"सीआईडी (धारावाहिक)": अवतरणों में अंतर

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सीआईडी
सीआईडी १६वें वर्ष के दौरान
शैलीअपराध कथा, लड़ाई, नाटक, हास्य, डरावना, प्रेम
निर्माताबृजेन्द्र पाल सिंह
लेखकबृजेन्द्र पाल सिंह, श्रीराम राघवन, श्रीधर राघवन, रजत अरोड़ा,
निर्देशकबृजेन्द्र पाल सिंह, राजन वाघधरे, सीबा मिश्रा, संतोष शेट्टी, सलिल सिंह, नितिन चौधरी
अभिनीतनीचे देखें
उद्गम देशभारत
मूल भाषा(एं)हिन्दी
सीजन कि संख्या
एपिसोड कि संख्या२६ अप्रैल २०१५ को १,२२१ हुआ।
उत्पादन
कार्यकारी निर्माता
  • सतीश दुबे
  • शाश्वन्त जैन
  • राजेन्द्र पाटिल
  • विकास कुमार
निर्माताबृजेन्द्र पाल सिंह, प्रदीप उपूर
छायांकनबृजेन्द्र पाल सिंह, राकेश सारंग
संपादककेदार गोतागे, भक्ति मायालों, शचिन्द्र वत्स
प्रसारण अवधि४२ - ४४ मिनट
निर्माता कंपनीफायरवर्क्स
प्रदर्शित प्रसारण
नेटवर्कसोनी
प्रकाशित२१ जनवरी १९९८ –
वर्तमान
संबंधित
सीआईडी: स्पेशल ब्यूरो

सीआईडी भारत का सबसे लंबा चलने वाला अपराध व जासूसी शैली पर आधारित टीवी धारावाहिक है। इसका प्रसारण सोनी चैनल पर २१ जनवरी १९९८ को प्रारंभ हुआ जिसके बाद से यह धारावाहिक अब तक लगातार चल रहा है। २१ जनवरी २०१५ को इसने अपने प्रसारण के सत्रह वर्ष पूर्ण किये और अठारहवें वर्ष में प्रवेश किया। इससे पहले, २७ सितम्बर २०१३ को यह धारावाहिक अपनी १०००वीं कहानी पूरा करने में सफल हुआ था। इसके सर्जक, निर्देशक और लेखक बृजेन्द्र पाल सिंह हैं तथा इसका निर्माण फायरवर्क्स नामक निर्माता कंपनी ने किया है। इस कंपनी के संस्थापक बृजेन्द्र पाल सिंह और प्रदीप उपूर हैं। इसमें शिवाजी साटम, दयानन्द शेट्टी और आदित्य श्रीवास्तव मुख्य भूमिका में दिखाई देते हैं।

कहानी

यह कहानी एसीपी प्रद्युमन (शिवाजी साटम) से शुरू होती है, जो अपने दायित्व के कारण अपने अपराधी बेटे नकुल (राहील आज़म) को गोली मार देते हैं। वरिष्ठ निरीक्षक विरेन (आशुतोष गोवरिकर) के बच्चे को खेलते समय एक व्यक्ति सामने आने वाली गाड़ी से बचा लेता है। जिसमें बच्चे को कुछ नहीं होता है, लेकिन उस व्यक्ति को चोट लग जाती है। विरेन उसे अपने घर लाकर उसे दवाई लगाते हुए उसका धन्यवाद करता है। बाद में विरेन को पता चलता है कि जिस व्यक्ति ने उसके बेटे की जान बचाई थी, वह एक अपराधी है। जैसे ही उस व्यक्ति को पता चल जाता है कि उसका राज खुल गया है, वैसे ही वह व्यक्ति विरेन के परिवार को अपने कब्जे में ले लेता है और विरेन को कहता है कि यदि वह सही सलामत किसी दूसरे शहर में उसे नहीं ले जा पाया तो वह उसके परिवार को मार देगा। विरेन मजबूरी में उसकी बात मान लेता है। लेकिन बाद में उसे ऐसा करना सही नहीं लगता और वह सीआईडी को बता देता है। उस अपराधी की सहायता करने के कारण वह अपने आप को दोषी मानने लगता है और सीआईडी से बाहर जाने की सोचता है, लेकिन एसीपी प्रद्युम्न उसे ऐसा करने से रोक देता है और कहीं दूसरे स्थान पर उसका तबादला कर देता है।

इसके कुछ दिनों बाद एक मामले की छानबीन करते समय सीआईडी को गाड़ी से एक व्यक्ति मिलता है। उसके पहचान पत्र से पता चलता है कि वह पुलिस में काम करता है व उसका नाम अभिजीत (आदित्य श्रीवास्तव) है। लेकिन उस व्यक्ति को अपना नाम भी याद नहीं रहता है। वह सीआईडी की कई तरह से मदद करता है, इस कारण एसीपी प्रद्युम्न उसे सीआईडी से जुड़ने के लिए कहता है। अभिजीत पहले जुड़ने के लिए मना कर देता है, लेकिन बाद में मान जाता है। अभिजीत और दया (दयानन्द शेट्टी) की इसी के बाद दोस्ती हो जाती है।

निर्माण

सीआईडी श्रृंखला के निर्माता बृजेन्द्र पाल सिंह हैं, जो वर्ष १९७३ से १९८३ के बीच दूरदर्शन पर एक कैमरामैन के रूप में काम कर रहे थे और इसी दौरान उनके मन में एक जासूसी धारावाहिक बनाने का विचार आया।[1] उस समय इस प्रकार के जासूसी के धारावाहिक नहीं बनते थे और उनके पास इस प्रकार के धारावाहिक बनाने का कोई ज्ञान भी नहीं था।[1] तब से उन्होंने इस धारावाहिक की अवधारणा पर काम करना शुरू किया। इस धारावाहिक के लिए उन्होंने दूरदर्शन से पूछा था कि क्या उन्हें इस धारावाहिक को अपने चैनल में दिखाने में उनकी रुचि हैं या नहीं। लेकिन दूरदर्शन ने ऐसे धारावाहिक में कोई भी रुचि नहीं दिखाई। इसके बाद वे "सिर्फ चार दिन" नामक एक फिल्म की तैयारी में लग गए। फिल्म के साथ-साथ वे अपने नए धारावाहिक की तैयारी में भी लगे रहे। इसी दौरान वे पुलिस की अपराध शाखा का दौरा करने के लिए भी गए। वहाँ उन्होंने कुछ पुलिस अधिकारियों के साथ बातचीत की और उनके द्वारा हल किए गए मामलों और उनकी जासूसी की शैली के विषय में भी अच्छे से जाना।[1] इसके बाद सिंह जी ने श्रीकांत सिंकर द्वारा लिखित एक जासूसी उपन्यास को भी पढ़ना शुरू किया। श्रीकांत सिंकर जी की लिखी हुई कहानी की शैली उन्हें बहुत पसंद आई। इन सब से प्रेरित होकर उन्होंने एक जासूसी धारावाहिक श्रृंखला बनाने का कार्य शुरू कर दिया।[1] सिंह जी ने इस धारावाहिक के सोनी चैनल पर प्रदर्शित होने के बारह वर्ष पूर्व और सोनी के साथ काम करने के आठ वर्ष पूर्व ही १९८६ में पहले से ही छह एपिसोड बना दिया था। इस श्रृंखला को बनाने से पहले उन्होंने किसी भी प्रकार का शोध या सर्वेक्षण नहीं किया। वे चाहते थे कि इसकी कहानी पूरी तरह सरल रहे। इसके बाद वे इस धारावाहिक के लिए सोनी आदि चैनल से इसके दिखने के लिए पूछा, परंतु सोनी ने इस धारावाहिक में अधिक रुचि दिखाई और इस धारावाहिक को दिखाने के लिए मान गए। इसके बाद सिंह जी को केवल इस धारावाहिक को बनाने के लिए इसके पात्र और इसके बनाने का स्थान चुनना था।[1][2]

वे सबसे पहले हिन्दी और मराठी फिल्मों में कार्य कर चुके अभिनेता शिवाजी साटम को एसीपी प्रद्युम्न के किरदार के लिए चुनते हैं।[3] जो कि पहले ही सिंह जी के कई परियोजनाओं में साथ कार्य कर चुके हैं। संजय शेट्टी जो सीआईडी के उत्पादन समूह के सदस्य है, ने दयानन्द शेट्टी को पात्रों के चुनाव में हिस्सा लेने बोला था। सिंह जी उनसे इतने प्रभावित हुए कि पाँच मिनट में ही उन्हें चुन लिया। उनका किरदार लोगों के बीच सबसे लोकप्रिय है। वरिष्ठ निरीक्षक विरेन की भूमिका निभा रहे आशुतोष गोवरिकर को अपनी फिल्म लगान के निर्देशन के कारण इस धारावाहिक को छोड़ना पड़ा।[4] वरिष्ठ निरीक्षक अभिजीत का किरदार रहे आदित्य श्रीवास्तव को १९९८ में अपराधी का किरदार मिला था। वे इससे पूर्व, राम गोपाल वर्मा की फिल्म सत्या में कार्य कर रहे थे। बाद में जब सिंह जी ने उनकी इस फ़िल्म में उनका अनुभव देखा, तो उन्हें सीआईडी में अभिनय के लिए कहा। लेकिन वे केवल २६ एपिसोड हेतु सीआईडी में काम करने के लिए सहमत हुए थे। लेकिन बाद में आगे भी कार्य करने के लिए मान गए।[3] यह २३ जुलाई १९९९ को पहली बार वरिष्ठ निरीक्षक अभिजीत की भूमिका में दिखाई दिये थे। अन्य सभी किरदारों को भी इसी तरह से चुना गया था। शिवाजी साटम, दयानन्द शेट्टी और आदित्य श्रीवास्तव के अलावा अन्य सभी किरदार आते जाते रहते हैं।[3][2]

सिंह जी ने फोर्बेस को सीआईडी के पन्द्रह वर्ष पूरे होने के बाद हुए साक्षात्कार में बताया कि इस धारावाहिक के शुरुआत में हर एपिसोड के लिए ₹2 लाख रुपये लगते थे, जो पन्द्रह वर्ष के बाद ₹5 लाख हो गए।[4]

स्थान

इस धारावाहिक का निर्माण का कार्य मुंबई में शुरू हुआ और इसे मुख्य रूप से यहीं बनाया जाता है। इसके साथ-साथ इसके अनेक भाग भारत के कई अन्य स्थानों में भी बनाए गए हैं। इन स्थानों में दिल्ली, जयपुर, कोलकाता, मनाली, चेन्नई, शिमला, जोधपुर, जैसलमेर, गोवा, पुणे, औरंगाबाद, कोल्हापुर, हिमाचल प्रदेश, केरल और कोच्चि आदि शामिल है।[5][6] इसके निर्माता बीपी सिंह जी ने बताया कि वे दिल्ली के संगम विहार में भी इसे बनाने के बारे में सोच रहे हैं।[7] लेकिन बहुत भीड़ के कारण सादर बाजार और जामा मस्जिद वाले जगह में इसे नहीं बना सकते। इसे दिल्ली हाट और लाजपत नगर इलाके में बनाया जाएगा। इसके बाद आगरा और मथुरा में भी अगले एपिसोड का सुटिंग होगी। इसका प्रसारण २४ से २६ जुलाई को "मर मिटेंगे" नाम से होगा।[8] इसके अलावा कुछ भागों का निर्माण विदेशों में भी हुआ है। सीआईडी की आखिरी चुनौती नामक एक छोटी श्रृंखला में महेश मांजरेकर के साथ, (जो इस भाग में एक हरगिज़ डोंगारा नामक अपराधी की भूमिका में थे) लंदन में ही बनाया गया था। २००४ में ‘सीआईडी’ के तीन प्रकरणों का निर्माण इंग्लैंड में हुआ और २०१० में ८ प्रकरणों का निर्माण स्विटजरलैंड और पेरिस में हुआ था।[9]

प्रसारण

२१ जनवरी १९९८ को रात ९:३० बजे इसका प्रसारण सोनी चैनल पर शुरू हुआ। इस धारावाहिक के २६ प्रकरण होने के पश्चात आदित्य श्रीवास्तव को एक नए किरदार वरिष्ठ निरीक्षक अभिजीत दिया गया। इसके पश्चात यह अब तक चल रहा है। इसका प्रसारण शुरू में बुधवार को रात ९:३० बजे होता था। कुछ समय बाद इसके प्रसारण का समय बदल कर शुक्रवार को रात १० बजे कर दिया गया।[10] २१ मई २०१० से इसका प्रसारण शुक्रवार के साथ साथ शनिवार को भी होने लगा।[11] ३ फरवरी २०१३ से इसका प्रसारण शुक्रवार और शनिवार के साथ साथ रविवार को भी होने लगा।[12] मई २०१६ में द कपिल शर्मा शो के कारण इसका प्रसारण कुछ सप्ताह नहीं हुआ। इसके निर्माताओं ने कहा कि द कपिल शर्मा शो नया होने के कारण उसे और लोगों तक पहुंचाने के लिए ऐसा किया गया था और यह भी कहा कि सीआईडी जल्द ही नए समय पर प्रसारित होगा।[13] ४ जून २०१६ से इसका प्रसारण फिर से शुरू हो गया और इसका समय १० बजे से बदल कर १०:३० हो गया।[14]

इसकी लोकप्रियता को देखते हुए इसे अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवादित किया गया है। इसका तेलुगू संस्करण मां टीवी में और तमिल संस्करण ज़ी तमिल में प्रसारित हो रहा है। इसके अलावा बंगाली में इसका भिन्न श्रृंखला निकाला गया है।[15][16] इसे दिसम्बर २००४ में अत्यधिक सकारात्मक प्रतिक्रिया मिला और यह ३.७ मूल्यांकन प्राप्त कर पूरे भारत में पहली बार २९वें स्थान पर रहा।[17] टीएएम अनुसंधान के अनुसार इसे सितम्बर २०१० में ५.१७ का उच्चतम मूल्यांकन मिला, जो इसके पिछले कुछ वर्षों का सबसे अधिक मूल्यांकन हैं।[18] वर्तमान में इस धारावाहिक को ४.१ के आसपास का मूल्यांकन मिल रहा है।[19][20]

कलाकार

(बाएँ से दायें) दया शेट्टी, अंशा सयद, जानवी छेड़ा, शिवाजी साटम, विनीत कुमार और आदित्य श्रीवास्तव
(बाएँ से दायें) श्रद्धा मूसले, अंशा सयद, ऋषिकेश पांडे, शिवाजी साटम, नरेंद्र गुप्ता, जानवी छेड़ा और अजय नागरथ
(बाएँ से दायें) दया शेट्टी, अक्षय कुमार, सोनाक्षी सिन्हा और शिवाजी साटम

विशेष उपस्थिति

पुरस्कार एवं कीर्तिमान

विश्व कीर्तिमान

७ नवम्बर, २००४ को पूरे १११ मिनट तक बिना कैमरे को बंद किए एक पूरी कहानी बना दी। यह ७ नवम्बर को मुंबई में शाम ६:३० से ८:२० बजे तक बनाया गया व ८ नवम्बर को शाम ८ बजे से १० बजे तक दिखाया गया। यह कीर्तिमान गिनीज विश्व कीर्तिमान पुस्तक में दर्ज कर लिया गया।[58] इसी के साथ-साथ लिमका कीर्तिमान पुस्तक में भी इसका नाम दर्ज कर लिया गया।[59]

इस प्रकार के विश्व कीर्तिमान बनाने का विचार सिंह जी को इसके ७ से ८ महीने पहले आया था। उन्होंने इस कीर्तिमान को बनाने से पहले १९८७ में मराठी कार्यक्रम एक शून्य शून्य को बिना रोके २२ मिनट का कार्यक्रम बना दिया। वर्ष २००२ में उन्होंने इस कीर्तिमान को गिनीज़ विश्व कीर्तिमान पुस्तक में दर्ज करवाने के बारे में सोचा। तब उन्हें पता चला कि इसके लिए उन्हें २५ मिनट का बिना रुके कार्यक्रम तैयार करना होगा। उन्होंने इसकी तैयारी शुरू कर दी, लेकिन उनके इस कीर्तिमान को बनाने से पूर्व ही उन्हें पता चला कि ८८ मिनट तक लगातार फिल्माकर रूसी वृत्त फिल्म यह कीर्तिमान बना चुकी है। इसके बाद बीपी सिंह ने इससे भी अधिक लम्बे कीर्तिमान बनाने के बारे में सोचा और 'विरासत' नाम का एक प्रकरण बना डाला। इसके लिए वे उसी समय से इसकी तैयारी में जुट गए। इस कीर्तिमान को बनाने के लिए सीआईडी के सभी किरदारों को ९० पन्नों का संवाद याद करना पड़ा और इस कहानी के कैमरामैन नितिन राव को २८ किलो ग्राम के कैमरे को लगातार १११ मिनट तक अपने कंधो पर रखना पड़ा, जिसमें ३ मंजिल के घर में उन्हें ऊपर से नीचे भी कई बार होना पड़ा। इसे बनाने के लिए ३४ लाख रुपए खर्च हुए। यह सीआईडी का सबसे महंगा प्रकरण था। यह एक ऐसे होटल मालिक की कहानी थी, जो भारत का अपना कारोबार समेटने के लिए दक्षिण अफ्रीका से आता है। उसे अपने वारिस की तलाश रहती है। उसकी संपत्ति में हिस्सा पाने की आस में सभी रिश्तेदार होटल में जमा हो जाते हैं। फिर एक के बाद एक खून होना शुरू हो जाता है। इस एपिसोड को कीर्तिमान बनाने के मकसद से बनाया गया था। इसमें सीआईडी के निरीक्षको के अलावा केके मेनॉन, राज जुतशी, अविनाश वाधवन, कृतिका देसाई और मुकेश रावल शामिल थे। इसे ७ नवम्बर २००४ को बिना किसी विज्ञापन के रात ८ से १० बजे तक दिखाया गया। इसके बाद सीआईडी का १० बजे का धारावाहिक शुरू हुआ।[60]

पुरस्कार

वर्ष पुरस्कार श्रेणी कलाकार टिप्पणी एवं सन्दर्भ
२००२ भारतीय टेली अकादमी पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ धारावाहिक - नाटक बृजेन्द्र पाल सिंह और प्रदीप उपूर [61]
भारतीय टेली पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व शिवाजी साटम [62]
२००३ भारतीय टेली अकादमी पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ रोमांचक / डरावना धारावाहिक बृजेन्द्र पाल सिंह और प्रदीप उपूर [63]
२००४ भारतीय टेली अकादमी पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक - नाटक बृजेन्द्र पाल सिंह [64]
भारतीय टेली अकादमी पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ रोमांचक / डरावना धारावाहिक सोनी (भारत) [64]
भारतीय टेली अकादमी पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ अभिनय रजत अरोड़ा [64]
भारतीय टेली अकादमी पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ वीडियोग्राफी बृजेन्द्र पाल सिंह [64]
२००५ भारतीय टेली अकादमी पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता - नकारात्मक भूमिका मकरंद देशपांडे [65]
२००९ भारतीय टेली अकादमी पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ रोमांचक / डरावना धारावाहिक बृजेन्द्र पाल सिंह और प्रदीप उपूर [66]
२०१० भारतीय टेली अकादमी पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ रोमांचक / डरावना धारावाहिक बृजेन्द्र पाल सिंह और प्रदीप उपूर [67]
२०१५ भारतीय टेली अकादमी पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ रोमांचक / डरावना धारावाहिक बृजेन्द्र पाल सिंह और प्रदीप उपूर [68]

सीआईडी स्पेशल ब्यूरो

यह सीआईडी कि तरह एक धारावाहिक है, जिसका प्रसारण २७ दिसम्बर २००४ से शुरू हुआ और १६८ एपिसोड प्रसारित करने के बाद ८ अगस्त २००६ में बंद हो गया। यह सोमवार व मंगलवार को रात १०:३० बजे देता था। इसके आधे घंटे पहले रात १० बजे सीआईडी देता था और उसके बाद आधे घंटे तक इस धारावाहिक का प्रसारण होता था। इसमें शिवाजी साटम, अनूप सोनी, दयानन्द शेट्टी और आदित्य श्रीवास्तव मुख्य किरदार में हैं।[69]

इसके कहानी के अनुसार सीआईडी पिछले कई वर्षों से लंबित मामलों कि जाँच करने हेतु एक नए दल का गठन करती है, जिसका नाम सीआईडी स्पेशल ब्यूरो रखा जाता है। यह दल बहुत पुराने आपराधिक मामलों की जाँच करती है। इसमें कई बार सीआईडी की कहानी को भी जोड़ कर दिखाया जाता है। इसी कारण कुछ मामलों में सीआईडी के किरदार सीआईडी स्पेशल ब्यूरो में सीआईडी स्पेशल ब्यूरो के किरदार सीआईडी में भी दिखते थे।[70]

अन्य पहल

७ जुलाई २००६ को एक राष्ट्रव्यापी खोज कार्य का प्रारम्भ किया गया। जिसे सीआईडी ऑपरेशन तलाश नाम दिया गया। जिसमें जीतने वाले को एक पुलिस निरीक्षक की भूमिका में कार्य करने का मौका दिया जाना था। १ सितम्बर २००६ को विवेक मशरू को विजेता घोषित किया गया था। इसके बाद कुछ वर्षो तक विवेक एक निरीक्षक की भूमिका में कार्य किए।[71] २६ जनवरी २०१० से वीरता को प्रोत्साहित करने और समाज में बहादुरी के कार्यों का सम्मान करने के लिए सीआईडी वीरता पुरस्कार नामक एक पुरस्कार का प्रारंभ किया गया। इसे २६ जनवरी २०१० को पहली बार साहस दिखाने वाले लोगों को दिया गया।[72] २३ जनवरी २०११ को दूसरी बार प्रदान किया गया था।[73] बड़ों के वीरता को प्रोत्साहित करने के बाद बच्चों के लिए भी एक नया उप-श्रृंखला सीआईडी छोटे हीरोज नाम से बनाया गया।[74] यह १ फरवरी २०१३ से दिखाया गया, जो सीआईडी का एक उप-श्रृंखला था। यह शुक्रवार को सीआईडी से एक घंटे पहले ९ बजे से १० बजे रात को दिखाया जाता था। इसमें बच्चो के द्वारा दिखाये गए साहस को दिखाया जाता था।[75] ३० मई २०१२ को एक साक्षात्कार के दौरान बीपी सिंह ने कहा कि वे सीआईडी पर एक फिल्म बनाने जा रहे हैं। लेकिन वे धारावाहिक के कलाकारों को ही लेकर सीआईडी पर फिल्म बनायेंगे, लेकिन एक मुख्य खलनायक को बाहर से लिया जाएगा। उन्होंने कहा, सैद्धांतिक रूप से फिल्म को इस वर्ष के अंत तक शुरू हो जाना चाहिए। चैनल के पास इसके अधिकार हैं, यदि चैनल आज अपनी सहमति देता है, तो हम इस पर अगले वर्ष की शुरुआत से काम करना शुरू कर देंगे।[76]

२१ जनवरी २०१५ को सीआईडी ने अपने यात्रा के अठारवें वर्ष में प्रवेश किया। इसे सोनी ने एक उत्सव के रूप में २६ जनवरी २०१५ को एक विशेष कार्यक्रम के रूप में बनाया। जिसमें सोनी पर पूरे दिन सीआईडी का कार्यक्रम दिखाया गया। इसके अलावा बीच बीच में सीआईडी के किरदार व अन्य लोग भी आते थे और अपने व इस धारावाहिक के बारे में बताते थे।[77]

अन्य धारावाहिकों में

सीआईडी के किरदारों ने इस धारावाहिक के अलावा भी अन्य धारावाहिकों में भी अभिनय किया है और अन्य धारावाहिकों के किरदार भी कई बार सीआईडी में आ चुके है। जैसे अदालत के प्रारम्भ में अभिजीत के ऊपर आरोप लगता है कि उसने जोरावर नाम के एक अपराधी पर ६ गोलियां चलाई और हत्या कर दी। इस कारण उसे अदालत में ले जाया जाता है, जिसमें के॰ डी॰ पाठक उसका वकील रहता है। यह सीआईडी और अदालत, दोनों धारावाहिकों में दिखाया जाता है। इसके बाद सीआईडी और के॰ डी॰ पाठक मिल कर इस मामले को सुलझा लेते हैं।[78]

तारक मेहता का उल्टा चश्मा में इसी के कुछ किरदार सीआईडी के धारावाहिक में आते है और उसके कुछ दिन बाद एक अन्य प्रकरण में इस धारावाहिक में सीआईडी के सारे किरदार आ जाते है। जिसमें दयाबेन को एसीपी प्रदूमन का नकली प्रमाणपत्र मिलता है और वह उसे लेकर सीआईडी के कार्यालय में जाती है। जहाँ सीआईडी के दल को पता चलता है की कोई एसीपी प्रद्युम्न के जैसे बनकर कोई गैर-कानूनी कार्य करना चाहता है लेकिन उस अपराधी को पकड़ते समय एक ने जेठालाल का चेहरा बना दिया और वह इस मामले में फंस जाता है। परंतु बाद में पता चलता है की वह दोषी नहीं है। इसके पश्चात गोकुलधाम में एक नया सदस्य आता है जिसके पास करोड़ों का हीरा रहता है। जिसे वह बेचना चाहता है। वह गोकुलधाम के लोगों को लालच देता है कि यदि कोई उस हीरे को बेचने में उसकी सहायता करेगा तो वह उसे एक करोड़ रुपये देगा। लेकिन हीरा बेचने से पूर्व ही वो लापता हो जाता है और उसी मामले की जाँच करते हुए सीआईडी वहाँ आती है। पूरे गोकुलधाम में सभी के घरों की तलाशी लेने के बाद उसे अय्यर और बबीता जी के घर में वह हीरा मिलता है। वह बबीता और अय्यर को पकड़ लेती है। परंतु बाद में पता चलता है की दोषी कोई और है।[79] इसके साथ-साथ कौन बनेगा करोड़पति में भी सीआईडी के तीनों पात्र (शिवाजी साटम, आदित्य श्रीवास्तव और दयानन्द शेट्टी) जा चुके हैं।[80]

इसके अलावा अदालत व सीआईडी में १२ जुलाई २०१२ को रात १० बजे और रविवार १३ जुलाई २०१२ को रात ७:३० व १० बजे सीआईडी विरुद्ध अदालत नाम से धारावाहिक का प्रसारण हुआ था। इसमें अदालत और सीआईडी दोनों को एक ही कहानी में दिखाया गया। जिसमें दिखाया गया कि डॉ॰ सालुंखे को एक सबूत मिलता है, जिसे दिखाने से पहले ही वह लापता हो जाता है। उसकी गाड़ी डीसीपी चित्रोले के घर के आगे मिलती है और घर की तलाशी में एक लाश भी मिलता है जिसे पहले डॉ॰ सालुंखे मानते हैं। सीआईडी डीसीपी चित्रोले को हिरासत में ले लेती है। जिसमें के॰ डी॰ पाठक उसे बचाता है परंतु सीआईडी उसे दोषी साबित करने का कार्य करती है। आखिरी में के॰ डी॰ पाठक और सीआईडी मिल के इस मामले को हल कर लेते हैं।[81] इसके बाद २० दिसम्बर २०१४ को ३ घंटे का प्रसारण होता है। इसका निर्देशन सीआईडी के सिबा मित्र और अदालत के रमिन्दर सूरी ने मिल कर किया है। इसे मुंबई के अलग अलग भागों में बनाया गया, जिसके लिए १५ दिन का समय लग गया।[82] इसका नाम सीआईडी विरुद्ध अदालत - कर्मयुद्ध रखा गया है, जिसमें एक और बार सीआईडी और अदालत साथ में आते हैं।[83] जिसमें एक आश्रम में एसीपी प्रद्युम्न के दोस्त की बेटी का खून हो जाता है।[84] सीआईडी को लगता है कि इसकी हत्या आत्मानन्द ने की है और वहीं के॰ डी॰ पाठक उसे बचाता है।[85] बाद में पता चलता है कि असल में हत्या किरण ने की है।[86]

समीक्षात्मक प्रतिक्रिया

एक दशक से अधिक चलने का कीर्तिमान तोड़ने के पश्चात अभी भी चल रहे इस सबसे लोकप्रिय धारावाहिक श्रृंखला वर्तमान में भी सोनी पर प्रसारित हो रहा है। इसके कई संवाद जैसे एसीपी प्रद्युमन का अब तो इसे फाँसी ही होगी। और दया का दरवाजा तोड़ने आदि अत्यधिक लोकप्रिय हो चुके हैं। यह इतना लोकप्रिय हो चुका है कि लोग इस पर कई चुट्कुले भी बना चुके हैं।[87]

दैनिक ट्रिब्यून में दिये एक साक्षात्कार में शिवाजी साटम ने कहा कि अब यह मेरी पहचान बन गया है। पर यह केवल एक धारावाहिक भर नहीं है। बच्चे और बड़े अब मुझसे सीआईडी के पात्र की तरह व्यवहार करते हैं। उन्हें लगता है कि सचमुच किसी जासूसी करने वाले समूह का हिस्सा हूँ। शायद इसलिए पिछले दो सालों से यह लगातार पुरस्कार जीत रहा है। इसे राष्ट्रपति तक की सराहना मिली है। दरअसल यह आम और ईमानदार लोगों को न्याय दिलाने वाला धारावाहिक है।[88][89] वहीं रांची एक्सप्रेस ने कहा कि सीआईडी १९९८ से लगातार चल रही है और उसे हमेशा से ही दर्शकों ने पसंद किया। जबकि २००३ में इसी चैनल में शुरू हुए एक धारावाहिक क्राइम पेट्रोल को कम लोकप्रियता के कारण बंद करना पड़ा था। लेकिन अब भी सीआईडी को उतने ही नहीं, उससे भी अधिक दर्शक मिल गए है। वर्तमान में इस धारावाहिक ने हर उम्र वर्ग को अपनी ओर आकर्षित किया है। इसी के कारण अन्य चैनलों में भी आपराधिक धारावाहिकों की संख्या में इजाफा हुआ है।[90] वहीं दयानन्द शेट्टी ने कहा कि १७ वर्षों से अधिक समय तक एक साथ काम करने से एक जुड़ाव बन गया है। सीआईडी को सबसे अधिक बच्चे पसंद करते है और इसी कारण इसमें हम लोगों ने हास्य बनाने का प्रयास किया है।[91] टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए दयानन्द जी ने बताया कि उन्हें अपने कार्यक्रम के बारे में ऑनलाइन चुटकुले पढ़ने में बहुत गर्व महसूस होता है और यह जान कर और भी खुशी होती है कि केवल दया ही नहीं बल्कि इसके अन्य सभी किरदार भी बहुत प्रसिद्ध हैं।[92]

प्रभाव

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक युवक ने सीआईडी का धारावाहिक देख कर अपनी पत्नी के साथ मिल कर अपने ही अपहरण की झूठी कहानी बना डाली। वह जहाँ काम करता था, उसी के संचालक के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा लिया। वह मुकदमे से उसे बचा कर उससे पैसे लेने की योजना बना रहा था। लेकिन पुलिस उसके पास पहुँच गई और तब उसकी योजना का पता चला।[93]

सन्दर्भ

  1. लालवानी, विक्की. ""Soaps are not my domain and I don't think I will be able to direct them well"" (अंग्रेज़ी में). इंडियन टेलिविजन. अभिगमन तिथि ९ जनवरी २००४. नामालूम प्राचल |trans_title= की उपेक्षा की गयी (|trans-title= सुझावित है) (मदद)
  2. माथुर, चांदनी (८ अप्रैल २०१४). "सीआईडी: कहानी भारत के सबसे सफल जासूसी धारावाहिक की". टेलीविज़न पोस्ट. अभिगमन तिथि १० जुलाई २०१६. Italic or bold markup not allowed in: |publisher= (मदद)
  3. सेथुरमन, श्रेया (२७ जुलाई २०१२). "Chasing criminals, cracking cases". हिंदुस्तान टाइम्स (अंग्रेज़ी में). मूल से १५ जून २०१५ को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १६ जनवरी २०१३. नामालूम प्राचल |trans_title= की उपेक्षा की गयी (|trans-title= सुझावित है) (मदद); Italic or bold markup not allowed in: |newspaper= (मदद)
  4. रघुनाथ, अभिषेक (२६ अक्टूबर २०१२). "Sony's CID: Fifteen Years and Counting" (अंग्रेज़ी में). फोर्बेस. अभिगमन तिथि १० जुलाई २०१६. नामालूम प्राचल |trans_title= की उपेक्षा की गयी (|trans-title= सुझावित है) (मदद)
  5. "CID team mistook for real one!" (अंग्रेज़ी में). टेली चक्कर. मूल से ६ जुलाई २०१६ को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ११ जनवरी २०१३. नामालूम प्राचल |trans_title= की उपेक्षा की गयी (|trans-title= सुझावित है) (मदद)
  6. "ACP Pradyuman asks cops to help them shoot in peace" (अंग्रेज़ी में). टेली चक्कर. मूल से 6 जुलाई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ११ जनवरी २०१३. नामालूम प्राचल |trans_title= की उपेक्षा की गयी (|trans-title= सुझावित है) (मदद)
  7. "Team 'CID' shoots new murder-mystery in the capital" (अंग्रेज़ी में). एबीपी न्यूज़. १४ जुलाई २०१५. अभिगमन तिथि ९ जुलाई २०१६. नामालूम प्राचल |trans_title= की उपेक्षा की गयी (|trans-title= सुझावित है) (मदद)
  8. "Sony's 'CID' looks to target viewers from north India" (अंग्रेज़ी में). इंडियन टेलीविजन. १४ जुलाई २०१५. अभिगमन तिथि ८ जुलाई २०१६. नामालूम प्राचल |trans_title= की उपेक्षा की गयी (|trans-title= सुझावित है) (मदद)
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  87. "Just What Makes CID So Popular?". रेडिफ (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि २० मार्च २०१२. नामालूम प्राचल |trans_title= की उपेक्षा की गयी (|trans-title= सुझावित है) (मदद)
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  90. "टीवी में बढ़ते आपराधिक धारावाहिक, यानी बढ़ती नकारात्मकता". रांची एक्स्प्रेस. २२ जून २०१३. अभिगमन तिथि १४ मई २०१५.
  91. "हम 'सीआईडी' को जीते हैं : दया". समाचार हिन्दी. १० अप्रैल २०१४. अभिगमन तिथि १४ मई २०१५.
  92. "I feel proud when I read the online jokes about my show" (अंग्रेज़ी में). टाइम्स ऑफ इंडिया. 21 जनवरी 2016. अभिगमन तिथि 1 जून 2016. नामालूम प्राचल |trans_title= की उपेक्षा की गयी (|trans-title= सुझावित है) (मदद); Italic or bold markup not allowed in: |publisher= (मदद)
  93. "सीआईडी टीवी सीरियल देखकर रची खुद के अपहरण की साजिश". आज तक. १६ जून २०१६. अभिगमन तिथि ९ जुलाई २०१६.

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