यहाँ मनाये जानेवाले उत्सवों में दिखाई देती है । केरल में अनेक उत्सव मनाये जाते हैं जो सामाजिक मेल-मिलाप और आदान-प्रदान की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं । केरलीय कलाओं का विकास यहाँ मनाये जानेवाले उत्सवों पर आधारित है । इन उत्सवों में कई का संबन्ध देवालयों से है, अर्थात् ये धर्माश्रित हैं तो अन्य कई उत्सव धर्मनिरपेक्ष हैं । ओणम केरल का राज्योत्सव है । यहाँ मनाये जाने वाले प्रमुख हिन्दू त्योहार हैं - विषु, नवरात्रि, दीपावली, शिवरात्रि, तिरुवातिरा आदि । मुसलमान रमज़ान, बकरीद, मुहरम, मिलाद-ए-शरीफ आदि मनाते हैं तो ईसाई क्रिसमस, ईस्टर आदि । इसके अतिरिक्त हिन्दू, मुस्लिम और ईसाइयों के देवालयों में भी विभिन्न प्रकार के उत्सव भी मनाये जाते हैं ।

कला व संस्कृति

केरल की कला-सांस्कृतिक परंपराएँ सदियों पुरानी हैं । केरल के सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान देनेवाले कलारूपों में लोककलाओं, अनुष्ठान कलाओं और मंदिर कलाओं से लेकर आधुनिक कलारूपों तक की भूमिका उल्लेखनीय है । केरलीय कलाओं को सामान्यतः दो वर्गों में बाँट सकते हैं - एक दृश्य कला और दूसरी श्रव्य कला । दृश्य कला के अंतर्गत रंगकलाएँ, अनुष्ठान कलाएँ, चित्रकला और सिनेमा आते हैं ।

क्रीड़ा क्षेत्र

केरल में क्रीड़ा संस्कार कई शताब्दियाँ पहले रूपायित हुआ था । केरल के क्रीडा जगत के क्षेत्र में लोक क्रीडाएँ, आयोधन कलाएँ, आधुनिक क्रीडाएँ सब एक साथ विद्यमान हैं । 'कळरिप्पयट्टु' केरल की प्रान्तीय आयुधन कला है । पहले केरलीय गाँवों में खेल-कूद को विशिष्ट महत्व दिया जाता था किन्तु आधुनिक जीवन शैली तथा आधुनिक खेलों के चलते लोक क्रीडाएँ लुप्तप्राय हो गई हैं । लेकिन आज भी देशी मनोरंजन नौका विहार को महत्व दिया जाता है ।

फुटबॉल, वॉलीबॉल, एथलेटिक्स इत्यादि आधुनिक खेल कूदों में केरल की भारत पर प्रभुता है । भारत की सबसे बड़ी धावक पी.टी. उषा केरल की सुपुत्री है ।

पर्यटन

केरल प्रांत पर्यटकों में बेहद लोकप्रिय है, इसीलिए इसे 'God's Own Country' अर्थात् 'ईश्वर का अपना घर' नाम से पुकारा जाता है । यहाँ अनेक प्रकार के दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें प्रमुख हैं - पर्वतीय तराइयाँ, समुद्र तटीय क्षेत्र, अरण्य क्षेत्र, तीर्थाटन केन्द्र आदि । इन स्थानों पर देश-विदेश से असंख्य पर्यटक भ्रमणार्थ आते हैं । मून्नार, नेल्लियांपति, पोन्मुटि आदि पर्वतीय क्षेत्र, कोवलम, वर्कला, चेरायि आदि समुद्र तट, पेरियार, इरविकुळम आदि वन्य पशु केन्द्र, कोल्लम, अलप्पुष़ा, कोट्टयम, एरणाकुळम आदि झील प्रधान क्षेत्र (backwaters region) आदि पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण केन्द्र हैं । भारतीय चिकित्सा पद्धति - आयुर्वेद का भी पर्यटन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है । राज्य की आर्थिक व्यवस्था में भी पर्यटन ने निर्णयात्मक भूमिका निभाई है ।

भाषा

केरल की भाषा मलयालम है जो द्रविड़ परिवार की भाषाओं में एक है । मलयालम भाषा के उद्गम के बारे में अनेक सिद्धान्त प्रस्तुत किए गए हैं । एक मत यह है कि भौगोलिक कारणों से किसी आदि द्रविड़ भाषा से मलयालम एक स्वतंत्र भाषा के रूप में विकसित हुई । इसके विपरीत दूसरा मत यह है कि मलयालम तमिल से व्युत्पन्न भाषा है । ये दोनों प्रबल मत हैं । सभी विद्वान यह मानते हैं कि भाषाई परिवर्तन की वजह से मलयालम उद्भूत हुई । तमिल, संस्कृत दोनों भाषाओं के साथ मलयालम का गहरा सम्बन्ध है । मलयालम का साहित्य मौखिक रूप में शताब्दियाँ पुराना है । परंतु साहित्यिक भाषा के रूप में उसका विकास 13 वीं शताब्दी से ही हुआ था । इस काल में लिखित 'रामचरितम्' को मलयालम का आदि काव्य माना जाता है ।

साहित्य

मलयालम का साहित्य आठ शताब्दियों से अधिक पुराना है । किन्तु आज तक ऐसा कोई ग्रंथ प्राप्त नहीं हुआ है जो यहाँ के साहित्य की प्रारंभिक दशा पर प्रकाश डालता हो । अतः मलयालम साहित्यिक उद्गम से सम्बन्धित कोई स्पष्ट धारणा नहीं मिलती है । अनुमान है कि प्रारम्भिक काल में लोक साहित्य का प्रचलन रहा होगा । ऐसी कोई रचना उपलब्ध नहीं जिसकी रचना 1000 वर्ष पहले की गई है । दसवीं सदी के उपरान्त लिखे गए अनेक ग्रंथों की प्रामाणिकता को लेकर भी विद्वान एकमत नहीं हैं । केरलीय साहित्य से सामान्यतः मलयालम साहित्य अर्थ लिया जाता है । लेकिन मलयालम साहित्यकारों का तमिल और संस्कृत भाषा विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है । केरल के कुछ विद्वानों ने अंग्रेज़ी, कन्नड़, तुळु, कोंकणी, हिन्दी आदि भाषाओं में भी रचना लिखी हैं ।

19 वीं शताब्दी के अंतिम चरण तक मलयालम साहित्य का इतिहास प्रमुखतया कविता का इतिहास है । साहित्य की प्रारंभिक दशा का परिचय देने वाला काव्य ग्रंथ 'रामचरितम्' है जिसे 13 वीं शताब्दी में लिखा गया बताया जाता है । यद्यपि मलयालम के प्रारंभिक काव्य के रूप में 'रामचरितम्' को माना जाता है फिर भी केरल की साहित्यिक परंपरा उससे भी पुरानी मानी जा सकती है । प्राचीन काल में केरल को 'तमिऴकम्' का भाग ही समझा जाता था । दक्षिण भारत में सर्वप्रथम साहित्य का स्रोत भी तमिऴकम की भाषा प्रस्फुरित हुआ था । तमिल का आदिकालीन साहित्य 'संगम कृतियाँ' नाम से जाना जाता हैं । संगमकालीन महान रचनाओं का सम्बन्ध केरल के प्राचीन चेर-साम्राज्य से रहा है । 'पतिट्टिप्पत्तु' नामक संगमकालीन कृति में दस चेर राजाओं के प्रशस्तिगीत है । 'सिलप्पदिकारं' महाकाव्य के प्रणेता इलंगो अडिगल का जन्म चेर देश में हुआ था । इसके अतिरिक्त तीन खण्डों वाले इस महाकाव्य का एक खण्ड 'वञ्चिक्काण्डम' का प्रतिपाद्य विषय चेरनाड में घटित घटनाएँ हैं । संगमकालीन साहित्यिकों में अनेक केरलीय साहित्यकार हैं ।

साँचा:केरल का साहित्य

केरल के लोग

केरल के अधिकांश लोगों की मातृभाषा मलयालम है, जो द्रविड़ परिवार की प्रमुख भाषा है । यहाँ आर्य, अरबी, यहूदी तथा मिश्रित वंश के लोग भी रहते हैं । दूसरा प्रमुख वर्ग आदिवासियों का है । ये सभी वर्ग मिलकर आधुनिक केरलीय समाज का निर्माण करते हैं । एक राज्य के रूप में केरल की स्थापना 1961 से ही हुई । किन्तु वर्तमान केरल के अन्तर्गत जितने प्रदेश हैं उन प्रदेशों की जनगणना 1881 में ही तैयार हो पाई । प्रमाणों के आधार पर यह विश्वास किया जाता है कि 17 वीं सदी के प्रारंभ में केरल की जनसंख्या लगभग 30 लाख थी । 1850 में यह 45 लाख हो गई । 1881 से जनसंख्या लगातार बढ़ती रही । 1901 में जनसंख्या 64 लाख थी जो 1991 में 291 लाख हो गई । (6) 2001 की जनगणना के अनुसार केरल की जनसंख्या 31841374 है ।

केरल के प्रमुख धर्म हैं हिन्दू, ईसाई एवं इस्लाम धर्म । बौद्ध, जैन, पारसी, सिक्ख, बहाई धर्मावलम्बी लोग भी यहाँ रहते हैं । हिन्दू समाज विविध जातियों से बना है । ईस्वी सन् 8 वीं सदी से केरल में जाति-व्यवस्था प्रचलित हुई थी । अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति तक विभिन्न श्रेणी के लोगों को जाति - व्यवस्था के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया । जाति व्यवस्था के कारण समाज में ऊँच - नीच की भावना तथा सामाजिक कुरीतियाँ प्रचलित हो गईं । 19 वीं शताब्दी के अंत में चलने वाले सामाजिक नवोत्थान अभियानों ने 20 वीं शताब्दी में तथा तत्पश्चात् स्वतंत्रता संग्राम में जाति व्यवस्था को किसी सीमा तक तोड़ा । वर्तमान केरलीय समाज में यद्यपि ऊँच - नीच का भेदभावना नहीं है, लेकिन जाति - व्यवस्था मौजूद है।

विभिन्न धर्मावलम्बी लोगों के देवालयों तथा उनके धार्मिक आचार - अनुष्ठानों ने केरलीय संस्कृति को पुष्ट किया है । साहित्य और कला के विकास में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण है । मन्दिरों से जुड़े उत्सवों ने केरलीय संस्कृति की शोभा बढ़ायी है।

राजनीति

केरल को भारत की राजनीतिक प्रयोगशाला कहा जा सकता है । चुनाव के द्वारा कम्यूनिस्ट पार्टी का सत्ता में आना और विभिन्न पार्टियों के मोर्चों का गठन तथा उनका शासक बनना आदि अनेक राजनीतिक प्रयोग पहली बार केरल में हुए । देश में मशीनी मतपेटी का प्रथम प्रयोग भी केरल में हुआ । केरल में 140 विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र और 20 लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र हैं । विधान सभा में एंग्लो - इंडियन समुदाय के एक प्रतिनिधि को नामित किया जाता है । केरल में अनेक राजनीतिक दल तथा उनके संपोषक संगठन भी हैं । यथा - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी, जनतादल (एस), मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (एम), केरल कॉग्रेस (जे) आदि । सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के श्रमिक, विद्यार्थी, महिला, युवा, कृषक और सेवा संगठन भी सक्रिय हैं । ट्रेड यूनियनों की संख्या आवश्यकता से अधिक बढ़ रही है । 1973 में केरल की पंजीकृत ट्रेड यूनियनों की संख्या 1680 थी । यह 1996 में 10326 हो गई । यहाँ सरकारी नौकरी में रत 3000 लोगों के लिए एक ट्रेड यूनियन बनाई गई है ।

केरल राज्य के आविर्भाव के बाद राज्य में 13 बार चुनाव हुए । बीस मत्रिमंण्डल तथा 12 मुख्यमंत्री हुए हैं । 5 अप्रैल 1957 को ई. एम. एस. नंपूतिरिप्पाड के नेतृत्व में प्रथम मंत्रिमण्डल सत्ता में आया । वर्तमान मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानन्दन ने 18 मई 2006 को शासन संभाला ।

वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र

केरल के पास विज्ञान और प्रौद्योगिकी की समृद्ध परंपरा है । गणित, ज्योतिषी, ज्योतिष, आयुर्वेद, वास्तुकला, धातु विज्ञान आदि क्षेत्रों में केरलीयों ने उल्लेखनीय योगदान किया है । आधुनिक भारत के वैज्ञानिक क्षेत्र में केरल की उपस्थिति उल्लेखनीय है । वैज्ञानिक तकनीकी क्षेत्रों में भी केरल बहुत आगे है । केरल के अनेक वैज्ञानिक विदेशों में कार्यरत हैं । पुराने काल में ज्योतिष, मंत्र - तंत्र आदि विज्ञान के रूप में विकसित हुए थे । मलयालम का वैज्ञानिक साहित्य भी अत्यंत समृद्ध है।

गणित एवं ज्योतिष

भारतीय परम्परा के अनुरूप केरल में भी गणित, ज्योतिषी, और ज्योतिष का विकास परस्पर सम्बद्ध था । गणित के क्षेत्र में प्राचीन केरल का योगदान विश्व प्रसिद्ध है । समकालीन गणितज्ञों द्वारा प्रयुक्त 'केरल स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स' शब्द इसका प्रमाण है । केरलीय गणित एवं ज्योतिषी का विकास आर्यभट की रचना 'आर्यभटीय' के आधार पर हुआ है और आर्यभट को कतिपय विद्वान केरलीय मानते हैं । केरलीय गणित एवं ज्योतिषी के विकास के परिणाम स्वरूप बनी प्रमुख पद्धतियाँ हैं ईस्वी सन् 7 वीं शती में हरिदत्त द्वारा आविष्कृत 'परहितम्' तथा ईस्वी सन् 15 वीं शती में वडश्शेरी परमेश्वरन द्वारा आविष्कृत 'दृगणितम्' ।

प्राचीन केरलीय गणितज्ञों की सूची लम्बी है । उनमें से अनेक कृतियाँ ताड़पत्रों में आज भी उपलब्ध हैं । गणित के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रसिद्ध नाम हैं - वररुचि प्रथम, वररुचि द्वितीय, हरिदत्तन, गोविन्दस्वामी, शंकरनारायणन, विद्यामाधवन, तलक्कुलम गोविन्द भट्टतिरि, संगम ग्राम माधवन, वडश्शेरी परमेश्वरन, नीलकंठ सोमयाजी, शंकर वारियर, ज्येष्ठ देवन, मात्तूर नंपूतिरिमार, महिषमंगलम शंकरन, तृक्कण्डियूर अच्युतप्पिषारडी, पुतुमना पोमातिरि (पुतुमना सोमयाजी), कोच्चु कृष्णनाशान, मेलपुत्तूर नारायण भट्टतिरि आदि । आधुनिक गणित का इतिहास यह मानता है कि कलन (Calculus) का आविष्कारक आइज़ेक न्यूटन और लैबनीज़ न होकर केरल के गणित वैज्ञानिक हैं ।

आयुर्वेद

आयुर्वेद दो हज़ार वर्ष पुरानी भारतीय चिकित्सा-पद्धति है । इस पद्धति का विकास स्वास्थ्य, जीवन-शैली एवं चिकित्सा की दृष्टि से हुआ था । इसमें जीवन के समस्त अंगों का अध्ययन तथा परिशीलन निहित है । केरलीय आयुर्वेद परम्परा अत्यन्त प्राचीन एवं समृद्ध है । यही कारण है कि विश्व भर में केरल अपनी आयुर्वेदिक चिकित्सा शैली के कारण प्रसिद्ध है । लेकिन आयुर्वेद मात्र रोग की चिकित्सा तक सीमित नहीं है यह एक विशिष्ट जीवन दर्शन को स्थापित करता है ।

केरल की आयुर्वेद परंपरा अत्यंत प्राचीन है । यह आज भी विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं । पर्यटन के क्षेत्र में भी आयुर्वेद पर आधारित पर्यटन (Health Tourism) केरल की विशेषता है । 'पंचकर्म चिकित्सा' जो कि पुनर्यौवन चिकित्सा कहलाती है, इसकेलिए सैकड़ों विदेशी पर्यटक प्रतिवर्ष केरल आते हैं । केरलीय वैद्य परम्परा में परम्परागत आयुर्वेद विद्यालयों के स्तानकों से लेकर परिवारिक परम्परा वाले देशज वैद्य शामिल है । यहाँ एक ऐसा परिवारिक परम्परा वाला वैद्यपरिवार बड़ा प्रसिद्ध है जिसे अष्टवैद्य के नाम से पुकारा जाता है ।

केरल की आयुर्वेद चिकित्सा परंपरा सदियों से चलती चली आ रही है । केरलीय आयुर्वेद का सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ हैं वाग्भट का 'अष्टांगह्रदयम्' और 'अष्टांगसंग्रहम्' । केरलीय वैद्यों ने भी अनेक आयुर्वेद ग्रन्थ रचे हैं। देखें - केरल आयुर्वेद

आधुनिक विज्ञान

आधुनिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ नवीन वैज्ञानिक क्षेत्रों में भी केरलीयों ने विशेष योग्यता प्राप्त की । विज्ञान की विविध शाखाओं में केरल के अनेक प्रसिद्ध वैज्ञानिक हुए हैं । जैसे कि - के. आर. रामनाथन, सी. आर. पिषारडी, आर. एस. कृष्णन, जी. एन. रामचन्द्रन, गोपीनाथ कर्ता, यू. एस. नायर, के. आर. नायर, ई. सी. जी. सुदर्शन, एम. एम. मत्तायि, के. आई. वर्गीस, एम. एस. स्वामीनाथन, ताणु पद्मनाभन, पी. के. अय्यंगार, एम. जी. रामदास मेनन, के. के. नायर, एन. के. पणिक्कर, एन. बालकृष्णन नायर, के. के. नायर, के. जी. अडियोडी, जी. माधवन नायर आदि लब्ध प्रसिद्ध वैज्ञानिकों की सूची बहुत लम्बी है ।

आधुनिक विज्ञान के विकास में योग देने वाली संस्थाएँ हैं विश्वविद्यालय, वैज्ञानिक - प्रौद्योगिकी विद्यालय, वैज्ञानिक अनुसंधान प्रतिष्ठान आदि । 'केरल शास्त्र साहित्य परिषद' जैसी वैज्ञानिक संस्थाएँ भी जनता में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक बनी हैं।

केरल के जिले

केरल में 14 जिले हैं:

यह भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

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