विज्ञान (हिन्दी पत्रिका)
विज्ञान, हिन्दी में वैज्ञानिक विषयों पर निकलने वाली मासिक पत्रिका है। इसका प्रकाशन सन् १९१५ के अप्रैल मास से आरम्भ हुआ था। इस पत्रिका का प्रकाशन विज्ञान परिषद् प्रयाग द्वारा किया जाता है। इसके प्रथम प्रकाशक लाला कर्मचन्द भल्ला एवं सम्पादक लाला सीताराम एवं पण्डित श्रीधर पाठक थे। पिछले लगभग सौ वर्षों से इसका अनवरत प्रकाशन होता आ रहा है। आरम्भ में इसका शुल्क ३ रूपये वार्षिक था। बृजराज, डॉ० सत्यप्रकाश, युधिष्ठिर भार्गव प्रभृति सम्पादकों ने इसका सफलतापूर्वक सम्पादन किया। सम्प्रति डॉ० शिवगोपाल मिश्र इसके सम्पादक हैं।[1]
उद्देश्य
[संपादित करें]- हिन्दी भाषा में साहित्य के वैज्ञानिक अंग की पूर्ति करना
- ग्रन्थों का अनुवाद
- लेखों का प्रकाशन
- सर्वसाधारण में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा करना
पत्रिका के विशेषांक
[संपादित करें]क्रमसं0 | विशेषांक | वर्ष |
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1 | वैज्ञानिक पारिभाषिक शब्द | सितम्बर 1930 |
2 | पौराणिक सृष्टि और विकासवाद | नवम्बर 1932 |
3 | -- | फरवरी 1934 |
4 | वैज्ञानिक युगान्तर | जून 1934 |
5 | फल संरक्षण | अक्टूबर 1934 |
6 | डॉ॰ गणेश प्रसाद स्मृति अंक | सितम्बर -अक्टूबर 1935 |
7 | उद्योग व्यवसाय अंक | अप्रैल 1936 |
8 | श्री रामदास गौड़ अंक | दिसम्बर 1937 |
9 | रजत जयंती अंक | दिसम्बर 1938 |
10 | जन्तुओं का विचित्र संसार | मार्च 1943 |
11 | जन्तुओं का विचित्र संसार | मार्च 1943 |
12 | पेड़-पौधों की अचरज भरी दुनिया | अगस्त 1943 |
13 | वनस्पति के उपयोग | दिसम्बर 1943 |
14 | खदिर | फरवरी 1944 |
15 | पारिभाषिक शब्दावली | जनवरी 1995 |
16 | मनौवैज्ञानिक चिकित्सा | मार्च 1945 |
17 | पारिभाषिक लिपि | अप्रैल 1945 |
18 | भारतीय विज्ञान कांग्रेस विषेषांक | मार्च 1953 |
19 | डॉ॰ सालिग्राम भार्गव स्मृति अंक | नव-दिस - 1953 |
20 | शिलान्यास अंक | मई-जुलाई 1956 |
21 | भारतीय विज्ञान कांग्रेस अंक | जनवरी 1961 |
22 | डॉ॰ गोरख प्रसाद स्मृति अंक | जून-जुलाई 1961 |
23 | खन्ना स्मृति अंक | फरवरी 1966 |
24 | अंतरिक्ष विज्ञान विशेषांक | दिसम्बर 1975 |
25 | वैज्ञानिक परिवा्रजक (विज्ञान और अनुसंधान संयुक्त) | 1976 |
26 | वैज्ञानिक ऋषि | 1979 |
27 | बाल विशेषांक | फरवरी 1979 |
28 | वन्य जीवन संरक्षण | नवम्बर 1980 |
29 | प्रदूषण विशेषांक | दिसम्बर 1980 |
30 | डार्विन 100 वर्ष बाद | दिस.-जन 1981-82 |
31 | ऊर्जा विशेषांक | 1983 |
32 | सम्मान समारोह विशेषांक | अक्टूबर 1983 |
33 | डॉ॰ आत्मराम स्मृति अंक | मार्च 1984 |
34 | विज्ञान कथा विशेषांक | नव. जन. 1984-85 |
35 | विज्ञान, तकनीकी और पर्यावरण 2001 अंक | जन-मार्च 1986 |
36 | हिन्दी उर्दू में बाल विज्ञान साहित्य | अक्टू0-नव01989 |
37 | पर्यावरण विशेषांक | अग.-सित0 |
38 | मानवकृत एवं प्राकृतिक आपदायें | जुलाई 1991 |
39 | पर्यावरण संरक्षक राजीव गाँधी | जून 1991 |
40 | प्रो॰ साहनी जन्मशती अंक | नवम्बर 1991 |
41 | जनसंख्या, पर्यावरण, विकास | जनवरी-मार्च 1992 |
42 | पादप रोग विज्ञान विशेषांक | नवम्बर 1992 |
43 | मरु विशेषांक | अगस्त 1995 |
44 | डॉ॰ गोरख प्रसाद जन्मशती अंक | जुलाई-अगस्त 1996 |
45 | आचार्य रामदास स्मृति अंक | नवम्बर-दिसम्बर 1996 |
46 | डॉ॰ नन्दलाल सिंह स्मृति अंक | नवम्बर 1997 |
47 | स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती स्मृति अंक | दिसम्बर 1997 |
48 | प्रो॰ भगवती प्रसाद स्मृति अंक | मई-जून 1998 |
49 | विज्ञान गल्प विशेषांक | दिसम्बर 1998 |
50 | पं0 कृष्ण बल्लभ द्विवेदी सम्मान अंक | फरवरी 1998 |
51 | श्री श्याम नारायण कपूर सम्मान अंक | मई-जून 1999 |
डॉ॰ गंगानाथ झा
[संपादित करें]विज्ञान परिषद प्रयाग के संस्थापकों में से एक ’ डॉ॰ गंगानाथ झा ‘ जी का जन्म 15 सितम्बर 1872 को दरभंगा में हुआ था। आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम0 ए0 तथा डी0 लिट की उपाधिा प्राप्त की। 1920 तक आप म्योर सेन्ट्र्रल कॉलेज प्रयाग में संस्कृत के विभागाधयक्ष रहे। 1920 से 1923 तक क्वींस ओरिएंटल संस्कृत कालेज बनारस के प्रथम भारतीय प्रिंसिपल के पद पर रहे। आपने 1923 से 1932 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्य किया। आप प्रान्तीय लेजिस्लेटिव काउंसिल के मनोनीत सदस्य भी रहे।
आपने संस्कृत, हिन्दी, मैथिली तथा अंग्रेजी भाषाओं में 20 से अधिक मौलिक ग्रन्थों की रचना की। इसके अतिरिक्त आपने संस्कृत के 19 ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद तथा 11 ग्रन्थों का संपादन भी किया। आपकी विद्वता के लिए आपको महामहोपाधयाय, विद्यासागर और एल0 एल0 डी0 की मानद उपाधिायों से विभूषित किया गया।
आप 1927 से 1930 तक विज्ञान परिषद प्रयाग के सभापति रहे। आप हिन्दी साहित्य सम्मेलन के भी सभापति रहे। 1941 में आपका निधन हो गया।
प्रो॰ सालिग्राम भार्गव
[संपादित करें]विज्ञान परिषद के संस्थापकों में से एक ’प्रो॰ सालिग्राम भार्गव‘ का जन्म 12 दिसम्बर 1888 को गुड़गांव जिले के खोरी नामक स्थान पर हुआ था। 12 वर्ष की अल्पायु में ही आपके पिता मुंशी लच्छी राम जी भार्गव का देहावसान हो गया। आपने सन् 1905 में अलवर हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1909 में आगरा कॉलेज़ से बी0 एस0 सी0 तथा 1912 में म्योर सेंट्रल कॉलेज़ इलाहाबाद से भौतिक विज्ञान में एम0 एस0 सी0 की उपाधिा प्राप्त करने के बाद आप म्योर सेंट्रल कॉलेज़ में डिमांस्ट्रेटर पद पर नियुक्त हुए। 1919 में भौतिक विज्ञान के सहायक अधयापक नियुक्त हुए और तत्कालीन संयुक्त प्रान्त की प्रान्तीय एजुकेशनल सर्विस में भी रहे। प्रयाग विश्वविद्यालय का पुनर्संगठन होने पर आप भौतिक विज्ञान विभाग में रीडर बने तथा 1946 से 1949 तक विभागाधयक्ष भी रहे। 1 मई 1949 को आपने अवकाश ग्रहण किया।
आप अभी 24 वर्ष के ही थे जब आपने डॉ॰ गंगानाथ झा, श्री रामदास गौड़ तथा प्रो॰ हमीदुद्दीन के साथ मिलकर 10 मार्च 1913 को विज्ञान परिषद प्रयाग की स्थापना की। आपने आजीवन हिन्दी भाषा में विज्ञान के प्रचार- प्रसार एवं लेखन में अपना योगदान दिया। आपने ’विज्ञान प्रवेशिका‘, ’चुम्बक‘ आदि पुस्तकों की रचना की। अप्रैल 1915 में आपने हिन्दी की सर्वप्रथम मासिक वैज्ञानिक पत्रिका ’विज्ञान‘ का प्रकाशन आरम्भ करवाया। जन साधारण में विज्ञान के प्रचार के लिए आपने अनेक अवसरों पर सुप्रसिद्ध वैज्ञानिकों के द्वारा वैज्ञानिक विषयों पर भाषण आयोजित करवाए तथा स्वयं भी व्याख्यान दिए। विज्ञान परिषद प्रयाग के मंत्री, प्रधानमंत्री तथा उपसभापति के रूप में आप आजीवन इससे जुड़े रहे। 16 सितम्बर 1953 को आपका स्वर्गवास हो गया।
श्री रामदास गौड़
[संपादित करें]विज्ञान परिषद के संस्थापकों में से एक श्री रामदास गौड़ का जन्म सन् 1881 में जौनपुर में हुआ था। आपकी प्रारंम्भिक शिक्षा जौनपुर व वाराणसी में हुई। 1907 में म्योर सेन्ट्रल कॉलेज़ से आपने बी0 ए0 की पढाई की। आप सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज़ में रसायन के सहायक अधयापक रहे। 1908 से 1910 तक कायस्थ पाठशाला, प्रयाग में रसायन के अधयापक रहे। रसायन से एम0 एस0 सी0 करके आप प्रयाग विश्वविद्यालय में रसायन के डिमांस्ट्रेटर भी रहे। 1918 में आप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे परन्तु 1921 में असहयोग आन्दोलन के दौरान नौकरी छोड़ दी। आप कांग्रेस की प्रान्तीय समिति के सदस्य तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थायी समिति के भी सदस्य रहे। डेढ़ वर्ष तक आप जेल में भी रहे। आपने 23 पुस्तकें लिखीं तथा 200 से अधिाक लेख लिखे। आपके ’ विज्ञान हस्तामलक ‘ को मंगला प्रसाद पुरस्कार 1936 में प्रदान किया गया। 1913 में आपने विज्ञान परिषद की स्थापना की।
1933-1937 तक आप ’विज्ञान‘ पत्रिका के संपादक रहे तथा 1915-1916 तक परिषद के प्रधानमंत्री रहे। आप ’लिविंग एन्साइक्लोपीडिया‘ के नाम से प्रसिद्ध थे। 13 सितम्बर 1938 को आपका निधन हो गया।