"पोवाड़ा": अवतरणों में अंतर
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==प्रसिद्ध पोवाड़े== |
==प्रसिद्ध पोवाड़े== |
18:21, 15 मार्च 2017 का अवतरण
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (मई 2015) स्रोत खोजें: "पोवाड़ा" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
मराठी गद्य की विधा | |
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शिवाजी द्वारा अफ़ज़ल खां का वध शिवाजी द्वारा अफ़ज़ल खां का वध, १६५९ ई. | |
गायन शैली | शौर्य गाथा |
नायक | शिवाजी |
क्षेत्र | महाराष्ट्र |
काल | १७वीं शताब्दी |
गीतकार | शाहिर |
मूल गायक | गोंधल (गोंधिया) दलित जाति के लोग |
पुनरोद्धार | महात्मा फुले |
पुनर्प्रयोग | राष्ट्रीय आन्दोलन और जनान्दोलनों का गीत |
पोवाड़ा महाराष्ट्र का प्रसिद्ध लोक गायन है। मुख्यतः यह शिवाजी महाराज के युद्ध कौशल का यशोगान तथा स्तुति है।[1] पोवाडा वीर रस के गायन एवं लेखन प्रकार है जो महाराष्ट्र में लोकप्रिय है। मूल रूप से दलित समुदायों द्वारा गाये जाने वाले गाथागीतों की इस विधा ने शिवाजी महाराज को युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया। पोवाडा का प्राचीन मराठी भाषा में अर्थ होता है गुणगान करना। मराठी में पोवाड़ा गाने वालों को शाहिर कहा जाता है। शाहिर शब्द उतना ही पुराना है जितनी कि मराठी संस्कृति। शाहिर साहित्य को मराठी कविताओं का उदयकाल कहा जाता है। मराठी भाषिको को यह स्फूर्ति देणे वाला गीत प्रकार है। भारत में इसका उदय १७वी शताब्धि में हुआ। इसमें ऐतिहासिक घटना सामने रखकर गीत की रचना की जाती है। इस गीत प्रकार की रचना करनेवाले गीतकारों को शाहिर कहां जाता है।[2]
इसी दौरान यह व्यवसाय करनेवाले जो गायक सामने आये है उन्हें गोंधली कहते है। पोवाडा मराठी साहित्य की एक प्रमुख विधा है पोवाडा जिसे गोंधल (गोंधिया) दलित जाति के लोग गाते थे पर आगे चलकर, शिवाजी के बाद, सभी जातियों के लोगों ने इसे अपना लिया। युद्धों का वर्णन पोवाडा गायकों का प्रमुख विषय होता था जिसका वे बेहद सजीव और ओजपूर्ण वर्णन करते थे, वह भीतरी कलहों और बाहरी आक्रमणों का काल था। अतः अपने आश्रयदाताओं को उनकी पूरी ताकत से युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करना, उस काल के कवि का प्रमुख कर्तव्य-सा बन गया था। लेकिन महात्मा फुले ने पोवाडा का जनजागृति के लिए इस्तेमाल किया. आजादी की लड़ाई के दिनों में और आजादी के बाद पोवाडा क्रमशः राष्ट्रीय आन्दोलन और जनान्दोलनों का गीत बन गया।
प्रसिद्ध पोवाड़े
शाहिर साहित्य के चलन का आरम्भ छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल (१६३०-१६८०) में हुआ। इनके काल में प्रथम पोवाड़ा ‘अफजल खानाचा वध’(अफजल खान का वध) १६५९ में अग्निदास द्वारा गाया गया था। इसमें शिवाजी द्वारा अफजल खान के वध का वर्णन किया गया था।(चित्रित) इसकी जानकारी महाराष्ट्र के तत्कालीन गजट में भी दर्ज है। दूसरा महत्वपूर्ण पोवाडा तानाजी मालसुरे द्वारा सिंहगढ़ पर हमला करने एवं अधिकार करने के बारे में था। इसे तुलसीदास ने गाया था। इसके बाद प्रसिद्ध पोवाड़े की गिनती में बाजी पासालकर का यमजी भास्कर द्वारा गाया हुआ पोवाड़ा। बाद में भी शिवाजी के अनेक पोवाड़ा गाए गए, जैसे शिवाजी अवतारी पुरूष, शिव प्रतिज्ञा, प्रतापगढचा रणसंग्राम, शाहिस्ताखान चा पराभव, शिवाजी महाराज पोवाड़ा, छत्रपति राजमाता जीजाबाई, शिवरांयाचे पुण्य स्मरण, सिंहगढ़, शिवराज्याभिषेक, समाजवादी शिव छत्रपति, शिव-गौरव, शिवदर्शन, पुरोगामी शिवाजी, शिवसंभव, शिवकाव्य इत्यादि।[1] इसके बाद पेशवाकाल (१७६२-१८१२) में पोवाड़ा-गायक रामजोशी थे जिन्होंने अनेक प्रसिद्ध पोवाड़े गाये। इनके अलावा अनंतफादी (१७४४-१८१९), होनाजी बाला(१७५४-१८४४) एवं प्रभाकर (१७६९-१८४३) जैसे अनेक पोवाड़ा गायक हुए हैं, जिन्होंने कई पोवाड़ा गाए। कालान्तर में यह कला पिछड़ती चली गई किन्तु लोककला के रूप में, मराठी साहित्य के विकास में पोवाड़ा की भूमिका थी।
संदर्भ
- ↑ अ आ त्रिपाठी, कुसुम (०३-०२-२०१६). "पोवाडा : वीर रस की मराठी कविता". फ़ॉर्वर्ड प्रेस.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "महाराष्ट्रीयन लोकगीते एक संग्रहण". पोवाडे.कॉम. २५-०७-२०१६.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
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