"शक्ति चट्टोपाध्याय": अवतरणों में अंतर
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'''शक्ति चट्टोपाध्याय''' ( जन्म २५ नवम्बर १९३४ - मृत्यु २३ मार्च १९९५ ) [[बांग्ला]] साहित्य के भुखी पीढी आन्दोलन के नेता माने जाते हैं, जो सन १९६१ में एक मेनिफेस्टो के जरिये कोलकाता को आश्चर्य चकित कर दिये थे। वह दक्षिण २४ परगणा के जयनगर-मजिलपुर गांव में एक गरीब परिबार में पैदा हुये। प्रेसिडेन्सि कालेज में बि॰ए॰ पढ्ते समय वह कविता लिखना शुरु किये एवम कालेज से गायब होकर चाइबासा अपने प्रिय मित्र [[समीर रायचौधुरी]] के घर जा कर बसे। चाइबासा में दो साल के जीवनकाल में उन्होने श्रेष्ठ कवितायें लिखे। उनको [[जीवनानंद दास]] के बाद के बांग्ला लिरिक कवियों में प्रधान माना गया है। अपने जीवनकाल में वह ३४ काव्यग्रन्थ प्रकाश किये। शान्तिनिकेतन में आधुनिकता पर पडाते समय १९९५ स्न मे उनका मृत्यु हुया। मरणोपरान्त उनके बहुत सारे अप्रकाशित कवितायों का संकलन उनके मित्र समीर सेनगुप्ता ने सम्पादित किये। सन १९८३ में '''जेते पारि किन्तु केनो जाबो''' काव्यग्रन्थ के लिये उनको साहित्य अकादेमि पुरस्कार से सन्मानित किय गया था। |
'''शक्ति चट्टोपाध्याय''' ( जन्म २५ नवम्बर १९३४ - मृत्यु २३ मार्च १९९५ ) [[बांग्ला]] साहित्य के भुखी पीढी आन्दोलन के नेता माने जाते हैं, जो सन १९६१ में एक मेनिफेस्टो के जरिये कोलकाता को आश्चर्य चकित कर दिये थे। वह दक्षिण २४ परगणा के जयनगर-मजिलपुर गांव में एक गरीब परिबार में पैदा हुये। प्रेसिडेन्सि कालेज में बि॰ए॰ पढ्ते समय वह कविता लिखना शुरु किये एवम कालेज से गायब होकर चाइबासा अपने प्रिय मित्र [[समीर रायचौधुरी]] के घर जा कर बसे। चाइबासा में दो साल के जीवनकाल में उन्होने श्रेष्ठ कवितायें लिखे। उनको [[जीवनानंद दास]] के बाद के बांग्ला लिरिक कवियों में प्रधान माना गया है। अपने जीवनकाल में वह ३४ काव्यग्रन्थ प्रकाश किये। शान्तिनिकेतन में आधुनिकता पर पडाते समय १९९५ स्न मे उनका मृत्यु हुया। मरणोपरान्त उनके बहुत सारे अप्रकाशित कवितायों का संकलन उनके मित्र समीर सेनगुप्ता ने सम्पादित किये। सन १९८३ में '''जेते पारि किन्तु केनो जाबो''' काव्यग्रन्थ के लिये उनको साहित्य अकादेमि पुरस्कार से सन्मानित किय गया था। |
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==कृतियां== |
==कृतियां== |
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*हे प्रेम हे नॅ:शब्द्य ( १९६२ ) |
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*धर्मेओ आचो जिराफेओ आचो ( १९६७ ) |
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*सोनार माचि खुन करेचि ( १९६८ ) |
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*अन्धकार नक्षत्रबीथि तुमि अन्धकार ( १९६८ ) |
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*हेमन्तेर अरन्ये आमि पोस्टमॅन ( १९६९ ) |
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*माटिर बाडि ( १९७१ ) |
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*चतुर्दशपदी कवितावली ( १९७० ) |
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*प्रभू नष्टो होये जाइ ( १९७२ ) |
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*सुख्रे आचि ( १९७४ ) |
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*ईश्वर थकेन जले ( १९७५ ) |
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*अस्त्रेर गौरबहीन एका ( १९७५ ) |
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*ज्वलन्त रुमाल ( १९७५ ) |
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*चिह्णबिच्चिन्न ( १९७५ ) |
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*सुन्दर एखाने नय ( १९७६ ) |
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*कविताय तुलो ओडे ( १९७६ ) |
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*भात नेइ पाथोर रोयेचे ( १९७९ ) |
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*अंगुरि तोर हिरण्यजल ( १९८० ) |
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*प्रच्च्न्नो स्वदेश ( १९८१ ) |
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*जेते पारि किन्तु केनो जाबो ( १९८३ )-- यह काव्यग्रन्थ के लिये उनहे साहित्य अकादेमि पुरस्कार से स्न्मानित किया गया था। |
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*कक्सबाजारे सन्ध्या ( १९८५ ) |
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==इन्हे भी देखें== |
==इन्हे भी देखें== |
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*[[समीर रायचौधुरी]] |
*[[समीर रायचौधुरी]] |
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शक्ति चट्टोपाध्याय ( जन्म २५ नवम्बर १९३४ - मृत्यु २३ मार्च १९९५ ) बांग्ला साहित्य के भुखी पीढी आन्दोलन के नेता माने जाते हैं, जो सन १९६१ में एक मेनिफेस्टो के जरिये कोलकाता को आश्चर्य चकित कर दिये थे। वह दक्षिण २४ परगणा के जयनगर-मजिलपुर गांव में एक गरीब परिबार में पैदा हुये। प्रेसिडेन्सि कालेज में बि॰ए॰ पढ्ते समय वह कविता लिखना शुरु किये एवम कालेज से गायब होकर चाइबासा अपने प्रिय मित्र समीर रायचौधुरी के घर जा कर बसे। चाइबासा में दो साल के जीवनकाल में उन्होने श्रेष्ठ कवितायें लिखे। उनको जीवनानंद दास के बाद के बांग्ला लिरिक कवियों में प्रधान माना गया है। अपने जीवनकाल में वह ३४ काव्यग्रन्थ प्रकाश किये। शान्तिनिकेतन में आधुनिकता पर पडाते समय १९९५ स्न मे उनका मृत्यु हुया। मरणोपरान्त उनके बहुत सारे अप्रकाशित कवितायों का संकलन उनके मित्र समीर सेनगुप्ता ने सम्पादित किये। सन १९८३ में जेते पारि किन्तु केनो जाबो काव्यग्रन्थ के लिये उनको साहित्य अकादेमि पुरस्कार से सन्मानित किय गया था।
कृतियां
- हे प्रेम हे नॅ:शब्द्य ( १९६२ )
- धर्मेओ आचो जिराफेओ आचो ( १९६७ )
- सोनार माचि खुन करेचि ( १९६८ )
- अन्धकार नक्षत्रबीथि तुमि अन्धकार ( १९६८ )
- हेमन्तेर अरन्ये आमि पोस्टमॅन ( १९६९ )
- माटिर बाडि ( १९७१ )
- चतुर्दशपदी कवितावली ( १९७० )
- प्रभू नष्टो होये जाइ ( १९७२ )
- सुख्रे आचि ( १९७४ )
- ईश्वर थकेन जले ( १९७५ )
- अस्त्रेर गौरबहीन एका ( १९७५ )
- ज्वलन्त रुमाल ( १९७५ )
- चिह्णबिच्चिन्न ( १९७५ )
- सुन्दर एखाने नय ( १९७६ )
- कविताय तुलो ओडे ( १९७६ )
- भात नेइ पाथोर रोयेचे ( १९७९ )
- अंगुरि तोर हिरण्यजल ( १९८० )
- प्रच्च्न्नो स्वदेश ( १९८१ )
- जेते पारि किन्तु केनो जाबो ( १९८३ )-- यह काव्यग्रन्थ के लिये उनहे साहित्य अकादेमि पुरस्कार से स्न्मानित किया गया था।
- कक्सबाजारे सन्ध्या ( १९८५ )