विकिपीडिया वार्ता:स्वशिक्षा/सम्पादन

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What is zero प्रवेश कुमार (वार्ता) 16:59, 26 जुलाई 2017 (UTC)[उत्तर दें]

चन्द्रबदनी[संपादित करें]

माँ चन्द्रबदनी गोपाल चौहान (वार्ता) 18:07, 21 सितंबर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

तनाव प्रबंधन[संपादित करें]

               “तनाव प्रबंधन” 

“तनाव” एक शब्द जिसे सुनते ही दिमाग में कुछ तस्वीर सी बन जाती हे हर ख्याल अलग हर रंग अलग हर तस्वीर एक दुसरे से अलग पर उन सबमे एक जैसा जो केवल प्रतीत होता हे यह न तो दिखाई पड़ता हे न आप इसे समज सकते हे, हाँ यह भी ठीक उसी प्रकार दर्द की भांति हे जिसे केवल महसूस किया जा सकता हेI अच्छा तनाव होता क्या हे यह आता क्यों हे और यह जाता कहा हे इस पर चर्चा करने से पहले हमे यह जान लेना चाहिए की तनाव किस प्रकार का हे, आप सोच रहे होंगे की में क्या बात कर रहा हूँ तनाव का प्रकार भी होता हे क्या? जी हाँ तनाव का प्रकार होता हे, एक वह तनाव होता हे जो परिस्थिति से उत्पन्न होता हे, एक वो जो हम स्वतः उत्पन्न करते हे और एक वो जो तनाव न होकर भी बहुत बड़ा तनाव बन जाता हे I परिस्थितयों से उत्पन्न तनाव तो परिस्थितया दूर कर देती हे परन्तु स्वतः उत्पन्न तनाव हमेशा आपके इर्द गिर्द एक घर सा बना लेता हे जहाँ से आने का मार्ग आपको दिखाई नहीं देता हे और तीसरा जो तनाव न होकर भी बहुत बड़ा तनाव बनता हे वो आपको हमेशा गलत कदम उठाने के लिए प्रेरित करता हे I चलिए एक उदहारण के तौर पर हम तीनो में अंतर भी समज लेते हे की कोनसा तनाव स्वतः उत्पन्न होता हे और कोनसा परिस्थिति से उत्पन्न होता हे और कोनसा वो जो तनाव नहीं होते हुए भी तनाव बन जाता हे आईये तीन घटनाओ पर प्रकाश डालते हे, प्रथम :- मोहन सुबह उठकर अपने दिनचर्या के कार्यों में लगा हुआ था, आज खेत में काम ज्यादा था तो उसे थोडा जल्दी निकलना था वरना शाम को घर लौटते हुए अँधेरा हो जाता I अब गाँव में तो कच्ची सड़क बिना बत्ती की पगडण्डी और वही अपना लालटेन जिंदाबाद कोई शहर तो हे नहीं की जहाँ सड़क के दोनों किनारे बड़ी बड़ी रोड लाइट के उझाले में रात का अँधेरा भी कही हार सा जाता हे I मोहन निकल पड़ा था खेंत पर पहुच कर रोज की भांति अपने कार्य में लग गया था, काम करते करते दुपहरी हो चली थी मोहन ने एक पेड़ के निचे छाँव देखकर अपना अंगोछा जो सर में लपेटे हुए था उसे जमीन पर बिछाकर अपनी पोटली खोली जिसमे दो चार रोटी कुछ प्याज के टुकड़े और कच्चे आम का आचार था और खाना शुरू कर दिया I अभी कुछ दो चार निवाले ही खाना शुरू किया था की अचानक घोमा दौड़ता हुआ आया यह रिश्ते में उसका भतीजा था, की काका चलो बसंती काकी को सांप ने काट लिया हे और काकी बेहोश हो गयी हे वैद जी को बुलावा भेज दिया हे आते ही होंगे मोहन झट से अपनी जगह से खड़ा हुआ और एक दौड़ अपने घर के लिए लगा दी I

दूसरा दृश्य :- आकाश, तो पहले इन जनाब के बारे में थोडा सा जान लेते हे यह एक निजी बैंक में अच्छे पद पर कार्यरत थोड़े से आलसी या यो कहे की समय की कद्र न करने वाले अव्य्वाहर्कुशल और स्वार्थी प्रवति के हे I सुबह बाथरूम से नहाकर निकले ही थे की कुछ ही देर में पत्नी को आवाज लगायी अरे उषा मेरा पर्स कहा हे बेल्ट कही दिखाई नहीं दे रहा हे मुझे ऑफिस के लिए लेट हो रहा हेI कितनी बार कहा हे की थोडा जल्दी उठा करो पर आप हो की बिस्तर छोड़ने का नाम ही नहीं लेते हो फिर ये रोज रोज का नाटक की बेल्ट नहीं मिल रहा हे पर्स कहा हे शाम को सही जगह रखा करो तो सुबह ढूँढना नहीं पड़े आपका और मेरा दोनों का समय बचेगा I अच्छा अच्छा तुम ज्यादा लेक्चर मत दो मुझे देर हो रही हे में निकलता हूँ वैसे भी बॉस आजकल कुछ ज्यादा खुश नहीं हे मेरे काम से ऑफिस में उनकी सुनो घर पे तुम्हारी हमारी तो कोई जिन्दगी ही नहीं हे, ऑफिस पहुचे किसी से राम राम कुछ नहीं सीधा अपने केबिन में जाकर बैठे और घंटी बजाई चपरासी दौड़ता हुआ आया हाँ साहब आपने बुलाया? क्या साहब साहब कितनी बार कहा हे तुमसे मेरे आने से पहले पानी की बोतल भरी हुई होनी चाहिए मेरी चाय का क्या हुआ अभी तक आई नहीं हे? बिचारा चपरासी कांपता हुआ बोला बस साहब अभी लाया, अरे तो जाना यहाँ खड़ा खड़ा मेरा मुंह क्या देख रहा हे जा यहाँ से I एक तो काम का इतना दबाव ऊपर से ये साले कामचोर चपरासी कोई भी काम ठीक से नहीं करते हे, कुछ इसी तरह बडबडाते हुए अपने काम में लग गए थे ये जनाब I दुपहर में अचानक दिल्ली से बैंक के बड़े डायरेक्टर ऑफिस में आ पहुचे थे ऑफिस का माहोल बिलकुल बदल गया था की अचानक आज इतने बड़े साहब यहाँ पर तो सब घबरा रहे थे I एक जरुरी मीटिंग बुलाई गयी और उसमे यह सन्देश दिया गया की कपिल जो की ओहदे में आकाश से एक पद निचे थे उनका प्रमोशन हो गया हे और उन्हें अब आकाश से भी ऊँचा पद मिलने वाला हे I ऑफिस में पार्टी का माहोल सा था सभी ने मस्ती का मजा लिया और अपने अपने घर को चल दिए, परन्तु आकाश घर के लिए नहीं कही और निकल पड़ा था रास्ते में दारू की दुकान से एक बोतल बियर की और अकेली सुनसान जगहI

तीसरा दृश्य :- पूजा और प्रियंका यह दोनों अलग जगह अलग वातावरण और अलग क्षेत्र से हे परन्तु दोनों में एक समानता जिसने इनको इस तीसरे दृश्य के लिए हमारे बिच खड़ा कर दिया हे I निखिल एक बड़े खानदान का इकलोता पुत्र शहर के नामी विध्यालय का छात्र दिखने में स्मार्ट और भी बहुत सारी खुबिया उसे दुसरो से अलग पहचान देती हे, अब चूँकि घर का लाडला हे तो बड़े ही लाड प्यार से पला बढ़ा हे किसी चीज की मनाही नहीं हे, दोस्तों के साथ घूमना फिरना बाजार में खरीददारी से लेकर थिएटर में मूवी देखना पार्टी करना सभी की सहमती मिली हुई हे, कोई रोकने वाला नहीं कोई पूछने वाला नहीं, एक दिन फेसबुक पर निखिल की दोस्ती पूजा से हो जाती हे पूजा मिडिल क्लास में पैदा हुई एक सरकारी स्कूल के बाबु की लड़की हे दिखने में सुन्दर पूजा को भी निखिल पसंद आ जाता हे दोनों में नजदीकियां शुरू हो जाती हे, यह नजदीकियां कब धीरे धीरे बढ़ जाती हे पता ही नहीं चलता हे I दोनों एक दुसरे के बिना जीने मरने की कसमे खाने लगते हे और चोरी छुपे मिलना करना यहाँ तक की शारीरिक संबंधो से भी अछूते नहीं रहते हे, अब कम उम्र में यह सब आजकल बड़ा जल्दी हो जाता हे तो जाहिर सी बात हे उन्हें भी यह सब इतना बड़ा कदम नहीं लगा होगा, कहानी में मोड़ तब आता हे जब पूजा को यह पता चलता हे की निखिल का किसी और लड़की के साथ भी ठीक वेसा ही सम्बन्ध हे तो ह्रदय को गहरा आघात पहुचता हे और वो टूट सी जाती हे अब कहे तो किस से कहे जब पता नहीं था तब तक दोस्तों की घरवालों की उतनी जरुरत महसूस नहीं हुयी सब की कमी निखिल जो पूरी कर देता था अब जब निखिल की सच्चाई सामने हे परन्तु किसके सामने जाकर अपने दिल की तकलीफ बताये I पूजा इन हालात में अकेले रहना शुरू कर देती हे अकेलेपन को दूर करने के लिए ड्रग्स सिगरेट इत्यादि नशों में लिप्त हो जाती हे और फिर भी जिन्दगी को नरक के सामान समज एक दिन ख़ुदकुशी कर लेती हेI

प्रियंका एक गरीब परिवार की घर में सबसे बड़ी दो छोटे भाइयों की इकलोती बहन , कक्षा बारहवी का नतीजा आ गया था तो पिताजी ने आगे की पढाई के लिए महाविद्यालय में भर्ती करवाना चाहा, परन्तु प्रियंका अपने दोस्तों के साथ बाहर जाकर कोचिंग करना चाहती थी I वो भी कोचिंग के बाद कम्पटीशन्स के एग्जाम देकर मेडिकल के क्षेत्र में अपना मुकाम बनाना चाहती थी पिताजी से कहा की में भी दुसरे शहर जाकर कोचिंग करना चाहती हूँ सुनते ही पिताजी की आँखों से आंसू छलक पड़े, अब चूँकि घर में सबसे बड़ी थी और पिताजी की लाडली बिटिया थी तो उसके पिता उस से दूर जाने का सोच के ही रो पड़े थे, माँ ने समझाया की बेटी अब बड़ी हो गयी हे आप ऐसे कमझोर पड़ोगे तो कैसे काम चलेगा , एक दिन इसके हाथ भी पीले करने पड़ेंगे, बड़ा कठोर मन करके मदनलाल जो की एक निजी कंपनी में चपरासी था उसने शहर की पढाई के लिए पैसे जुटाने का कार्य शुरू कर दिया I मदनलाल और उसकी पत्नी दोनों ने शहर में जाकर बेटे को कोचिंग में प्रवेश दिलाया और बड़ा भारी मन करके उससे विदा ली , जाते जाते कह रहा था की रोज फ़ोन करना खाना ठीक से खाना कोई तकलीफ हो तो बताना मन में मत रखना, हां पिताजी में रोज फ़ोन करूँगा माँ त्तुम पिताजी का ध्यान रखना यह कहकर कोचिंग संसथान के दरवाजे से दोनों एक दुसरे से विदा ले चुके थे I धीरे धीरे दिन गुजरते गए प्रियंका शहर की मस्तियों और दोस्तों में अपना समय व्यतीत करने लगी , मन उसका पढाई में इतना लग नहीं पाता था, और जिस कार्य से यहाँ आई थी उसमे वो सफलता हासिल नहीं कर पा रही थी जो वो हासिल करना चाहती था, अब चूँकि सफलता उस रूप में हासिल नहीं हो रही थी तो प्रियंका को डर सा लगने लगा था की अगर एग्जाम में पास नहीं हुई तो घर पे क्या मुहँ दिखाउंगी माँ पिताजी क्या सोचेंगे यही सब दिनभर उसके दिमाग में चलता रहता था I अंततः वह दिन भी आ गया एग्जाम देकर लोटी प्रियंका ने आज घर पर फ़ोन नहीं किया था, पिताजी चिंतित थे की आज बिटिया का फ़ोन नहीं आया हे क्या बात हे उन्होंने कोचिंग संसथान में फ़ोन करके पता किया की प्रियंका कहा हे उसका फ़ोन नहीं लगा रहा हे, हॉस्टल में पता किया तो वो कमरे का दरवाजा अन्दर से बंद था जोर जोर की आवाज देने पर भी कोई दरवाजा नहीं खोल रहा था, आखिर में दरवाजा तोडा तो वह खड़ा हर शक्श हक्का बक्का रह गया प्रियंका ने पंखे से लटककर फांसी लगा ली थी I एक ख़त लिखा था उसने अपने पिताजी के लिए की में एग्जाम में पास नहीं हो पाऊँगी मेरा एग्जाम बहुत बुरा हुआ में किस मुंह से आपके सामने आती मुज्मे इतनी हिम्मत नहीं बची थी की आपसे नजरे मिला सकू इसलिए में ये राह चुन रही हु मुझे हो सके तो माफ़ कर देना आपकी किट्टू I


दोस्तों तीनो ही या यूँ कहू की चारों ही दृश्य आपके सामने हे चारों में ही तनाव हे एक वो तनाव जो घोमा की बात सुनकर मोहन के मन में उत्पन्न हुआ और मोहन ने घर के लिए दौड़ लगायी,एक वो तनाव जो कपिल की तरक्की से आकाश के मन में उत्पन्न हुआ और कपिल ने एक अलग राह पकड ली, एक वो तनाव जो जिसे पूजा और प्रियंका ने तनाव का रूप दिया था I जो तनाव मोहन ने महसूस किया वो परिश्थिति से उत्पन्न हुआ था और जो तनाव कपिल ने महसूस किया वो उसने स्वतः उत्पन्न किया था और एक वो जिसे पूजा व् प्रियंका ने तनाव का रूप दे दिया था मोहन का तनाव तो वैद जी की दी हुई दवाई से उसकी पत्नी के ठीक होते ही चला गया था, आकाश का तनाव हर पल उसके साथ उसके दिलों दिमाग पर अपना कब्ज़ा जमा चूका था हाँ चूँकि आकाश ने जिन्दगी समाप्त करने के बारे में नहीं सोचा था तो उसे हम पूजा व् प्रियंका के तनाव से कम की श्रेणी में रखेंगे परन्तु जो कदम पूजा और प्रियंका ने उठाया तनाव का नाम देकर वो वास्तव में तनाव था ही नहीं I और यह जो वास्तव में तनाव नहीं होता हे और तनाव का रूप लेता हे यह सबसे ज्यादा खतरनाक होता हे हमे इस से बचकर रहना होगा, इसे हराने की जरूरत नहीं हे आप अपनों से खुलकर अपनी तकलीफ बांटे यह स्वतः ख़त्म हो जायेगा I ये जिसे हम तनाव का रूप देते हे यह हमारे जीवन को अंधकार की और धकेल देता हे, आप चाहे किसी विध्यालय के विध्यार्थी हे किसी सरकारी या निजी पद पर कार्यरत नौकरी पेशा व्यक्ति हे या छोटे बड़े व्यवसायी कोई भी हो एक बात का हमेशा ख्याल रखे आप अपना बेहतर करने में ध्यान दे किसी और का बेहतर देखकर उससे बेहतर करने का न सोचे अपनी विफलताओं से घबराये नहीं यह ख्याल आपको कई मार्गो से ले जाता हुआ एक ऐसे तनाव में जकड लेता हे जिसका मार्ग केवल पतन की और ही जाता हे I एक सवाल क्या हमारे द्वारा स्वतः उत्पन्न होने वाले तनाव का और जिसे हम तनाव का रूप देते हे उनसे छुटकारा पाया जा सकता हे क्या ? जी हाँ दोस्तों उसका हल होता हे तनाव से मुक्त होने के लिए चाहिए एक बेहतर इच्छाशक्ति एक मनोबल,एक साधना और एक ख्याल , यहाँ इच्छाशक्ति का अर्थ आपके मन से हे मनोबल का आपके मित्रों से हे और साधना का अर्थ हर उस कार्य से हे जो आपको प्रसन्न रखता हे, और ख्याल जो केवल आपको अपने माता पिता अपने बच्चों अपने परिवार के बारे में रहना चाहिए क्यूंकि आपका एक गलत कदम आपके जाने के बाद उनको कितने दुःख कितनी यातनाये देकर जाता हे इसका आप शायद ख्याल नहीं करते हे I ख्याल जरुर करे जीवन के हर पथ पर आपकी विफलताओं को हराने वाला आपका परिवार आपके माता पिता हर वक़्त हर परिस्थिति में आपके साथ खड़े होंगे और अगर वो आपके साथ खड़े हे तो में डंके की चोट पर कह सकता हूँ की कोई भी डर कोई भी विफलता कभी किसी तनाव का रूप नहीं ले पाएंगी I यदि आप मन से किसी कार्य को करेंगे जिसको करने से आप अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव करते हे और आपके मित्र आपके साथ खड़े हे तो निश्चित तौर पर कोई भी तनाव आपको अपनी पकड में नहीं रख पाएंगी I

ऋष्यंत ओझा उदयपुर राजस्थान 8058231333

Doctor of physiology Tauseef Al Ismail (वार्ता) 00:53, 30 अक्टूबर 2019 (UTC)[उत्तर दें]