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[[चित्र:LionHeadSandstone.jpg|right|thumb|300px|बलुआ पत्थर का शैल]]
[[चित्र:LionHeadSandstone.jpg|right|thumb|300px|बलुआ पत्थर का शैल]]
'''बालुकाश्म''' या '''बलुआ पत्थर''' (सैण्डस्टोन) ऐसी दृढ़ [[शैल|शिला]] है जो मुख्यतया [[बालू]] के कणों का दबाव पाकर जम जाने से बनती है और किसी योजक पदार्थ से जुड़ी होती है। बालू के समान इसकी रचना में भी अनेक पदार्थ विभिन्न मात्रा में हो सकते हैं, किंतु इसमें अधिकांश [[स्फटिक]] ही होता है। जिस शिला में बालू के बहुत बड़े बड़े दाने मिलते हैं, उसे मिश्रपिंडाश्म और जिसमें छोटे छोटे दाने होते हैं उसे बालुमय शैल या मृण्मय शैल कहते हैं।
'''बालुकाश्म''' या '''बलुआ पत्थर''' (सैण्डस्टोन) ऐसी दृढ़ [[शैल|शिला]] है जो मुख्यतया [[बालू]] के कणों का दबाव पाकर जम जाने से बनती है और किसी योजक पदार्थ से जुड़ी होती है। बालू के समान इसकी रचना में भी अनेक पदार्थ विभिन्न मात्रा में हो सकते हैं, किंतु इसमें अधिकांश [[स्फटिक]] ही होता है। जिस शिला में बालू के बहुत बड़े बड़े दाने मिलते हैं, उसे मिश्रपिंडाश्म और जिसमें छोटे छोटे दाने होते हैं उसे बालुमय शैल या मृण्मय शैल कहते हैं।gjghjhhhhhhhh


== परिचय ==
== परिचय ==

कार्य के प्राचल

प्राचलमूल्य
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समय जब ई-मेल पते की पुष्टि की गई थी (user_emailconfirm)
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'बलुआ पत्थर'
पूर्ण पृष्ठ शीर्षक (page_prefixedtitle)
'बलुआ पत्थर'
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कार्य (action)
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सम्पादन सारांश/कारण (summary)
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'{{स्रोतहीन|date=सितंबर 2014}} [[चित्र:LionHeadSandstone.jpg|right|thumb|300px|बलुआ पत्थर का शैल]] '''बालुकाश्म''' या '''बलुआ पत्थर''' (सैण्डस्टोन) ऐसी दृढ़ [[शैल|शिला]] है जो मुख्यतया [[बालू]] के कणों का दबाव पाकर जम जाने से बनती है और किसी योजक पदार्थ से जुड़ी होती है। बालू के समान इसकी रचना में भी अनेक पदार्थ विभिन्न मात्रा में हो सकते हैं, किंतु इसमें अधिकांश [[स्फटिक]] ही होता है। जिस शिला में बालू के बहुत बड़े बड़े दाने मिलते हैं, उसे मिश्रपिंडाश्म और जिसमें छोटे छोटे दाने होते हैं उसे बालुमय शैल या मृण्मय शैल कहते हैं। == परिचय == बलुआ पत्थर में वे ही धात्विक तत्व हाते हैं, जो बालू में। स्फटिक की बहुतायत होती है, जिसके साथ प्राय: [[फ़ेल्सपार]] तथा कभी-कभी श्वेत [[अभ्रक]] भी होता है। कभी कभी पत्थर की विभिन्न परतों के बीच में अभ्रक की तह सी जमी हुई मालूम पड़ती है। [[खान]] से पत्थर निकालने में इस तह का महत्वपूर्ण योगदान है। इसी के कारण पत्थर की पतली परतें निकाली जा सकती हैं, जो फर्श बनाने के काम आती हैं। योजक पदार्थ प्राय: बारीक कैल्सिडानी सिलिका होता है, किंतु कभी कभी मूल स्फटिक भी योजक का काम करता है। ऐसी दशा में शिला स्फटिक जैसी तैयार होती है। [[कैल्साइट]], ग्लॉकोनाइट, लौह ऑक्साइड, कार्बनीय पदार्थ और अन्य अनेक प्रकार के पदार्थ भी जोड़ने का काम करते हैं, तथा अपना अपना विशिष्ट रंग प्रदान करते हैं, जैसे ग्लॉकोनाइट (glauconite) वाली शिलाएँ हरी और लोहेवाली लाल, भूरी या धूसर होती हैं। जब योजक पदार्थ चिकनी मिट्टी होता है, तब शिला प्राय: श्वेत या धूसर वर्ण की होती है और अत्यंत दृढ़ता से जमी हुई होती है। [[चित्र:Zandsteen 20x.jpg|right|thumb|300px|२० गुना आवर्धित बलुआ पत्थर]] शुद्ध बलुआ पत्थर में ९९% तक [[सिलिका]] हो सकता है। मुलायम पत्थर पीसकर बालू बनाने के काम आता है, किंतु जो बहुत दृढ़ता से पत्थर जमा होता है, उसकी [[ईंट|ईंटें]] बना ली जाती हैं। यह भट्ठियों तथा अँगीठियों में अस्तर लगाने के काम आती हैं, क्योंकि सिलिका अत्यंत तापसह होता है। [[गैनिस्टर]] (ganister) शिला इसी प्रकार की होती है। अत्यंत दृढ़तापूर्वक जमे, कुछ कम शुद्ध पत्थर [[सिल]], बट्टे और [[आटा चक्की|चक्कियाँ]] बनाने के काम आते हैं। बलुआ पत्थर दानेदार और छिद्रल होता है, इसलिए इसपर अच्छी पॉलिश नहीं की जा सकती और न बारीक काम हो सकता है, पर मोटी गढ़ाई तथा कटाई साफ और सच्ची हो सकती है। इसलिए इमारतों में इसका बहुविध उपयोग होता है। [[आगरा|आगरे]] का लाल पत्थर मुसलमानों के जमाने से ही महत्वपूर्ण इमारतों में लगाने के लिए दूर दूर तक भेजा जाता है। अब भी संगीन चिनाई में सफेद और लाल बलुआ पत्थर ही मुख्यतया प्रयुक्त होते हैं। ये प्राय: खानों से खोदकर और कभी कभी सुरंग लगाकर निकाले जाते हैं। [[पन्ना]] का सफेद पत्थर फर्शी चौकों के रूप में दूर दूर तक भेजा जाता है। इसके १०, १०, १२, १२ फुट तक के चौके निकाले जा सकते हैं। पतले चौके छत पर [[खपरैल]] की भाँति छाए जाते हैं। १० से १२ फुट पाट तक की छतों में इसकी [[धरन|धरनें]] भी रखी जाती हैं, किंतु छतों पर इस प्रकार इसका उपयोग, ढुलाई मँहगी होने के कारण, निकटस्थ क्षेत्रों तक ही सीमित है। जहाँ दूसरा अधिक कठोर पत्थर सुविधापूर्वक नहीं मिलता, वहाँ सड़कों के लिए और [[कंक्रीट]] के लिए इसकी गिट्टी भी बनाई जाती है। छिद्रल होने से इसकी परतों में भूमिगत जल एकत्र हो जाता है, अत: ये महत्वपूर्ण जलस्त्रोत होती हैं। प्राचीन भारत के महान शासक अशोक मोर्य ने अपने अधिकांश शिलालेखो हेतु बलुआ पत्थर का ही उपयोग किया था। == इन्हें भी देखें== * [[चूना पत्थर]] [[श्रेणी:पत्थर]] [[श्रेणी:शैलें]] [[श्रेणी:अवसादी शैलें]]'
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'{{स्रोतहीन|date=सितंबर 2014}} [[चित्र:LionHeadSandstone.jpg|right|thumb|300px|बलुआ पत्थर का शैल]] '''बालुकाश्म''' या '''बलुआ पत्थर''' (सैण्डस्टोन) ऐसी दृढ़ [[शैल|शिला]] है जो मुख्यतया [[बालू]] के कणों का दबाव पाकर जम जाने से बनती है और किसी योजक पदार्थ से जुड़ी होती है। बालू के समान इसकी रचना में भी अनेक पदार्थ विभिन्न मात्रा में हो सकते हैं, किंतु इसमें अधिकांश [[स्फटिक]] ही होता है। जिस शिला में बालू के बहुत बड़े बड़े दाने मिलते हैं, उसे मिश्रपिंडाश्म और जिसमें छोटे छोटे दाने होते हैं उसे बालुमय शैल या मृण्मय शैल कहते हैं।gjghjhhhhhhhh == परिचय == बलुआ पत्थर में वे ही धात्विक तत्व हाते हैं, जो बालू में। स्फटिक की बहुतायत होती है, जिसके साथ प्राय: [[फ़ेल्सपार]] तथा कभी-कभी श्वेत [[अभ्रक]] भी होता है। कभी कभी पत्थर की विभिन्न परतों के बीच में अभ्रक की तह सी जमी हुई मालूम पड़ती है। [[खान]] से पत्थर निकालने में इस तह का महत्वपूर्ण योगदान है। इसी के कारण पत्थर की पतली परतें निकाली जा सकती हैं, जो फर्श बनाने के काम आती हैं। योजक पदार्थ प्राय: बारीक कैल्सिडानी सिलिका होता है, किंतु कभी कभी मूल स्फटिक भी योजक का काम करता है। ऐसी दशा में शिला स्फटिक जैसी तैयार होती है। [[कैल्साइट]], ग्लॉकोनाइट, लौह ऑक्साइड, कार्बनीय पदार्थ और अन्य अनेक प्रकार के पदार्थ भी जोड़ने का काम करते हैं, तथा अपना अपना विशिष्ट रंग प्रदान करते हैं, जैसे ग्लॉकोनाइट (glauconite) वाली शिलाएँ हरी और लोहेवाली लाल, भूरी या धूसर होती हैं। जब योजक पदार्थ चिकनी मिट्टी होता है, तब शिला प्राय: श्वेत या धूसर वर्ण की होती है और अत्यंत दृढ़ता से जमी हुई होती है। [[चित्र:Zandsteen 20x.jpg|right|thumb|300px|२० गुना आवर्धित बलुआ पत्थर]] शुद्ध बलुआ पत्थर में ९९% तक [[सिलिका]] हो सकता है। मुलायम पत्थर पीसकर बालू बनाने के काम आता है, किंतु जो बहुत दृढ़ता से पत्थर जमा होता है, उसकी [[ईंट|ईंटें]] बना ली जाती हैं। यह भट्ठियों तथा अँगीठियों में अस्तर लगाने के काम आती हैं, क्योंकि सिलिका अत्यंत तापसह होता है। [[गैनिस्टर]] (ganister) शिला इसी प्रकार की होती है। अत्यंत दृढ़तापूर्वक जमे, कुछ कम शुद्ध पत्थर [[सिल]], बट्टे और [[आटा चक्की|चक्कियाँ]] बनाने के काम आते हैं। बलुआ पत्थर दानेदार और छिद्रल होता है, इसलिए इसपर अच्छी पॉलिश नहीं की जा सकती और न बारीक काम हो सकता है, पर मोटी गढ़ाई तथा कटाई साफ और सच्ची हो सकती है। इसलिए इमारतों में इसका बहुविध उपयोग होता है। [[आगरा|आगरे]] का लाल पत्थर मुसलमानों के जमाने से ही महत्वपूर्ण इमारतों में लगाने के लिए दूर दूर तक भेजा जाता है। अब भी संगीन चिनाई में सफेद और लाल बलुआ पत्थर ही मुख्यतया प्रयुक्त होते हैं। ये प्राय: खानों से खोदकर और कभी कभी सुरंग लगाकर निकाले जाते हैं। [[पन्ना]] का सफेद पत्थर फर्शी चौकों के रूप में दूर दूर तक भेजा जाता है। इसके १०, १०, १२, १२ फुट तक के चौके निकाले जा सकते हैं। पतले चौके छत पर [[खपरैल]] की भाँति छाए जाते हैं। १० से १२ फुट पाट तक की छतों में इसकी [[धरन|धरनें]] भी रखी जाती हैं, किंतु छतों पर इस प्रकार इसका उपयोग, ढुलाई मँहगी होने के कारण, निकटस्थ क्षेत्रों तक ही सीमित है। जहाँ दूसरा अधिक कठोर पत्थर सुविधापूर्वक नहीं मिलता, वहाँ सड़कों के लिए और [[कंक्रीट]] के लिए इसकी गिट्टी भी बनाई जाती है। छिद्रल होने से इसकी परतों में भूमिगत जल एकत्र हो जाता है, अत: ये महत्वपूर्ण जलस्त्रोत होती हैं। प्राचीन भारत के महान शासक अशोक मोर्य ने अपने अधिकांश शिलालेखो हेतु बलुआ पत्थर का ही उपयोग किया था। == इन्हें भी देखें== * [[चूना पत्थर]] [[श्रेणी:पत्थर]] [[श्रेणी:शैलें]] [[श्रेणी:अवसादी शैलें]]'
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'@@ -2,5 +2,5 @@ [[चित्र:LionHeadSandstone.jpg|right|thumb|300px|बलुआ पत्थर का शैल]] -'''बालुकाश्म''' या '''बलुआ पत्थर''' (सैण्डस्टोन) ऐसी दृढ़ [[शैल|शिला]] है जो मुख्यतया [[बालू]] के कणों का दबाव पाकर जम जाने से बनती है और किसी योजक पदार्थ से जुड़ी होती है। बालू के समान इसकी रचना में भी अनेक पदार्थ विभिन्न मात्रा में हो सकते हैं, किंतु इसमें अधिकांश [[स्फटिक]] ही होता है। जिस शिला में बालू के बहुत बड़े बड़े दाने मिलते हैं, उसे मिश्रपिंडाश्म और जिसमें छोटे छोटे दाने होते हैं उसे बालुमय शैल या मृण्मय शैल कहते हैं। +'''बालुकाश्म''' या '''बलुआ पत्थर''' (सैण्डस्टोन) ऐसी दृढ़ [[शैल|शिला]] है जो मुख्यतया [[बालू]] के कणों का दबाव पाकर जम जाने से बनती है और किसी योजक पदार्थ से जुड़ी होती है। बालू के समान इसकी रचना में भी अनेक पदार्थ विभिन्न मात्रा में हो सकते हैं, किंतु इसमें अधिकांश [[स्फटिक]] ही होता है। जिस शिला में बालू के बहुत बड़े बड़े दाने मिलते हैं, उसे मिश्रपिंडाश्म और जिसमें छोटे छोटे दाने होते हैं उसे बालुमय शैल या मृण्मय शैल कहते हैं।gjghjhhhhhhhh == परिचय == '
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