"महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म": अवतरणों में अंतर

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==इतिहास==
==इतिहास==
महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म का प्रसार और प्रसार सातवहन काल के दौरान बडे पैमाने पर हुआ है, जिसमें नाग लोगों का योगदान महत्वपूर्ण है। जब प्राचीन वास्तु और प्राचीन लेखन की खोज की गई, तब पता चला की सातवीं शताब्दी तक महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म व्यापक रूप से प्रचलित था। पर्सी ब्राउन इस विद्वान के अनुसार, भारत में मूर्तियों में से आधी से अधिक बौद्ध मूर्तियां पायी जाती हैं, इससे महाराष्ट्र में बौद्ध काल की लोकप्रियता दिखाई देती है। सिद्धाओं के माध्यम से नाथों तक और [[वारकरी सम्प्रदाय]] के माध्यम से बौद्ध धर्म फैलता गया। सातवीं शताब्दी तक महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर बौद्ध धर्म का पालन किया जाता था।
महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म का प्रसार और प्रसार सातवहन काल के दौरान बडे पैमाने पर हुआ है, जिसमें नाग लोगों का योगदान महत्वपूर्ण है। जब प्राचीन वास्तु और प्राचीन लेखन की खोज की गई, तब पता चला की सातवीं शताब्दी तक महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म व्यापक रूप से प्रचलित था। पर्सी ब्राउन इस विद्वान के अनुसार, भारत में मूर्तियों में से आधी से अधिक बौद्ध मूर्तियां पायी जाती हैं, इससे महाराष्ट्र में बौद्ध काल की लोकप्रियता दिखाई देती है। सिद्धाओं के माध्यम से नाथों तक और [[वारकरी सम्प्रदाय]] के माध्यम से बौद्ध धर्म फैलता गया। सातवीं शताब्दी तक महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर बौद्ध धर्म का पालन किया जाता था। उसके बाद मुसलमान एवं हिन्दु शासकों के बौद्ध प्रति नकारात्मक कृतिओं से बौद्ध धर्म के अनुयायि कम होने लगे, बौद्धों पर हमले एवं उनका विरोध होता रहा। आधुनिक भारत तक बौद्ध धर्म अनुयायि महाराष्ट्र में १% से कम रह गये।

== बौद्ध दलित आंदोलन ==
[[चित्र:Dr. Babasaheb Ambedkar addressing his followers during 'Dhamma Deeksha' at Deekshabhoomi, Nagpur 14 October 1956.jpg|thumb|नागपूर के बौद्ध धम्म दीक्षा समारोह में अपने अनुयायियों को बोलते हुए आम्बेडकर, १४ अक्तुबर १९५६]]
[[चित्र:Dr. Ambedkar being administered 'Dhamma Deeksha' by Bhante Chandramani (from Kushinara) at Nagpur on 14 October 1956.jpg|thumb|कुशीनारा के भन्ते चंद्रमणी द्वारा दीक्षा ग्रहण करते हुए डॉ॰ आम्बेडकर]]
[[चित्र:Dikshabhumi.jpg|left|thumb|[[दीक्षाभूमि]] [[स्तूप]], जहां भीमराव अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म में परिवर्तित हुए।]]

महाराष्ट्र में भीमराव आम्बेडकर प्रमुख बौद्ध नेता थे, जिन्होंने भारत में एवं महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म को पुनर्जिवीत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सन् 1950 के दशक में आम्बेडकर [[बौद्ध धर्म]] के प्रति आकर्षित हुए और बौद्ध [[भिक्षु]]ओं व विद्वानों के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए [[श्रीलंका]] (तब सिलोन) गये।<ref name="Sanghara kshita">{{cite book|last=Sangharakshita|title=Ambedkar and Buddhism|year=2006|publisher=Motilal Banarsidass Publishers|location=New Delhi|isbn=8120830237|page=72|url=https://books.google.com/books?id=e-b2EzNRxQIC&pg=PA72|edition=1st South Asian |accessdate=17 July 2013|chapter=Milestone on the Road to conversion}}</ref> 1954 में आम्बेडकर ने [[म्यांमार|म्यानमार]] का दो बार दौरा किया; दूसरी बार वो [[रंगून]] मे तीसरे विश्व बौद्ध फैलोशिप के सम्मेलन में भाग लेने के लिए गये।<ref name="Docker">{{cite book |editor1-last=Ganguly |editor1-first=Debjani |editor2-last=Docker |editor2-first=John |title=Rethinking Gandhi and Nonviolent Relationality: Global Perspectives |series= Routledge studies in the modern history of Asia |volume=46 |year=2007 |publisher=Routledge |location=London |isbn=0415437407 |oclc=123912708 |page=257}}</ref> 1955 में उन्होने 'भारतीय बौद्ध महासभा' या 'बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया' की स्थापना की।<ref name="Quack">{{cite book |last1=Quack |first1=Johannes |title=Disenchanting India: Organized Rationalism and Criticism of Religion in India |year=2011 |publisher=Oxford University Press |isbn=0199812608 |oclc=704120510 |page=88}}</ref> उन्होंने अपने अंतिम प्रसिद्ध ग्रंथ, '[[भगवान बुद्ध और उनका धम्म|द बुद्ध एंड हिज़ धम्म]]' को 1956 में पूरा किया। यह उनकी मृत्यु के पश्चात सन 1957 में प्रकाशित हुआ।<ref name="Quack"/> 14 अक्टूबर 1956 को [[नागपुर]] शहर में डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर ने खुद और उनके समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक धर्मांतरण समारोह का आयोजन किया। प्रथम डॉ॰ आम्बेडकर ने अपनी पत्नी सविता एवं कुछ सहयोगियों के साथ भिक्षु महास्थवीर चंद्रमणी द्वारा पारंपरिक तरीके से [[त्रिरत्न]] और [[पंचशील]] को अपनाते हुये [[बौद्ध धर्म]] ग्रहण किया। इसके बाद उन्होंने अपने 5,00,000 अनुयायियो को [[त्रिरत्न]], [[पंचशील]] और 22 प्रतिज्ञाएँ देते हुए [[नवयान]] बौद्ध धर्म में परिवर्तित किया।<ref name="Columbia7"/> आम्बेडकर ने दुसरे दिन 15 अक्टूबर को भी वहाँ अपने 2 से 3 लाख अनुयायियों को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी, यह वह अनुयायि थे जो 14 अक्तुबर के समारोह में नहीं पहुच पाये थे या देर से पहुचे थे। आम्बेडकर ने नागपूर में करीब 8 लाख लोगों बौद्ध धर्म की दीक्षा दी, इसलिए यह भूमी [[दीक्षाभूमि]] नाम से प्रसिद्ध हुई। तिसरे दिन 16 अक्टूबर को आम्बेडकर [[चंद्रपुर]] गये और वहां भी उन्होंने करीब 3,00,000 समर्थकों को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी।<ref name="Columbia7"/><ref>{{cite web| last = Sinha| first = Arunav|url=http://timesofindia.indiatimes.com/city/lucknow/Monk-who-witnessed-Ambedkars-conversion-to-Buddhism/articleshow/46925826.cms| title = Monk who witnessed Ambedkar’s conversion to Buddhism| deadurl=no| archiveurl=https://web.archive.org/web/20150417154149/http://timesofindia.indiatimes.com/city/lucknow/Monk-who-witnessed-Ambedkars-conversion-to-Buddhism/articleshow/46925826.cms| archivedate = 17 April 2015| df = dmy-all}}</ref> आम्बेडकर ने महाराष्ट्र में तीन बडे धर्म परिवर्तन समारोह किये, और केवल तीन दिन में आम्बेडकर ने स्वयं 11 लाख से अधिक लोगों को बौद्ध धर्म में परिवर्तित कर विश्व के बौद्धों की संख्या 11 लाख बढा दी और [[भारत में बौद्ध धर्म]] को पुनर्जिवीत किया। इसके बाद वे [[नेपाल]] में चौथे विश्व बौद्ध सम्मेलन मे भाग लेने के लिए [[काठमांडू]] गये।<ref name="Docker"/> उन्होंने अपनी अंतिम पांडुलिपि ''[[बुद्ध]] या [[कार्ल मार्क्स]]'' को [[2 दिसंबर]] [[1956]] को पूरा किया।<ref>[http://www.ambedkar.org/ambcd/20.Buddha%20or%20Karl%20Marx.htm Buddha or Karl Marx&nbsp;– Editorial Note in the source publication: Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches, Vol. 3] {{webarchive|url=https://web.archive.org/web/20120319041541/http://www.ambedkar.org/ambcd/20.Buddha%20or%20Karl%20Marx.htm |date=19 March 2012 }}. Ambedkar.org. Retrieved on 12 August 2012.</ref>


==जनसंख्या==
==जनसंख्या==

04:56, 8 जुलाई 2018 का अवतरण

महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म राज्य का एक बड़ा धर्म है। महाराष्ट्र भारत का सबसे ज्यादा बौद्ध आबादी वाला राज्य है। बौद्ध धर्म महाराष्ट्र की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सातवाहन काल के दौरान महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म का प्रसार और प्रसार बहुत बड़े पैमाने पर हुआ था। नाग लोगों ने धर्म प्रसार के लिए अपना जीवन दाव पर लगाया था। हजारों बुद्ध गुफाएँ मूर्तियां बनाई गई हैं। सिद्धाओं के माध्यम से नाथों तक और नाथों से वारकरी संप्रदाय तक बौद्ध धर्म फैलता गया। सातवीं शताब्दी तक महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म व्यापक रूप से प्रचलित था।

2011 में भारतीय जनगणना के अनुसार भारत में ८४,४२,९७२ लाख बौद्ध थे और उनमें सें सबसे ज्यादा 65,31,200 या 77.36% बौद्ध महाराष्ट्र में थे।[1] महाराष्ट्र में हिंदू धर्म और इस्लाम के बाद बौद्ध धर्म महाराष्ट्र का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, जो महाराष्ट्र की कुल जनसंख्या का 6% है। भारत के कुल धर्मपरावर्तित बौद्धों (आम्बेडकरवादि बौद्ध या नवबौद्ध) की संख्या 73 लाख हैं, उनमें से लगभग 90% महाराष्ट्र में हैं।[2][3] पूरा महार समुदाय बौद्ध धर्मावलंबी हैं, महार एवं औपचारिक बौद्ध इन दो बौद्ध समूहों की संख्या महाराष्ट्र में 1 करोड़ से अधिक हैं। 1956 में, भीमराव आम्बेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी थी। यह दीक्षा समारोह नागपूर में हुआ था। महाराष्ट्र में विदर्भ, मराठवाडा एवं कोकण यहाँ के दलित समाज ने इसमे बडे पैमाने पर भाग लिया। इसी वजह से भारत में प्रमुख रूप से महाराष्ट्र में बौद्धों की संख्या अधिक हुई है।

इतिहास

महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म का प्रसार और प्रसार सातवहन काल के दौरान बडे पैमाने पर हुआ है, जिसमें नाग लोगों का योगदान महत्वपूर्ण है। जब प्राचीन वास्तु और प्राचीन लेखन की खोज की गई, तब पता चला की सातवीं शताब्दी तक महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म व्यापक रूप से प्रचलित था। पर्सी ब्राउन इस विद्वान के अनुसार, भारत में मूर्तियों में से आधी से अधिक बौद्ध मूर्तियां पायी जाती हैं, इससे महाराष्ट्र में बौद्ध काल की लोकप्रियता दिखाई देती है। सिद्धाओं के माध्यम से नाथों तक और वारकरी सम्प्रदाय के माध्यम से बौद्ध धर्म फैलता गया। सातवीं शताब्दी तक महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर बौद्ध धर्म का पालन किया जाता था। उसके बाद मुसलमान एवं हिन्दु शासकों के बौद्ध प्रति नकारात्मक कृतिओं से बौद्ध धर्म के अनुयायि कम होने लगे, बौद्धों पर हमले एवं उनका विरोध होता रहा। आधुनिक भारत तक बौद्ध धर्म अनुयायि महाराष्ट्र में १% से कम रह गये।

बौद्ध दलित आंदोलन

नागपूर के बौद्ध धम्म दीक्षा समारोह में अपने अनुयायियों को बोलते हुए आम्बेडकर, १४ अक्तुबर १९५६
कुशीनारा के भन्ते चंद्रमणी द्वारा दीक्षा ग्रहण करते हुए डॉ॰ आम्बेडकर
दीक्षाभूमि स्तूप, जहां भीमराव अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म में परिवर्तित हुए।

महाराष्ट्र में भीमराव आम्बेडकर प्रमुख बौद्ध नेता थे, जिन्होंने भारत में एवं महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म को पुनर्जिवीत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सन् 1950 के दशक में आम्बेडकर बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुए और बौद्ध भिक्षुओं व विद्वानों के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका (तब सिलोन) गये।[4] 1954 में आम्बेडकर ने म्यानमार का दो बार दौरा किया; दूसरी बार वो रंगून मे तीसरे विश्व बौद्ध फैलोशिप के सम्मेलन में भाग लेने के लिए गये।[5] 1955 में उन्होने 'भारतीय बौद्ध महासभा' या 'बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया' की स्थापना की।[6] उन्होंने अपने अंतिम प्रसिद्ध ग्रंथ, 'द बुद्ध एंड हिज़ धम्म' को 1956 में पूरा किया। यह उनकी मृत्यु के पश्चात सन 1957 में प्रकाशित हुआ।[6] 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर शहर में डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर ने खुद और उनके समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक धर्मांतरण समारोह का आयोजन किया। प्रथम डॉ॰ आम्बेडकर ने अपनी पत्नी सविता एवं कुछ सहयोगियों के साथ भिक्षु महास्थवीर चंद्रमणी द्वारा पारंपरिक तरीके से त्रिरत्न और पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध धर्म ग्रहण किया। इसके बाद उन्होंने अपने 5,00,000 अनुयायियो को त्रिरत्न, पंचशील और 22 प्रतिज्ञाएँ देते हुए नवयान बौद्ध धर्म में परिवर्तित किया।[7] आम्बेडकर ने दुसरे दिन 15 अक्टूबर को भी वहाँ अपने 2 से 3 लाख अनुयायियों को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी, यह वह अनुयायि थे जो 14 अक्तुबर के समारोह में नहीं पहुच पाये थे या देर से पहुचे थे। आम्बेडकर ने नागपूर में करीब 8 लाख लोगों बौद्ध धर्म की दीक्षा दी, इसलिए यह भूमी दीक्षाभूमि नाम से प्रसिद्ध हुई। तिसरे दिन 16 अक्टूबर को आम्बेडकर चंद्रपुर गये और वहां भी उन्होंने करीब 3,00,000 समर्थकों को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी।[7][8] आम्बेडकर ने महाराष्ट्र में तीन बडे धर्म परिवर्तन समारोह किये, और केवल तीन दिन में आम्बेडकर ने स्वयं 11 लाख से अधिक लोगों को बौद्ध धर्म में परिवर्तित कर विश्व के बौद्धों की संख्या 11 लाख बढा दी और भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जिवीत किया। इसके बाद वे नेपाल में चौथे विश्व बौद्ध सम्मेलन मे भाग लेने के लिए काठमांडू गये।[5] उन्होंने अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध या कार्ल मार्क्स को 2 दिसंबर 1956 को पूरा किया।[9]

जनसंख्या

सन 1951 में, महाराष्ट्र में केवल 2,489 बौद्ध (0.01%) थे, डॉ॰ आम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को किये हुए सामूहिक धर्म परिवर्तन के बाद सन 1961 में यह बौद्धों संख्या 1,15,991% से बढकर 27,89,501 (7%) हो गई थी।

जनगणना १९५१ से २०११ तक की महाराष्ट्र में बौद्धों की जनसंख्या[10]
वर्ष बौद्ध जनसंख्या (लाख में) राज्य में प्रमाण (%) बढोतरी (वृद्धी) (%)
१९५१ ०.०२५ ०.०१
१९६१ २७.९० ७.०५ ११५९९०.८
१९७१ ३२.६४ ६.४८ १६.९९
१९८१ ३९.४६ ६.२९ २०.८९
१९९१ ५०.४१ ६.३९ २७.७५
२००१ ५८.३९ ६.०३ १५.८३
२०११ ६५.३१ ५.८१ ११.८५

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में बौद्धों की संख्या 84,42,272 हैं, और इनमें से 65,31,200 (77.36%) बौद्ध अकेले महाराष्ट्र राज्य में हैं। महाराष्ट्र में बौद्ध धार्मिक समुदाय भारत का सबसे बड़ा धर्मपरिवर्तित बौद्ध (आम्बेडकरवादि बौद्ध या नवबौद्ध) समुदाय है। विदर्भ के बुलढाना, अकोला, वाशिम, अमरावती, वर्धा, नागपुर, भंडारा, गोंदिया, गडचिरोली, चंद्रपुर और यवतमाल जिलों में बौद्धों का उच्चतम अनुपात हैं। इन 11 जिलों में 65 लाख बौद्धों में से लगभग 30 लाख बौद्ध हैं। एवं इनमे से आठ जिलों में उनकी आबादी 12 से 15% है। अकोला में 18% बौद्धों का सबसे बड़ा अनुपात है। गोंडिया, गडचिरोली और यवतमाल जिलों में अनुसूचित जनजातियों (आदिवासी) की संख्या अधिक है और बौद्धों की संख्या 7 से 10% है। मराठवाड़ा के नांदेड़, हिंगोली, परभनी, जालना और औरंगाबाद जिलों में 12 लाख बौद्ध हैं। पहले के तीन जिलों में उनका हिस्सा 10% से अधिक है, जबकि हिंगोली की कुल आबादी 15% बौद्ध है। ठाणे, मुंबई, मुंबई, रायगढ़, पुणे, सतारा और रत्नागिरी इन महाराष्ट्र पश्चिम के जिलों में 18 लाख से अधिक बौद्ध हैं। इनमे से रत्नागिरी और मुंबई उपनगरीय जिला के अलावा अन्य जिलों में बौद्ध जनसंख्या 5% से कम है। मुंबई उपनगर और रत्नागिरी की आबादी क्रमश: 5% और 7% बौद्ध हैं।

अनुसूचित जाति

अनुसूचित जातियों (असैवंधानिक नाम दलित) में बौद्ध धर्म तेजी से बढ़ रहा है। सन 2001 में, भारत में 41.59 लाख बौद्ध लोग अनुसूचित जाति थे। 2011 में, यह आंकड़ा 38% बढ़कर 57.56 लाख हो गया। देश में कुल अनुसूचित जाति के बौद्धों में से 52,04,284 (90% से अधिक) महाराष्ट्र में हैं। यह महाराष्ट्र की कुल बौद्ध आबादी का 79.68% है।[11] जबकि महाराष्ट्र की अनुसूचित जाति की कुल 1,32,75,898 आबादी में 39.20% बौद्ध है। महाराष्ट्र में बौद्ध धर्मावलंबि अनुसूचित जातियों की आबादी में 60% की वृद्धि हुई है।[12]

सन्दर्भ

  1. http://www.dnaindia.com/india/report-census-2011-in-maharashtra-more-buddhists-jains-than-christians-2118493. गायब अथवा खाली |title= (मदद)
  2. "दी क्वींट".
  3. http://www.indiaspendhindi.com/cover-story/%E0%A4%A6%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A5%8C%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7-%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE-%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BE. गायब अथवा खाली |title= (मदद)
  4. Sangharakshita (2006). "Milestone on the Road to conversion". Ambedkar and Buddhism (1st South Asian संस्करण). New Delhi: Motilal Banarsidass Publishers. पृ॰ 72. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8120830237. अभिगमन तिथि 17 July 2013.
  5. Ganguly, Debjani; Docker, John, संपा॰ (2007). Rethinking Gandhi and Nonviolent Relationality: Global Perspectives. Routledge studies in the modern history of Asia. 46. London: Routledge. पृ॰ 257. OCLC 123912708. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0415437407.
  6. Quack, Johannes (2011). Disenchanting India: Organized Rationalism and Criticism of Religion in India. Oxford University Press. पृ॰ 88. OCLC 704120510. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0199812608.
  7. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Columbia7 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  8. Sinha, Arunav. "Monk who witnessed Ambedkar's conversion to Buddhism". मूल से 17 एप्रिल 2015 को पुरालेखित. नामालूम प्राचल |deadurl= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  9. Buddha or Karl Marx – Editorial Note in the source publication: Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches, Vol. 3 Archived 19 मार्च 2012 at the वेबैक मशीन. Ambedkar.org. Retrieved on 12 August 2012.
  10. http://blog.cpsindia.org/2016/01/religion-data-of-census-2011-xi_19.html?m=1
  11. "बौद्ध बढ़े, चुनावी चर्चे में चढ़े".
  12. "Buddhism is the fastest growing religion among Scheduled Castes".

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ