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'''तंवर''' अथवा '''तोमर''' एक प्राचिन गुर्जर वंश है।{{sfn|चन्द्र बरदाई कृत पृथ्वीराज रासो}}{{ sfn|D R Bhandarkar, Gurjaras, J B B R A S, Vol. 21, 1903, According to Chandra Bardai, Prithviraj Raso, the monastery of Gurjar-Pratihar, Chalukya / Solanki, Parmar / Panwar and Chauhan were the Gurjars of Huna origin. Hornelo Historians consider Tomars Chalukyas as the Gurjar of Hun's origin}}{{sfn|A. R. Rudolf Hornle, “The Gurjara clans, some problems of ancient Indian History” No. III. JRAS, 1905, pp 1-32}}
''' तोमर''' तंवर, या कुंतल उत्तर पश्चिम भारत का एक [[जाट]]<ref> B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.244, s.n.239</ref> ओर [[राजपूत]]<ref>Rajputane ka Itihas ( History of Rajputana), Publisher: Vaidika Yantralaya, Ajmer 1927.</ref> वंश है। तोमरो का मानना है कि वे चन्द्रवन्शी है। इन्होंने वर्तमान [[दिल्ली]] की स्थापना '' दिहिलिका'' के नाम से की थी।<ref>books.google.es/books/about/Prithviraj_raso.html?id=4ymMbwAACAAJ&redir_esc=y</ref>
हिंदी में एक कहावत है "दिली तंवरो की" जिसका अर्थ है कि दिल्ली तंवरो के अंतर्गत आता है।{{sfn|डी.सी.गांगुली|1981|p=704}}दिल्ली के शुरुआती इतिहास का स्थान, अभी भी तंवर गूजरो द्वारा बसा हुआ है। {{sfn|Tod, Annals and antiquities of Rajasthan, Edit. William Crooke, Vol. I, Introduction}}


== परिचय ==
== परिचय ==
दिल्ली के महरौली को पहले मिहिरावली के रूप में जाना जाता था जिसका अर्थ था मिहिरों (गुर्जरो) का निवास या मिहिरों के घरों की पंक्ति (मिहिरो वाली)। इसे हुण सम्राट मिहिरकुल द्वारा स्थापित किया गया था क्योंकि '''मिहिर''' हुणो का दूसरा नाम है। महरौली, 7 प्राचीन शहरों में से एक है, जो वर्तमान दिल्ली राज्य को बनाता है।दिल्ली से सटे फरीदाबाद जिले के महरौली से दूर दिल्लीपति राजा अनंगपाल तंवर के नाम पर गुर्जर गाँव अनंगपुर है। दिल्ली के महरौली क्षेत्र के बारे में पहले से ही उल्लेख है कि अभी भी तोमरा / तंवर गुर्जरो के बारह गाँव हैं तथा दिल्ली से सटे राज्य मे 75 गांव है। जो इस धारणा को मजबूत करते हैं कि यह मूल रूप से गुर्जर कबीला था। जिनमें तंवर/तोमरो को पिहोवा शिलालेख के अनुसार हुणो का वंशज कहा गया है।{{sfn|Sailendra Nath Sen|1999|p=339}} तोमर/तंवरो को सम्राट मिहिरकुल के पिता, तोरमाण/तोमराण हूण का वंशज माना जाता है।{{sfn|Dilip Kumar Ganguly|1984|pp=116-117}} तोमर / तंवर प्रमुख अनंगपाल ने महरौली के लालकोट किले का निर्माण किया और बाद में अनंगपाल तंवर द्वितीय ने 11वी सदी मे अपनी राजधानी को कन्नौज से लालकोट ले आया। कन्नौज शूरू से ही हूणो की राजधानी रही। हूणवंशी सम्राट नागभट के अरबो से लगातार युध्द जीतने और देश की रक्षा करने पर ही उनको प्रतिहार (रक्षक) की उपाधी मिली और इनके गुर्जर साम्राज्य को "गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य" कहा गया। गुर्जर प्रतिहार शासको की राजधानी भी कन्नोज ही थी।{{sfn|A.M.T. Jackson, Binhamal (article), Bombay Gazetteer section 1 part 1, Bombay, 1896}} {{sfn|Vincent A. Smith, The Oxford History of India, Fourth Edition, Delhi}}
पुराणों से प्रतीत होता है कि आरंभ में तोमरों का निवास [[हिमालय]] के निकटस्थ किसी उत्तरी प्रदेश में था। किंतु १०वीं शताब्दी तक ये [[करनाल]] तक पहुँच चुके थे। [[थानेश्वर]] में भी इनका राज्य था। उस समय उत्तर भारत में चौहान राजवन्श का साम्राज्य था। उन्हीं के सामंत के रूप में तंवरों ने दक्षिण की ओर अग्रसर होना आरम्भ किया।{{cn}}


दिल्ली का तंवर / तोमर वंश अनंगपाल तोमर- II तक रहा। अनंगपाल तंवर द्वितीय ने अपनी बेटी के बेटे (अजमेर के राजा का पुत्र) को गुर्जर राजा पृथ्वीराज चौहान को वारिस के रूप में नियुक्त किया। कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि जब तक उनके दादा जीवित थे तब तक पृथ्वीराज महज एक कार्यवाहक राजा थे। पृथ्वीराज को दिल्ली में कभी ताज पहनाया नहीं गया था, इसलिए यह देखने के लिए वजन जोड़ा गया कि चौहान शासक ने अपने नाना से सिंहासन की रक्षा की। अनंगपाल तंवर द्वितीय के 23 भाई थे और उनमें से प्रत्येक का अपना क्षेत्र था। बर्ड्स (या जगस) द्वारा रखे गए रिकॉर्ड के अनुसार, राजा अनंगपाल तंवर ने पृथ्वीराज चौहान को केवल एक धार्मिक यात्रा पर जाते समय कार्यवाहक के रूप में बनाया, क्योंकि उस समय उनके अपने बेटे बहुत छोटे थे। जब राजा अनंगपाल तंवर वापस लौटे, तो पृथ्वीराज ने अपने नाना को राज्य सौंपने से इनकार कर दिया।
दिल्ली में उनके अधिकार का समय अनिश्चित है। किंतु विक्रम की १०वीं और ११वीं शतियों में हमें साँभर के चौहानों और तोमरों के संघर्ष का उल्लेख मिलता है। तोमरेश रुद्र चौहान राजा चंदन के हाथों मारा गया। तंत्रपाल तोमर चौहान वाक्पति से पराजित हुआ। वाक्पति के पुत्र सिंहराज ने तोमरेश सलवण का वध किया। किंतु चौहान सिंहराज भी कुछ समय के बाद मारा गया। बहुत संभव है कि सिंहराज की मृत्यु में तोमरों का कुछ हाथ रहा हो। ऐसा प्रतीत होता है कि तोमर इस समय दिल्ली के स्वामी बन चुके थे। गज़नवी वंश के आरंभिक आक्रमणों के समय दिल्ली-थानेश्वर का तोमर वंश पर्याप्त समुन्नत अवस्था में था।{{cn}}
आज गुर्जरों के दिल्ली के महरौली क्षेत्र मे ही 12 गाँव तोमर या तंवर गुर्जर हैं जो इस धारणा को मजबूत करते हैं कि यह मूल रूप से गुर्जर कबीला था। ये गुर्जर तंवर आज़ादी के पहले युद्ध के दौरान 1857 में अंग्रेजों के लिए सबसे मुश्किल विद्रोही साबित हुए थे, जिसकी शुरुआत मेरठ के कोतवाल (पुलिस प्रमुख) 'कोतवाल धन सिंह गुर्जर' ने की थी। उन्होंने 12 दिनों के लिए मैटलफ़ेफ़ हाउस पर कब्जा कर लिया और ब्रिटिश सेनाओं को सभी आपूर्ति काट दी और दिल्ली के लिए स्वतंत्रता की घोषणा की।{{sfn|Tod, Annals and antiquities of Rajasthan, Edit. William Crooke, Vol. I, Introduction}}

तोमरराज ने थानेश्वर को महमूद से बचाने का प्रयत्न भी किया, यद्यपि उसे सफलता न मिली। सन् १०३८ ईo (संo १०९५) महमूद के पुत्र मसूद ने हांसी पर अधिकार कर लिया। मसूद के पुत्र मजदूद ने थानेश्वर को हस्तगत किया। दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी होने लगी। ऐसा प्रतीत होता था कि मुसलमान दिल्ली राज्य की समाप्ति किए बिना चैन न लेंगे। किंतु तोमरों ने साहस से काम लिया। तोमरराज महीपाल ने केवल हांसी और थानेश्वर के दुर्ग ही हस्तगत न किए; उसकी वीर वाहिनी ने काँगड़े पर भी अपनी विजयध्वजा कुछ समय के लिये फहरा दी। लाहौर भी तँवरों के हाथों से भाग्यवशात् ही बच गया।{{cn}}

तोमरों की इस विजय से केवल विद्वेषाग्नि ही भड़की। तोमरों पर इधर उधर से आक्रमण होने लगे। तँवरों ने इनका यथाशक्ति उत्तर दिया। संवत् ११८९ (सन् ११३२) में रचित [[श्रीधर कवि]] के पार्श्वनाथचरित् से प्रतीत होता है कि उस समय तोमरों की राजधानी दिल्ली समृद्ध नगरी थी और तँवरराज अनंगपाल अपने शौर्य आदि गुणों के कारण सर्वत्र विख्यात था। द्वितीय अनंगपाल ने मेहरोली के लौह स्तंभ की दिल्ली में स्थापना की। शायद इसी राजा के समय तँवरों ने अपनी नीति बदली। [[बीसलदेव तृतीय]] न संवत् १२०८ (सन् ११५१ ईo) में तोमरों को हरा कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इसके बाद तँवर चौहानों के सामंतों के रूप में दिल्ली में राज्य करते रहे। {{cn}} [[पृथ्वीराज चौहान]] की पराजय के बाद दिल्ली पर मुसलमानों का अधिकार हुआ।


== दिल्ली के तोमर राजा ==
# [[अनंगपाल]] प्रथम 736 ई
# विशाल 752
# गंगेय 772
# पथ्वीमल 793
# जगदेव 812
# नरपाल 833
# उदयसंघ 848
# जयदास 863
# वाछाल 879
# पावक 901
# विहंगपाल 923
# तोलपाल 944
# गोपाल 965
# सुलाखन 983
# जसपाल 1009
# कंवरपाल 1025 (मसूद ने हांसी पर कुछ दिन कब्जा किया था 1038 में)
# अनंगपाल द्वितीय 1046 (1052 महरौली के लौह स्तंभ पर शिलालेख]])
# तेजपाल 1076
# महीपाल 1100
# दकतपाल (अर्कपाल भी कहा जाता है) 1115 A.D.-1046 (1052 [[महरौली]] के [[लौह स्तंभ]] पर [[शिलालेख]])

==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
* दशरथ शर्मा : दिल्ली का तोमर राज्य, राजस्थान भारती, भाग ३, अंक ३, ४, पृo १७२६

==इन्हें भी देखें==
*[[ग्वालियर के तोमर]]

{{जाट गोत्र}}

[[श्रेणी:राजवंश]]
[[श्रेणी:वंश]]

कार्य के प्राचल

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कार्य (action)
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'''' तोमर''' तंवर, या कुंतल उत्तर पश्चिम भारत का एक [[जाट]]<ref> B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.244, s.n.239</ref> ओर [[राजपूत]]<ref>Rajputane ka Itihas ( History of Rajputana), Publisher: Vaidika Yantralaya, Ajmer 1927.</ref> वंश है। तोमरो का मानना है कि वे चन्द्रवन्शी है। इन्होंने वर्तमान [[दिल्ली]] की स्थापना '' दिहिलिका'' के नाम से की थी।<ref>books.google.es/books/about/Prithviraj_raso.html?id=4ymMbwAACAAJ&redir_esc=y</ref> == परिचय == पुराणों से प्रतीत होता है कि आरंभ में तोमरों का निवास [[हिमालय]] के निकटस्थ किसी उत्तरी प्रदेश में था। किंतु १०वीं शताब्दी तक ये [[करनाल]] तक पहुँच चुके थे। [[थानेश्वर]] में भी इनका राज्य था। उस समय उत्तर भारत में चौहान राजवन्श का साम्राज्य था। उन्हीं के सामंत के रूप में तंवरों ने दक्षिण की ओर अग्रसर होना आरम्भ किया।{{cn}} दिल्ली में उनके अधिकार का समय अनिश्चित है। किंतु विक्रम की १०वीं और ११वीं शतियों में हमें साँभर के चौहानों और तोमरों के संघर्ष का उल्लेख मिलता है। तोमरेश रुद्र चौहान राजा चंदन के हाथों मारा गया। तंत्रपाल तोमर चौहान वाक्पति से पराजित हुआ। वाक्पति के पुत्र सिंहराज ने तोमरेश सलवण का वध किया। किंतु चौहान सिंहराज भी कुछ समय के बाद मारा गया। बहुत संभव है कि सिंहराज की मृत्यु में तोमरों का कुछ हाथ रहा हो। ऐसा प्रतीत होता है कि तोमर इस समय दिल्ली के स्वामी बन चुके थे। गज़नवी वंश के आरंभिक आक्रमणों के समय दिल्ली-थानेश्वर का तोमर वंश पर्याप्त समुन्नत अवस्था में था।{{cn}} तोमरराज ने थानेश्वर को महमूद से बचाने का प्रयत्न भी किया, यद्यपि उसे सफलता न मिली। सन् १०३८ ईo (संo १०९५) महमूद के पुत्र मसूद ने हांसी पर अधिकार कर लिया। मसूद के पुत्र मजदूद ने थानेश्वर को हस्तगत किया। दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी होने लगी। ऐसा प्रतीत होता था कि मुसलमान दिल्ली राज्य की समाप्ति किए बिना चैन न लेंगे। किंतु तोमरों ने साहस से काम लिया। तोमरराज महीपाल ने केवल हांसी और थानेश्वर के दुर्ग ही हस्तगत न किए; उसकी वीर वाहिनी ने काँगड़े पर भी अपनी विजयध्वजा कुछ समय के लिये फहरा दी। लाहौर भी तँवरों के हाथों से भाग्यवशात् ही बच गया।{{cn}} तोमरों की इस विजय से केवल विद्वेषाग्नि ही भड़की। तोमरों पर इधर उधर से आक्रमण होने लगे। तँवरों ने इनका यथाशक्ति उत्तर दिया। संवत् ११८९ (सन् ११३२) में रचित [[श्रीधर कवि]] के पार्श्वनाथचरित् से प्रतीत होता है कि उस समय तोमरों की राजधानी दिल्ली समृद्ध नगरी थी और तँवरराज अनंगपाल अपने शौर्य आदि गुणों के कारण सर्वत्र विख्यात था। द्वितीय अनंगपाल ने मेहरोली के लौह स्तंभ की दिल्ली में स्थापना की। शायद इसी राजा के समय तँवरों ने अपनी नीति बदली। [[बीसलदेव तृतीय]] न संवत् १२०८ (सन् ११५१ ईo) में तोमरों को हरा कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इसके बाद तँवर चौहानों के सामंतों के रूप में दिल्ली में राज्य करते रहे। {{cn}} [[पृथ्वीराज चौहान]] की पराजय के बाद दिल्ली पर मुसलमानों का अधिकार हुआ। == दिल्ली के तोमर राजा == # [[अनंगपाल]] प्रथम 736 ई # विशाल 752 # गंगेय 772 # पथ्वीमल 793 # जगदेव 812 # नरपाल 833 # उदयसंघ 848 # जयदास 863 # वाछाल 879 # पावक 901 # विहंगपाल 923 # तोलपाल 944 # गोपाल 965 # सुलाखन 983 # जसपाल 1009 # कंवरपाल 1025 (मसूद ने हांसी पर कुछ दिन कब्जा किया था 1038 में) # अनंगपाल द्वितीय 1046 (1052 महरौली के लौह स्तंभ पर शिलालेख]]) # तेजपाल 1076 # महीपाल 1100 # दकतपाल (अर्कपाल भी कहा जाता है) 1115 A.D.-1046 (1052 [[महरौली]] के [[लौह स्तंभ]] पर [[शिलालेख]]) ==सन्दर्भ== {{टिप्पणीसूची}} * दशरथ शर्मा : दिल्ली का तोमर राज्य, राजस्थान भारती, भाग ३, अंक ३, ४, पृo १७२६ ==इन्हें भी देखें== *[[ग्वालियर के तोमर]] {{जाट गोत्र}} [[श्रेणी:राजवंश]] [[श्रेणी:वंश]]'
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''''तंवर''' अथवा '''तोमर''' एक प्राचिन गुर्जर वंश है।{{sfn|चन्द्र बरदाई कृत पृथ्वीराज रासो}}{{ sfn|D R Bhandarkar, Gurjaras, J B B R A S, Vol. 21, 1903, According to Chandra Bardai, Prithviraj Raso, the monastery of Gurjar-Pratihar, Chalukya / Solanki, Parmar / Panwar and Chauhan were the Gurjars of Huna origin. Hornelo Historians consider Tomars Chalukyas as the Gurjar of Hun's origin}}{{sfn|A. R. Rudolf Hornle, “The Gurjara clans, some problems of ancient Indian History” No. III. JRAS, 1905, pp 1-32}} हिंदी में एक कहावत है "दिली तंवरो की" जिसका अर्थ है कि दिल्ली तंवरो के अंतर्गत आता है।{{sfn|डी.सी.गांगुली|1981|p=704}}दिल्ली के शुरुआती इतिहास का स्थान, अभी भी तंवर गूजरो द्वारा बसा हुआ है। {{sfn|Tod, Annals and antiquities of Rajasthan, Edit. William Crooke, Vol. I, Introduction}} == परिचय == दिल्ली के महरौली को पहले मिहिरावली के रूप में जाना जाता था जिसका अर्थ था मिहिरों (गुर्जरो) का निवास या मिहिरों के घरों की पंक्ति (मिहिरो वाली)। इसे हुण सम्राट मिहिरकुल द्वारा स्थापित किया गया था क्योंकि '''मिहिर''' हुणो का दूसरा नाम है। महरौली, 7 प्राचीन शहरों में से एक है, जो वर्तमान दिल्ली राज्य को बनाता है।दिल्ली से सटे फरीदाबाद जिले के महरौली से दूर दिल्लीपति राजा अनंगपाल तंवर के नाम पर गुर्जर गाँव अनंगपुर है। दिल्ली के महरौली क्षेत्र के बारे में पहले से ही उल्लेख है कि अभी भी तोमरा / तंवर गुर्जरो के बारह गाँव हैं तथा दिल्ली से सटे राज्य मे 75 गांव है। जो इस धारणा को मजबूत करते हैं कि यह मूल रूप से गुर्जर कबीला था। जिनमें तंवर/तोमरो को पिहोवा शिलालेख के अनुसार हुणो का वंशज कहा गया है।{{sfn|Sailendra Nath Sen|1999|p=339}} तोमर/तंवरो को सम्राट मिहिरकुल के पिता, तोरमाण/तोमराण हूण का वंशज माना जाता है।{{sfn|Dilip Kumar Ganguly|1984|pp=116-117}} तोमर / तंवर प्रमुख अनंगपाल ने महरौली के लालकोट किले का निर्माण किया और बाद में अनंगपाल तंवर द्वितीय ने 11वी सदी मे अपनी राजधानी को कन्नौज से लालकोट ले आया। कन्नौज शूरू से ही हूणो की राजधानी रही। हूणवंशी सम्राट नागभट के अरबो से लगातार युध्द जीतने और देश की रक्षा करने पर ही उनको प्रतिहार (रक्षक) की उपाधी मिली और इनके गुर्जर साम्राज्य को "गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य" कहा गया। गुर्जर प्रतिहार शासको की राजधानी भी कन्नोज ही थी।{{sfn|A.M.T. Jackson, Binhamal (article), Bombay Gazetteer section 1 part 1, Bombay, 1896}} {{sfn|Vincent A. Smith, The Oxford History of India, Fourth Edition, Delhi}} दिल्ली का तंवर / तोमर वंश अनंगपाल तोमर- II तक रहा। अनंगपाल तंवर द्वितीय ने अपनी बेटी के बेटे (अजमेर के राजा का पुत्र) को गुर्जर राजा पृथ्वीराज चौहान को वारिस के रूप में नियुक्त किया। कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि जब तक उनके दादा जीवित थे तब तक पृथ्वीराज महज एक कार्यवाहक राजा थे। पृथ्वीराज को दिल्ली में कभी ताज पहनाया नहीं गया था, इसलिए यह देखने के लिए वजन जोड़ा गया कि चौहान शासक ने अपने नाना से सिंहासन की रक्षा की। अनंगपाल तंवर द्वितीय के 23 भाई थे और उनमें से प्रत्येक का अपना क्षेत्र था। बर्ड्स (या जगस) द्वारा रखे गए रिकॉर्ड के अनुसार, राजा अनंगपाल तंवर ने पृथ्वीराज चौहान को केवल एक धार्मिक यात्रा पर जाते समय कार्यवाहक के रूप में बनाया, क्योंकि उस समय उनके अपने बेटे बहुत छोटे थे। जब राजा अनंगपाल तंवर वापस लौटे, तो पृथ्वीराज ने अपने नाना को राज्य सौंपने से इनकार कर दिया। आज गुर्जरों के दिल्ली के महरौली क्षेत्र मे ही 12 गाँव तोमर या तंवर गुर्जर हैं जो इस धारणा को मजबूत करते हैं कि यह मूल रूप से गुर्जर कबीला था। ये गुर्जर तंवर आज़ादी के पहले युद्ध के दौरान 1857 में अंग्रेजों के लिए सबसे मुश्किल विद्रोही साबित हुए थे, जिसकी शुरुआत मेरठ के कोतवाल (पुलिस प्रमुख) 'कोतवाल धन सिंह गुर्जर' ने की थी। उन्होंने 12 दिनों के लिए मैटलफ़ेफ़ हाउस पर कब्जा कर लिया और ब्रिटिश सेनाओं को सभी आपूर्ति काट दी और दिल्ली के लिए स्वतंत्रता की घोषणा की।{{sfn|Tod, Annals and antiquities of Rajasthan, Edit. William Crooke, Vol. I, Introduction}}'
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'@@ -1,45 +1,8 @@ -''' तोमर''' तंवर, या कुंतल उत्तर पश्चिम भारत का एक [[जाट]]<ref> B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.244, s.n.239</ref> ओर [[राजपूत]]<ref>Rajputane ka Itihas ( History of Rajputana), Publisher: Vaidika Yantralaya, Ajmer 1927.</ref> वंश है। तोमरो का मानना है कि वे चन्द्रवन्शी है। इन्होंने वर्तमान [[दिल्ली]] की स्थापना '' दिहिलिका'' के नाम से की थी।<ref>books.google.es/books/about/Prithviraj_raso.html?id=4ymMbwAACAAJ&redir_esc=y</ref> +'''तंवर''' अथवा '''तोमर''' एक प्राचिन गुर्जर वंश है।{{sfn|चन्द्र बरदाई कृत पृथ्वीराज रासो}}{{ sfn|D R Bhandarkar, Gurjaras, J B B R A S, Vol. 21, 1903, According to Chandra Bardai, Prithviraj Raso, the monastery of Gurjar-Pratihar, Chalukya / Solanki, Parmar / Panwar and Chauhan were the Gurjars of Huna origin. Hornelo Historians consider Tomars Chalukyas as the Gurjar of Hun's origin}}{{sfn|A. R. Rudolf Hornle, “The Gurjara clans, some problems of ancient Indian History” No. III. JRAS, 1905, pp 1-32}} +हिंदी में एक कहावत है "दिली तंवरो की" जिसका अर्थ है कि दिल्ली तंवरो के अंतर्गत आता है।{{sfn|डी.सी.गांगुली|1981|p=704}}दिल्ली के शुरुआती इतिहास का स्थान, अभी भी तंवर गूजरो द्वारा बसा हुआ है। {{sfn|Tod, Annals and antiquities of Rajasthan, Edit. William Crooke, Vol. I, Introduction}} == परिचय == -पुराणों से प्रतीत होता है कि आरंभ में तोमरों का निवास [[हिमालय]] के निकटस्थ किसी उत्तरी प्रदेश में था। किंतु १०वीं शताब्दी तक ये [[करनाल]] तक पहुँच चुके थे। [[थानेश्वर]] में भी इनका राज्य था। उस समय उत्तर भारत में चौहान राजवन्श का साम्राज्य था। उन्हीं के सामंत के रूप में तंवरों ने दक्षिण की ओर अग्रसर होना आरम्भ किया।{{cn}} +दिल्ली के महरौली को पहले मिहिरावली के रूप में जाना जाता था जिसका अर्थ था मिहिरों (गुर्जरो) का निवास या मिहिरों के घरों की पंक्ति (मिहिरो वाली)। इसे हुण सम्राट मिहिरकुल द्वारा स्थापित किया गया था क्योंकि '''मिहिर''' हुणो का दूसरा नाम है। महरौली, 7 प्राचीन शहरों में से एक है, जो वर्तमान दिल्ली राज्य को बनाता है।दिल्ली से सटे फरीदाबाद जिले के महरौली से दूर दिल्लीपति राजा अनंगपाल तंवर के नाम पर गुर्जर गाँव अनंगपुर है। दिल्ली के महरौली क्षेत्र के बारे में पहले से ही उल्लेख है कि अभी भी तोमरा / तंवर गुर्जरो के बारह गाँव हैं तथा दिल्ली से सटे राज्य मे 75 गांव है। जो इस धारणा को मजबूत करते हैं कि यह मूल रूप से गुर्जर कबीला था। जिनमें तंवर/तोमरो को पिहोवा शिलालेख के अनुसार हुणो का वंशज कहा गया है।{{sfn|Sailendra Nath Sen|1999|p=339}} तोमर/तंवरो को सम्राट मिहिरकुल के पिता, तोरमाण/तोमराण हूण का वंशज माना जाता है।{{sfn|Dilip Kumar Ganguly|1984|pp=116-117}} तोमर / तंवर प्रमुख अनंगपाल ने महरौली के लालकोट किले का निर्माण किया और बाद में अनंगपाल तंवर द्वितीय ने 11वी सदी मे अपनी राजधानी को कन्नौज से लालकोट ले आया। कन्नौज शूरू से ही हूणो की राजधानी रही। हूणवंशी सम्राट नागभट के अरबो से लगातार युध्द जीतने और देश की रक्षा करने पर ही उनको प्रतिहार (रक्षक) की उपाधी मिली और इनके गुर्जर साम्राज्य को "गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य" कहा गया। गुर्जर प्रतिहार शासको की राजधानी भी कन्नोज ही थी।{{sfn|A.M.T. Jackson, Binhamal (article), Bombay Gazetteer section 1 part 1, Bombay, 1896}} {{sfn|Vincent A. Smith, The Oxford History of India, Fourth Edition, Delhi}} -दिल्ली में उनके अधिकार का समय अनिश्चित है। किंतु विक्रम की १०वीं और ११वीं शतियों में हमें साँभर के चौहानों और तोमरों के संघर्ष का उल्लेख मिलता है। तोमरेश रुद्र चौहान राजा चंदन के हाथों मारा गया। तंत्रपाल तोमर चौहान वाक्पति से पराजित हुआ। वाक्पति के पुत्र सिंहराज ने तोमरेश सलवण का वध किया। किंतु चौहान सिंहराज भी कुछ समय के बाद मारा गया। बहुत संभव है कि सिंहराज की मृत्यु में तोमरों का कुछ हाथ रहा हो। ऐसा प्रतीत होता है कि तोमर इस समय दिल्ली के स्वामी बन चुके थे। गज़नवी वंश के आरंभिक आक्रमणों के समय दिल्ली-थानेश्वर का तोमर वंश पर्याप्त समुन्नत अवस्था में था।{{cn}} - -तोमरराज ने थानेश्वर को महमूद से बचाने का प्रयत्न भी किया, यद्यपि उसे सफलता न मिली। सन् १०३८ ईo (संo १०९५) महमूद के पुत्र मसूद ने हांसी पर अधिकार कर लिया। मसूद के पुत्र मजदूद ने थानेश्वर को हस्तगत किया। दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी होने लगी। ऐसा प्रतीत होता था कि मुसलमान दिल्ली राज्य की समाप्ति किए बिना चैन न लेंगे। किंतु तोमरों ने साहस से काम लिया। तोमरराज महीपाल ने केवल हांसी और थानेश्वर के दुर्ग ही हस्तगत न किए; उसकी वीर वाहिनी ने काँगड़े पर भी अपनी विजयध्वजा कुछ समय के लिये फहरा दी। लाहौर भी तँवरों के हाथों से भाग्यवशात् ही बच गया।{{cn}} - -तोमरों की इस विजय से केवल विद्वेषाग्नि ही भड़की। तोमरों पर इधर उधर से आक्रमण होने लगे। तँवरों ने इनका यथाशक्ति उत्तर दिया। संवत् ११८९ (सन् ११३२) में रचित [[श्रीधर कवि]] के पार्श्वनाथचरित् से प्रतीत होता है कि उस समय तोमरों की राजधानी दिल्ली समृद्ध नगरी थी और तँवरराज अनंगपाल अपने शौर्य आदि गुणों के कारण सर्वत्र विख्यात था। द्वितीय अनंगपाल ने मेहरोली के लौह स्तंभ की दिल्ली में स्थापना की। शायद इसी राजा के समय तँवरों ने अपनी नीति बदली। [[बीसलदेव तृतीय]] न संवत् १२०८ (सन् ११५१ ईo) में तोमरों को हरा कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इसके बाद तँवर चौहानों के सामंतों के रूप में दिल्ली में राज्य करते रहे। {{cn}} [[पृथ्वीराज चौहान]] की पराजय के बाद दिल्ली पर मुसलमानों का अधिकार हुआ। - - -== दिल्ली के तोमर राजा == -# [[अनंगपाल]] प्रथम 736 ई -# विशाल 752 -# गंगेय 772 -# पथ्वीमल 793 -# जगदेव 812 -# नरपाल 833 -# उदयसंघ 848 -# जयदास 863 -# वाछाल 879 -# पावक 901 -# विहंगपाल 923 -# तोलपाल 944 -# गोपाल 965 -# सुलाखन 983 -# जसपाल 1009 -# कंवरपाल 1025 (मसूद ने हांसी पर कुछ दिन कब्जा किया था 1038 में) -# अनंगपाल द्वितीय 1046 (1052 महरौली के लौह स्तंभ पर शिलालेख]]) -# तेजपाल 1076 -# महीपाल 1100 -# दकतपाल (अर्कपाल भी कहा जाता है) 1115 A.D.-1046 (1052 [[महरौली]] के [[लौह स्तंभ]] पर [[शिलालेख]]) - -==सन्दर्भ== -{{टिप्पणीसूची}} -* दशरथ शर्मा : दिल्ली का तोमर राज्य, राजस्थान भारती, भाग ३, अंक ३, ४, पृo १७२६ - -==इन्हें भी देखें== -*[[ग्वालियर के तोमर]] - -{{जाट गोत्र}} - -[[श्रेणी:राजवंश]] -[[श्रेणी:वंश]] +दिल्ली का तंवर / तोमर वंश अनंगपाल तोमर- II तक रहा। अनंगपाल तंवर द्वितीय ने अपनी बेटी के बेटे (अजमेर के राजा का पुत्र) को गुर्जर राजा पृथ्वीराज चौहान को वारिस के रूप में नियुक्त किया। कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि जब तक उनके दादा जीवित थे तब तक पृथ्वीराज महज एक कार्यवाहक राजा थे। पृथ्वीराज को दिल्ली में कभी ताज पहनाया नहीं गया था, इसलिए यह देखने के लिए वजन जोड़ा गया कि चौहान शासक ने अपने नाना से सिंहासन की रक्षा की। अनंगपाल तंवर द्वितीय के 23 भाई थे और उनमें से प्रत्येक का अपना क्षेत्र था। बर्ड्स (या जगस) द्वारा रखे गए रिकॉर्ड के अनुसार, राजा अनंगपाल तंवर ने पृथ्वीराज चौहान को केवल एक धार्मिक यात्रा पर जाते समय कार्यवाहक के रूप में बनाया, क्योंकि उस समय उनके अपने बेटे बहुत छोटे थे। जब राजा अनंगपाल तंवर वापस लौटे, तो पृथ्वीराज ने अपने नाना को राज्य सौंपने से इनकार कर दिया। +आज गुर्जरों के दिल्ली के महरौली क्षेत्र मे ही 12 गाँव तोमर या तंवर गुर्जर हैं जो इस धारणा को मजबूत करते हैं कि यह मूल रूप से गुर्जर कबीला था। ये गुर्जर तंवर आज़ादी के पहले युद्ध के दौरान 1857 में अंग्रेजों के लिए सबसे मुश्किल विद्रोही साबित हुए थे, जिसकी शुरुआत मेरठ के कोतवाल (पुलिस प्रमुख) 'कोतवाल धन सिंह गुर्जर' ने की थी। उन्होंने 12 दिनों के लिए मैटलफ़ेफ़ हाउस पर कब्जा कर लिया और ब्रिटिश सेनाओं को सभी आपूर्ति काट दी और दिल्ली के लिए स्वतंत्रता की घोषणा की।{{sfn|Tod, Annals and antiquities of Rajasthan, Edit. William Crooke, Vol. I, Introduction}} '
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[ 0 => ''''तंवर''' अथवा '''तोमर''' एक प्राचिन गुर्जर वंश है।{{sfn|चन्द्र बरदाई कृत पृथ्वीराज रासो}}{{ sfn|D R Bhandarkar, Gurjaras, J B B R A S, Vol. 21, 1903, According to Chandra Bardai, Prithviraj Raso, the monastery of Gurjar-Pratihar, Chalukya / Solanki, Parmar / Panwar and Chauhan were the Gurjars of Huna origin. Hornelo Historians consider Tomars Chalukyas as the Gurjar of Hun's origin}}{{sfn|A. R. Rudolf Hornle, “The Gurjara clans, some problems of ancient Indian History” No. III. JRAS, 1905, pp 1-32}}', 1 => 'हिंदी में एक कहावत है "दिली तंवरो की" जिसका अर्थ है कि दिल्ली तंवरो के अंतर्गत आता है।{{sfn|डी.सी.गांगुली|1981|p=704}}दिल्ली के शुरुआती इतिहास का स्थान, अभी भी तंवर गूजरो द्वारा बसा हुआ है। {{sfn|Tod, Annals and antiquities of Rajasthan, Edit. William Crooke, Vol. I, Introduction}} ', 2 => 'दिल्ली के महरौली को पहले मिहिरावली के रूप में जाना जाता था जिसका अर्थ था मिहिरों (गुर्जरो) का निवास या मिहिरों के घरों की पंक्ति (मिहिरो वाली)। इसे हुण सम्राट मिहिरकुल द्वारा स्थापित किया गया था क्योंकि '''मिहिर''' हुणो का दूसरा नाम है। महरौली, 7 प्राचीन शहरों में से एक है, जो वर्तमान दिल्ली राज्य को बनाता है।दिल्ली से सटे फरीदाबाद जिले के महरौली से दूर दिल्लीपति राजा अनंगपाल तंवर के नाम पर गुर्जर गाँव अनंगपुर है। दिल्ली के महरौली क्षेत्र के बारे में पहले से ही उल्लेख है कि अभी भी तोमरा / तंवर गुर्जरो के बारह गाँव हैं तथा दिल्ली से सटे राज्य मे 75 गांव है। जो इस धारणा को मजबूत करते हैं कि यह मूल रूप से गुर्जर कबीला था। जिनमें तंवर/तोमरो को पिहोवा शिलालेख के अनुसार हुणो का वंशज कहा गया है।{{sfn|Sailendra Nath Sen|1999|p=339}} तोमर/तंवरो को सम्राट मिहिरकुल के पिता, तोरमाण/तोमराण हूण का वंशज माना जाता है।{{sfn|Dilip Kumar Ganguly|1984|pp=116-117}} तोमर / तंवर प्रमुख अनंगपाल ने महरौली के लालकोट किले का निर्माण किया और बाद में अनंगपाल तंवर द्वितीय ने 11वी सदी मे अपनी राजधानी को कन्नौज से लालकोट ले आया। कन्नौज शूरू से ही हूणो की राजधानी रही। हूणवंशी सम्राट नागभट के अरबो से लगातार युध्द जीतने और देश की रक्षा करने पर ही उनको प्रतिहार (रक्षक) की उपाधी मिली और इनके गुर्जर साम्राज्य को "गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य" कहा गया। गुर्जर प्रतिहार शासको की राजधानी भी कन्नोज ही थी।{{sfn|A.M.T. Jackson, Binhamal (article), Bombay Gazetteer section 1 part 1, Bombay, 1896}} {{sfn|Vincent A. Smith, The Oxford History of India, Fourth Edition, Delhi}}', 3 => 'दिल्ली का तंवर / तोमर वंश अनंगपाल तोमर- II तक रहा। अनंगपाल तंवर द्वितीय ने अपनी बेटी के बेटे (अजमेर के राजा का पुत्र) को गुर्जर राजा पृथ्वीराज चौहान को वारिस के रूप में नियुक्त किया। कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि जब तक उनके दादा जीवित थे तब तक पृथ्वीराज महज एक कार्यवाहक राजा थे। पृथ्वीराज को दिल्ली में कभी ताज पहनाया नहीं गया था, इसलिए यह देखने के लिए वजन जोड़ा गया कि चौहान शासक ने अपने नाना से सिंहासन की रक्षा की। अनंगपाल तंवर द्वितीय के 23 भाई थे और उनमें से प्रत्येक का अपना क्षेत्र था। बर्ड्स (या जगस) द्वारा रखे गए रिकॉर्ड के अनुसार, राजा अनंगपाल तंवर ने पृथ्वीराज चौहान को केवल एक धार्मिक यात्रा पर जाते समय कार्यवाहक के रूप में बनाया, क्योंकि उस समय उनके अपने बेटे बहुत छोटे थे। जब राजा अनंगपाल तंवर वापस लौटे, तो पृथ्वीराज ने अपने नाना को राज्य सौंपने से इनकार कर दिया।', 4 => 'आज गुर्जरों के दिल्ली के महरौली क्षेत्र मे ही 12 गाँव तोमर या तंवर गुर्जर हैं जो इस धारणा को मजबूत करते हैं कि यह मूल रूप से गुर्जर कबीला था। ये गुर्जर तंवर आज़ादी के पहले युद्ध के दौरान 1857 में अंग्रेजों के लिए सबसे मुश्किल विद्रोही साबित हुए थे, जिसकी शुरुआत मेरठ के कोतवाल (पुलिस प्रमुख) 'कोतवाल धन सिंह गुर्जर' ने की थी। उन्होंने 12 दिनों के लिए मैटलफ़ेफ़ हाउस पर कब्जा कर लिया और ब्रिटिश सेनाओं को सभी आपूर्ति काट दी और दिल्ली के लिए स्वतंत्रता की घोषणा की।{{sfn|Tod, Annals and antiquities of Rajasthan, Edit. William Crooke, Vol. I, Introduction}}' ]
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[ 0 => '''' तोमर''' तंवर, या कुंतल उत्तर पश्चिम भारत का एक [[जाट]]<ref> B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.244, s.n.239</ref> ओर [[राजपूत]]<ref>Rajputane ka Itihas ( History of Rajputana), Publisher: Vaidika Yantralaya, Ajmer 1927.</ref> वंश है। तोमरो का मानना है कि वे चन्द्रवन्शी है। इन्होंने वर्तमान [[दिल्ली]] की स्थापना '' दिहिलिका'' के नाम से की थी।<ref>books.google.es/books/about/Prithviraj_raso.html?id=4ymMbwAACAAJ&redir_esc=y</ref>', 1 => 'पुराणों से प्रतीत होता है कि आरंभ में तोमरों का निवास [[हिमालय]] के निकटस्थ किसी उत्तरी प्रदेश में था। किंतु १०वीं शताब्दी तक ये [[करनाल]] तक पहुँच चुके थे। [[थानेश्वर]] में भी इनका राज्य था। उस समय उत्तर भारत में चौहान राजवन्श का साम्राज्य था। उन्हीं के सामंत के रूप में तंवरों ने दक्षिण की ओर अग्रसर होना आरम्भ किया।{{cn}}', 2 => 'दिल्ली में उनके अधिकार का समय अनिश्चित है। किंतु विक्रम की १०वीं और ११वीं शतियों में हमें साँभर के चौहानों और तोमरों के संघर्ष का उल्लेख मिलता है। तोमरेश रुद्र चौहान राजा चंदन के हाथों मारा गया। तंत्रपाल तोमर चौहान वाक्पति से पराजित हुआ। वाक्पति के पुत्र सिंहराज ने तोमरेश सलवण का वध किया। किंतु चौहान सिंहराज भी कुछ समय के बाद मारा गया। बहुत संभव है कि सिंहराज की मृत्यु में तोमरों का कुछ हाथ रहा हो। ऐसा प्रतीत होता है कि तोमर इस समय दिल्ली के स्वामी बन चुके थे। गज़नवी वंश के आरंभिक आक्रमणों के समय दिल्ली-थानेश्वर का तोमर वंश पर्याप्त समुन्नत अवस्था में था।{{cn}}', 3 => '', 4 => 'तोमरराज ने थानेश्वर को महमूद से बचाने का प्रयत्न भी किया, यद्यपि उसे सफलता न मिली। सन् १०३८ ईo (संo १०९५) महमूद के पुत्र मसूद ने हांसी पर अधिकार कर लिया। मसूद के पुत्र मजदूद ने थानेश्वर को हस्तगत किया। दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी होने लगी। ऐसा प्रतीत होता था कि मुसलमान दिल्ली राज्य की समाप्ति किए बिना चैन न लेंगे। किंतु तोमरों ने साहस से काम लिया। तोमरराज महीपाल ने केवल हांसी और थानेश्वर के दुर्ग ही हस्तगत न किए; उसकी वीर वाहिनी ने काँगड़े पर भी अपनी विजयध्वजा कुछ समय के लिये फहरा दी। लाहौर भी तँवरों के हाथों से भाग्यवशात् ही बच गया।{{cn}}', 5 => '', 6 => 'तोमरों की इस विजय से केवल विद्वेषाग्नि ही भड़की। तोमरों पर इधर उधर से आक्रमण होने लगे। तँवरों ने इनका यथाशक्ति उत्तर दिया। संवत् ११८९ (सन् ११३२) में रचित [[श्रीधर कवि]] के पार्श्वनाथचरित् से प्रतीत होता है कि उस समय तोमरों की राजधानी दिल्ली समृद्ध नगरी थी और तँवरराज अनंगपाल अपने शौर्य आदि गुणों के कारण सर्वत्र विख्यात था। द्वितीय अनंगपाल ने मेहरोली के लौह स्तंभ की दिल्ली में स्थापना की। शायद इसी राजा के समय तँवरों ने अपनी नीति बदली। [[बीसलदेव तृतीय]] न संवत् १२०८ (सन् ११५१ ईo) में तोमरों को हरा कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इसके बाद तँवर चौहानों के सामंतों के रूप में दिल्ली में राज्य करते रहे। {{cn}} [[पृथ्वीराज चौहान]] की पराजय के बाद दिल्ली पर मुसलमानों का अधिकार हुआ।', 7 => '', 8 => '', 9 => '== दिल्ली के तोमर राजा ==', 10 => '# [[अनंगपाल]] प्रथम 736 ई', 11 => '# विशाल 752', 12 => '# गंगेय 772', 13 => '# पथ्वीमल 793', 14 => '# जगदेव 812', 15 => '# नरपाल 833', 16 => '# उदयसंघ 848', 17 => '# जयदास 863', 18 => '# वाछाल 879', 19 => '# पावक 901', 20 => '# विहंगपाल 923', 21 => '# तोलपाल 944', 22 => '# गोपाल 965', 23 => '# सुलाखन 983', 24 => '# जसपाल 1009', 25 => '# कंवरपाल 1025 (मसूद ने हांसी पर कुछ दिन कब्जा किया था 1038 में)', 26 => '# अनंगपाल द्वितीय 1046 (1052 महरौली के लौह स्तंभ पर शिलालेख]])', 27 => '# तेजपाल 1076', 28 => '# महीपाल 1100', 29 => '# दकतपाल (अर्कपाल भी कहा जाता है) 1115 A.D.-1046 (1052 [[महरौली]] के [[लौह स्तंभ]] पर [[शिलालेख]])', 30 => '', 31 => '==सन्दर्भ==', 32 => '{{टिप्पणीसूची}}', 33 => '* दशरथ शर्मा : दिल्ली का तोमर राज्य, राजस्थान भारती, भाग ३, अंक ३, ४, पृo १७२६', 34 => '', 35 => '==इन्हें भी देखें==', 36 => '*[[ग्वालियर के तोमर]]', 37 => '', 38 => '{{जाट गोत्र}}', 39 => '', 40 => '[[श्रेणी:राजवंश]]', 41 => '[[श्रेणी:वंश]]' ]
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