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' [[हिंदी]] गद्य के आरंभ के संबंध में विद्वान एकमत नहीं है। कुछ 10वीं शताब्दी मांनते हैं कुछ 11 वीं शताब्दी,कुछ 13 शताब्दी। राजस्थानी एवं ब्रज भाषा में हमें गद्य के प्राचीनतम प्रयोग मिलते हैं। राजस्थानी गद्य की समय सीमा 11वीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तथा ब्रज गद्य की सीमा 14वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी तक मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि 10वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के मध्य ही हिंदी गद्य की शुरुआत हुई थी।खड़ी बोली के प्रथम दर्शन अकबर के दरबारी कवि गंग द्वारा रचित चंद छंद बरनन की महिमा में होते हैं अध्ययन की दृष्टि से हिंदी गद्य साहित्य के विकास को इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है। हिन्दी गद्य के विकास को विभिन्न सोपानों में विभक्त किया जा सकता है- :* (1) पूर्व भारतेंदु युग(प्राचीन युग): 13 वीं शताब्दी से 1868 ईस्वी तक. :* (2) भारतेंदु युग(नवजागरण काल): 1868ईस्वी से 1900 ईस्वी तक। :* (3) द्विवेदी युग: 1900 ईस्वी से 1922 ईस्वी तक. :* (4) शुक्ल युग(छायावादी युग): 1922 ईस्वी से 1938 ईस्वी तक :* (5) शुक्लोत्तर युग(छायावादोत्तर युग): 1938 ईस्वी से अब तक। == 19वीं सदी से पहले का हिन्दी गद्य == हिन्दी गद्य के उद्भव को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान हिन्दी गद्य की शुरुआत 19वीं सदी से ही मानते हैं जबकि कुछ अन्य हिन्दी गद्य की परम्परा को 11वीं-12वीं सदी तक ले जाते हैं। आधुनिक काल से पूर्व हिन्दी गद्य की निम्न परम्पराएं मिलती हैं- :*(1) राजस्थानी में हिन्दी गद्य:-राजस्थानी गद्य के प्राचीनतम रुप 10 वीं शताब्दी के दान पत्रों, पट्टे-परवानों, टीकाओं व अनुवाद ग्रंथों में देखने को मिलता है।आराधना, अतियार, बाल शिक्षा, तत्त्व विचार, धनपाल कथा आदि रचनाओं में राजस्थानी गद्य के प्राचीनतम प्रयोग दृष्टिगत होते हैं. *(2) मैथिली में हिन्दी गद्य:-कालक्रम की दृष्टि से राजस्थानी के बाद मैथिली में हिन्दी गद्य के प्रयोग दृष्टिगत होते हैं. मैथिली में प्राचीन हिन्दी गद्य ग्रन्थ ज्योतिरिश्वर की रचना वर्ण रत्नाकर है। इसका रचना काल 1324 ईस्वी सन् है। *(3) ब्रजभाषा में हिन्दी गद्य:- ब्रजभाषा में हिन्दी गद्य की प्राचीनतम रचनाएँ 1513 ईस्वी से पूर्व की प्रतीत नहीं होती. इनमें गोस्वामी विट्ठलनाथ कृत "श्रृंगार रस मंडन", "यमुनाष्टाक", " नवरत्न सटीक ", चतुर्भुज दास कृत षड्ऋतु वार्ता ", गोकुल नाथ कृत " चौरासी वैष्णवन की वार्ता ", " दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता " गोस्वामी हरिराम कृत "कृष्णावतार स्वरूप निर्णय", "सातों स्वरूपों की भावना","द्वादश निकुंज की भावना", नाभादास कृत " अष्टयाम ", बैकुंठ मणि शुक्ल कृत "अगहन माहात्म्य", "वैशाख माहात्म्य" तथा लल्लू लाल कृत "माधव विलास" विशेष रूप से उल्लेखनीय है। *(4) दक्खिनी में हिन्दी गद्य:- गेसुदराज कृत"मेराजुलआशिकीन" तथा मूल्ला वजही कृत "सबरस" में प्राचीन दक्खिनी हिन्दी गद्य रुप को देखा जा सकता है। == भारतेंदु पूर्व युग == खड़ीबोली हिन्दी में गद्य का विकास 19वीं शताब्दी के आसपास हुआ। इस विकास में कोलकाता के फोर्ट विलियम कॉलेज की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इस कॉलेज के दो विद्वानों लल्लूलाल जी तथा सदल मिश्र ने गिलक्राइस्ट के निर्देशन में क्रमशः [[प्रेमसागर]] तथा [[नासिकेतोपाख्यान]] नामक पुस्तकें तैयार कीं। इसी समय सदासुखलाल ने [[सुखसागर]] तथा मुंशी इंशा अल्ला खां ने [['रानी केतकी की कहानी']] की रचना की इन सभी ग्रंथों की भाषा में उस समय प्रयोग में आनेवाली [[खडी बोली]] को स्थान मिला। ये सभी कृतियाँ सन् 1803 में रची गयी थीं। आधुनिक खडी बोली के गद्य के विकास में विभिन्न धर्मों की परिचयात्मक पुस्तकों का खूब सहयोग रहा जिसमें ईसाई धर्म का भी योगदान रहा। बंगाल के राजा [[राजा राममोहन राय|राम मोहन राय]] ने 1815 ईस्वी में [[वेदांत सूत्र]] का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करवाया। इसके बाद उन्होंने 1829 में [[बंगदूत]] नामक पत्र हिन्दी में निकाला। इसके पहले ही 1826 में कानपुर के [[पं जुगल किशोर]] ने हिन्दी का पहला समाचार पत्र [[उदन्त मार्तण्ड|उदंतमार्तंड]] [[कोलकाता जिला|कलकत्ता]] से निकाला. इसी समय गुजराती भाषी [[आर्य समाज]] संस्थापक स्वामी [[दयानन्द सरस्वती|दयानंद सरस्वती]] ने अपना प्रसिद्ध ग्रंथ [[सत्यार्थ प्रकाश]] हिन्दी में लिखा। == भारतेंदु युग == [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र|भारतेंदु हरिश्चंद्र]] (1850-1885) को हिन्दी-साहित्य के आधुनिक युग का प्रतिनिधि माना जाता है। उन्होंने [[कविवचन सुधा]], हरिश्चन्द्र मैगजीन और [[हरिश्चंद्र पत्रिका]] निकाली. साथ ही अनेक नाटकों की रचना की. उनके प्रसिध्द नाटक हैं- चंद्रावली, भारत दुर्दशा, अंधेर नगरी. ये नाटक रंगमंच पर भी बहुत लोकप्रिय हुए. इस काल में निबंध नाटक उपन्यास तथा कहानियों की रचना हुई. इस काल के लेखकों में [[बालकृष्ण भट्ट]], [[प्रतापनारायण मिश्र|प्रताप नारायण मिश्र]], [[राधा चरण गोस्वामी]], [[उपाध्याय बदरीनाथ चौधरी प्रेमघन]], [[लाला श्रीनिवास दास]], [[देवकीनन्दन खत्री|बाबू देवकी नंदन खत्री]] और [[किशोरी लाल गोस्वामी]] आदि उल्लेखनीय हैं। इनमें से अधिकांश लेखक होने के साथ साथ पत्रकार भी थे। श्रीनिवासदास के उपन्यास परीक्षागुरू को हिन्दी का पहला उपन्यास कहा जाता है। कुछ विद्वान श्रद्धाराम फुल्लौरी के उपन्यास भाग्यवती को हिन्दी का पहला उपन्यास मानते हैं। बाबू [[देवकीनन्दन खत्री|देवकीनंदन खत्री]] का चंद्रकांता तथा चंद्रकांता संतति आदि इस युग के प्रमुख उपन्यास हैं। ये उपन्यास इतने लोकप्रिय हुए कि इनको पढने के लिये बहुत से अहिंदी भाषियों ने हिंदी सीखी. इस युग की कहानियों में [[शिवप्रसाद सितारे हिन्द]] की राजा भोज का सपना महत्त्वपूर्ण है। [[बलदेव अग्रहरि]] की सन १८८७ में प्रकाशित नाट्य पुस्तक 'सुलोचना सती' में सुलोचना की कथा के साथ आधुनिक कथा को भी स्थान दिया गया हैं, जिसमे संपादको और देश सुधारको पर व्यंग्य किया गया हैं। कई नाटको में मुख्य कथानक ही यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करते हैं। बलदेव अग्रहरि की सुलोचना सती में भिन्नतुकांत छंद का आग्रह भी दिखाई देता हैं।<ref>{{cite book |url=http://books.google.co.in/books?id=JPMSAAAAMAAJ |title=हिन्दी नाटकः पुनर्मूल्यांकन |author=सत्येन्द्र तनेजा |publisher=ग्रंथम (कानपुर) |year=१९७१ |isbn= |access-date=29 जुलाई 2014 |archive-url=https://web.archive.org/web/20140407102019/http://books.google.co.in/books?id=JPMSAAAAMAAJ |archive-date=7 अप्रैल 2014 |url-status=live }}</ref><ref>{{cite book|url=http://books.google.co.in/books?id=s-1HAAAAMAAJ|title=भरतेन्दुकालीन नाटक साहित्य|author=गोपीनाथ तिवारी|publisher=हिन्दी भवन|year=१९५९|isbn=|access-date=29 जुलाई 2014|archive-url=https://web.archive.org/web/20140407102037/http://books.google.co.in/books?id=s-1HAAAAMAAJ|archive-date=7 अप्रैल 2014|url-status=live}}</ref> == द्विवेदी युग == पण्डित महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही इस युग का नाम द्विवेदी युग रखा गया। सन 1903 ईस्वी में द्विवेदी जी ने सरस्वती पत्रिका के संपादन का भार संभाला. उन्होंने खड़ी बोली गद्य के स्वरूप को स्थिर किया और पत्रिका के माध्यम से रचनाकारों के एक बड़े समुदाय को खड़ी बोली में लिखने को प्रेरित किया। इस काल में निबंध, उपन्यास, कहानी, नाटक एवं समालोचना का अच्छा विकास हुआ। इस युग के निबंधकारों में [[महावीर प्रसाद द्विवेदी]], [[माधव प्रसाद मिश्र]], [[श्यामसुन्दर दास|श्याम सुंदर दास]], [[चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी'|चंद्रधर शर्मा गुलेरी]], [[बाल मुकुंद गुप्त]] और [[अध्यापक पूर्ण सिंह]] आदि उल्लेखनीय हैं। इनके निबंध गंभीर, ललित एवं विचारात्मक हैं। [[किशोरीलाल गोस्वामी]] और बाबू गोपाल राम गहमरी के उपन्यासों में मनोरंजन और घटनाओं की रोचकता है। हिंदी कहानी का वास्तविक विकास द्विवेदी युग से ही शुरू हुआ। किशोरी लाल गोस्वामी की इंदुमती कहानी को कुछ विद्वान हिंदी की पहली कहानी मानते हैं। अन्य कहानियों में बंग महिला की दुलाई वाली, शुक्ल जी की ग्यारह वर्ष का समय, प्रसाद जी की ग्राम और चंद्रधर शर्मा गुलेरी की उसने कहा था महत्त्वपूर्ण हैं। समालोचना के क्षेत्र में पद्मसिंह शर्मा उल्लेखनीय हैं। ''हरिऔध'', शिवनंदन सहाय तथा राय देवीप्रसाद पूर्ण द्वारा कुछ नाटक लिखे गए। इस युग ने कई सम्पादकों जन्म दिया। पन्डित ईश्वरी प्रसाद शर्मा ने आधा दर्जन से अधिक पत्रों का सम्पादन किया। शिव पूजन सहाय उनके योग्य शिष्यों में शुमार हुए। इस युग में हिन्दी आलोचना को एक दिशा मिली। इस युग ने हिन्दी के विकास की नींव रखी। यह कई मायनों में नई मान्यताओं की स्थापना करने वाला युग रहा। == शुक्ल युग == गद्य के विकास में इस युग का विशेष महत्त्व है। पं रामचंद्र शुक्ल (1884-1941) ने निबंध, हिन्दी साहित्य के इतिहास और समालोचना के क्षेत्र में गंभीर लेखन किया। उन्होंने मनोविकारों पर हिंदी में पहली बार निबंध लेखन किया। साहित्य समीक्षा से संबंधित निबंधों की भी रचना की. उनके निबंधों में भाव और विचार अर्थात् बुद्धि और हृदय दोनों का समन्वय है। हिंदी शब्दसागर की भूमिका के रूप में लिखा गया उनका इतिहास आज भी अपनी सार्थकता बनाए हुए है। [[मलिक मोहम्मद जायसी|जायसी]], [[तुलसीदास]] और [[सूरदास]] पर लिखी गयी उनकी आलोचनाओं ने भावी आलोचकों का मार्गदर्शन किया। इस काल के अन्य निबंधकारों में [[जैनेन्द्र कुमार|जैनेन्द्र कुमार जैन]], [[सियारामशरण गुप्त]], [[पदुमलाल पन्नालाल बख्शी|पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] और जयशंकर प्रसाद आदि उल्लेखनीय हैं। [[कपोलकल्पना|कथा साहित्य]] के क्षेत्र में [[प्रेमचंद]] ने क्रांति ही कर डाली। सेवा सदन, रंगभूमि, निर्मला, गबन एवं गोदान आदि उपन्यासों की रचना की। उनकी तीन सौ से अधिक कहानियां मानसरोवर के आठ भागों में तथा गुप्तधन के दो भागों में संग्रहित हैं। पूस की रात, कफ़न, शतरंज के खिलाडी, पंच परमेश्वर, नमक का दरोगा तथा ईदगाह आदि उनकी कहानियां खूब लोकप्रिय हुई। इसकाल के अन्य कथाकारों में [[विश्वंभर शर्मा कौशिक]], [[वृंदावनलाल वर्मा]], [[राहुल सांकृत्यायन]], [[पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'|पांडेय बेचन शर्मा उग्र]], [[उपेन्द्रनाथ अश्क]], [[जयशंकर प्रसाद]], [[भगवती चरण वर्मा|भगवतीचरण वर्मा]] आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। नाटक के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद का विशेष स्थान है। इनके चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी जैसे ऐतिहासिक नाटकों में इतिहास और कल्पना तथा भारतीय और पाश्चात्य नाट्य पद्धतियों का समन्वय हुआ है। [[लक्ष्मीनारायण मिश्र]], [[हरिकृष्ण प्रेमी]], [[जगदीशचंद्र माथुर]] आदि इस काल के उल्लेखनीय नाटककार हैं। == शुक्लोत्तर युग == इस काल में गद्य का चहुंमुखी विकास हुआ। पं [[हजारीप्रसाद द्विवेदी|हजारी प्रसाद द्विवेदी]], [[जैनेन्द्र कुमार|जैनेंद्र कुमार]], [[अज्ञेय]], [[यशपाल]], [[नंददुलारे वाजपेयी]], [[डॉ॰ नगेंद्र]], [[रामवृक्ष बेनीपुरी]] तथा [[रामविलास शर्मा|डॉ॰ रामविलास शर्मा]] आदि ने विचारात्मक निबंधों की रचना की है। हजारी प्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र, [[कुबेर नाथ राय]], कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, विवेकी राय, ने ललित निबंधों की रचना की है। हरिशंकर परसांई, शरद जोशी, श्रीलाल शुक्ल, रवींन्द्रनाथ त्यागी, तथा के पी सक्सेना, के व्यंग्य आज के जीवन की विद्रूपताओं के उद्धाटन में सफल हुए हैं। जैनेन्द्र, अज्ञेय, यशपाल, इलाचंद्र जोशी, अमृतलाल नागर, रांगेय राघव और भगवती चरण वर्मा ने उल्लेखनीय उपन्यासों की रचना की. नागार्जुन, फणीश्वर नाथ रेणु, अमृतराय, तथा राही मासूम रजा ने लोकप्रिय आंचलिक उपन्यास लिखे हैं। मोहन राकेश, राजेन्द्र यादव, मन्नू भंडारी, कमलेश्वर, भीष्म साहनी, भैरव प्रसाद गुप्त, आदि ने आधुनिक भाव बोध वाले अनेक उपन्यासों और कहानियों की रचना की है। अमरकांत, निर्मल वर्मा तथा ज्ञानरंजन आदि भी नए कथा साहित्य के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। प्रसादोत्तर नाटकों के क्षेत्र में [[लक्ष्मीनारायण लाल]], [[लक्ष्मीकांत वर्मा]], [[मोहन राकेश]] तथा [[कमलेश्वर]] के नाम उल्लेखनीय हैं। कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, रामवृक्ष बेनीपुरी तथा बनारसीदास चतुर्वेदी आदि ने संस्मरण रेखाचित्र व जीवनी आदि की रचना की है। शुक्ल जी के बाद पं हजारी प्रसाद द्विवेदी, नंद दुलारे वाजपेयी, नगेन्द्र, रामविलास शर्मा तथा नामवर सिंह ने हिंदी समालोचना को समृद्ध किया। आज गद्य की अनेक नई विधाओं जैसे यात्रा वृत्तांत, रिपोर्ताज, रेडियो रूपक, आलेख आदि में विपुल साहित्य की रचना हो रही है और गद्य की विधाएं एक दूसरे से मिल रही हैं। == इसे भी देखें == * [[हिंदी साहित्य]] * [[आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास]] == बाहरी कड़ियाँ == * [https://web.archive.org/web/20121215063310/http://books.google.co.in/books?id=DE4FnQpjjCwC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false हिन्दी की अनिस्थिरता : एक ऐतिहासिक बहस] (गूगल पुस्तक ; लेखक - भारत यायावर) [[श्रेणी:हिन्दी]] [[श्रेणी:साहित्य]]'
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' [[हिंदी]] गद्य के आरंभ के संबंध में विद्वान एकमत नहीं है। कुछ 10वीं शताब्दी मांनते हैं कुछ 11 वीं शताब्दी,कुछ 13 शताब्दी। राजस्थानी एवं ब्रज भाषा में हमें गद्य के प्राचीनतम प्रयोग मिलते हैं। राजस्थानी गद्य की समय सीमा 11वीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तथा ब्रज गद्य की सीमा 14वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी तक मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि 10वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के मध्य ही हिंदी गद्य की शुरुआत हुई थी।खड़ी बोली के प्रथम दर्शन अकबर के दरबारी कवि गंग द्वारा रचित चंद छंद बरनन की महिमा में होते हैं अध्ययन की दृष्टि से हिंदी गद्य साहित्य के विकास को इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है। हिन्दी गद्य के विकास को विभिन्न सोपानों में विभक्त किया जा सकता है- :* (1) पूर्व भारतेंदु युग(प्राचीन युग): 13 वीं शताब्दी से 1868 ईस्वी तक. :* (2) भारतेंदु युग(नवजागरण काल): 1868ईस्वी से 1900 ईस्वी तक। :* (3) द्विवेदी युग: 1900 ईस्वी से 1922 ईस्वी तक. :* (4) शुक्ल युग(छायावादी युग): 1922 ईस्वी से 1938 ईस्वी तक :* (5) शुक्लोत्तर युग(छायावादोत्तर युग): 1938 ईस्वी से अब तक। == 19वीं सदी से पहले का हिन्दी गद्य == हिन्दी गद्य के उद्भव को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान हिन्दी गद्य की शुरुआत 19वीं सदी से ही मानते हैं जबकि कुछ अन्य हिन्दी गद्य की परम्परा को 11वीं-12वीं सदी तक ले जाते हैं। आधुनिक काल से पूर्व हिन्दी गद्य की निम्न परम्पराएं मिलती हैं- :*(1) राजस्थानी में हिन्दी गद्य:-राजस्थानी गद्य के प्राचीनतम रुप 10 वीं शताब्दी के दान पत्रों, पट्टे-परवानों, टीकाओं व अनुवाद ग्रंथों में देखने को मिलता है।आराधना, अतियार, बाल शिक्षा, तत्त्व विचार, धनपाल कथा आदि रचनाओं में राजस्थानी गद्य के प्राचीनतम प्रयोग दृष्टिगत होते हैं. *(2) मैथिली में हिन्दी गद्य:-कालक्रम की दृष्टि से राजस्थानी के बाद मैथिली में हिन्दी गद्य के प्रयोग दृष्टिगत होते हैं. मैथिली में प्राचीन हिन्दी गद्य ग्रन्थ ज्योतिरिश्वर की रचना वर्ण रत्नाकर है। इसका रचना काल 1324 ईस्वी सन् है। *(3) ब्रजभाषा में हिन्दी गद्य:- ब्रजभाषा में हिन्दी गद्य की प्राचीनतम रचनाएँ 1513 ईस्वी से पूर्व की प्रतीत नहीं होती. इनमें गोस्वामी विट्ठलनाथ कृत "श्रृंगार रस मंडन", "यमुनाष्टाक", " नवरत्न सटीक ", चतुर्भुज दास कृत षड्ऋतु वार्ता ", गोकुल 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उपन्यास मानते हैं। बाबू [[देवकीनन्दन खत्री|देवकीनंदन खत्री]] का चंद्रकांता तथा चंद्रकांता संतति आदि इस युग के प्रमुख उपन्यास हैं। ये उपन्यास इतने लोकप्रिय हुए कि इनको पढने के लिये बहुत से अहिंदी भाषियों ने हिंदी सीखी. इस युग की कहानियों में [[शिवप्रसाद सितारे हिन्द]] की राजा भोज का सपना महत्त्वपूर्ण है। [[बलदेव अग्रहरि]] की सन १८८७ में प्रकाशित नाट्य पुस्तक 'सुलोचना सती' में सुलोचना की कथा के साथ आधुनिक कथा को भी स्थान दिया गया हैं, जिसमे संपादको और देश सुधारको पर व्यंग्य किया गया हैं। कई नाटको में मुख्य कथानक ही यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करते हैं। बलदेव अग्रहरि की सुलोचना सती में भिन्नतुकांत छंद का आग्रह भी दिखाई देता हैं।<ref>{{cite book |url=http://books.google.co.in/books?id=JPMSAAAAMAAJ |title=हिन्दी नाटकः पुनर्मूल्यांकन |author=सत्येन्द्र तनेजा |publisher=ग्रंथम (कानपुर) |year=१९७१ |isbn= |access-date=29 जुलाई 2014 |archive-url=https://web.archive.org/web/20140407102019/http://books.google.co.in/books?id=JPMSAAAAMAAJ |archive-date=7 अप्रैल 2014 |url-status=live }}</ref><ref>{{cite book|url=http://books.google.co.in/books?id=s-1HAAAAMAAJ|title=भरतेन्दुकालीन नाटक साहित्य|author=गोपीनाथ तिवारी|publisher=हिन्दी भवन|year=१९५९|isbn=|access-date=29 जुलाई 2014|archive-url=https://web.archive.org/web/20140407102037/http://books.google.co.in/books?id=s-1HAAAAMAAJ|archive-date=7 अप्रैल 2014|url-status=live}}</ref> == द्विवेदी युग == पण्डित महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही इस युग का नाम द्विवेदी युग रखा गया। सन 1903 ईस्वी में द्विवेदी जी ने सरस्वती पत्रिका के संपादन का भार संभाला. उन्होंने खड़ी बोली गद्य के स्वरूप को स्थिर किया और पत्रिका के माध्यम से रचनाकारों के एक बड़े समुदाय को खड़ी बोली में लिखने को प्रेरित किया। इस काल में निबंध, उपन्यास, कहानी, नाटक एवं समालोचना का अच्छा विकास हुआ। इस युग के निबंधकारों में [[महावीर प्रसाद द्विवेदी]], [[माधव प्रसाद मिश्र]], [[श्यामसुन्दर दास|श्याम सुंदर दास]], [[चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी'|चंद्रधर शर्मा गुलेरी]], [[बाल मुकुंद गुप्त]] और [[अध्यापक पूर्ण सिंह]] आदि उल्लेखनीय हैं। इनके निबंध गंभीर, ललित एवं विचारात्मक हैं। [[किशोरीलाल गोस्वामी]] और बाबू गोपाल राम गहमरी के उपन्यासों में मनोरंजन और घटनाओं की रोचकता है। हिंदी कहानी का वास्तविक विकास द्विवेदी युग से ही शुरू हुआ। किशोरी लाल गोस्वामी की इंदुमती कहानी को कुछ विद्वान हिंदी की पहली कहानी मानते हैं। अन्य कहानियों में बंग महिला की दुलाई वाली, शुक्ल जी की ग्यारह वर्ष का समय, प्रसाद जी की ग्राम और चंद्रधर शर्मा गुलेरी की उसने कहा था महत्त्वपूर्ण हैं। समालोचना के क्षेत्र में पद्मसिंह शर्मा उल्लेखनीय हैं। ''हरिऔध'', शिवनंदन सहाय तथा राय देवीप्रसाद पूर्ण द्वारा कुछ नाटक लिखे गए। इस युग ने कई सम्पादकों जन्म दिया। पन्डित ईश्वरी प्रसाद शर्मा ने आधा दर्जन से अधिक पत्रों का सम्पादन किया। शिव पूजन सहाय उनके योग्य शिष्यों में शुमार हुए। इस युग में हिन्दी आलोचना को एक दिशा मिली। इस युग ने हिन्दी के विकास की नींव रखी। यह कई मायनों में नई मान्यताओं की स्थापना करने वाला युग रहा। == शुक्ल युग == गद्य के विकास में इस युग का विशेष महत्त्व है। पं रामचंद्र शुक्ल (1884-1941) ने निबंध, हिन्दी साहित्य के इतिहास और समालोचना के क्षेत्र में गंभीर लेखन किया। उन्होंने मनोविकारों पर हिंदी में पहली बार निबंध लेखन किया। साहित्य समीक्षा से संबंधित निबंधों की भी रचना की. उनके निबंधों में भाव और विचार अर्थात् बुद्धि और हृदय दोनों का समन्वय है। हिंदी शब्दसागर की भूमिका के रूप में लिखा गया उनका इतिहास आज भी अपनी सार्थकता बनाए हुए है। [[मलिक मोहम्मद जायसी|जायसी]], [[तुलसीदास]] और [[सूरदास]] पर लिखी गयी उनकी आलोचनाओं ने भावी आलोचकों का मार्गदर्शन किया। इस काल के अन्य निबंधकारों में [[जैनेन्द्र कुमार|जैनेन्द्र कुमार जैन]], [[सियारामशरण गुप्त]], [[पदुमलाल पन्नालाल बख्शी|पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] और जयशंकर प्रसाद आदि उल्लेखनीय हैं। [[कपोलकल्पना|कथा साहित्य]] के क्षेत्र में [[प्रेमचंद]] ने क्रांति ही कर डाली। सेवा सदन, रंगभूमि, निर्मला, गबन एवं गोदान आदि उपन्यासों की रचना की। उनकी तीन सौ से अधिक कहानियां मानसरोवर के आठ भागों में तथा गुप्तधन के दो भागों में संग्रहित हैं। पूस की रात, कफ़न, शतरंज के खिलाडी, पंच परमेश्वर, नमक का दरोगा तथा ईदगाह आदि उनकी कहानियां खूब लोकप्रिय हुई। इसकाल के अन्य कथाकारों में [[विश्वंभर शर्मा कौशिक]], [[वृंदावनलाल वर्मा]], [[राहुल सांकृत्यायन]], [[पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'|पांडेय बेचन शर्मा उग्र]], [[उपेन्द्रनाथ अश्क]], [[जयशंकर प्रसाद]], [[भगवती चरण वर्मा|भगवतीचरण वर्मा]] आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। नाटक के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद का विशेष स्थान है। इनके चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी जैसे ऐतिहासिक नाटकों में इतिहास और कल्पना तथा भारतीय और पाश्चात्य नाट्य पद्धतियों का समन्वय हुआ है। [[लक्ष्मीनारायण मिश्र]], [[हरिकृष्ण प्रेमी]], [[जगदीशचंद्र माथुर]] आदि इस काल के उल्लेखनीय नाटककार हैं। == शुक्लोत्तर युग == इस काल में गद्य का चहुंमुखी विकास हुआ। पं [[हजारीप्रसाद द्विवेदी|हजारी प्रसाद द्विवेदी]], [[जैनेन्द्र कुमार|जैनेंद्र कुमार]], [[अज्ञेय]], [[यशपाल]], [[नंददुलारे वाजपेयी]], [[डॉ॰ नगेंद्र]], [[रामवृक्ष बेनीपुरी]] तथा [[रामविलास शर्मा|डॉ॰ रामविलास शर्मा]] आदि ने विचारात्मक निबंधों की रचना की है। हजारी प्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र, [[कुबेर नाथ राय]], कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, विवेकी राय, ने ललित निबंधों की रचना की है। हरिशंकर परसांई, शरद जोशी, श्रीलाल शुक्ल, रवींन्द्रनाथ त्यागी, तथा के पी सक्सेना, के व्यंग्य आज के जीवन की विद्रूपताओं के उद्धाटन में सफल हुए हैं। जैनेन्द्र, अज्ञेय, यशपाल, इलाचंद्र जोशी, अमृतलाल नागर, रांगेय राघव और भगवती चरण वर्मा ने उल्लेखनीय उपन्यासों की रचना की. नागार्जुन, फणीश्वर नाथ रेणु, अमृतराय, तथा राही मासूम रजा ने लोकप्रिय आंचलिक उपन्यास लिखे हैं। मोहन राकेश, राजेन्द्र यादव, मन्नू भंडारी, कमलेश्वर, भीष्म साहनी, भैरव प्रसाद गुप्त, आदि ने आधुनिक भाव बोध वाले अनेक उपन्यासों और कहानियों की रचना की है। अमरकांत, निर्मल वर्मा तथा ज्ञानरंजन आदि भी नए कथा साहित्य के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। प्रसादोत्तर नाटकों के क्षेत्र में [[लक्ष्मीनारायण लाल]], [[लक्ष्मीकांत वर्मा]], [[मोहन राकेश]] तथा [[कमलेश्वर]] के नाम उल्लेखनीय हैं। कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, रामवृक्ष बेनीपुरी तथा बनारसीदास चतुर्वेदी आदि ने संस्मरण रेखाचित्र व जीवनी आदि की रचना की है। शुक्ल जी के बाद पं हजारी प्रसाद द्विवेदी, नंद दुलारे वाजपेयी, नगेन्द्र, रामविलास शर्मा तथा नामवर सिंह ने हिंदी समालोचना को समृद्ध किया। आज गद्य की अनेक नई विधाओं जैसे यात्रा वृत्तांत, रिपोर्ताज, रेडियो रूपक, आलेख आदि में विपुल साहित्य की रचना हो रही है और गद्य की विधाएं एक दूसरे से मिल रही हैं। == इसे भी देखें == * [[हिंदी साहित्य]] * [[आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास]] == बाहरी कड़ियाँ == * [https://web.archive.org/web/20121215063310/http://books.google.co.in/books?id=DE4FnQpjjCwC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false हिन्दी की अनिस्थिरता : एक ऐतिहासिक बहस] (गूगल पुस्तक ; लेखक - भारत यायावर) [[श्रेणी:हिन्दी]] [[श्रेणी:साहित्य]]'
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'@@ -15,7 +15,7 @@ == भारतेंदु पूर्व युग == -खड़ीबोली हिन्दी में गद्य का विकास 19वीं शताब्दी के आसपास हुआ। इस विकास में कोलकाता के फोर्ट विलियम कॉलेज की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इस कॉलेज के दो विद्वानों लल्लूलाल जी तथा सदल मिश्र ने गिलक्राइस्ट के निर्देशन में क्रमशः [[प्रेमसागर]] तथा [[नासिकेतोपाख्यान]] नामक पुस्तकें तैयार कीं। इसी समय सदासुखलाल ने [[सुखसागर]] तथा मुंशी इंशा अल्ला खां ने [['रानी केतकी की कहानी']] की रचना की इन सभी ग्रंथों की भाषा में उस समय प्रयोग में आनेवाली [[खडी बोली]] को स्थान मिला। ये सभी कृतियाँ सन् 1803 में रची गयी थीं। +खड़ीबोली हिन्दी में गद्य का विकास 25वीं शताब्दी के आसपास हुआ। इस विकास में कोलकाता के फोर्ट विलियम कर्क की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इस कॉल के दो विद्वानों मनमोहन जी तथा सदब्नेहै गिलक्राइस्ट के निर्देशन में क्रमशः। इसी समय सदासुखलाल ने [[सुखसागर]] तथा मुंशी इंशा अल्ला खां ने [['रानी केतकी की कहानी']] की रचना की इन सभी ग्रंथों की भाषा में उस समय प्रयोग में आनेवाली [[खडी बोली]] को स्थान मिला। ये सभी कृतियाँ सन् 1803 में रची गयी थीं। -आधुनिक खडी बोली के गद्य के विकास में विभिन्न धर्मों की परिचयात्मक पुस्तकों का खूब सहयोग रहा जिसमें ईसाई धर्म का भी योगदान रहा। बंगाल के राजा [[राजा राममोहन राय|राम मोहन राय]] ने 1815 ईस्वी में [[वेदांत सूत्र]] का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करवाया। इसके बाद उन्होंने 1829 में [[बंगदूत]] नामक पत्र हिन्दी में निकाला। इसके पहले ही 1826 में कानपुर के [[पं जुगल किशोर]] ने हिन्दी का पहला समाचार पत्र [[उदन्त मार्तण्ड|उदंतमार्तंड]] [[कोलकाता जिला|कलकत्ता]] से निकाला. इसी समय गुजराती भाषी [[आर्य समाज]] संस्थापक स्वामी [[दयानन्द सरस्वती|दयानंद सरस्वती]] ने अपना प्रसिद्ध ग्रंथ [[सत्यार्थ प्रकाश]] हिन्दी में लिखा। +आधुनिक खडी बोली के गद्य के विकास में विभिन्न धर्मों की परिचय पुस्तकों का खूब सहयोग रहा जिसमें [पं जुगल किशोर]] ने हिन्दी का पहला समाचार पत्र [[उदन्त मार्तण्ड|उदंतमार्तंड]] [[कोलकाता जिला|कलकत्ता]] से निकाला. इसी समय गुजराती भाषी [[ == भारतेंदु युग == '
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