"जुलियस सीसर": अवतरणों में अंतर

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- शेक्सपीयर के जूलियस सीज़र का [[अरविन्द गौड़]] के निर्देशन मे मंचन ,काव्यानुवाद- [[अरविन्द कुमार]] ,[[अस्मिता]] नाट्य संस्था ने अब तक जुलियस सीसर के कुल ४० प्रदर्शन किये है। [[अरविन्द कुमार]] के काव्यानुवाद [[शेक्सपीयर]] के जूलियस सीजर का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के लिये इब्राहिम अल्काजी के निर्देशन में भी हुआ । 1998 मे जूलियस सीज़र का मंचन अरविन्द गौड़ के निर्देशन मे शेक्सपियर नाटक महोत्सव (असम) और पृथ्वी थिएटर महोत्सव, भारत पर्यावास केन्द्र (इंडिया हैबिटेट सेंटर ), में [[अस्मिता]] नाट्य संस्था ने दोबारा किया । अरविंद कुमार ने सिंधु घाटी सभ्यता की पृष्ठभूमि में इसी नाटक का काव्य रूपान्तर भी किया है, जिसका नाम है - विक्रम सैंधव।
- शेक्सपीयर के जूलियस सीज़र का [[अरविन्द गौड़]] के निर्देशन मे मंचन ,काव्यानुवाद- [[अरविन्द कुमार]] ,[[अस्मिता]] नाट्य संस्था ने अब तक जुलियस सीसर के कुल ४० प्रदर्शन किये है। [[अरविन्द कुमार]] के काव्यानुवाद [[शेक्सपीयर]] के जूलियस सीजर का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के लिये इब्राहिम अल्काजी के निर्देशन में भी हुआ । 1998 मे जूलियस सीज़र का मंचन अरविन्द गौड़ के निर्देशन मे शेक्सपियर नाटक महोत्सव (असम) और पृथ्वी थिएटर महोत्सव, भारत पर्यावास केन्द्र (इंडिया हैबिटेट सेंटर ), में [[अस्मिता]] नाट्य संस्था ने दोबारा किया । अरविंद कुमार ने सिंधु घाटी सभ्यता की पृष्ठभूमि में इसी नाटक का काव्य रूपान्तर भी किया है, जिसका नाम है - विक्रम सैंधव।


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[[श्रेणी:रोमन साम्राज्य]]
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[[श्रेणी:उत्तम लेख]]
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04:27, 8 अगस्त 2011 का अवतरण

सीज़र इतिहास प्रसिद्ध रोमन सैनिक एवं नीतिज्ञ गोयस जूलियस सीज़र (१०१-४४ ई. पू.) से लेकर सम्राट हैड्रियन (१३८ ई.) तक के सभी रोमन सम्राटों की उपाधि रही। गायस जूलियस सीज़र १०२ तथा १०० ई. पू. के मध्य में प्राचीन रोमन अभिजात कुल में उत्पन्न हुआ था। वह वीनस देवी का वंशज होने का दावा करता था। अपनी युवावस्था में उसको उन भीषण संघर्षों में भाग लेना पड़ा जो सेनेट विरोधी दल तथा अनुदार दल के बीच हुए। इस गृहयुद्ध (८१ ई. पू.) में अनुदार दल की विजय हुई जिसके परिणामस्वरूप सीज़र देश निष्कासन से बाल-बाल बच गया। उसके पश्चात्‌ कई वर्षों तक वह अधिकांशत: विदेशों में ही रहा और पश्चिमी एशिया माइनर में उत्तम सैनिक सेवाओं द्वारा प्रसिद्धि प्राप्त की। ७४ ई. पू. में वह इटली वापस आ गया ताकि सेनेट सदस्यों के अल्पतंत्र (Senatorial oligarchy) के विरुद्ध आंदोलन में भाग ले सके। उसको विभिन्न पदों पर कार्य करना पड़ा। जब त्यौहारों के आयुक्त के रूप में प्रचुर धन व्यय करके उसने नगर के जनसाधारण में लोकप्रियता प्राप्त कर ली। ६१ ई. पू. में दक्षिणी स्पेन के गवर्नर के रूप में सीज़र ने प्रथम सैनिक पद सुशोभित किया परंतु उसने शीघ्र ही इससे त्यागपत्र दे दिया ताकि पांपे (Popey) के अपनी विजयी सेना सहित लौटने पर रोम में उत्पन्न राजनीतिक स्थिति में भाग ले सकें। सीज़र ने क्रेसस (Crassus) तथा पांपे में राजनीतिक गठबंधन करा दिया और उससे मिलकर प्रथम शासक वर्ग (first triumvirate) तैयार किया। इन तीनों ने मुख्य प्रशासकीय समस्याओं का समाधान अपने हाथ में लिए जिनको नियमित "सीनेटोरियल' शासन सुलझाने में असमर्थ था। इस प्रकार सीज़र कौंसल निर्वाचित हुआ और अपने पदाधिकारों का उपयोग करते हुए अपनी संयुक्त योजनाओं को कार्यान्वित करने लगा। स्वयं अपने लिए उसने सेना संचालन का उच्च पद प्राप्त कर लिया जो रोमन राजनीति में भीषण शक्ति का कार्य कर सकता था। वह सिसएलपाइन गॉल (Cisalpine gaul) का गवर्नर नियुक्त किया गया। बाद में ट्रांसएलपाइन गाल (Transalpine gaul) भी उसकी कमान में दे दिया गया। गॉल में सीज़र के अभियानों (५८-५० ई. म. पू.) का परिणाम यह हुआ कि संपूर्ण फ्रांस तथा राइन (Rhine) नदी तक के निचले प्रदेश, जो मूल तथा संस्कृति के स्रोत के विचार से इटली से कम महत्वपूर्ण नहीं थे, रोमन साम्राज्य के आधिपत्य में आ गए। जर्मनी तथा बेल्जियम के बहुत से कबीलों पर उसने कई विजय प्राप्त की और "कॉल के रक्षक' का कार्यभार ग्रहण किया। अपने प्राँत की सीमा के पार के दूरस्थ स्थान भी उसकी कमान में आ गए। ५५ ई. पू. में उसने इंग्लैंड के दक्षिण पूर्व में पर्यवेक्षण के लिए अभियान किया। दूसरे वर्ष उसने यह अभियान और भी बड़े स्तर पर संचालित किया जिसके फलस्वरूप वह टेम्स नदी के बहाव की ओर के प्रदेशों तक में घुस गया और अधिकांश कबीलों के सरदारों ने औपचारिक रूप से उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। यद्यपि वह भली प्रकार समझ गया था कि रोमन गॉल की सुरक्षा के लिए ब्रिटेन पर स्थायी अधिकार प्राप्त करना आवश्यक है, तथापि गॉल में विषम स्थिति उत्पन्न हो जाने के कारण वह ऐसा करने में असमर्थ रहा। गॉल के लोगों ने अपने विजेता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था किंतु ५० ई. पू. में ही सीज़र गॉल में पूर्ण रूप से शाँति स्थापित कर सका।

स्वयं सीज़र के लिए गॉल के अभियानों में विगत वर्षों में दोहरा लाभ हुआ-उसने अपनी सेना भी तैयार कर ली और अपनी शक्ति का भी अनुमान लगा लिया। इसी बीच में रोम की राजनीतिक स्थिति विषमतर हो गई हो। रोमन उपनिवेशों को तीन बड़े कमानों में विभाजित किया जाना था जिनके अधिकारी नाममात्र की केंद्रीय सत्ता के वास्तविक नियंत्रण से परे थे। पांपे को स्पेन के दो प्रांतों का गवर्नर नियुक्त किया गया, क्रेसस को पूर्वी सीमांत प्रांत सीरिया का गवर्नर बनाया गया। गॉल सीज़र के ही कमान में रखा गया। पांपे ने अपने प्रांत स्पेन की कमान का संचालन अपने प्रतिनिधियों द्वारा किया और स्वयं रोम के निकट रहा ताकि केंद्र की राजनीतिकश् स्थितियों पर दृष्टि रखे। क्रैसस पारथिया के राज्य पर आक्रमण करते समय युद्ध में मारा गया। पांपे तथा सीज़र में एकच्छत्र सत्ता हथियाने के लिए तनाव तथा स्पर्धा के कारण युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई। पांपे सीज़र से खिंचने लगा और "सेनेटोरियल अल्पतंत्र दल' से समझौता करने की सोचने लगा। सेनेट ने आदेश दिया कि सीज़र द्वितीय कौंसल के रूप में निर्वाचित होने से पूर्व, जिसका उसको पहले आश्वासन दिया जा चुका था, अपनी गॉल की कमान से त्यागपत्र दे। किंतु पांपे, जिसे ५२ पूर्व में अवैधानिक रूप से तृतीय कौंसल का पद प्रदान कर दिया गया था, अपने स्पेन के प्रांतों तथा सेनाओं को अपने अधिकार में ही रखे रहा। फलत: सीज़र ने खिन्न होकर गृहयुद्ध छेड़ दिया और यह दावा किया कि वह यह कदम अपने अधिकारों, सम्मान और रोमन लोगों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उठा रहा है। उसके विरोधियों का नेतृत्व पांपे कर रहा था।

पांपे तथा रोमन सरकार के पास इटली में बहुत थोड़े से ही अनुभवी सैनिक थे इसलिए उन्होंने रोम खाली कर दिया और सीज़र ने राजधानी पर बिना किसी विरोध के अधिकार जमा लिया। सीज़र ने शासन सत्ता पूर्ण रूप से अपने हाथ में ले ली परंतु पांपे से उसे अब भी खतरा था। सीज़र ने पर्वतों को पार करके थेसाली (Thessaly) में प्रवेश किया और ४८ ई. पू. की ग्रीष्म ऋतु में फारसेलीस (Pharsalees) के निकट पांपे को बुरी तरह परास्त किया। पांपे मिस्र भाग गया जहाँ पहुँचते ही उसका वध कर दिया गया।

सीज़र जब एक छोटी सी सेना लेकर उसका पीछा कर रहा था उसी समय एक नई समस्या में उलझ गया। मिस्र के सम्राट टौलेमी दसवें की मृत्यु के बाद उसकी संतानों में राज्य के लिए झगड़ा चल रहा था। सीज़र ने उसकी सबसे ज्येष्ठ संतान क्लिओपैट्रा (Cleopatra) का उसके भाई के विरुद्ध पक्ष लेने का निर्णय किया। परंतु मिस्र की सेना ने उस पर आक्रमण किया और ४८-४७ ई. पू. के शीतकाल में सिकंदरिया के राजप्रासाद में उसे (सीज़र को) घेर लिया। एशिया तथा सीरिया में भरती किए गए सैनिकों की सहायता से सीज़र यहाँ से निकल भागा और फिर क्लिओपैट्रा को राज्यासीन किया (क्लिओपैट्रा ने उससे एक पुत्र को भी थोड़े समय बाद जन्म दिया। सीज़र ने तत्पश्चात ट्यूनीशिया में पांपे की सेनाओं को पराजित किया। ४५ ई. पू. के शरद्काल में वह रोम लौट आया ताकि अपनी विजयों पर खुशियाँ मनाए और गणतंत्र के भावी प्रशासन के लिए योजनाएँ पूरी करें।

यद्यपि सेनेट की बैठक रोम में होती रही होगी तथापि राज सत्ता का वास्तविक केंद्र सीज़र के मुख्यावास पर ही था। कई बार उसे तानाशाह की उपाधि भी दी जा चुकी थी, जो एक अस्थायी सत्ता होती थी और किसी विषम परिस्थिति का सामना करने के लिए होती थी। अब उसने इस उपाधि को आजीवन धारण कर लेने का निश्चय किया, जिसका अर्थ वास्तव में यही था कि वह राज्य के समस्त अधिकारियों तथा संस्थाओं पर सर्वाधिकार रखे और उनका राजा कहलाए।

तानाशाह का रूप धारण करना ही सीज़र की मृत्यु का कारण हुआ। एकच्छत्र राज्य की घोषणा का अर्थ गणतंत्र का अंत था और गणतंत्र के अंत होने का अर्थ रिपब्लिकन संभ्रांत समुदाय के आधिपत्य का अंत। इसीलिए उन लोगों ने षड्यंत्र रचना आरंभ कर दिया। षड्यंत्रकारियों का नेता मार्कस बूट्स बना जो अपनी नि:स्वार्थ देशभक्ति के लिए प्रसिद्ध था। परंतु इसके अनुयायी अधिकांशत: व्यक्तिगत ईर्ष्या तथा द्वेष से प्रेरित थे। १५ मार्च, ४४ ई. पू. को जब सीनेट की बैठक चल रही थी तब ये लोग सीज़र पर टूट पड़े और उसका वध कर दिया। इस मास का यह दिन उसके लिए अशुभ होगा, इसकी चेतावनी उसे दे दी गई थी।'

मंचन

- शेक्सपीयर के जूलियस सीज़र का अरविन्द गौड़ के निर्देशन मे मंचन ,काव्यानुवाद- अरविन्द कुमार ,अस्मिता नाट्य संस्था ने अब तक जुलियस सीसर के कुल ४० प्रदर्शन किये है। अरविन्द कुमार के काव्यानुवाद शेक्सपीयर के जूलियस सीजर का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के लिये इब्राहिम अल्काजी के निर्देशन में भी हुआ । 1998 मे जूलियस सीज़र का मंचन अरविन्द गौड़ के निर्देशन मे शेक्सपियर नाटक महोत्सव (असम) और पृथ्वी थिएटर महोत्सव, भारत पर्यावास केन्द्र (इंडिया हैबिटेट सेंटर ), में अस्मिता नाट्य संस्था ने दोबारा किया । अरविंद कुमार ने सिंधु घाटी सभ्यता की पृष्ठभूमि में इसी नाटक का काव्य रूपान्तर भी किया है, जिसका नाम है - विक्रम सैंधव।

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