विकिपीडिया:आज का आलेख - पुरालेख/२०१०/फरवरी

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१ फरवरी २०१०[संपादित करें]

विश्व पुस्तक मेला, २०१०
विश्व पुस्तक मेला, २०१०
विश्व पुस्तक मेला २०१०, नई दिल्ली में ३० जनवरी, २०१० से प्रगति मैदान में आरंभ हुआ है। यह मेला ७ फरवरी, २०१० तक चलेगा। यहां एक दर्जन से अधिक हॉल और खुले में टेंट में लाखों पुस्तकों का प्रदर्शन किया गया। यह १९वां विश्व पुस्तक मेला नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा एक वर्ष के अंतराल पर आयोजित किया जाता है। इस मेले को इस वर्ष राष्ट्रकुल खेल को समर्पित किया गया है। कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम एक पूरा पवेलियन है, जिसमें खेल से जुड़ी दुनिया भर की किताबें हैं। इसके लिए कैटलॉग भी बनाया गया है, ताकि बाद में भी उन पुस्तकों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सके और उसका लाभ उठाया जा सके। यहां पं.जवाहरलाल नेहरू पर अलग से पुस्तकें प्रदर्शित की गई हैं। इसके तहत नेहरू पर लिखी दुनिया भर की किताबों को शामिल किया गया है। मेले में एक बाल-पवेलियन भी है, जिसमें अनेक एन.जी.ओ द्वारा बच्चों की रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने वाली गतिविधियां हो रही हैं। विस्तार में...

२ फरवरी २०१०[संपादित करें]

मेले का प्रवेशद्वार-२०१०
मेले का प्रवेशद्वार-२०१०
सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला, भारत की एवं शिल्पियों की हस्तकला का १५ दिन चलने वाला मेला लोगों को ग्रामीण माहौल और ग्रामीण संस्कृति का परिचय देता है। यह मेला हरियाणा राज्य के फरीदाबाद शहर के दिल्ली के निकटवर्ती सीमा से लगे सूरजकुंड क्षेत्र में प्रतिवर्ष लगता है। यह मेला लगभग ढाई दशक से आयोजित होता आ रहा है। वर्तमान में इस मेले में हस्तशिल्पी और हथकरघा कारीगरों के अलावा विविध अंचलों की वस्त्र परंपरा, लोक कला, लोक व्यंजनों के अतिरिक्त लोक संगीत और लोक नृत्यों का भी संगम होता है। इस मेले में हर वर्ष किसी एक राज्य को थीम बना कर उसकी कला, संस्कृति, सामाजिक परिवेश और परंपराओं को प्रदर्शित किया जाता है। वर्ष २०१० में राजस्थान थीम राज्य है। इसे दूसरी बार यह गौरव प्राप्त हुआ है। मेले में लगे स्टॉल हर क्षेत्र की कला से परिचित कराते हैं। सार्क देशों एवं थाईलैंड, तजाकिस्तान और मिस्र के कलाशिल्पी भी यहां आते हैं। विस्तार में...

३ फरवरी २०१०[संपादित करें]

कॉर्टिकल स्प्रैडिंग डिप्रेशन का एनिमेशन चित्र
कॉर्टिकल स्प्रैडिंग डिप्रेशन का एनिमेशन चित्र
अर्धकपारी या माइग्रेन एक सिरदर्द का रोग है। इसमें सिर के आधे भाग में भीषण दर्द होता है। मान्यता अनुसार इसका कोई इलाज नहीं है, किंतु इससे असरदार तरीके से निपटा जा सकता है। इस रोग में कभी कभी सिर के एक हिस्से में बुरी तरह धुन देने वाले मुक्कों का एहसास होता है, और लगता है कि सिर अभी फट जाएगा। उस समय अत्यंत साधारण काम करना भी मुश्किल हो जाता है। माइग्रेन पुरुषों की तुलना में महिलाओं को तीन गुना अधिक प्रभावित करता है। प्रमुख कारणों में तनाव होना, लगातार कई दिनों तक नींद पूरी न होना, हार्मोनल परिवर्तन, शारीरिक थकान, चमचमाती रोशनियां, कब्ज, नशीली दवाओं व शराब का सेवन आते हैं। कई मामलों में ऋतु परिवर्तन, कॉफी का अत्यधिक सेवन, किसी प्रकार की गंध और सिगरेट का धुआं आदि कारण भी माइग्रेन की समस्या का कारण देखे गये हैं। विस्तार में...

४ फरवरी २०१०[संपादित करें]

आयोडीन-१२३ स्कैन
आयोडीन-१२३ स्कैन
नाभिकीय चिकित्सा एक प्रकार की चिकित्सकीय जांच तकनीक होती है। इसमें रोगों चाहे आरंभिक अवस्था में हो हो या गंभीर अवस्था में, उसकी गहन जांच और उपचार संभव है। कोशिका की संरचना और जैविक रचना में हो रहे परिवर्तनों पर आधारित इस तकनीक से चिकित्सा की जाती है। यह तकनीक सुरक्षित, कम खर्चीली और दर्दरहित चिकित्सा तकनीक है। सामान्यतया किसी प्रकार के रोग होने के बाद ही सी. टी. स्कैन, एम.आर.आई और एक्स-रे आदि से परीक्षण करने से प्रभावित अंगो की स्थिति का पता चल पाता है। इस पद्धति में रोगी को एक रेडियोधर्मी समस्थानिक को दवाई रूप में इंजेक्स्शन के रास्ते शरीर में दिया जाता है। फिर उसके रास्ते को स्कैनिंग के जरिये देखकर पता लगाय़ा जाता है, कि शरीर के किस भाग में कौन सा रोग हो रहा है। इसके साथ ही इनकी स्कैनिंग के कुछ दुष्प्रभाव (साइड इफैक्ट) की भी संभावना होती है।  विस्तार में...

५ फरवरी २०१०[संपादित करें]

आई.ए.ई.ए का ध्वज
आई.ए.ई.ए का ध्वज
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण एक स्वायत्त विश्व संस्था है, जिसका उद्देश्य विश्व में परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना है। यह परमाणु ऊर्जा के सैन्य उपयोग को किसी भी प्रकार रोकने में प्रयासरत रहती है। इस संस्था का गठन २९ जुलाई, १९५७ को हुआ था। इसका मुख्यालय वियना, आस्ट्रिया में है। संस्था ने १९८६ में रूस के चेरनोबल में हुई नाभिकीय दुर्घटना के बाद अपने नाभिकीय सुरक्षा कार्यक्रम को विस्तार दिया है। इसके वर्तमान महासचिव मिस्र मूल के मोहम्मद अलबारदेई को २००५ का शांति नोबेल पुरस्कार दिया गया। इसके प्रथम महासचिव डब्ल्यू स्टर्लिंग कोल (१९५७-१९६१) थे। आईएईए बोर्ड के ३५ सदस्य देशों में से २६ नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह सदस्य देश हैं। इस संस्था के मुख्यत: तीन अंग हैं-बोर्ड ऑफ गर्वनर्स, जनरल कांफ्रेंस और सचिवालय।  विस्तार में...

६ फरवरी २०१०[संपादित करें]

रमेशचंद्र सिंह मटियानी
रमेशचंद्र सिंह मटियानी
शैलेश मटियानी (१४ अक्तूबर १९३१-२४ अप्रैल २००१) का जन्म अल्मोड़ा के बाड़ेछीना गांव में हुआ था। उनका मूल नाम रमेशचंद्र सिंह मटियानी था तथा आरंभिक वर्षों में वे रमेश मटियानी 'शैलेश' नाम से लिखा करते थे। लेखक बनने की उनकी इच्छा बड़ी जिजीविषापूर्ण थी। १९९२ में कुमाऊं विश्वविद्यालय ने उन्हें डी० लिट० की मानद उपाधि से सम्मानित किया। जीवन के अंतिम वर्षों में वे हल्द्वानी आ गए। विक्षिप्तता की स्थिति में उनकी मृत्यु दिल्ली के शहादरा अस्पताल में हुई। इनकी प्रमुख कृतियों में महाभोज, चील, प्यास और पत्थर, कहानी संग्रह; हौलदार, चिट्‌ठी रसेन उपन्यास और जनता और साहित्य, यथा प्रसंग, कभी-कभार निबंध हैं। मटियानी जी को उत्तर प्रदेश सरकार का संस्थागत सम्मान, शारदा सम्मान, देवरिया केडिया सम्मान, साधना सम्मान और लोहिया सम्मान दिया गया। उनकी कृतियों के कालजयी महत्व को देखते हुए प्रेमचंद के बाद मटियानी का नाम लिया जाता है। विस्तार में...

७ फरवरी २०१०[संपादित करें]

जी-७७ समूह का ध्वज
जी-७७ समूह का ध्वज
जी-७७ समूह (अंग्रेज़ी:ग्रुप ऑफ 77, या जी-77) विश्व के विकासशील देशों का एक समूह है। यह संगठन हालांकि संयुक्त राष्ट्र के शेष समूहों की अपेक्षा कम मजबूत है, किन्तु विकासशील देशों के हितों को आगे रखने वाला संयुक्त राष्ट्र में यह सबसे बड़ा समूह है। इसके कार्यालय विश्व के कई शहरों में हैं जिनमें जेनेवा, नैरोबी, रोम, वियना और वाशिंगटन डी.सी. प्रमुख हैं। जी-77 समूह की मूल स्थापना ७७ देशों ने मिलकर की थी। बाद में बहुत से अन्य देश भी इसके सदस्य बनते गये, और वर्तमान में इसकी कुल सदस्य संख्या १३० हो गई है, लेकिन इसकी ऐतिहासिक प्रासंगिकता को देखते हुए इसका मूल नाम अभी तक वही पुराना जी-७७ समूह बनाये रखा गया है। अभी सूडान इस संगठन का नेतृत्व कर रहा है। भारत भी इसका सदस्य है। जी-७७ समूह की स्थापना जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (यूएनसीटीएडी) के सम्मेलन के पहले सत्र के बाद हुई थी।  विस्तार में...

८ फरवरी २०१०[संपादित करें]

साँचा:आज का आलेख ८ फरवरी २०१०

९ फरवरी २०१०[संपादित करें]

साँचा:आज का आलेख ९ फरवरी २०१०

१० फरवरी २०१०[संपादित करें]

ब्रिक राष्ट्रों का मानचित्र
ब्रिक राष्ट्रों का मानचित्र
बीआरआईसी यानी ब्रिक (ब्राजील, रूस, भारत और चीन) तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों की सामूहिक संस्था का नाम है। इस शब्द का पहली बार प्रयोग २००१ में गोल्डमैन शश ने किया था। ये चारों देश संयुक्त रूप से विश्व का एक-चौथाई क्षेत्र घेरते हैं और इनकी जनसंख्या विश्व की कुल आबादी का ४० प्रतिशत से अधिक है। इन देशों का सकल घरेलु उत्पाद १५.४३५ ट्रिलियन डॉलर है। गोल्डमैन शश का तर्क था कि ब्राजील, रूस, चीन और भारत की अर्थव्यवस्थाएं आर्थिक रूप से इतनी मजबूत हैं कि २०५० तक ये चारों अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक परिदृश्य पर हावी होगी, हालांकि उनका अर्थ ये नहीं था कि ये चारों राष्ट्र राजनीतिक गठजोड़ कर किसी संगठन का निर्माण करें। उनका आकलन था कि भारत और चीन उत्पादित वस्तुओं और सर्विस के सबसे बड़े प्रदाता होंगे, वहीं ब्राजील और रूस कच्चे माल के सबसे बड़े उत्पादक हैं। ब्राजील जहां लौह अयस्कों की आपूर्ति में प्रथम है तो रूस तेल एवं प्राकृतिक गैस के मामले में शीर्ष पर है। विस्तार में...

११ फरवरी २०१०[संपादित करें]

ब्रिक राष्ट्रों का मानचित्र
ब्रिक राष्ट्रों का मानचित्र
बीआरआईसी यानी ब्रिक (ब्राजील, रूस, भारत और चीन) तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों की सामूहिक संस्था का नाम है। इस शब्द का पहली बार प्रयोग २००१ में गोल्डमैन शश ने किया था। ये चारों देश संयुक्त रूप से विश्व का एक-चौथाई क्षेत्र घेरते हैं और इनकी जनसंख्या विश्व की कुल आबादी का ४० प्रतिशत से अधिक है। इन देशों का सकल घरेलु उत्पाद १५.४३५ ट्रिलियन डॉलर है। गोल्डमैन शश का तर्क था कि ब्राजील, रूस, चीन और भारत की अर्थव्यवस्थाएं आर्थिक रूप से इतनी मजबूत हैं कि २०५० तक ये चारों अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक परिदृश्य पर हावी होगी, हालांकि उनका अर्थ ये नहीं था कि ये चारों राष्ट्र राजनीतिक गठजोड़ कर किसी संगठन का निर्माण करें। उनका आकलन था कि भारत और चीन उत्पादित वस्तुओं और सर्विस के सबसे बड़े प्रदाता होंगे, वहीं ब्राजील और रूस कच्चे माल के सबसे बड़े उत्पादक हैं। ब्राजील जहां लौह अयस्कों की आपूर्ति में प्रथम है तो रूस तेल एवं प्राकृतिक गैस के मामले में शीर्ष पर है। विस्तार में...

१२ फरवरी २०१०[संपादित करें]

पुरा महादेव मंदिर शिखर
पुरा महादेव मंदिर शिखर
पुरामहादेव मेरठ शहर के पास, बागपत जिले से ४.५ कि.मी दूर एक छोटा से गाँव पुरा में हिन्दू भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है। इसे एक प्राचीन सिध्दपीठ भी माना गया है। लाखों शिवभक्त श्रावण और फाल्गुन के माह में पैदल ही हरिद्वार से कांवड़ में गंगा का पवित्र जल लाकर परशुरामेश्वर महादेव का अभिषेक करते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव भी प्रसन्न हो कर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण कर देते हैं। जहाँ पर परशुरामेश्वर पुरामहादेव मंदिर है, काफी पहले यहाँ पर कजरी वन हुआ करता था। इसी वन में जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका सहित अपने आश्रम में रहते थे। रेणुका प्रतिदिन कच्चा घड़ा बनाकर हिंडन नदी नदी से जल भर कर लाती थी। वह जल शिव को अर्पण किया करती थी। हिंडन नदी, जिसे पुराणों में पंचतीर्थी कहा गया है और हरनन्दी नदी के नाम से भी विख्यात है, पास से ही निकलती है। यह मंदिर मेरठ से ३६ कि.मी व बागपत से ३० कि.मी दूर स्थित है। विस्तार में...

१३ फरवरी २०१०[संपादित करें]

ब्रह्म मुद्रा पद्मासन में बैठ कर की जाती है
ब्रह्म मुद्रा पद्मासन में बैठ कर की जाती है
ब्रह्म मुद्रा योग की एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्रा है और यह योग की लुप्त हुई क्रियाओं में से एक है। इसके बारे में बहुत कम ज्ञान उपलब्ध है। इसके अंतर्गत ब्रह्ममुद्रा के तीन मुख और भगवान दत्तात्रेय के स्वरूप को स्मरण करते हुए साधक तीन दिशाओं में अपना सिर घुमाता है। इसी कारण इसे ब्रह्ममुद्रा कहा जाता है। यह मुद्रा गर्दन के लिए विशेष लाभदायक तो है ही, और जन साधारण लोगों के लिए जबकि लोग अनिद्रा, तनाव, मानसिक अवसाद जैसे रोगों से ज्यादा घिर रहे हैं एक अचूक उपाय है। ब्रह्म मुद्रा में कमर सीधी रखते हुए पद्मासन, वज्रासन या सिद्धासन में बैठना होता है। फिर अपने हाथों को घुटनों पर और कंधों को ढीला छोड़कर गर्दन को धीरे-धीरे दस बार ऊपर-नीचे करना होता है। दाएं-बाएं दस बार गर्दन घुमाने के बाद पूरी गोलाई में यथासंभव गोलाकार घुमाकर इस क्रम में कानों को कंधों से छुआते हैं। इसी का अभ्यास लगातार करने को ब्रह्ममुद्रा योग कहा जाता है। इसके चार से पांच चक्र तक किये जा सकते हैं। विस्तार में...

१४ फरवरी २०१०[संपादित करें]

दर्जनों पॉप अप विंडोज़ डेस्कटॉप पर
दर्जनों पॉप अप विंडोज़ डेस्कटॉप पर
पॉप अप विज्ञापन इंटरनेट उपयोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए बनाये गए ऑनलाइन विज्ञापन का एक तरीका है। कई बार उपयोक्ताओं के द्वारा वांछित जालस्थल खुलने के साथ ही एक विज्ञापन विंडो भी खुलती है, उसे ही पॉपअप कहते हैं। कई बार विज्ञापनों के अलावा वेबपेज पर माउस के कहीं और क्लिक करने से भी पॉपअप आ जाते हैं। इंटरनेट पर इन विज्ञापनों की प्रोग्रामिंग जावास्क्रिप्ट के द्वारा की जाती है। कई बार किसी वेबसाइट पर जाते हुए इतने अधिक पॉप अप्स खुल जाते हैं, कि काम करना मुश्किल हो जाता है। कुछ पॉप-अप काम के होते हैं, जैसे यदि किसी चित्र पर क्लिक करते हैं उसका बड़ा रुप देखने के लिए, तो वह पॉप-अप विंडो में खुल सकता है, या कोई सूचना प्रारूप भी किसी दूसरी पॉप अप विंडो में खुल सकता है। वहीं कुछ पॉप-अप विंडो में अनुपयुक्त सामग्री भी हो सकती है या अनचाहे ही कंप्यूटर पर कुछ खतरनाक सॉफ़्टवेयरों (जिन्हे स्पाईवेयर या ऐडवेयर कहा जाता है) को डाउनलोड करने के लिए मार्ग बन सकती हैं। विस्तार में...

१५ फरवरी २०१०[संपादित करें]

जोहड़ में जल संचय
जोहड़ में जल संचय
वर्षा जल संचयन वर्षा के जल को किसी खास माध्यम से संचय करने या इकट्ठा करने की प्रक्रिया को कहा जाता है। विश्व भर में पेयजल की कमी का कारण पृथ्वी के जलस्तर का लगातार नीचे जाना भी है। इसके लिये अधिशेष मानसून अपवाह जो बहकर सागर में मिल जाता है, उसका संचयन और पुनर्भरण किया जाना आवश्यक है, ताकि भूजल संसाधनों का संवर्धन हो पाये। अकेले भारत में ही व्यवहार्य भूजल भण्डारण का आकलन २१४ बिलियन घन मी. (बीसीएम) के रूप में किया गया है जिसमें से १६० बीसीएम की पुन: प्राप्ति हो सकती है । इस समस्या का एक समाधान जल संचयन है। पशुओं के पीने के पानी की उपलब्धता, फसलों की सिंचाई के विकल्प के रूप में जल संचयन प्रणाली को विश्वव्यापी तौर पर अपनाया जा रहा है। जल संचयन प्रणाली उन स्थानों के लिए उचित है, जहां प्रतिवर्ष न्यूनतम २०० मिमी वर्षा होती हो। इस प्रणाली का खर्च ४०० वर्ग इकाई में नया घर बनाते समय लगभग बारह से पंद्रह सौ रुपए मात्र तक आता है। विस्तार में...

१६ फरवरी २०१०[संपादित करें]

सिंधु राक्षस, भारतीय नौसेना की शत्रु विनाशक पनडुब्बी
सिंधु राक्षस, भारतीय नौसेना की शत्रु विनाशक पनडुब्बी
पनडुब्बी एक प्रकार का बहुत बड़ा, मानव-सहित, आत्मनिर्भर जलयान (वॉटरक्राफ़्ट) है जो पानी के अन्दर रहकर काम कर सकता है। पनडुब्बियों के उपयोग ने विश्व का राजनैतिक मानचित्र बदलने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। पनडुब्बियों का सर्वाधिक उपयोग सेना में किया जाता रहा है और ये किसी भी देश की नौसेना का विशिष्ट हथियार बन गई हैं। यद्यपि पनडुब्बियाँ पहले भी बनायी गयीं थीं, किन्तु ये उन्नीसवीं शताब्दी में लोकप्रिय हुईं तथा सबसे पहले प्रथम विश्व युद्ध में इनका जमकर प्रयोग हुआ। विश्व की पहली पनडुब्बी एक डच वैज्ञानिक द्वारा सन १६०२ में और पहली सैनिक पनडुब्बी टर्टल १७७५ में बनाई गई। सन १६२० से लेकर अब तक पनडुब्बियों की तकनीक और निर्माण में आमूलचूल बदलाव आया। १९५० में परमाणु शक्ति से चलने वाली पनडुब्बियों फिर समुद्री जल से आक्सीजन ग्रहण करने वाली पनडुब्बियों के आविष्कारों से पनडुब्बी निर्माण क्षेत्र में क्रांति आ गई।  विस्तार में...

१७ फरवरी २०१०[संपादित करें]

मिरगी के रोगी का मस्तिष्क स्कैन
मिरगी के रोगी का मस्तिष्क स्कैन
अपस्मार या मिर्गी एक तंत्रिकातंत्रीय विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर) है जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते है। मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण बार-बार दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है। दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है। इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि बेहोशी आना, गिर पड़ना, हाथ-पांव में झटके आना। मिर्गी किसी एक बीमारी का नाम नहीं है बल्कि अनेक बीमारियों में मिर्गी जैसे दौरे आ सकते हैं। यह एक आम बीमारी है जो लगभग सौ लोगों में से एक को होती है। इनमें से आधों के दौरे रूके होते हैं और शेष आधों में दौरे आते हैं, उपचार जारी रहता है। सिर्फ एक प्रतिशत लोगों में ही ये रोग आनुवांशिक होता है। विश्व में पाँच करोड़ लोग और भारत में लगभग एक करोड़ लोग मिर्गी के रोगी हैं। विश्व की कुल जनसँख्या के ८-१० प्रतिशत लोगों को अपने जीवनकाल में एक बार इसका दौरा पड़ने की संभावना रहती है। विस्तार में...

१८ फरवरी २०१०[संपादित करें]

प्रचालन तंत्र की स्थिति
प्रचालन तंत्र की स्थिति
प्रचालन तंत्र साफ्टवेयर का समूह है जो कि आंकड़ों एवं निर्देश के संचरण को नियंत्रित करता है। यह हार्डवेयर एवं साफ्टवेयर के बीच सेतु का कार्य करता है और कंप्यूटर का सॉफ्टवेयर घटक होता है। इसी की सहायता से ही कंप्यूटर में स्थापित प्रोगाम चलते हैं। यह तंत्र कंप्यूटर का मेरुदंड होता है, जो इसके सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर को नियंत्रण में रखता है और अनाधिकृत व्यक्ति को कंप्यूटर के गलत प्रयोग करने से रोकता है। वह इसमें भी विभेद कर सकता हैं कि कौन सा निवेदन पूरा करना है और कौन सा नहीं, इसके साथ ही इनकी वरीयता भी ध्यान रखी जाती है। इसके द्वारा एक से अधिक प्रोग्राम सीपीयू में रन करा सकते हैं। इसके अलावा संगणक संचिकाको पुनः नाम देना, डायरेक्टरी की विषय सूची बदलना, डायरेक्टरी बदलना आदि कार्य आपरेटिंग सिस्टम के द्वारा किए जाते है। डॉस (DOS), यूनिक्स, विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम (३.१, ९५, ९८, २०००, एक्स पी, विस्ता, विंडोज ७) और लिनक्स आदि कुछ प्रमुख आपरेटिंग सिस्टम हैं। विस्तार में...

१९ फरवरी २०१०[संपादित करें]

यूटीआई भारत की सबसे पुरानी म्यूचुअल फंड कंपनी है।
यूटीआई भारत की सबसे पुरानी म्यूचुअल फंड कंपनी है।
म्यूचुअल फंड एक प्रकार का सामुहिक निवेश होता है जिसमें निवेशको के समूह मिल कर स्टॉक, अल्प अविधि के निवेश या अन्य सेक्यूरीटीज मे निवेश करते है। म्यूचुअल फंड मे एक कोष-प्रबंधक होता है जो फंड के निवेशों को निर्धारित करता है, और लाभ और हानि का हिसाब रखता है। इस प्रकार हुए फायदे-नुकसान को निवेशको मे बाँट दिया जाता है। स्टॉक बाजार की पर्याप्त जानकारी न होने पर भी निवेश की इच्छा रखने वालों के लिए यह एक सुलभ मार्ग होता है। म्यूचुअल फंड संचालक (कंपनी) सभी निवेशकों के निवेश राशि को लेकर इकट्ठे करती है, और उनके लिए बाजार में निवेश करती है। इनमें में निवेश करने से निवेशक को न इस बात की चिंता होती कि कब शेयर खरीदें या बेचें, और छोटे निवेशक बहुत कम राशि जैसे १०० रु.प्रतिमाह तक निवेश भी कर सकते हैं। यूटीआई एएमसी भारत की सबसे पुरानी म्यूचुअल फंड कंपनी है। विस्तार में...

२० फरवरी २०१०[संपादित करें]

पैनासोनिक का १०३ इंच का प्लाज़्मा पटल
पैनासोनिक का १०३ इंच का प्लाज़्मा पटल
प्लाज्मा टीवी एक प्रकार का हाईडेफिनेशन टीवी (एचडीटीवी) होता है, जो कि प्रायः प्रचलित कैथोड किरण दूरदर्शी का विकल्प हैं। प्लाज्मा एक वैज्ञानिक शब्द है, जिसको कि निऑन और ज़ेनॉन आदि अक्रिय (इनर्ट) गैसों के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है। द्रव्य, गैस और ठोस के अलावा प्लाज्मा को पदार्थ की चतुर्थ अवस्था के रूप में प्रयोग किया जाता है। टेलीविजन में हजारों की संख्या में छोटे-छोटे घटक होते हैं, जिन्हें पिक्सल कहते हैं। रंगीन टेलीविजनों में तीन वर्ण मिलकर एक पिक्सल का निर्माण करते हैं। इनमें सामान्यत: प्रकाश के तीन प्राथमिक रंग लाल, हरा और नीला का प्रयोग किया जाता है। वहीं प्लाज्मा टीवी में प्रत्येक पिक्सल अक्रिय गैस जैसे कि निऑन और जीनॉन के छोटे-छोटे पात्रों से मिलकर बना होता है।प्लाज्मा टीवी में अनुमानित हजारों की संख्या में ऐसे छोटे-छोटे टय़ूब उपस्थित होते हैं। प्रत्येक पिक्सल को दो वैद्युत आवेशित प्लेटों के बीच में रखा जाता है। विद्युत धारा का प्रवाह करने पर प्लाज्मा चमकता है। विस्तार में...

२१ फरवरी २०१०[संपादित करें]

पकी हरी चाय की पत्तियाँ
पकी हरी चाय की पत्तियाँ
ग्रीन टी एक प्रकार की चाय होती है, जो कैमेलिया साइनेन्सिस नामक पौधे की पत्तियों से बनायी जाती है। इसके बनाने की प्रक्रिया में ऑक्सीकरण न्यूनतम होता है। इसका उद्गम चीन में हुआ था और आगे चलकर एशिया में जापान से मध्य-पूर्व की कई संस्कृतियों से संबंधित रही। इसके सेवन के काफी लाभ होते हैं। प्रतिदिन कम से कम आठ कप ग्रीन टी हृदय रोग होने की संभावनाओं को कम करने कोलेस्ट्राल को कम करने के साथ ही शरीर के वजन को भी नियंत्रित करने में सहायक सिद्ध होती है। प्रायः लोग ग्रीन टी के बारे में जानते हैं लेकिन इसकी उचित मात्र न ले पाने की वजह से उन्हें उनका पूरा लाभ नहीं मिल पाता है।हरी चाय का फ्लेवर ताज़गी से भरपूर और हल्का होता है तथा स्वाद सामान्य चाय से अलग होता है। इसकी कुछ किस्में हल्की मिठास लिए होती है, जिसे पसंद के अनुसार दूध और शक्कर के साथ बनाया जा सकता है।  विस्तार में...

२२ फ़रवरी २०१०[संपादित करें]

पूर्णिमा वर्मन
पूर्णिमा वर्मन
पूर्णिमा वर्मन पत्रकार के रूप में अपना कार्यजीवन प्रारंभ करने वाली पूर्णिमा जी का नाम वेब पर हिंदी की स्थापना करने वालों में अग्रगण्य है तथा हिंदी विकिपीडिया को प्रबंधक रूप में भूषित करती हैं। ये जाल-पत्रिका अभिव्यक्ति और अनुभूति की सम्पादिका है। उन्होंने प्रवासी तथा विदेशी हिंदी लेखकों को प्रकाशित करने तथा अभिव्यक्ति में उन्हें एक साझा मंच प्रदान करने का महत्वपूर्ण काम किया है। वेब पर हिंदी को लोकप्रिय बनाने के अपने प्रयत्नों के लिए उन्हें २००६ में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, साहित्य अकादमी तथा अक्षरम के संयुक्त अलंकरण अक्षरम प्रवासी मीडिया सम्मान, २००८ में रायपुर छत्तीसगढ़ की संस्था सृजन सम्मान द्वारा हिंदी गौरव सम्मान तथा दिल्ली की संस्था जयजयवंती द्वारा जयजयवंती सम्मान से विभूषित किया जा चुका है। उनका एक कविता संग्रह "वक्त के साथ" नाम से प्रकाशित हुआ है।  विस्तार में...

२३ फ़रवरी २०१०[संपादित करें]

श्री चैतन्य महाप्रभु
श्री चैतन्य महाप्रभु
चैतन्य महाप्रभु (१८ फरवरी, १४८६-१५३४) वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी, भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनैतिक अस्थिरता के दिनों में हिंदू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त वृंदावन को फिर से बसाया और शेष जीवन वहीं रहे। उनके दिए महामंत्र नाम संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है। कहते हैं, कि यदि गौरांग ना होते तो वृंदावन आज तक एक मिथक ही होता। वैष्णव लोग तो इन्हें श्रीकृष्ण का राधा रानी के संयोग का अवतार मानते हैं। गौरांग पर बहुत से ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें से प्रमुख है चैतन्य चरितामृत, चैतन्य भागवत तथा चैतन्य मंगल। विस्तार में...

२४ फ़रवरी २०१०[संपादित करें]

निराला की स्मृति में जारी भारतीय डाकटिकट
निराला की स्मृति में जारी भारतीय डाकटिकट
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी १८९९ - १५ अक्तूबर १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। अपने समकालीन अन्य कवियों से अलग उन्होंने कविता में कल्पना का सहारा बहुत कम लिया है और यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया है। वे हिन्दी में मुक्तछंद के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। हिन्दी साहित्य के सर्वाधिक चर्चित साहित्यकारों मे से एक सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म बंगाल की रियासत महिषादल (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल एकादशी संवत १९५५ तदनुसार २१ फरवरी सन १८९९ में हुआ था। उनकी कहानी संग्रह लिली में उनकी जन्मतिथि २१ फरवरी १८९९ अंकित की गई है। उनका जन्म रविवार को हुआ था इसलिए सुर्जकुमार कहलाए। उनके पिता पंण्डित रामसहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का गढ़कोला नामक गाँव के निवासी थे। विस्तार में...

२५ फ़रवरी २०१०[संपादित करें]

अरण्डी के बीज
अरण्डी के बीज
अरंडी (अंग्रेज़ी:कैस्टर) तेल का पेड़ एक पुष्पीय पौधे की बारहमासी झाड़ी होती है, जो एक छोटे आकार से लगभग १२ मी के आकार तक तेजी से पहुँच सकती है, पर यह कमजोर होती है। इसकी चमकदार पत्तियॉ १५-४५ सेमी तक लंबी, हथेली के आकार की, ५-१२ सेमी गहरी पालि और दांतेदार हाशिए की तरह होती हैं। उनके रंग कभी कभी, गहरे हरे रंग से लेकर लाल रंग या गहरे बैंगनी या पीतल लाल रंग तक के हो सकते है। तना और जड़ के खोल भिन्न भिन्न रंग लिये होते है। इसके उद्गम व विकास की कथा अभी तक अध्ययन अधीन है। यह पेड़ मूलतः दक्षिण-पूर्वी भूमध्य सागर, पूर्वी अफ़्रीका एवं भारत की उपज है, किन्तु अब उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में खूब पनपा और फैला हुआ है। अरण्डी का बीज ही बहुप्रयोगनीय कैस्टर ऑयल (अरंडी के तेल) का स्रोत होता है।  विस्तार में...

२६ फ़रवरी २०१०[संपादित करें]

बेल का पका फल
बेल का पका फल
बिल्व, बेल या बेलपत्थर, भारत में होने वाला एक फल का पेड़ है। रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है। इसका गूदा या मज्जा बल्वकर्कटी कहलाता है तथा सूखा गूदा बेलगिरी। बेल के वृक्ष सारे भारत में, विशेषतः हिमालय की तराई में, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में ४००० फीट की ऊँचाई तक पाये जाते हैं। मध्य व दक्षिण भारत में बेल जंगल के रूप में फैला पाया जाता है। इसके पेड़ भारत के अलावा प्राकृतिक रूप से दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसके अलाव इसकी खेती पूरे भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्वीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्वीपसमूह में की जाती है। धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है। हिन्दू धर्म में इसे भगवान शिव का रूप ही माना जाता है व मान्यता है कि इसके मूल यानि जड़ में महादेव का वास है, अतः पूज्य होता है।  विस्तार में...

२७ फ़रवरी २०१०[संपादित करें]

भारतीय पकवान गुझिया
भारतीय पकवान गुझिया

गुझिया एक प्रकार का पकवान है जो मैदे और खोए से बनाया जाता है। इसे छत्तीसगढ़ में कुसली, महाराष्ट्र में करंजी, बिहार में पिड़की और आंध्र प्रदेश में कज्जिकयालु, कहते हैं। उत्तर भारत में होली एवं दक्षिण भारत में दिवाली के अवसर पर घर में गुझिया बनाने की परंपरा है। गुझिया मुख्य रूप से दो तरह से बनाईं जातीं है, एक- मावा भरी गुझिया या रवा भरी गुझिया। मावा इलायची भरी गुझिया के ऊपर चीनी की एक परत चढ़ाकर वर्क लगाकर इसको एक नया रूप भी देते हैं। मावा के साथ कभी कभी हरा चना, मेवा या दूसरे खाद्य पदार्थ मिलाकर, जैसे अंजीर या खजूर की गुझिया भी बनाई जाती हैं।


२८ फ़रवरी २०१०[संपादित करें]

विभिन्न रंगों के गुलाल
विभिन्न रंगों के गुलाल
गुलाल रंगीन सूखा चूर्ण होता है, जो होली के त्यौहार में गालों पर या माथे पर टीक लगाने के काम आता है। इसके अलावा इसका प्रयोग रंगोली बनाने में भी किया जाता है। बिना गुलाल के होली के रंग फीके ही रह जाते हैं। यह कहना उचित ही होगा कि जहां गीली होली के लिये पानी के रंग होते हैं, वहीं सूखी होली भी गुलालों के संग कुछ कम नहीं जमती है। यह रसायनों द्वारा व हर्बल, दोनों ही प्रकार से बनाया जाता है। लगभग २०-२५ वर्ष पूर्व तक वनस्पतियों से प्राप्त रंगों या उत्पादों से ही इसका निर्माण हुआ करता था, किन्तु तबसे रसयनों के रंग आने लगे व उन्हें अरारोट में मिलाकर तीखे व चटक रंग के गुलाल बनने लगे। इधर कुछ वर्षों से लोग दोबारा हर्बल गुलाल की ओर आकर्षित हुए हैं, व कई तरह के हर्बल व जैविक गुलाल बाजारों में उपलब्ध होने लगे हैं। हर्बल गुलाल के कई लाभ होते हैं। इनमें रसायनों का प्रयोग नहीं होने से न तो एलर्जी होती है न आंखों में जलन होती है। ये पर्यावरण अनुकूल होते हैं।  विस्तार में...