"आयो (उपग्रह)": अवतरणों में अंतर

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04:41, 29 जून 2011 का अवतरण

गैलिलेओ यान द्वारा ली गयी आयो की तस्वीर - केन्द्रीय बिंदु से बाएँ की और का काला बिंदु प्रोमीथियस नाम का फटता हुआ ज्वालामुखी है
घुमते हुए आयो का चलचित्र - जो बड़ा लाल छल्ला नज़र आता है वह "पेले" नामक ज्वालामुखी के इर्द-गिर्द गिरे गंधक (सलफ़र) के योगिकों से बना मलबा है

आयो हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का तीसरा सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का चौथा सब से बड़ा चन्द्रमा है। आयो का व्यास (डायामीटर) 3,642 किमी है। बृहस्पति के चार प्रमुख उपग्रहों (गैनिमीड, कलिस्टो, आयो और यूरोपा) में यह बृहस्पति की सब से क़रीबी कक्षा में परिक्रमा करने वाला चन्द्रमा है। बृहस्पति के इतना समीप होने की वजह से उस ग्रह के भयंकर गुरुत्वाकर्षण से पैदा होने वाला ज्वारभाटा बल आयो को गूंथता रहता है जिस से इस उपग्रह पर बहुत से ज्वालामुखी हैं। सन् 2010 तक आयो पर 400 से भी अधिक सक्रीय ज्वालामुखी गिने जा चुके थे। पूरे सौर मंडल में और कोई वस्तु नहीं जहाँ आयो से ज़्यादा भौगोलिक उथल-पुथल हो रही हो।[1][2] सौर मंडल के बाहरी चंद्रमाओं की बनावट में ज़्यादातर बर्फ़ की बहुतायत होती है लेकिन आयो पर ऐसा नहीं है। आयो अधिकतर पत्थरीले पदार्थों का बना हुआ है।

अन्य भाषाओँ में

आयो को अंग्रेज़ी में "Io" लिखा जाता है। आयो प्राचीन यूनानी धार्मिक कथाओं में ज़्यूस की प्रेमिका थी। ज़्यूस का यूनानी धर्म में वही स्थान है जो भारत में बृहस्पति का है। "ज्यूपिटर" ज़्यूस का रोमन नाम है।

अकार और ढाँचा

आयो पृथ्वी के चन्द्रमा से थोड़ा बड़ा है - उसका व्यास (डायमीटर) चन्द्रमा के व्यास से लगभग 5% अधिक है। आयो का ढाँचा पृथ्वी, शुक्र और मंगल जैसे पत्थरीले ग्रहों से मिलता-जुलता है। इसके बहरी भाग में सिलिकेट और भीतरी भाग में लोहा या लोहे और गंधक (सलफ़र) का मिश्रण है। यह अंदरूनी धातु का केन्द्रीय भाग आयो के द्रव्यमान का 20% है। गैलिलेओ यान से मिली जानकारी के अनुसार सतह के नीचे एक पिघले पत्थर (मैग्मा) की 50 किमी मोटी तह होने की सम्भावना है जिसका तापमान 1,200 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास है।

जब वैज्ञानिकों ने सबसे पहली बार आयो की सतह की तस्वीरें देखी उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ के उसपर उल्कापिंडों के गिरने से बने प्रहार क्रेटर नहीं थे जबकि चन्द्रमा, मंगल, बुध और बृहस्पति के उपग्रहों पर ऐसे बहुत से क्रेटर हैं। उसके बजाए उन्हें एक लाल, पीली, हरी रंग-बिरंगी सतह दिखी। इसकी वजह यह थी के बृहस्पति, गैनिमीड, कलिस्टो और यूरोपा के ज्वारभाटा बल से आयो बुरी तरह गूंथा जाता है और उसपर कई ज्वालामुखियों से लावा उगलता रहता है। यह लावा क्रेटर भर देता है और पूरी ज़मीन पर गंधक (सलफ़र) के रंग-बिरंगे रासायनिक यौगिक फैला देता है।

इन्हें भी देखें

बहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. Rosaly MC Lopes (2006). "Io: The Volcanic Moon". प्रकाशित Lucy-Ann McFadden, Paul R. Weissman, Torrence V. Johnson (संपा॰). Encyclopedia of the Solar System. Academic Press. पपृ॰ 419–431. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-12-088589-3.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: editors list (link)
  2. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर