विकिपीडिया:आज का आलेख - पुरालेख/२०१०/अप्रैल

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१ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

युनिसेफ़ का प्रतीक चिह्न
युनिसेफ़ का प्रतीक चिह्न
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष(यूनीसेफ) की स्थापना का आरंभिक उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध में नष्ट हुए राष्ट्रों के बच्चों को खाना और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना था। इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने ११ दिसंबर, १९४६ को की थी। १९५३ में यूनीसेफ, संयुक्त राष्ट्र का स्थाई सदस्य बन गया। उस समय इसका नाम यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल चिल्ड्रेंस फंड की जगह यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रेंस फंड कर दिया गया। इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में है। वर्तमान में इसके मुखिया ऐन वेनेमन है। यूनीसेफ को १९६५ में उसके बेहतर कार्य के लिए शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। १९८९ में संगठन को इंदिरा गाँधी शांति पुरस्कार भी प्रदान किया गया था। इसके १२० से अधिक शहरों में कार्यालय हैं और १९० से अधिक स्थानों पर इसके कर्मचारी कार्यरत हैं। वर्तमान में यूनीसेफ फंड एकत्रित करने के लिए विश्व स्तरीय एथलीट और टीमों की सहायता लेता है। विस्तार में...

२ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

मानव शरीर के तापमान में डायुर्नल अंतर
मानव शरीर के तापमान में डायुर्नल अंतर
हाइपोथर्मिया शरीर की वह स्थिति होती है जिसमें तापमान, सामान्य से कम हो जाता है। इसमें शरीर का तापमान ३५° सेल्सियस (९५ डिग्री फैरेनहाइट) से कम हो जाता है। शरीर के सुचारू रूप से चलने हेतु कई रासायनिक क्रियाओं की आवश्यकता होती है। आवश्यक तापमान बनाए रखने के लिए मानव मस्तिष्क कई तरीके से कार्य करता है। जब ये कार्यशैली बिगड़ जाती है तब ऊष्मा के उत्पादन के स्थान पर ऊष्मा का ह्रास तेजी से होने लगता है। कई बार रोग के कारण शरीर का तापमान प्रभावित होता है। ऐसे में शरीर का कोर तापमान किसी भी वातावरण में बिगड़ सकता है। इसे सेंकेडरी हाइपोथर्मिया कहा जाता है। इसके प्रमुख कारणों में ठंड लगना है। अध्ययनों एंव आंकड़ों के अनुसार हाइपोथर्मिया से होने वाली करीब ५० प्रतिशत मृत्यु ६४ वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों में होती हैं। वृद्धों को कम उम्र के लोगों की तुलना में हाइपोथर्मिया से पीड़ित होने की आशंका सबसे अधिक होती है क्योंकि ठंड से बचाव की शरीर की प्रणाली उम्र बढने के साथ कमजोर होती जाती है।  विस्तार में...

३ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

घरों के ऊपर डीटीएच की डिश
घरों के ऊपर डीटीएच की डिश
डायरेक्ट ब्रॉडकास्ट सैटेलाइट (डीबीएस) या डायरेक्ट टू होम (डीटीएच) उपग्रह से सीधे टीवी प्रसारण सेवा सुविधा होती है। इस प्रसारण में उपभोक्ता को अपने घर में डिश लगानी होती है। इस प्रसारण में केबल टीवी ऑपरेटर की भूमिका खत्म हो जाती है और प्रसारणकर्त्ता सीधे उपभोगताओं को सेवा प्रदान करता है। डीटीएच नेटवर्क प्रसारण केन्द्र, उपग्रह, एनकोडर, मल्टीपिल्क्सर, मॉडय़ूलेटर और उपभोक्ताओं से मिलकर बनता है। एक डीटीएच सेवा प्रदाता को उपग्रह से केयू बैंड ट्रांसपोंडर को लीज या किराए पर मिलता है। डीबीएस को प्रायः पर मिनी डिश सिस्टम भी कहा जाता है। डीबीएस में ४ बैंड के ऊपरी हिस्से व बैंड के कुछ हिस्सों को उपयोग में लिया जाता है। संशोधित डीबीएस को सी-बैंड उपग्रह से भी संचालित किया जा सकता है। अधिकांश डीबीएस डीवीबी-एस मानकों को अपने प्रसारण के लिए उपयोग में लाते हैं। इन मानको को पे-टीवी सेवाओं के तहत रखा गया है।  विस्तार में...

४ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

एक एनसीआर बहुप्रकार्य एटीएम मशीन
एक एनसीआर बहुप्रकार्य एटीएम मशीन
स्वचालित गणक मशीन (अंग्रेज़ी:आटोमेटिड टैलर मशीन, लघु:एटीएम) को आटोमेटिक बैंकिंग मशीन, कैश पाइंट, होल इन द वॉल, बैंनकोमैट जैसे नामों से यूरोप, अमेरिकारूस आदि में जाना जाता है। यह मशीन एक ऐसा दूरसंचार नियंत्रित व कंप्यूटरीकृत उपकरण है जो ग्राहकों को वित्तीय हस्तांतरण से जुड़ी सेवाएं उपलब्ध कराता है। इस हस्तांतरण प्रक्रिया में ग्राहक को कैशियर, क्लर्क या बैंक टैलर की मदद की आवश्यकता नहीं होती है। खुदरा यानि रिटेल बैंकिंग के क्षेत्र में एटीएम बनाने का विचार समांनातर तौर जापान, स्वीडन, अमेरिका और इंग्लैंड में जन्मा और विकसित हुआ। हालांकि सबसे पहले इसका प्रयोग कहां शुरू हुआ यह अभी तय नहीं हो पाया है। आज एटीएम का प्रयोग मानव दिनचर्या का महत्त्वपूर्ण अंग बन गया है। अतएव एटीएम प्रयोग करते समय कुछ सावधानियां आवश्यक हैं।  विस्तार में...

५ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

कैसियो कम्पनी का वैज्ञानिक परिकलक
कैसियो कम्पनी का वैज्ञानिक परिकलक
परिकलक (अंग्रेजी: कैलकुलेटर), अन्य हिन्दी पर्याय, गणक या गणित्र), गणितीय गणनाएं (परिकलन) करने का एक उपकरण होता है। यद्यपि आधुनिक परिकलकों में प्रायः सामान्य उपयोग का एक संगणक (कंप्यूटर) होता है, फिर भी परिकलक, कंप्यूटर से इस मामले में भिन्न है कि परिकलक की अभिकल्पना अपेक्षाकृत छोटी गणनाएं करने के लिये होता है। इसके उपयोग के लिये प्रोग्रामिंग की आवश्यकता नही होती और यह बहुत सस्ता और आकार में छोटा होता है। इसके पहले गणनाएं करने के लिये स्लाइड रूल, गणितीय सारणियाँ, अबाकस आदि प्रयोग में लाये जाते थे। इन सबका प्रयोग परिकलक की तुलना में अपेक्षाकृत बहुत असुविधाजनक होता था। आधुनिक परिकलक विद्युत शक्ति (छोटे शुष्क सेल आदि) से चलते हैं; सस्ते, छोटे, अनेक जटिल गणनाओं की क्षमता वाले, सरलता से काम करने वाले तथा तेज गणना में दक्ष होते हैं। विस्तार में...

६ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

एक टचस्क्रीन
एक टचस्क्रीन
स्पर्श-पटल या टचस्क्रीन किसी पटल का स्क्रीन होता है, जिसमें स्पर्श से भी डाटा भरा जा सकता है, यानि कीबोर्ड आदि की आवश्यकता नहीं होती। ये पटल उस निश्चित क्षेत्र में स्पर्श और उसकी स्थिति (स्थान) का ज्ञान कर लेने में सक्षम होता है। प्रायः ये शब्द पटल पर अंगुली या हाथ के स्पर्श के लिये भी प्रयोग किया जाता है। ये पटल अन्य पैसिव वस्तुओं जैसे पेन आदि को भी पहचान लेता है। प्रतिदिन विकसित हो रही टचस्क्रीन प्रौद्योगिकी ने मोबाइल, कंप्यूटर, टैबलेट पीसी, पर्सनल मल्टीमीडिया प्लेयर, गेमिंग कंसोल में इसका प्रयोग काफी बढ़ा दिया है। कुछ आईफोन और उसके बाद आए आईपैड और कई पर्सनल कंप्यूटर निर्माता कंपनियों ने टचस्क्रीन इंटरफेस तकनीक का आरंभ कर दिया है। माइक्रोसॉफ्ट इसकी वस्तु पहचान (ऑब्जेक्ट रिकॉग्निशन) तकनीक पर काम कर रहा है।  विस्तार में...

७ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

[[चित्र: |100px|right|कृष्णकुमार बिड़ला]]

कृष्णकुमार बिड़ला (१२ अक्तूबर, १९१८ - ३० अगस्त, २००८) भारत के प्रख्यात उद्योगपति और राज्यसभा के पूर्व राज्य सभा सदस्य थे। घनश्याम दास बिड़ला के पुत्र कृष्णकांत बिड़ला का जन्म १२ अक्तूबर, १९१८ को राजस्थान के पिलानी में हुआ था। उनके पिता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समर्थकों और गांधी जी के निकटवर्तियों में शामिल थे। उनकी उच्च शिक्षा कोलकाता, दिल्ली और पंजाब विश्वविद्यालय से हुई। ये १९८४ से २००० तक लगातार १८ वर्षों के लिये राज्यसभा के सदस्य भी रहे और इस दौरान संसद की कई समितियों की अध्यक्षता की। भारतीय चीनी उद्योग के वे संस्थापक सदस्यों में थे। बिड़ला के औद्योगिक साम्राज्य में चीनी, उर्वरक, रसायन, हैवी इंजीनियरिंग, वस्त्र, जहाजरानी और समाचार पत्र जैसे मुख्य उद्योग शामिल हैं। विस्तार में...

८ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

समांनांतर क्रम में प्रतिरोध
समांनांतर क्रम में प्रतिरोध
बहुत से विद्युत या इलेक्ट्रॉनिक घटकों या अवयवों को जोड़कर विद्युत परिपथ बनते हैं। परिपथों में घटक दो प्रकार से जोड़े जा सकते हैं:
श्रेणीक्रम और समानांतरक्रम में। जिस परिपथ में सभी घटक श्रेणीक्रम में जुड़े हों, उसे श्रेणी परिपथ और जिस परिपथ में सभी घटक समानांतर क्रम में जुड़े हों उसे समानांतर परिपथ कहा जा सकता है। श्रेणी परिपथ में हरेक घटक से समान धारा प्रवाहित होती है, जबकि समानांतर परिपथ में हरेक घटक पर समान वोल्टता उपलब्ध होती है। श्रेणी परिपथों में प्रत्येक घटक का कार्यरत रहना आवश्यक है, अन्यथा परिपथ टूट जायेगा। श्रेणीक्रम परिपथों में कोई भी घटक खराब होने पर भी शेष घटक कार्य करते रहेंगे, किन्तु किसी भी घटक को शॉर्ट सर्किट होने पर पूरा परिपथ शॉर्ट-सर्किट हो सकता है।  विस्तार में...

९ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

किर्चौफ का धारा नियम
किर्चौफ का धारा नियम
सन् १८४५ में गुस्ताव किरचॉफ ने विद्युत परिपथों में वोल्टता एवं धारा सम्बन्धी दो नियम प्रतिपादित किये। ये दोनो नियम संयुक्त रूप से किरचॉफ के परिपथ के नियम कहलाते हैं। ये नियम विद्युत परिपथों के लिये वस्तुत: आवेश संरक्षण एवं उर्जा संरक्षण के नियमों के भिन्न रूप हैं। ये नियम वैद्युत इंजीनियरी से सम्बन्धित गणनाओं के आधार हैं और बहुतायत में प्रयोग होते हैं।ये दोनो नियम मैक्सवेल के समीकरणों से सीधे व्युत्पन्न किये जा सकते हैं किन्तु इतिहास यह है कि किरचॉफ ने इन्हें मैक्सवेल से पहले प्रतिपादित कर दिया था। फिर भी किरचॉफ के नियम ओम के नियम का सामान्यीकरण अवश्य करते हैं। विस्तार में...

१० अप्रैल २०१०[संपादित करें]

प्रो.प्रभु लाल भटनागर-महान गणितज्ञ
प्रो.प्रभु लाल भटनागर-महान गणितज्ञ
प्रभुलाल भटनागर, (८ अगस्त, १९१२ - ५ अक्तूबर, १९७६) विश्वप्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें गणित के लैटिस-बोल्ट्ज़मैन मैथड में प्रयोग किये गए भटनागर-ग्रॉस-क्रूक (बी.जी.के) कोलीज़न मॉडल के लिये जाना जाता है। इनका जन्म कोटा, राजस्थान में ८ अगस्त, १९१२ को हुआ थ, जहां इनके पिता महाराजा के दरबार में उच्च-पदासीन थे। इनका शोध कार्य १९३७ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्रारंभ हुआ जहां ये १९३९ तक रहे। वहां इन्होंने गणित व भौतिकी में प्रयुक्त फ़ोरियर श्रेणी एवं एलाइड श्रेणी पर डॉ॰बेनी प्रसाद के संग कार्य किये। इनके शोध कार्य एरिक काम्के की पुस्तक में प्रकाशित हुए। इन्हें २६ जनवरी, १९६८ को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। प्रो.भटनागर के १३९ शोध-पत्र अन्तर्राष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित हुए थे। उनके १०० से अधिक प्रचलित लेख एवं दर्जन से अधिक पुस्तकें भी निकली हैं। इनके अन्तर्गत २९ छात्रों ने पी.एचडी का शोध पूर्ण किया है। विस्तार में...

११ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

आर्य समाज का प्रतीक
आर्य समाज का प्रतीक
आर्य समाज एक हिन्दू सुधार आंदोलन था जिसकी स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने १८७५ में बंबई में मथुरा के स्वामी विरजानंद की प्रेरणा से की थी। यह आंदोलन पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदू धर्म में सुधार के लिए प्रारंभ हुआ था। आर्य समाज में शुद्ध वैदिक परम्परा में विश्वास करते थे तथा मूर्ति पूजा, अवतारवाद, बलि, झूठे कर्मकाण्ड व अंधविश्वासों को अस्वीकार करते थे। इसमें छुआछूत व जातिगत भेदभाव का विरोध किया तथा स्त्रियों व शूद्रों को भी यज्ञोपवीत धारण करने व वेद पढ़ने का अधिकार दिया था। स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रन्थ आर्य समाज का मूल ग्रन्थ है। प्रसिद्ध आर्य समाजी गणों में स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय, भाई परमानन्द, पंडित गुरुदत्त, स्वामी आनन्दबोध सरस्वती, पंडित वन्देमातरम रामचन्द्र राव, स्वामी अग्निवेश, बाबा रामदेवआदि आते हैं। विस्तार में...

१२ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

भोजन में फ़ल व सब्जियों का महत्व होता है।
भोजन में फ़ल व सब्जियों का महत्व होता है।
भोजन वह पदार्थ होता है, जिसे जीव अपनी जीविका चलाने हेतु ग्रहण किया करते हैं। मानव भोजन में पोषण के अलावा स्वाद भी महत्त्वपूर्ण होता है। किंतु स्वाद के साथ-साथ ही पोषण स्वास्थ्यवर्धक भी होना चाहिये। इसके लिये यह आवश्यक है कि प्रतिदिन के खाने में अलग-अलग रंगों के फल एवं सब्जियां सम्मिलित हों। फलों और सब्जियों से विभिन्न प्रकार के विटामिन, खनिज और फाइटोकैमिकल्स प्राप्त होते हैं। इससे शरीर को रोगों से बचाव के लिए आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है, साथ ही आयु के बढ़ते प्रभाव को कम करता है, युवा दिखने में मदद करता है और रोगों की रोकथाम करता है, जैसे कि उच्च रक्तचाप, हृदय रोग आदि। अलग-अलग प्रकार के भोज्य पदार्थो को भोजन में शामिल अवश्य करना चाहिये व अच्छे स्वास्थ्य के लिए खाने में सभी आवश्यक तत्वों का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।  विस्तार में...

१३ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

महाभारत युद्ध में अर्जुन के रथ को श्रीकृष्ण हांकते हुए
महाभारत युद्ध में अर्जुन के रथ को श्रीकृष्ण हांकते हुए
महाभारत हिन्दुओं का स्मृति वर्ग में एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ है। विश्व का सबसे लंबा साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य यह हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। हालाँकि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कॄतियों में से एक माना जाता है किन्तु आज भी यह प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति हिन्दुओं के इतिहास की १,१०,००० श्लोकों में लिखी गाथा है। इसी में भगवद्गीता सन्निहित है। काव्य के रचियता वेद व्यास जी ने इसमे सम्पूर्ण वेदों के गुप्ततम रहस्य, उनके अंगो एवं उपनिषदो का विस्तार से निरुपण किया है, इसमे न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष और खगोलविद्या, युद्ध कला, योग, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और धर्मशास्त्र का विस्तार से वर्णन किया गया है। जब देवताओ ने तराजू के एक पासे में चारो "वेदो" को रखा और दूसरे पर "भारत ग्रंथ" को रखा, तो "भारत" वेदो की तुलना मे अधिक भारी सिद्ध हुआ, ग्रन्थ की इस महता (महानता) को देखकर देवताओ ने इसे "महाभारत" नाम दिया विस्तार में...

१४ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

महाभारत में कृष्ण-अर्जुन
महाभारत में कृष्ण-अर्जुन
महाभारत तीन नामो से प्रसिद्ध है "जय" , "भारत" और "महभारत"। वास्तव में वेद व्यास जी ने सबसे पहले १,००,००० श्लोको के परिमाण के ग्रंथ "भारत" की रचना की थी, इसमे उन्होने भारतवंशियो के चरित्रो के साथ साथ अन्य कई महान ऋषियो,चन्द्रवंशि-सूर्यवंशि राजाओ के उपाख्यान और कई अन्य धार्मिक उपाख्यान डाले। इसके बाद व्यास जी ने २४,००० श्लोको का बिना किसी उपाख्यानो का केवल भारतवंशियो को केन्द्रित करके "भारत" काव्य बनाया। इन दोनो रचनाओ मे धर्म की अधर्म पर विजय होने के कारण इन्हे "जय" भी कहा जाने लगा। महाभारत मे एक कथा आती है कि जब देवताओ ने तराजू के एक पासे में चारो "वेदो" को रखा और दूसरे पर "भारत ग्रंथ" को रखा, तो "भारत" वेदो की तुलना मे अधिक भारी सिद्ध हुआ, "भारत" ग्रन्थ की इस महता (महानता) को देखकर देवताओ ने इसे "महाभारत" नाम दिया और इस कथा के कारण मनुष्यो मे भी यह "महाभारत" के नाम से सबसे अधिक प्रसिद्ध हुई।  विस्तार में...

१५ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

महाभारत कालीन भारत का मानचित्र
महाभारत कालीन भारत का मानचित्र
महाभारत की मुख्य कथा हस्तिनापुर की गद्दी के लिये एक ही वंश के वंशजों कौरवों और पाण्डवों के बीच का आपसी संघर्ष था। हस्तिनापुर और उसके आस-पास का क्षेत्र आज गंगा नदी से उत्तर में और यमुना के आस-पास दोआब का क्षेत्र माना जाता है, जहाँ वर्तमान दिल्ली भी स्थित है। इन भाइयों के बीच की लड़ाई आज के हरियाणा स्थित कुरुक्षेत्र के आस-पास हुई मानी गई है जिसमें पाण्डव विजयी हुये थे। महाभारत की समाप्ति यदु-वंश की समाप्ति तथा पाण्डवों के स्वर्ग गमन के साथ होती है।इसे आमतौर पर वैदिक युग में लगभग ३१०० ईसा पूर्व के समय का माना जाता है। विद्वानों ने इसकी तिथी निरधारित करने के लिये इसमें वर्णित सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहणों के बारे में अध्ययन किया है और इसे ३१ वीं सदी इसा पूर्व का मानते हैं,लेकिन मतभेद अभी भी जारी है। विस्तार में...

१६ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

अरण्डी के बीज
अरण्डी के बीज
अरंडी (अंग्रेज़ी:कैस्टर) तेल का पेड़ एक पुष्पीय पौधे की बारहमासी झाड़ी होती है, जो एक छोटे आकार से लगभग १२ मी के आकार तक तेजी से पहुँच सकती है, पर यह कमजोर होती है। इसकी चमकदार पत्तियॉ १५-४५ सेमी तक लंबी, हथेली के आकार की, ५-१२ सेमी गहरी पालि और दांतेदार हाशिए की तरह होती हैं। उनके रंग कभी कभी, गहरे हरे रंग से लेकर लाल रंग या गहरे बैंगनी या पीतल लाल रंग तक के हो सकते है।तना और जड़ के खोल भिन्न भिन्न रंग लिये होते है। इसके उद्गम व विकास की कथा अभी तक अध्ययन अधीन है। यह पेड़ मूलतः दक्षिण-पूर्वी भूमध्य सागर, पूर्वी अफ़्रीका एवं भारत की उपज है, किन्तु अब उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में खूब पनपा और फैला हुआ है। विस्तार में...

१७ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

एन-७३ ई-बुक रीडर
एन-७३ ई-बुक रीडर
ई-पुस्तक (इलैक्ट्रॉनिक पुस्तक) का अर्थ है डिजिटल रुप में पुस्तक। ई-पुस्तकें कागज की बजाय डिजिटल संचिका के रुप में होती हैं जिन्हें कम्प्यूटर, मोबाइल एवं अन्य डिजिटल यंत्रों पर पढ़ा जा सकता है। इन्हें इण्टरनेट पर भी छापा, बांटा या पढ़ा जा सकता है। ये पुस्तकें कई फाइल फॉर्मेट में होती हैं जिनमें पीडीऍफ (पोर्टेबल डॉक्यूमेण्ट फॉर्मेट), ऍक्सपीऍस आदि शामिल हैं, इनमें पीडीऍफ सर्वाधिक प्रचलित फॉर्मेट है। जल्द ही पारंपरिक किताबों और पुस्तकालयों के स्थान पर सुप्रसिद्ध उपन्यासों और पुस्तकों के नए रूप जैसे ऑडियो पुस्तकें, मोबाइल टेलीफोन पुस्तकें, ई-पुस्तकें आदि उपलब्ध होंगी। ई-पुस्तको को पढ़ने के लिए कम्प्यूटर (अथवा मोबाइल) पर एक सॉफ्टवेयर की आवश्यकता होती है जिसे ई-पुस्तक पाठक (eBook Reader) कहते हैं।  विस्तार में...

१८ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

एक फ़्रिस्बी- हाथ में
एक फ़्रिस्बी- हाथ में
उड़न तश्तरी या फ्लाइंग डिस्क या फ्रिज्बी प्लास्टिक से निर्मित एक हल्की-फुल्की गोल तश्तरी होती है जिसे हवा में उड़ाने और पकड़ने का खेल खेलने हेतु प्रयोग किया जाता है। सागर तटों, मैदानों और स्कूल-कॉलेजों में यह खेल खेलते अनेक युवा, किशोर या बच्चे दिखते हैं। यह २० से २५ सेंटीमीटर यानी ८-१० इंच व्यास वाली तश्तरी खेल का एक अच्छा साधन है। इसका आविष्कार अमेरिका के यूटा राज्य के निवासी वॉल्टर फ्रेडरिक मॉरीसन ने किया था। उन्होंने १९४० के दशक में एक तश्तरी को बनाने की योजना बनायी थी, जिसे वह वलरेवे कहते थे। १९४८ में यह तश्तरी बाजार में बिकनी शुरू हुई और इसका नाम रखा गया था फ्लाइंग सॉसर, लेकिन तब ये खेल के रूप में कोई खास प्रसिद्धि नहीं ले पायी। इसी तश्तरी के आधार पर भावी फ्रिज्बी का रूप तैयार किया गया था। विस्तार में...

१९ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

ग्लूकोमीटर
ग्लूकोमीटर
ग्लूकोज़मीटर (अंग्रेज़ी:सेल्फ मॉनिटरिंग ऑफ ब्लड ग्लूकोज, लघु:एसएमबीजी) वह उपकरण होता है, जिसके द्वारा रक्त में ग्लूकोज की मात्रा ज्ञात की जाती है। यह उपकरण मधुमेह-रोगियों के लिये अत्यंत लाभदायक होता है। इस उपकरण के प्रयोग से रोगी अपने घर पर ही स्वयं बिना किसी की सहायता के नियमित अंतराल में रक्त-शर्करा की जांच घर पर ही कर सकते इसकी खोज १९७० में हुई थी, लेकिन १९८० के दशक के आरंभ आते-आते इसका प्रचलन काफी बढ़ गया। ग्लूकोमीटर के आविष्कार के पहले मधुमेह को मूत्र परीक्षण के आधार पर मापा जाता था। यह विद्युत-रासायनिक तकनीक के आधार पर काम करता है। इसके अलावा हाइपोग्लाइसीमिया (उच्च रक्त-शर्करा) के स्तर को मापने के लिए भी इसका प्रयोग होता है। विस्तार में...

२० अप्रैल २०१०[संपादित करें]

शांति स्वरूप भटनागर- वैज्ञानिक
शांति स्वरूप भटनागर- वैज्ञानिक
सर शांति स्वरूप भटनागर जाने माने भारतीय वैज्ञानिक थे। इनका जन्म शाहपुर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। १९४७ में, भारतीय स्वतंत्रता के उपरांत, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की स्थापना, श्री भटनागर की अध्यक्षता में की गयी। इन्हें शोध प्रयोगशालाओं का जनक कहा जाता है व भारत में अनेक बड़ी रासायनिक प्रयोगशालाओं के स्थापन हेतु स्मरण किया जाता है। इनके मूल योगदान चुम्बकीय-रासायनिकी के क्षेत्र में थे। इन्होंने चुम्बकत्व को रासायनिक क्रियाओं को अधिक जानने के लिये औजार के रूप में प्रयोग किया था। इन्होंने प्रो. आर.एन.माथुर के साथ भटनागर-माथुर इन्टरफ़ेयरेन्स संतुलन का प्रतिपादन किया था। इनके सम्मान में भटनागर पुरस्कार दिया जाता है। इन्हें विज्ञान एवं अभियांत्रिकी क्षेत्र में पद्म भूषण से १९५४ में सम्मानित किया गया। विस्तार में...

२१ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

एक शरीर द्रव्यमान सूचकांक का ग्राफ़
एक शरीर द्रव्यमान सूचकांक का ग्राफ़
शरीर द्रव्यमान सूचकांक (अंग्रेज़ी:बाडी मास इंडैक्स, लघु:बी.एम.आई) या एन्थ्रोपोमैट्रिक सूचकांक, ये बताता है कि किसी के शरीर का भार उसकी लंबाई के अनुपात में ठीक है या नहीं। उदाहरण के लिये भारतीय लोगों के लिए उनका बी.एम.आई २२.९ से अधिक नही होना चाहिए। एक युवा व्यक्ति के शरीर का अपेक्षित भार उसकी लंबाई के अनुसार होना चाहिए, जिससे कि उसका शारीरिक गठन अनुकूल लगे। शरीर द्रव्यमान सूचकांक (बीएमआइ) व्यक्ति की लंबाई को दुगुना कर उसमें भार किलोग्राम से भाग देकर निकाला जाता है। बीएमआई मूल्य आयु पर निर्भर करते हैं तथा स्त्री तथा पुरुष दोनों के लिए समान है। ऊँचाई (कद) और वज़न में १% से कम तक का विचलन गुणांक होता है, तथा वयोवृद्धों में इसे काईफोसिस द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है तथा बीएमआई व्याख्या को अमान्य बना सकता है।  विस्तार में...

२२ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

साबुत रायी की ब्रेड
साबुत रायी की ब्रेड
साबुत अनाज (अंग्रेज़ी:होल ग्रेन) अर्थात दाने के तीनों भागों को खाया जाता है जिसमें रेशा युक्त बाहरी सतह और पोषकता से भरपूर बीज भी शामिल है। साबुत अनाज वाले खाद्य पदार्थों में एक बाहरी खोल, भूसी, चोकर या ब्रान (ऊपरी सतह), बीज और मुलायम एण्डोस्पर्म पाया जाता है। गेहूं की पिसाई के वक्त ऊपरी भूसी एवं बीज को हटा दिया जाता है एवं स्टार्च बहुल एण्डोस्पर्म ही बच जाता है। भूसी एवं बीज से विटामिन ई, विटामिन बी और अन्य तत्व जैसे जस्ता, सेलेनियम, तांबा, लौह, मैगनीज एवं मैग्नीशियम आदि प्राप्त होते हैं। इनमें रेशा भी प्रचुर मात्र में पाया जाता है। सभी साबुत अनाजों में अघुलनशील फाइबर पाये जाते हैं जो कि पाचन तंत्र के लिए बेहतर माने जाते हैं, साथ ही कुछ घुलनशील फाइबर भी होते हैं जो रक्त में वांछित कोलेस्ट्रोल के स्तर को बढ़ाते हैं।  विस्तार में...

२३ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

स्मार्टमीडिया
स्मार्टमीडिया
मेमोरी कार्ड सॉलिड स्टेट फ्लैश मेमोरी डाटा स्टोरेज आंकड़ों को एकत्र करने वाली इलेक्ट्रॉनिक युक्ति होती है, जिसका प्रयोग मोबाइल फोन, डिजिटल कैमरा, म्यूज़िक प्लेयर और वीडियो गेम जैसे कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जाता है। इसमें प्रोगाम दोबारा लिखा जा सकता है और परिवर्तन भी किये जा सकते हैं। १९९० में पीसी कार्ड से आकार में छोटे कई दूसरे मेमोरी कार्ड भी आए, जिनमें कॉम्पैक्ट फ्लैश, स्मार्ट मीडिया और मिनी कार्ड थे। वहीं मोबाइल फोन, वीडियो गेम और पीडीए जैसी युक्तियों में एमबेडेड मेमोरी कार्ड का प्रयोग भी होने लगा। १९९० से २००० के दशक में तक नए तरीके के कई मेमोरी कार्ड आए जिनमें मेमोरी स्टिक, एक्सडी पिक्चर जैसे कार्ड मुख्य थे। इनका आकार छोटा था। वर्तमान कंप्यूटरों, मोबाइल फोन में मेमोरी कार्ड के लिए स्थान (स्लॉट) होता है। कुछ उपकरणों में एक से अधिक मेमोरी कार्ड का भी प्रयोग किया जा सकता है। विस्तार में...

२४ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

ऑरविले राइट
ऑरविले राइट
राइट बंधु ऑरविल (१९ अगस्त, १८७१ – ३० जनवरी, १९४८) और विलबर (१६ अप्रैल, १८६७३० मई, १९१२), दो अमरीकन बंधु थे जिन्हें हवाई जहाज का आविष्कारक माना जाता है। इन्होंने १७ दिसंबर १९०३ को संसार की सबसे पहली सफल मानवीय हवाई उड़ान भरी जिसमें हवा से भारी विमान को नियंत्रित रूप से निर्धारित समय तक संचालित किया गया। इसके बाद के दो वर्षों में अनेक प्रयोगों के बाद इन्होंने विश्व का प्रथम उपयोगी दृढ़-पक्षी विमान तैयार किया। ये प्रायोगिक विमान बनाने और उड़ाने वाले पहले आविष्कारक तो नहीं थे, लेकिन इन्होंने हवाई जहाज को नियंत्रित करने की जो विधियाँ खोजीं, उनके बिना आज का वायुयान संभव नहीं था।  विस्तार में...

२५ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

ट्यूरिन में २००६ विंटर ऑलंपिक्स की मशाल
ट्यूरिन में २००६ विंटर ऑलंपिक्स की मशाल
शीतकालीन ऑलंपिक खेल (अंग्रेज़ी:विंटर ऑलंपिक्स) एक विशेष ओलंपिक खेल होते हैं, जिनमें में अधिकांशत: बर्फ पर खेले जाने वाले खेलों की स्पर्धा होती है। इन खेलों में ऑल्पाइन स्कीइंग, बायथलॉनबॉब्स्लेड, क्रॉस कंट्री स्कीइंग , कर्लिंग, फिगर स्केटिंग, फ्रीस्टाइल स्कीइंग, आइस हॉकी, ल्यूज, नॉर्डिक कंबाइंड, शॉर्ट ट्रैक स्पीड स्केटिंग, स्केलेटन, स्नोबोर्डिंग, स्पीड स्केटिंग आदि स्पर्धाएं होती हैं। विंटर ओलंपिक्स का आरंभ १९२४ में हुआ माना जाता है, किन्तु इसी तरह के खेल १९०१ से १९२६ के बीच यूरोप में स्वीडन में आयोजित कराए जाते थे जिन्हें नॉर्डिक गेम्स कहा जाता था। इनके पीछे जनरल विक्टर गुस्ताफ बाल्क का हाथ था जिन्हें स्वीडिश खेलों का पितामह कहा जाता था।  विस्तार में...

२६ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

[[चित्र:|100px|right|सीबीएसई का प्रतीक चिह्न]]

केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (अंग्रेज़ी:Central Board of Secondary Education या CBSE) भारत की स्कूली शिक्षा का एक प्रमुख बोर्ड है। भारत के अन्दर और बाहर के बहुत से निजी विद्यालय इससे सम्बद्ध हैं। इसके प्रमुख उद्देश्य हैं - शिक्षा संस्थानों को अधिक प्रभावशाली ढंग से लाभ पहुंचाना, उन विद्यार्थियों की शैक्षिक आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी होना जिनके माता-पिता केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी हैं और निरंतर स्थानान्तरणीय पदों पर कार्यरत हों। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में शिक्षा का माध्यम हिन्दी या अंग्रेजी हो सकता है। इसमें कुल ८९७ केन्द्रीय विद्यालय, १७६१ सरकारी विद्यालय, ५८२७ स्वतंत्र विद्यालय, ४८० जवाहर नवोदय विद्यालय और १४ केन्द्रीय तिब्बती विद्यालय सम्मिलित हैं। इसका ध्येय वाक्य है - असतो मा सद्गमय ( हे प्रभु ! हमे असत्य से सत्य की ओर ले चलो।) विस्तार में...

२७ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

ज्ञान विज्ञान विमुक्तये
ज्ञान विज्ञान विमुक्तये
भारत का विश्वविद्यालय अनुदान आयोग केन्द्रीय सरकार का एक उपक्रम है जो सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों को अनुदान प्रदान करता है। यही आयोग विश्वविद्यालयों को मान्यता भी देता है। इसका मुख्यालय नयी दिल्ली में है और छः क्षेत्रीय कार्यालय पुणे, भोपाल, कोलकाता, गुवाहाटी, बंगलुरु एवं हैदराबाद में है। २००९ में शिक्षा मंत्रालय ने भारत सरकार की बढ़ते भ्रष्टाचार एवं संस्थाओं की अयोग्यताओं के चलते आयोग एवं एआईसीटीई को बंद करने की योजना बनाई है। इसका समाधान बड़ी व अधिक अधिकार प्राप्त नयी नियामक संस्थाएं आरंभ कर किया जायेगा। आयोग राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा का भी आयोजन करता है जिसे उत्तीर्ण करने के आधार पर विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्ति होती है। ये नेट योग्यता परीक्षा शिक्षा में स्नातक स्तर पर एम.फिल उत्तीर्ण लोगों के लिये व स्नातकोत्तर स्तर पर पीएच.डी उत्तीर्ण लोगों के लिये जून २००६ से छूट है।  विस्तार में...

२८ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

एन.सी.ई.आर.टी. प्रतीक चिह्न
एन.सी.ई.आर.टी. प्रतीक चिह्न
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद भारत सरकार द्वारा स्थापित संस्थान है जो विद्यालयी शिक्षा से जुड़े मामलों पर केन्द्रीय सरकार एवं प्रान्तीय सरकारों को सलाह देने के उद्देश्य से स्थापित की गयी है। यह परिषद भारत में स्कूली शिक्षा संबंधी सभी नीतियों पर कार्य करती है। इसका मुख्य कार्य शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय को विशेषकर स्कूली शिक्षा के संबंध में सलाह देने और नीति-निर्धारण में मदद करने का है। इसके अतिरिक्त एनसीईआरटी के अन्य कार्य हैं शिक्षा के समूचे क्षेत्र में शोधकार्य को सहयोग और प्रोत्साहित करना, उच्च शिक्षा में प्रशिक्षण को सहयोग देना, स्कूलों में शिक्षा पद्धति में लाए गए बदलाव और विकास को लागू करना, राज्य सरकारों और अन्य शैक्षणिक संगठनों को स्कूली शिक्षा संबंधी सलाह आदि देना और अपने कार्य हेतु प्रकाशन सामग्री और अन्य वस्तुओं के प्रचार की दिशा में कार्य करना।  विस्तार में...

२९ अप्रैल २०१०[संपादित करें]

बर्गर
बर्गर
जंक फूड आमतौर पर विश्व भर में चिप्स, कैंडी जैसे अल्पाहार को कहा जाता है। बर्गर, पिज्जा जैसे तले-भुने फास्ट फूड को भी जंक फूड की संज्ञा दी जाती है तो कुछ समुदाय जाइरो, तको, फिश और चिप्स जैसे शास्त्रीय भोजनों को जंक फूड मानते हैं। इस श्रेणी में क्या-क्या आता है, ये कई बार सामाजिक दर्जे पर भी निर्भर करता है। उच्चवर्ग के लिए जंक फूड की सूची काफी लंबी होती है तो मध्यम वर्ग कई खाद्य पदार्थो को इससे बाहर रखते हैं। सदियों से पारंपरिक विधि से तैयार होने वाले ये खाद्य पदार्थ पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं।संजय गांधी स्नातकोत्तर अनुसंधान संस्थान के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ॰ सुशील गुप्ता के अनुसार जंक फूड आने से पिछले दस सालों में मोटापे से ग्रस्त रोगियों की संख्या काफी बढ़ी है। इनमें केवल बच्चे ही नहीं बल्कि युवा वर्ग भी शामिल है। विस्तार में...

३० अप्रैल २०१०[संपादित करें]

एंजियोग्राफी रक्त वाहिकाओं का एक्सरे अध्ययन होता है जो रक्त वाहिकाओं में अवरोध होने की स्थिति में या हृदय रोग, किडनी संक्रमण, ट्यूमर, खून का थक्का जमना आदि की जांच करने में किया जाता है। एंजियोग्राम में रेडियोधर्मी तत्व या डाइ का प्रयोग करके रक्त वाहिकाओं को एक्स रे द्वारा देखा जाता है। एंजियोग्राफी के बाद बीमारी से ग्रसित धमनियों को एंजियोप्लास्टी द्वारा खोला भी जाता है। इस उपचार से रोगी की हृदय की रक्तविहीन मांसपेशियों में खून का प्रवाह बढ़ जाता है और रोगी को तुरंत लाभ हो जाता है एवं हृदयाघात की संभावना में भारी कमी आ जाती है। एंजियोग्राफी दो यूनानी शब्दों एंजियॉन मतलब वाहिकाओं और ग्रेफियन यानि रिकॉर्ड करना से मिलकर बना है। यह तकनीक १९२७ में पहली बार पुर्तगाली फिजीशियन और न्यूरोलॉजिस्ट इगास मोनिज ने खोजी थी। १९४९ में उन्हें इस कार्य के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। विस्तार में...