विक्रमशिला


विक्रमशिला महाबिहार भारत का एक प्रसिद्ध शिक्षा-केन्द्र (विश्वविद्यालय) था। नालन्दा महाविहार और विक्रमशिला दोनों पाल राजवंश के राज्यकाल में शिक्षा के लिए जगत्प्रसिद्ध थे। वर्तमान समय में बिहार के भागलपुर जिले का अन्तिचक गाँव वहीं है जहाँ विक्रमशिला थी। इसकी स्थापना ८वीं शताब्दी में पाल राजा धर्मपाल ने की थी।[1] अब इस विश्वविद्यालय के केवल खण्डहर ही अवशेष हैं।[2] मान्यता है कि बख्तियार खिलजी नामक मुस्लिम आक्रमणकारी ने सन ११९३ के आसपास इसका विध्वंश कर दिया था।
इस विश्वविद्यालय (महाविहार) के बारे में जानकारी का मुख्य स्रोत तिब्बती इतिहासकार लामा तारानाथ द्वारा रचित ग्रन्थ है जिसका शिफ़नर द्वारा जर्मन भाषा में अनुवाद (Geschichte des Buddhismus / बौद्ध धर्म का इतिहास) किया गया है। तारानाथ के अनुसार इसकी स्थापना पाल राजवंश के महान् शासक धर्मपाल द्वारा की गयी थी। यहाँ पर लगभग 160 विहार थे, जिनमें अनेक विशाल प्रकोष्ठ बने हुए थे। महाविहार में ६ अध्ययन केन्द्र थे जिसमें से प्रत्येक में १०८ अध्यापक नियुक्त थे। छः द्वारों पर छः द्वारपण्डित नियुक्त थे जो महाविहार में प्रवेश के इच्छुक विद्यार्थियों की परीक्षा करते थे। इन द्वारपण्डितों में पूर्वी द्वार पर रत्नाकरशान्ति, पश्चिमी द्वार पर वागीश्वरकीर्ति, उत्तरी द्वार पर नरोप, दक्षिणी द्वार पर प्रज्ञाकरमति, प्रथम मध्य द्वार पर रत्नवज्र, और द्वितीय मध्य द्वार पर ज्ञानश्रीमित्र नियुक्त थे।
नालन्दा की भाँति विक्रमशिला विश्वविद्यालय भी सर्वत्र सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। इस महाविहार के पण्डितों का बौद्ध साहित्य और दर्शन में महान योगदान है। इन विद्वानों में कुछ प्रसिद्ध नाम हैं- अतीश दीपंकर, वीर्यसिंह, तथागत रक्षित, मंजुश्री, धर्मकीर्ति,शाक्य श्रीभद्र और अभयंकर गुप्त।[3] अतीश दीपंकर इस शिक्षाकेन्द्र के महान प्रतिभाशाली विद्वानों में से एक थे। वे यहीं के एक द्वारपण्डित थे। उन्होंने लगभग २०० ग्रंथों की रचना की थी। वे ओदन्तपुरी के विद्यालय के छात्र थे और विक्रमशिला के आचार्य। 11वीं शती में तिब्बत के राजा के निमंत्रण पर ये वहाँ पर गए थे। तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में इनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण समझा जाता है।
इस विश्वविद्यालय ने अपनी स्थापना के तुरन्त बाद ही अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त कर लिया था। विक्रमशिला विश्वविद्यालय के प्रख्यात विद्वानों की एक लम्बी सूची है। तिब्बत के साथ इस शिक्षा केन्द्र का प्रारम्भ से ही विशेष सम्बंध रहा है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय में विद्याध्ययन के लिए आने वाले तिब्बत के विद्वानों के लिए अलग से एक अतिथिशाला थी। विक्रमशिला से अनेक विद्वान तिब्बत गए थे तथा वहाँ उन्होंने कई ग्रन्थों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया। इन विद्वानों में सबसे अधिक प्रसिद्ध दीपंकर श्रीज्ञान थे जो उपाध्याय अतीश के नाम से विख्यात हैं।
विक्रमशिला का पुस्तकालय बहुत समृद्ध था। विक्रमशिला विश्वविद्यालय में बारहवीं शताब्दी में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों की संख्या ३००० थी। विश्वविद्यालय के कुलपति ६ भिक्षुओं के एक मण्डल की सहायता से प्रबंध तथा व्यवस्था करते थे। कुलपति के अधीन ४ द्वार-पण्डितों की एक परिषद प्रवेश लेने हेतु आये विद्यार्थियों की परीक्षा लेती थी।
इस विश्वविद्यालय में व्याकरण, न्याय, दर्शन और तंत्र के अध्ययन की विशेष व्यवस्था थी। इस विश्वविद्यालय की व्यवस्था अत्यधिक सुसंगठित थी। बंगाल के शासक शिक्षा की समाप्ति पर विद्यार्थियों को उपाधि देते थे। सन १२०३ ई० में बख्तियार खिलजी ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया।[4]
यहाँ बौद्ध धर्म और दर्शन के अतिरिक्त न्याय, तत्त्वज्ञान, व्याकरण आदि की भी शिक्षा दी जाती थी। विद्यार्थियों की सुविधा के लिए पुस्तकें उपलब्ध कराई जाती थीं तथा उनकी जिज्ञासाओं का समाधान विद्वान आचार्यों द्वारा किया जाता था। यहाँ देश से ही नहीं विदेशों से भी विद्याध्ययन के लिए छात्र आते थे। शिक्षा समाप्ति के बाद विद्यार्थी को उपाधि प्राप्त होती थी जो उसके विषय की दक्षता का प्रमाण मानी जाती थी। पूर्व मध्ययुग में विक्रमशिला विश्वविद्यालय के अतिरिक्त कोई शिक्षा केन्द्र इतना महत्त्वपूर्ण नहीं था कि सुदूर प्रान्तों के विद्यार्थी जहाँ विद्या अध्ययन के लिए जाएँ। इसीलिए यहाँ छात्रों की संख्या बहुत अधिक थी। यहाँ के अध्यापकों की संख्या ही ३००० के लगभग थी अतः विद्यार्थियों का उनसे तीन गुना होना तो सर्वथा स्वाभाविक ही था।
स्थिति
[संपादित करें]कुछ विद्वानों का मत है कि इस विश्वविद्यालय की स्थिति वहाँ थी जहाँ वर्तमान समय में कहलगाँव रेल स्टेशन (भागलपुर नगर से 19 मील दूर) स्थित है। कहलगाँव से तीन मील पूर्व गंगा नदी के तट पर 'बटेश्वरनाथ का टीला' नामक स्थान है, जहाँ पर अनेक प्राचीन खण्डहर पड़े हुए हैं। इनसे अनेक मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं, जो इस स्थान की प्राचीनता सिद्ध करती हैं। अन्य विद्वानों के विचार में विक्रमशिला, ज़िला भागलपुर में पथरघाट नामक स्थान के निकट बसा हुआ था।
मुस्लिम आक्रमण
[संपादित करें]विक्रमशिला विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ न्याय, तत्वज्ञान एवं व्याकरण की शिक्षा दी जाती थी। 12वीं शती में यह विश्वविद्यालय एक विराट् शिक्षा–संस्था के रूप में प्रसिद्ध था। इस समय में यहाँ पर तीन सहस्र विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए समुचित व्यवस्था थी। संस्था का एक प्रधान अध्यक्ष तथा छः विद्वानों की एक समीति मिलकर विद्यालय की परीक्षा, शिक्षा, अनुशासन आदि का प्रबन्ध करती थी। 1203 ई. में मुसलमानों ने जब बिहार पर आक्रमण किया, तब नालन्दा की भाँति विक्रमशिला को भी उन्होंने पूर्णरूपेण नष्ट–भ्रष्ट कर दिया। बख़्तियार ख़िलजी ने 1202-1203 ई. में विक्रमशिला महाविहार को नष्ट कर दिया था। यहाँ के विशाल पुस्तकालय को आग के हवाले कर दिया था, उस समय यहाँ पर 160 विहार थे जहां विद्यार्थी अध्ययनरतथे। इस प्रकार यह महान विश्वविद्यालय, जो उस समय एशिया भर में विख्यात था, खण्डहरों के रूप में परिणत हो गया।
खुदाई कार्य
[संपादित करें]विक्रमशिला के बारे में सबसे पहले राहुल सांकृत्यायन ने सुल्तानगंज के निकट होने का अंदेशा प्रकट किया था। उसका मुख्य कारण था कि अंग्रेज़ों के जमाने में सुल्तानगंज के निकट एक गांव में बुद्ध की प्रतिमा मिली थी। बावजूद उसके अंग्रेज़ों ने विक्रमशिला के बारे में पता लगाने का प्रयास नहीं किया। इसके चलते विक्रमशिला की खुदाई पुरातत्त्व विभाग द्वारा 1986 के आसपास शुरू हुई।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "विक्रमशिला विश्वविद्यालय". मिथिला विहार. अभिगमन तिथि: १६ अगस्त २००९.
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(help)[मृत कड़ियाँ] - ↑ "राष्ट्रीय महत्त्व की धरोहर..." लाइवहिंदुस्तान. अभिगमन तिथि: १६ अगस्त २००९.
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(help)[मृत कड़ियाँ] - ↑ The Glorious Teachers of Vikramshila
- ↑ ईश्वरी प्रसाद, पद्मभूषण (जुलाई १९८६). प्राचीन भारतीय संस्कृति, कला, राजनीति, धर्म तथा दर्शन. इलाहाबाद: मीनू पब्लिकेशन, म्योर रोड. p. ३५५ से ३५६.
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इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कडियाँ
[संपादित करें]- विक्रमशिला का इतिहास (लेखक- परशुराम ठाकुर ब्रह्मवादी)
- आईये, जाने भारत के प्राचीन शिक्षा केन्द्रों के बारें में
- विक्रमशिलाविश्व का दूसरा आवासीय विश्वविद्यालय (सुबोध कुमार नंदन)
- The Glorious Teachers of Vikramshila