"ख़ालसा": अवतरणों में अंतर

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१० हज़ार की भीड़ में से पहला हाथ भाई दया सिंह जी का था | गुरमत विचारधारा के पीछे वोह सिर कटवाने की शमता रखता था | गुरु साहिब उसको तम्बू में ले गए | वहां एक बकरे की गर्दन काटी | खून तम्बू से बहर निकलता दिखाई दिया | जनता में डर और बढ़ गया | तब भी हिमत दिखा कर धर्म सिंह, हिम्मत सिंह, मोहकम सिंह, साहिब सिंह ने अपना सीस कटवाना स्वीकार किया | गुरु साहिब बकरे झटकते रहे |
१० हज़ार की भीड़ में से पहला हाथ भाई दया सिंह जी का था | गुरमत विचारधारा के पीछे वोह सिर कटवाने की शमता रखता था | गुरु साहिब उसको तम्बू में ले गए | वहां एक बकरे की गर्दन काटी | खून तम्बू से बहर निकलता दिखाई दिया | जनता में डर और बढ़ गया | तब भी हिमत दिखा कर धर्म सिंह, हिम्मत सिंह, मोहकम सिंह, साहिब सिंह ने अपना सीस कटवाना स्वीकार किया | गुरु साहिब बकरे झटकते रहे |


पाँचों को फिर तम्बू से बहर निकला और खंडे बाते की पहल तयार की |
पाँचों को फिर तम्बू से बहर निकला और खंडे बाटे की पाहुल तयार की |


==खंडे बाटे की पाहुल==
==खंडे बाटे की पाहुल==
खंडा बाटा, जंत्र मंत्र और तंत्र के स्मेल से बना है | इसको पहली बार सतगुर गोबिंद सिंह ने बनाया था |
खंडा बाटा, जंत्र मंत्र और तंत्र के स्मेल से बना है | इसको पहली बार सतगुर गोबिंद सिंह ने बनाया था |


जंत्र : बाटा(बर्तन) और दो धारी खंडा
* जंत्र : बाटा(बर्तन) और दो धारी खंडा
मंत्र : ५ बानियाँ - जपु साहिब , जाप साहिब, त्व प्रसाद सवैये, चोपाई साहिब, आनंद साहिब
* मंत्र : ५ बानियाँ - जपु साहिब , जाप साहिब, त्व प्रसाद सवैये, चोपाई साहिब, आनंद साहिब
तंत्र : मीठे पतासे डालना, बानियों को पढ़ा जाना और खंडे को बाटे में घुमाना
* तंत्र : मीठे पतासे डालना, बानियों को पढ़ा जाना और खंडे को बाटे में घुमाना



इस विधि से हुआ तयार जल को "पाहुल" कहते हैं | आम भाषा में इसे लोग अमृत भी कहते हैं |
इस विधि से हुआ तयार जल को "पाहुल" कहते हैं | आम भाषा में इसे लोग अमृत भी कहते हैं |
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२ कक्कर तो सिख धर्म में पहले से ही थे | जहाँ सिख आत्मिक सत्ल पर सब से भीं समझ रखता था सतगुर गोबिंद सिंह जी ने उन दो ककारों के साथ साथ कंघा, कड़ा और कछा दे कर शारीरिक देख में भी खालसे को भिन्न कर दिया | आज खंडे बाटे की पाहुल पांच प्यारे ही तयार करते हैं | यह प्रिक्रिया आज रिवाज बन गयी है | आज वैसी परीक्षा नहीं ली जाती जैसी उस समे ली गई थी |
२ कक्कर तो सिख धर्म में पहले से ही थे | जहाँ सिख आत्मिक सत्ल पर सब से भीं समझ रखता था सतगुर गोबिंद सिंह जी ने उन दो ककारों के साथ साथ कंघा, कड़ा और कछा दे कर शारीरिक देख में भी खालसे को भिन्न कर दिया | आज खंडे बाटे की पाहुल पांच प्यारे ही तयार करते हैं | यह प्रिक्रिया आज रिवाज बन गयी है | आज वैसी परीक्षा नहीं ली जाती जैसी उस समे ली गई थी |


इस प्रिक्रिया को अमृत संचार भी कहा जाता है |


चलता....
चलता....

07:14, 9 अगस्त 2011 का अवतरण

खालसा पंथ की स्थापना सतगुर गोबिंद सिंह जी ने १६९९ को बैसाखी वाले दिन आनंदपुर साहिब में की | इस दिन सतगुर ने खालसा फ़ौज का निर्माण किया | यह फ़ौज सिर्फ सिख ही नहीं , बल्कि दुनिया में किसी पर भी कोई भी अत्याचार हो रहा है वहां लोगों को अत्याचारों से मुक्त करेगी | यही नहीं जहाँ पर गुरमत का परचार नहीं होने दिया जा रहा और हमला हो रहा है वहां पर अपना बचाव करेगी और जुल्मो को मौत के घात उतारेगी |

सतगुर गोबिंद सिंह ने खालसा महिमा में खालसा को "काल पुरख की फ़ौज" पद से निवाजा है | तलवार और केसकी तो पहले ही सिखों के पास थे, सतगुर गोबिंद सिंह ने "खंडे बाटे की पाहुल" तयार कर कछा, कड़ा और कंघा भी दिया | इसी दिन खालसे के नाम के पीछे "सिंह" लग गया | शारीरिक देख में खालसे की भिन्ता नजर आने लगी | पर खालसे ने आत्म ज्ञान नहीं छोड़ा , उस का परचार चलता रहा और मौके पर तलवार भी चलती रही |

पूर्व इतिहास

सिख धर्म के ऊपर अन्य धर्मों और सरकारी नुमयिन्दो के वार लगातार बढ़ गए थे | सरकार को गलत खबरें दे कर इस्लाम धर्म और हिन्दू धर्म के कटड अनुययों ने सतगुर अर्जुन देव को मौत की सजा दिलवा दी | जब सतगुर अर्जुन देव, को बहुत दुःख दे कर शहीद कर दिया गया तो सतगुर हरगोबिन्द जी ने तलवार उठा ली | यह तलवार सिर्फ आत्म रक्षा और आम जनता की बेहतरी के लिए उठाई थी | सतगुर हरगोबिन्द के जीवन में उन पर लगातार ४ हमले हुए और सतगुर हरि राए पर भी एक हमला हुआ | सतगुर हरि कृष्ण को भी बादशाह औरंगजेब ने भी अपना अनुयायी बनाने की कोशिश की |

सतगुर तेघ बहादुर को सरकार ने मौत के घात उतार दिया, क्यों वो हिन्दू ब्रह्मिनो के दुखों को देख कर सरकार से अपील करने गए थे | उसके बाद हिन्दू पहाड़ी राजे और सरकारी अहलकारों से सदा ही गुरमत के प्रचार से खतरा रहता था और वो ध्वस्त करना चाहते थे | इस बीच गुरु गोबिंद सिंह ने कुछ बानियों की रचना की जिस में हिन्दू धर्म और इस्लाम के खिलाफ सख्त टिप्पणियाँ थी |

इन सब बातों को म्दते नजर रखते हुए गुरु गोबिंद सिंह ने, ऐसे सिखों की तलाश की जो गुरमत विचारधारा को आगे बढाएं, दुखियों की मदद करें और ज़रुरत पढने पर हस्ते हस्ते अपना सिर कटवा दें |

खालसा पंथ साजने का चित्र

जब कोई धर्म आगे बढ़ता है तो उसके बहुत आम दीखता है की उसके अनुयायी बहुत हैं, ज्यादातर तो देखा-देखी हो जाते हैं, कुछ शरधा में हो जाते हैं, कुछ अपने खुदगर्जी के कारन हो जाते हैं, असल अनुयायी तो होते ही गिने चुने हैं | इस बात का प्रमाण आनंदपुर में मिला | जब सतगुर गोबिंद सिंह ने तलवार निकल कर कहा की ""उन्हें एक सिर चाहिये"" | सब हक्के बक्के रह गए | कुछ तो मौके से ही खिसक गए | कुछ कहने लग पड़े गुरु पागल हो गया है | कुछ तमाशा देखने आए थे | कुछ माता गुजरी के पास भाग गए की देखो तुमहरा सपुत्र क्या खिचड़ी पका रहा है |

१० हज़ार की भीड़ में से पहला हाथ भाई दया सिंह जी का था | गुरमत विचारधारा के पीछे वोह सिर कटवाने की शमता रखता था | गुरु साहिब उसको तम्बू में ले गए | वहां एक बकरे की गर्दन काटी | खून तम्बू से बहर निकलता दिखाई दिया | जनता में डर और बढ़ गया | तब भी हिमत दिखा कर धर्म सिंह, हिम्मत सिंह, मोहकम सिंह, साहिब सिंह ने अपना सीस कटवाना स्वीकार किया | गुरु साहिब बकरे झटकते रहे |

पाँचों को फिर तम्बू से बहर निकला और खंडे बाटे की पाहुल तयार की |

खंडे बाटे की पाहुल

खंडा बाटा, जंत्र मंत्र और तंत्र के स्मेल से बना है | इसको पहली बार सतगुर गोबिंद सिंह ने बनाया था |

  • जंत्र : बाटा(बर्तन) और दो धारी खंडा
  • मंत्र : ५ बानियाँ - जपु साहिब , जाप साहिब, त्व प्रसाद सवैये, चोपाई साहिब, आनंद साहिब
  • तंत्र : मीठे पतासे डालना, बानियों को पढ़ा जाना और खंडे को बाटे में घुमाना


इस विधि से हुआ तयार जल को "पाहुल" कहते हैं | आम भाषा में इसे लोग अमृत भी कहते हैं | इस को पी कर सिख, खालसा फ़ौज, का हिसा बन जाता है अर्थात अब उसने तन मन धन सब परमेश्वर को सौंप दिया है, अब वो सिर्फ सच का प्रचार करेगा और ज़रूरत पढने पर वो अपना गला कटाने से पीछे नहीं हटेगा | सब विकारों से दूर रहेगा | ऐसे सिख को अमृतधारी भी कहा जाता है | यह पाहुल पाँचों को पिलाई गई और उन्हें पांच प्यारों के ख़िताब से निवाजा|

२ कक्कर तो सिख धर्म में पहले से ही थे | जहाँ सिख आत्मिक सत्ल पर सब से भीं समझ रखता था सतगुर गोबिंद सिंह जी ने उन दो ककारों के साथ साथ कंघा, कड़ा और कछा दे कर शारीरिक देख में भी खालसे को भिन्न कर दिया | आज खंडे बाटे की पाहुल पांच प्यारे ही तयार करते हैं | यह प्रिक्रिया आज रिवाज बन गयी है | आज वैसी परीक्षा नहीं ली जाती जैसी उस समे ली गई थी |

इस प्रिक्रिया को अमृत संचार भी कहा जाता है |

चलता....