विद्युत ऊर्जा

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विद्युत ऊर्जा

विद्युत शक्ति एक प्रणाली के भीतर पारम्परिक आवेशित कणों के बीच कूलम्ब बल से जुडी़ स्थितिज ऊर्जा होती है। यहाँ अपरिमित स्थित कणों के बीच सन्दर्भित विभवीय ऊर्जा शून्य होती है।[1]:§25-1 इसकी परिभाषा है: कार्य की मात्रा, जो आवेशित भार रहित कणों पर लगायी जाये, जिससे वे अपरिमित दूरी से किसी निश्चित दूरी तक लाये जा सकें।

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== परिचय ==look no विद्युत आधुनिक जीवन के सभी क्षेत्रों के लिए अनिवार्य आवश्‍यकता है और इसे मूल मानवीय आवश्‍यकता के रूप में माना गया है। यह महत्‍वपूर्ण मूल संरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) है जिस पर देश का सामाजिक-आर्थिक विकास निर्भर करता है। look nono प्रतिI'llस्‍पर्धी दरों पर भरोसेमंद और गुणवत्‍ता विद्युत की उपलब्‍धता अर्थव्‍यवस्‍था के सभी क्षेत्रों के विकास को

बनाए रखने के लिए बहुत ही महत्‍वपूर्ण है अर्थात प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक। यह घरेलू बाजारों को वैश्विक रूप से प्रतिस्‍पर्धी बनाने में सहायता करती है और इस प्रकार से लोगों का जीवन स्‍तर सुधारता है।

भारत में विद्युत ऊर्जा[संपादित करें]

भारत के संविधान के अंतर्गत बिजली समवर्ती सूची का विषय है जिसकी सातवीं अनुसूची की सूची iii में प्रविष्टि संख्‍या 38 है। भारत विश्‍व का छठा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्‍ता है जो विश्‍व के कुल ऊर्जा खपत का 3.5 प्रतिशत उपभोग करता है। तापीय, जल बिजली और नाभिकीय ऊर्जा भारत में बिजली उत्‍पादन के मुख्‍य स्रोत हैं। कुल संस्‍थापित विद्युत उत्‍पादन क्षमता 1,47,402.81 मेगावॉट (31 दिसम्‍बर, 2008 के अनुसार), रही है, जिसमें 93,392.64 मेगावॉट (थर्मल); 36,647.76 मेगावॉट (हाइड्रो); 4,120 मेगावॉट (न्‍यूक्लियर); और 13,242.41 मेगावॉट (अक्षय ऊर्जा स्रोत) शामिल हैं। भारत अक्षय उर्जा पर खासा ध्यान दे रहा है और भारत ने २०२२ तक १०० GW तक सौर उर्जा का उत्पादन करने का लक्ष्य रखा है ।

ऊर्जा एवं विद्युत धारा[संपादित करें]

शक्ति एवं ऊर्जा में सम्बन्ध[संपादित करें]

स्थायी अवस्था में, प्रदान की गई विद्युत ऊर्जा आवेश के समानुपाती होती है:

,

यहाँ W ऊर्जा (जूल में) है, Q आवेश (कूलॉम्ब में) तथा विभवान्तर (वोल्ट में) है।

इसमें , रखने पर (आव्श=धारा x समय):

,

जहाँ शक्ति (वाट में) तथा t समय (सेकेण्ड) में है।

मात्रक[संपादित करें]

किलोवाट-घण्टा (kWh) विद्युत ऊर्जा का सुविधाजनक मात्रक है जो बड़ी मात्रा में विद्युत ऊर्जा की मात्रा को अभिव्यत करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

स्मरण रहे कि

जूलीय ऊर्जा[संपादित करें]

जूल के नियम के अनुसार किसी प्रतिरोध में धारा प्रवाहित करने पर प्रतिरोध में ऊष्मा के रूप में विद्युत ऊर्जा का क्षय होता है।

यदि प्रतिरोध में धारा प्रवाहित हो तो,

अतः

यहाँ जूल में, ओम में, अम्पीयर में तथा सेकेण्ड में है।

देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]





  1. Halliday, David (1997). Fundamentals of Physics (अंग्रेज़ी में) (5th संस्करण). John Wiley & Sons. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-471-10559-7. नामालूम प्राचल |chaper= की उपेक्षा की गयी (मदद); नामालूम प्राचल |coauthors= की उपेक्षा की गयी (|author= सुझावित है) (मदद)