विद्युतचिकित्सा और निदान

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रोगी के सिर पर पर दिष्ट धारा लगाने से चेहरे की मांसपेशियों का सिकुड़न

कुछ रोगों के निदान और चिकित्सा में विद्युत् का उपयोग होता है। यह समझना भूल है कि सभी रोगों के निदान और चिकित्सा विद्युत से हो सकते है। विद्युत दिष्ट या गैलवेनिक विद्युत्‌ धारा (Direct or Galvanic Current), फैराडिक विद्युत धारा (Faradic Current), ज्यावक्रीय विद्युतधारा (Sinusoidal, Current), तथा उच्च आवृत्ति धारा (High Frequency Current), या डायाथर्मी (Diathermy) के रूप में हो सकती है।

परिचय[संपादित करें]

यदि दिष्टधारा की वोल्टता और एंपियर कम हो और उसे शरीर के किसी भाग की त्वचा पर प्रवाहित किया जाए, तो विद्युत्‌ धारा के प्रवाह से प्रतिवर्ती क्रियाएँ (reflex action) उत्पन्न होती हैं, जिससे रुधिर धमनियाँ विस्फारित (dilate) हो जाती हैं, रुधिर का संचार बढ़ जाता है और आयनों का अभिगमन होने लगता है। इससे विशिष्ट लवण के आयनों को किसी विशिष्ट ऊतक तक पहुँचाकर, उन्हें वहाँ निक्षिप्त किया जा सकता है।

किसी जीवित प्राणी की पेशियों में विद्युत्धारा के प्रवाह से प्रत्येक "संपर्क और विच्छेद' पर संकुचन उत्पन्न होता है। यदि विद्युत्धारा किसी सूई पर संकुंचन उत्पन्न होता है। यदि विद्युत्धारा किसी सूई पर संकेद्रित कर प्रवाहित की जाए, तो इससे ऊतकों पर विनाशीश् प्रभाव पड़ सकता है और इससे रासायनिक परिवर्तन भी हो सकते रुधिर वाहिनियों, तंत्रिकाओं, पेशियों और जोड़ों के रोगनिवारण में विद्युत्धारा का उपयोग होता है। इससे रोगवाहिनियाँ विस्फरित हो जाती हैं। उनमें औषधियाँ डालकर अधिक समय तक विस्फारित हो जाती हैं। उनमें औषधियाँ डालकर अधिक समय तक विस्फारित रखा जा सकता है, विशिष्ट ओषधियाँ किसी विशिष्ट स्थान पर पहुँचाकर, उनसे लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार श्लेष्मकला की सूजन में यदि यशद या ताम्र आयन प्रविष्ट कराया जाए, तो उससे लाभ होता पाया गया है।

फैराडिक विद्युत्धारा से तंत्रिका घात का निदान होता है और तंत्रिका के पक्षाघात में मांसपेशियों के व्यवहार की कमी से जो दुर्बलता आ जाती है, उसे रोकने के लिए माँसपेशियों में विद्युत्धारा क्षोभन उत्पन्न कराया जा सकता है।

ज्यावक्रीय विद्युत्धारा निम्न आवृत्ति की विद्युत्धारा होती है। प्रत्यावर्तन की दर साधारणतया प्रति मिनट ५ से ५० तक रहती है। इससे पेशियों में संकुचन होता है। पक्षाघात के रोगी में भी यह संकुंचन उत्पन्न करती है। अत: पेशियों का उत्तेजित करने में इसका उपयोग होता है। इससे पेशियों की संकुंचनशीलता (contractility), उत्तेजनशीलता (irritability), स्फुरण (tone) और पोषण (nutrition) बना रहता है और ऊतकों का तंतुमय बनना रोका जा सकता है।

१८९० ई. में देखा गया कि बहुत ऊँची आवृत्ति, जैसे प्रति सेकंड १०,००० दोलन से, पेशियों का संकुंचन नहीं होता, क्योंकि इसमें क्षणिक क्षोभन से तंत्रिका पेशी की अनुक्रिया (response) नहीं होती। यदि तनाव तथा आवृत्ति (frequency) अधिक बढ़ा दी जाए (१,००,००० प्रति सेकंड), तो धारा के पथ में प्रतिरोध के कारण ऊष्मा उत्पन्न होती है। इसे डायाथर्मी कहते हैं। इससे रुधिरवाहिनियों का विस्फारण बढ़ जाता है और ऊतकों का तापन हो जाता है। ऊतकों के तापन में गरम जल या सूखे कपड़े का भी व्यवहार हो सकता है, पर इनसे तापन उतने गहरे स्थल पर नहीं पहुँचता जितना डायाथर्मी से पहुँचता है। इससे पीड़ा आदि में डायाथर्मी को अधिक लाभप्रद पाया गया है। डायाथर्मी की अनेक मशीनें बनी हैं और उनका व्यवहार दिनों दिन बढ़ रहा है।

मानसिक विकार के रोगियों में विद्युत्‌ आक्षोभ चिकित्सा का व्यवहार होता है। रोगी के कपाल पर विद्युत्‌ का इलेक्ट्रोड लगाकर नियंत्रित विद्युत्धारा कुछ निश्चित काल तक प्रवाहित की जाती है। इससे रोगी मूर्छित और चेतनहीन हो जाता है। ऐसा उपचार अवनमित अवस्था (depressed states), अंतराबंध (schizophremia) तथा अन्य प्रकार की मनोविक्षिप्ति (psychosis) में लाभदायक सिद्ध हुआ है।

रोगों के निदान के लिए अनेक वैद्युत उपकरण बने हैं। ऐसा एक उपकरण इलैक्ट्रोकार्डियोग्राम (electrocardiogram) है। हृदय के विस्पंदन (beating) से शरीर में वोल्टता उत्पन्न होती है। इस अभिलिखित कर देता है। इस उपकरण के इलेक्ट्रोड को व्यक्ति की भुजा, टाँग या छाती पर रखते हैं। यदि हृदय की कार्यशीलता में कोई अपसामान्यता है, तो जो अभिलेख प्राप्त होता है वह सामान्य अभिलेख से भिन्न होता है। एक दूसरा उपकरण इलेक्ट्रो-एनसेफेलोग्राम (electro-encephalogram) है। इसमें इलैक्ट्रोड कपाल पर लगाया जाता है। इससे जो अभिलेख प्राप्त होता है, उससे मस्तिष्क के गुछ रोगों का पता लगता है। एक तीसरा उपकरण वैद्युत्‌ मायोग्राम (electro-mayogram) है। इसमें एक छोटा सूईनुमा इलेक्ट्रोड पेशी में प्रविष्ट कराया जाता है। इससे त्वचा के वैद्युत प्रतिरोध से रोगी की भावात्मक प्रतिक्रिया का पता लगता है। हृत्स्पंद सुनने के लिए अब वैद्युत स्टेथॉस्कोप भी बने हैं, जिनसे हृत्स्पंदन सुनना बड़ा सरल हो गया है। विद्युत के उपयोग से रोग निदान, रोग चिकित्सा और औषध अनुसंधान में बड़ी प्रगति हुई है।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]