"महाविद्या": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छो →‎पौराणिक कथा: Adding template using AWB
छो r2.7.1) (robot Adding: fr:Mahâvidyâ
पंक्ति 27: पंक्ति 27:
[[श्रेणी:देवी-देवता]]
[[श्रेणी:देवी-देवता]]
[[श्रेणी:उत्तम लेख]]
[[श्रेणी:उत्तम लेख]]

{{उत्तम लेख}}


[[bn:দশমহাবিদ্যা]]
[[bn:দশমহাবিদ্যা]]
पंक्ति 33: पंक्ति 35:
[[es:Majá Vidiá]]
[[es:Majá Vidiá]]
[[fi:Mahavidya]]
[[fi:Mahavidya]]
[[fr:Mahâvidyâ]]
[[pl:Mahawidja]]
[[pl:Mahawidja]]
[[ru:Дашамахавидья]]
[[ru:Дашамахавидья]]
[[uk:Дашамахавідья]]
[[uk:Дашамахавідья]]

{{उत्तम लेख}}

02:16, 24 जून 2011 का अवतरण

महाविद्या अर्थात महान विद्या रूपी देवी। महाविद्या देवी दुर्गा के दस रूप है, जो अधिकांश तान्त्रिक साधको द्वारा पूजे जाते है, परन्तु साधारण भक्तो को भी अचूक सिद्धि प्रदान करने वाली है। इन्हे दस महाविद्या के नाम से भी जाना जाता है।

महाविद्या विचार का विकास शक्तिवाद के इतिहास मे एक नया अध्याय बना जिसने इस विश्वास को पोशित किया कि सर्व शक्तिमान् एक नारी है।

शाब्दिक अर्थ

महाविद्या शब्द संस्कृत भाषा के शब्दो "महा" तथा "विद्या" से बना है।"महा" अर्थात महान,विशाल्,विराट। तथा "विद्या" अर्थात ज्ञान।

दस महाविद्याएँ

शाक्त भक्तो के अनुसार "दस रूपो मे समाहित एक सत्य कि व्याख्या है - महाविद्या" जो कि जगदम्बा के दस लोकिक व्यक्तित्वो की व्याख्या करते है।महविद्याए तान्त्रिक प्रक्रति की मानी जाती है जो निम्न है-

गुह्यतिगुह्य पुराण महाविद्याओ को भगवान विष्णु के दस अवतारो से सम्बद्ध करता है और यह व्याख्या करता है कि महाविद्या वे स्रोत है जिनसे भगवान विष्णु के दस अवतार उत्पन्न हुए थे। महाविद्याओ के ये दसो रूप चाहे वे भयानक हो अथवा सौम्य,जगज्जननी के रूप मे पूजे जाते है।

पौराणिक कथा

श्री देवी भाग्वत पुरान के अनुसार महाविद्याओ की उत्पत्ति भगवान शिव और उनकी पत्नी सती,जो कि पार्वती का पूर्वजन्म थी,के बीच एक विवाद के कारन हई।जब शिव और सती का विवाह हुआ तो सती के पिता दक्ष प्रजापति दोनो के विवाह से खुश नही थे।उन्होने शिव क अपमान करने के उद्देश्य से एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया,जिसमे उन्होने सभी देवी-देवताओ को आमन्त्रित किया,द्वेषवश उन्होंने अपने जामाता भगवान शंकर और अपनी पुत्री सती को निमन्त्रित नहीं किया। सती पिता के द्वार आयोजित यज्ञ मे जाने की जिद करने लगी जिसे शिव ने अन्सुना कर दिया,जब तक कि सती ने स्वयम को एक भयान्क रूप मे परिवर्तित नही कर लिया। तत्प्श्चात् देवी दस रूपो मे विभाजित हो गयी जिनसे वह् शिव के विरोध को हराकर यज्ञ मे भाग लेने गयी।

साँचा:उत्तम लेख