विकिपीडिया:आज का आलेख - पुरालेख/२००९/अगस्त

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१ अगस्त २००९[संपादित करें]

जैसलमेर शहर
जैसलमेर शहर
जैसलमेर भारत के राजस्थान राज्य का एक शहर है। सुदूर पश्चिम में स्थित थार मरुस्थल में जैसलमेर की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल के प्रारंभ में ११७८ ई. के लगभग यदुवंशी भाटी के वंशज रावल-जैसल द्वारा की गई थी। रावल जैसल के वंशजों ने यहाँ भारत के गणतंत्र में परिवर्तन होने तक बिना वंश क्रम को भंग किए हुए ७७० वर्ष सतत शासन किया। जैसलमेर राज्य ने भारत के इतिहास के कई कालों को देखा व सहा है। सल्तनत काल के लगभग ३०० वर्ष के इतिहास में गुजरता हुआ यह राज्य मुगल साम्राज्य में भी लगभग ३०० वर्षों तक अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम रहा। भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना से लेकर समाप्ति तक भी इस राज्य ने अपने वंश गौरव व महत्व को यथावत रखा। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात यह भारतीय गणतंत्र में विलीन हो गया। विलीनीकरण के समय इसका भौगोलिक क्षेत्रफल १६,०६२ वर्ग मील के विस्तृत भू-भाग पर फैला हुआ था। रेगिस्तान की विषम परिस्थितियों में स्थित होने के कारण यहाँ की जनसंख्या बींसवीं सदी के प्रारंभ में मात्र ७६,२५५ थी। विस्तार में...

२ अगस्त २००९[संपादित करें]

चारबाग रेलवे स्टेशन, लखनऊ
चारबाग रेलवे स्टेशन, लखनऊ
लखनऊ उत्तर प्रदेश की राजधानी है। लखनऊ शहर अपनी खास नज़ाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, दशहरी आम, लखनवी पान, चिकन और नवाबों के लिये जाना जाता है। २००६ मे इसकी जनसंख्या २,५४१,१०१ तथा साक्षरता दर ६८.६३% थी। लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है और प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। शहर के बीच से गोमती नदी गुजरती है, जो लखनऊ की संस्कृति का अभिन्न अंग है। यहां के नवाबी वातावरण में उर्दु शायरी, कथक और अवधी व्यंजन भी खूब विकसित हुए हैं। यहां बहुत से दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें इमामबाड़े,कई उद्यान, रूमी दरवाज़ा, छतर मंजिल, तारामंडल, आदि कुछ हैं। लखनऊ शहर आधुनिक युग के साथ प्रगति पर अग्रसर है, जिसमें में ढेरों विद्यालय,अभियांत्रिकी, प्रबंधन, चिकित्सा एवं अनुसंधान संस्थान हैं। विस्तार में...

३ अगस्त २००९[संपादित करें]

कमल वनस्पति जगत का एक पौधा है जिसमें बड़े और ख़ूबसूरत फूल खिलते हैं। विश्व में कमलों की दो प्रमुख प्रजातियाँ हैं। इनके अलावा कई जलीय लिलियों को भी कमल कहा जाता है। कमल का पौधा धीमे बहने वाले या रुके हुए पानी में उगता है। ये दलदली पौधा है जिसकी जड़ें कम ऑक्सीजन वाली मिट्टी में ही उग सकती हैं। इसमें और जलीय लिलियों में विशेष अंतर यह कि इसकी पत्तियों पर पानी की एक बूँद भी नहीं रुकती, और इसकी बड़ी पत्तियाँ पानी की सतह से ऊपर उठी रहती हैं। एशियाई कमल का रंग हमेशा गुलाबी होता है। नीले, पीले, सफ़ेद् और लाल "कमल" असल में जल-पद्म होते हैं जिन्हें कमलिनी कहा गया हैं। यह उष्ण कटिबंधी क्षेत्र पौधा है जिसकी पत्‍तियां और फूल तैरते हैं, इनके तने लंबे होते हैं जिनमें वायु छिद्र होते हैं। बड़े आकर्षक फूलों में संतुलित रूप में अनेक पंखुड़ियाँ होती हैं। विस्तार से पढ़ें...

४ अगस्त २००९[संपादित करें]

अभिनेत्री-लीला नायडू, अनुराधा में
अभिनेत्री-लीला नायडू, अनुराधा में
लीला नायडू (१९४०-२८ जुलाई, २००९) हिन्दी चलचित्र की पुरानी अभिनेत्री रही हैं। ये १९५४ में मिस इंडिया भी रही हैं। इन्हें मधुबाला एवं सुचित्रा सेन के अपवाद को छोड़कर अपने समय में किसी भी हिन्दी फिल्म अभिनेत्री से अधिक सुंदर कहा गया है। इन्हें १९५४ में ही वॉग पत्रिका द्वारा गायत्री देवी के साथ विश्व की दस सर्वश्रेष्ठ सुंदरियों में शामिल किया गया। इनके पिता प्रख्यात भारतीय वैज्ञानिक रमैया नायडू (आंध्र प्रदेश) से एवं माता आयरिश थीं। हिन्दी फिल्मों में लीला नायडू का सफर १९६० में ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा बनाई गई फिल्म अनुराधा से शुरू हुआ। इनकी अन्य फिल्मों में उम्मीद, द गुरु, त्रिकाल प्रमुख हैं।१९९२ में प्रदीप कृष्णन द्वारा निर्देशित फिल्म 'इलेक्ट्रिक मून' में इन्होंने आखिरी बार अभिनय किया था। लंबी बीमारी के बाद मुंबई में २८ जुलाई, २००९ को इनकी मृत्यु हो गई। विस्तार में...

५ अगस्त २००९[संपादित करें]

गुलाब
गुलाब
गुलाब एक बहुवर्षीय, झाड़ीदार, पुष्पीय पौधा है। इसकी १०० से अधिक जातियां हैं जिनमें से अधिकांश एशियाइ मूल की हैं। जबकि कुछ जातियों के मूल प्रदेश यूरोप, उत्तरी अमेरिका तथा उत्तरी पश्चिमी अफ्रीका भी है। भारत सरकार ने १२ फरवरी को गुलाब-दिवस घोषित किया है। गुलाब के अनेक संस्कृत पर्याय है। अपनी रंगीन पंखुड़ियों के कारण गुलाब पाटल है, सदैव तरूण होने के कारण तरूणी, शत पत्रों के घिरे होने पर ‘शतपत्री’, कानों की आकृति से ‘कार्णिका’, सुन्दर केशर से युक्त होने ‘चारुकेशर’, लालिमा रंग के कारण ‘लाक्षा’, और गन्ध पूर्ण होने से गन्धाढ्य कहलाता है। फारसी में गुलाब कहा जाता है और अंगरेज़ी में रोज, बंगला में गोलाप, तामिल में इराशा, और तेलुगु में गुलाबि है। अरबी में गुलाब ‘वर्दे’ अहमर है। सभी भाषाओं में यह लावण्य और रसात्मक है। शिव पुराण में गुलाब को देव पुष्प कहा गया है। ये रंग बिरंगे नाम गुलाब के वैविध्य गुणों के कारण इंगित करते हैं।...विस्तार से पढ़ें...

६ अगस्त २००९[संपादित करें]

मुखपृष्ठ
मुखपृष्ठ
हिन्दी कथा में अपनी अलग और देशज छवि बनाए और बचाए रखने वाले चर्चित लेखक भगवानदास मोरवाल के इस नये उपन्यास के केन्द्र में है - माना गुरु और माँ नलिन्या की संतान कंजर और उसका जीवन। कंजर यानी काननचर अर्थात् जंगल में घूमने वाला। अपने लोक-विश्वासों व लोकाचारों की धुरी पर अपनी अस्मिता और अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती एक विमुक्त जनजाति। राजकमल से प्रकाशित इस उपन्‍यास में कहानी है कंजरों की - एक ऐसी घुमंतू जाति जो समूचे दक्षिण-पश्चिमी एशिया में कमोबेश फैली हुई है। कहानी घूमती है कमला सदन नाम के एक मकान के इर्द-गिर्द, जो परिवार की मुखिया कमला बुआ के नाम पर रखा गया है और जहां रुक्मिणी, संतो, पिंकी आदि तमाम महिलाओं का जमघट है। ये सभी पारंपरिक यौनकर्मी हैं और जिस कंजर समाज से वे आती हैं, वहां इस पेशे को लंबे समय से मान्‍यता मिली हुई है।...विस्तार से पढ़ें...

७ अगस्त २००९[संपादित करें]

मिस्र के पिरामिड वहां के तत्कालीन फैरो (सम्राट) गणों के लिए बनाए गए स्मारक स्थल हैं, जो उनके पार्थिव अवशेष के ऊपर बनाए गए हैं। भारत की तरह ही मिस्र की सभ्यता भी बहुत पुरानी है और प्राचीन सभ्यता के अवशेष वहाँ की गौरव गाथा कहते हैं। यों तो मिस्र में १३८ पिरामिड हैं और काहिरा के उपनगर गीज़ा में तीन लेकिन सामान्य विश्वास के विपरीत सिर्फ गिजा का ‘ग्रेट पिरामिड’ ही सात अजूबों की सूची में सबसे ऊपर है। दुनिया के सात प्राचीन आश्चर्यों में शेष यही एकमात्र ऐसा स्मारक है जिसे काल प्रवाह भी खत्म नहीं कर सका। यह पिरामिड ४५० फुट ऊंचा है। ४३ सदियों तक यह दुनिया की सबसे ऊंची संरचना रहा। १९वीं सदी में ही इसकी ऊंचाई का रिकार्ड टूटा। इसका आधार १३ एकड़ में फैला है जो करीब १६ फुटबॉल मैदानों जितना है। यह २५ लाख चूनापत्थरों के खंडों से निर्मित है जिनमें से हर एक का वजन २ से ३० टनों के बीच है। विस्तार से पढ़ें...

८ अगस्त २००९[संपादित करें]

नाहरगढ़ का किला जयपुर को घेरे हुए अरावली पर्वतमाला के ऊपर बना हुआ है। आरावली की पर्वत श्रृंखला के छोर पर आमेर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस किले को सवाई राजा जयसिंह द्वितीय ने सन १७३४ में बनवाया था। यहाँ एक किंवदंती है कि कोई एक नाहर सिंह नामके राजपूत की प्रेतात्मा वहां भटका करती थी। किले के निर्माण में व्यावधान भी उपस्थित किया करती थी। अतः तांत्रिकों से सलाह ली गयी और उस किले को उस प्रेतात्मा के नाम पर नाहरगढ़ रखने से प्रेतबाधा दूर हो गयी थी। १९ वीं शताब्दी में सवाई राम सिंह और सवाई माधो सिंह के द्वारा भी किले के अन्दर भवनों का निर्माण कराया गया था जिनकी हालत ठीक ठाक है जब कि पुराने निर्माण जीर्ण शीर्ण हो चले हैं। यहाँ के राजा सवाई राम सिंह के नौ रानियों के लिए अलग अलग आवास खंड बनवाए गए हैं जो सबसे सुन्दर भी हैं। इनमे शौच आदि के लिए आधुनिक सुविधाओं की व्यवस्था की गयी थी। किले के पश्चिम भाग में “पड़ाव” नामका एक रेस्तरां भी है जहाँ खान पान की पूरी व्यवस्र्था है। यहाँ से सूर्यास्त बहुत ही सुन्दर दिखता है।

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९ अगस्त २००९[संपादित करें]

गोविन्द मिश्र (जन्म- १ अगस्त १९३९) हिन्दी के जाने माने कवि और लेखक हैं। वे उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, भारतीय भाषा परिषद, कलकत्ता, साहित्य अकादमी, दिल्ली, व्यास सम्मान द्वारा अपनी साहित्य सेवाओं के लिए सम्मानित किए गए हैं। अभी तक उनके १० उपन्यास और १२ कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त यात्रा वृत्तांत, बाल साहित्य, साहित्यिक निबंध और कविता संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। विश्वविद्यालयों में उनकी रचनाओं पर शोध हुए हैं। वे पाठ्यक्रम की पुस्तकों में शामिल किए गए हैं, रंगमंच पर उनकी रचनाओं का मंचन किया गया है और टीवी धारावाहिकों में भी उनकी रचनाओं पर चलचित्र प्रस्तुत किए गए हैं। विस्तार से पढ़ें...

१० अगस्त २००९[संपादित करें]

बाँस
बाँस
बाँस सपुष्पक, आवृतबीजी, एक बीजपत्री एवं पोएसी कुल का पौधा है। इसके परिवार के अन्य महत्वपूर्ण सदस्य दूब, गेहूँ, मक्का, जौ और धान हैं। यह पृथ्वी पर सबसे तेज बढ़ने वाला काष्ठीय पौधा है। इसकी कुछ प्रजातियाँ एक दिन (२४ घंटे) में १२१ सेंटीमीटर (४७.६ इंच) तक बढ़ जाती हैं। थोड़े समय के लिए ही सही पर कभी-कभी तो इसके बढ़ने की रफ्तार १ मीटर (३९ मीटर) प्रति घंटा तक पहुँच जाती है। इसका तना, लम्बा, पर्वसन्धि युक्त, प्रायः खोखला एवं शाखान्वित होता है। तने को निचले गांठों से अपस्थानिक जड़े निकलती है। तने पर स्पष्ट पर्व एवं पर्वसन्धियाँ रहती हैं। पर्वसन्धियाँ ठोस एवं खोखली होती हैं। इस प्रकार के तने को सन्धि-स्तम्भ कहते हैं। इसकी जड़े अस्थानिक एवं रेशेदार होती है।... विस्तार से पढ़ें...

११ अगस्त २००९[संपादित करें]

कुम्हड़ा एक स्थलीय, द्विबीजपत्री पौधा है जिसका तना लम्बा, कमजोर व हरे रंग का होता है। तने पर छोटे-छोटे रोयें होते हैं। यह अपने आकर्षों की सहायता से बढ़ता या चढ़ता है। इसकी पत्तियां हरी, चौड़ी और वृत्ताकार होती हैं। इसका फूल पीले रंग का सवृंत, नियमित तथा अपूर्ण घंटाकार होता। नर एवं मादा पुष्प अलग-अलग होते हैं। नर एवं मादा दोनों पुष्पों में पाँच जोड़े बाह्यदल एवं पाँच जोड़े पीले रंग के दलपत्र होते हैं। नर पुष्प में तीन पुंकेसर होते हैं जिनमें दो एक जोड़ा बनाकार एवं तीसरा स्वतंत्र रहता है। मादा पुष्प में तीन संयुक्त अंडप होते हैं जिसे युक्तांडप कहते हैं। इसका फल लंबा या गोलाकार होता है। फल के अन्दर काफी बीज पाये जाते हैं। फल का वजन ४ से ८ किलोग्राम तक हो सकता है। सबसे बड़ी प्रजाति मैक्सिमा का वजन ३४ किलोग्राम से भी अधिक होता है। विस्तार से पढ़ें...

१२ अगस्त २००९[संपादित करें]

महानदी का उपग्रह से लिया गया चित्र
महानदी का उपग्रह से लिया गया चित्र
महानदी नदी छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा अंचल की सबसे बड़ी नदी है। प्राचीनकाल में महानदी का नाम चित्रोत्पला था। महानन्दा एवं नीलोत्पला भी महानदी के ही नाम हैं। महानदी का उद्गम रायपुर के समीप धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है। महानदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की तरफ है। सिहावा से निकलकर राजिम में यह जब पैरी और सोढुल नदियों के जल को ग्रहण करती है तब तक विशाल रुप धारण कर चुकी होती है। ऐतिहासिक नगरी आरंग और उसके बाद सिरपुर में वह विकसित होकर शिवरीनारायण में अपने नाम के अनुरुप महानदी बन जाती है। महानदी की धारा इस धार्मिक स्थल से मुड़ जाती है और दक्षिण से उत्तर के बजाय यह पूर्व दिशा में बहने लगती है।

१३ अगस्त २००९[संपादित करें]

अमृता शेरगिलसर्पगन्धा
अमृता शेरगिलसर्पगन्धा

अमृता शेरगिल (३० जनवरी १९१३ - ५ दिसंबर १९४१) भारत के प्रसिद्ध चित्रकारों में से एक थीं। उनका जन्म बुडापेस्ट (हंगरी) में हुआ था। कला, संगीत व अभिनय बचपन से ही उनके साथी बन गए। २०वीं सदी की इस प्रतिभावान कलाकार को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने १९७६ और १९७९ में भारत के नौ सर्वश्रेष्ठ कलाकारों में शामिल किया है। सिख पिता उमराव सिंह शेरगिल (संस्कृत-फारसी के विद्वान व नौकरशाह) और हंगरी मूल की यहूदी ओपेरा गायिका मां मेरी एंटोनी गोट्समन की यह संतान ८ वर्ष की आयु में पियानो-वायलिन बजाने के साथ-साथ कैनवस पर भी हाथ आजमाने लगी थी।


१४ अगस्त २००९[संपादित करें]

सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में जारी डाक-टिकट
सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में जारी डाक-टिकट
सुभद्रा कुमारी चौहान (१६ अगस्त १९०४-१५ फरवरी १९४८) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनका जन्म नागपंचमी के दिन इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में रामनाथसिंह के जमींदार परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से ही वे कविताएँ रचने लगी थीं। उनकी रचनाएँ राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण हैं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी कविता के कारण है। सुभद्रा कुमारी चौहान, चार बहने और दो भाई थे। उनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह शिक्षा के प्रेमी थे और उन्हीं की देख-रेख में उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी हुई। १९१९ में खंडवा के ठाकुर लक्षमण सिंह के साथ विवाह के बाद वे जबलपुर आ गई थीं। १९२१ में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली वह प्रथम महिला थीं। वे दो बार जेल भी गई थीं।

१५ अगस्त २००९[संपादित करें]

विश्व हास्य दिवस का चिह्न
विश्व हास्य दिवस का चिह्न
विश्व हास्य दिवस मई महीने के पहले रविवार को मनाया जाता है। पहली बार, ११ जनवरी, १९९८ को मुंबई में विश्व दिवस मनाया गया था। विश्व हास्य योग आंदोलन की स्थापना का श्रेय डॉ मदन कटारिया को जाता है। हास्य दिवस अब पूरी दुनिया में मनाया जाता है। हास्य योग के अनुसार, हास्य सकारात्मक और शक्तिशाली भावना है जिसमें व्यक्ति को ऊर्जावान और संसार को शांतिपूर्ण बनाने के सभी तत्व उपस्थित रहते हैं। विश्व हास्य दिवस का आरंभ संसार में शांति की स्थापना और मानवमात्र में भाईचारे और सदभाव के उद्देश्य से हुई। विश्व हास्य दिवस की लोकप्रियता हास्य योग आंदोलन के माध्यम से पूरी दुनिया में फैल गई। इस समय पूरे विश्व में छह हजार से भी अधिक हास्य क्लब हैं। इस दिवस पर विश्व के बहुत से शहरों में रैलियां, हास्य रस गोष्ठियां एवं सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं। विस्तार में...

१६ अगस्त २००९[संपादित करें]

जैनेंद्र कुमार
जैनेंद्र कुमार

प्रेमचंदोत्तर उपन्यासकारों में जैनेंद्रकुमार का विशिष्ट स्थान है। वह हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक के रूप में मान्य हैं। जैनेंद्र अपने पात्रों की सामान्यगति में सूक्ष्म संकेतों की निहिति की खोज करके उन्हें बड़े कौशल से प्रस्तुत करते हैं। उनके पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ इसी कारण से संयुक्त होकर उभरती हैं। जैनेंद्र के उपन्यासों में घटनाओं की संघटनात्मकता पर बहुत कम बल दिया गया मिलता है। चरित्रों की प्रतिक्रियात्मक संभावनाओं के निर्देशक सूत्र ही मनोविज्ञान और दर्शन का आश्रय लेकर विकास को प्राप्त होते हैं।


१७ अगस्त २००९[संपादित करें]

अमरनाथ गुफा में बर्फ से बना प्रकृतिक शिवलिंग
अमरनाथ गुफा में बर्फ से बना प्रकृतिक शिवलिंग
अमरनाथ हिन्दुओ का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में १३५ सहस्त्रमीटर दूर समुद्रतल से १३,६०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। इस गुफा की लंबाई (भीतर की ओर गहराई) १९ मीटर और चौड़ाई १६ मीटर है। गुफा ११ मीटर ऊँची है। अमरनाथ गुफा भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्यों कि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। आषाढ़पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखो लोग यहां आते है। गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं।... विस्तार से पढ़ें...

१८ अगस्त २००९[संपादित करें]

भारतीय पकवान गुझिया
भारतीय पकवान गुझिया

गुझिया एक प्रकार का पकवान है जो मैदे और खोए से बनाया जाता है। इसे छत्तीसगढ़ में कुसली, महाराष्ट्र में करंजी, बिहार में पिड़की और आंध्र प्रदेश में कज्जिकयालु, कहते हैं। उत्तर भारत में होली एवं दक्षिण भारत में दिवाली के अवसर पर घर में गुझिया बनाने की परंपरा है। गुझिया मुख्य रूप से दो तरह से बनाईं जातीं है, एक- मावा भरी गुझिया या रवा भरी गुझिया। मावा इलायची भरी गुझिया के ऊपर चीनी की एक परत चढ़ाकर वर्क लगाकर इसको एक नया रूप भी देते हैं। मावा के साथ कभी कभी हरा चना, मेवा या दूसरे खाद्य पदार्थ मिलाकर, जैसे अंजीर या खजूर की गुझिया भी बनाई जाती हैं।


१९ अगस्त २००९[संपादित करें]

प्रतिभा देवीसिंह पाटिल
प्रतिभा देवीसिंह पाटिल

प्रतिभा देवीसिंह पाटिल (उपनाम:प्रतिभा ताई) (जन्म १९ दिसंबर १९३४) स्वतंत्र भारत के ६० साल के इतिहास में पहली महिला राष्ट्रपति हैं| राष्ट्रपति चुनाव में प्रतिभा पाटिल ने अपने प्रतिद्वंदी भैरोंसिंह शेखावत को तीन लाख से ज़्यादा मतों से हराया। प्रतिभा पाटिल को ६,३८,११६ मूल्य के मत मिले, जबकि भैरोंसिंह शेखावत ३,३१,३०६ मत मिले। इस तरह वे भारत की १३वीं राष्ट्रपति चुन ली गई हैं। उन्होंने २५ जुलाई २००७ को संसद के सेंट्रल हॉल में राष्ट्रपति पद की शपथ ली। महाराष्ट्र के जलगांव जिले में जन्मी प्रतिभा के पिता का नाम श्री नारायण राव था। साड़ी और बड़ी सी बिंदी लगाने वाली यह साधारण पहनावे वाली महिला राजनीति में आने से पहले सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रही थी।


२० अगस्त २००९[संपादित करें]

पुरस्कार-प्रतीकः वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा
पुरस्कार-प्रतीकः वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा
ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। भारत का कोई भी नागरिक जो आठवीं अनुसूची में बताई गई २२ भाषाओं में से किसी भाषा में लिखता हो इस पुरस्कार के योग्य है। पुरस्कार में पांच लाख रुपये की धनराशि, प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा दी जाती है। १९६५ में १ लाख रुपये की पुरस्कार राशि से प्रारंभ हुए इस पुरस्कार को २००५ में ७ लाख रुपए कर दिया गया। २००५ के लिए चुने गए हिन्दी साहित्यकार कुंवर नारायण पहले व्यक्ति थें जिन्हें ७ लाख रुपए का ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार १९६५ में मलयालम लेखक जी शंकर कुरुप को प्रदान किया गया था।

२१ अगस्त २००९[संपादित करें]

बुलन्द दरवाजा़
बुलन्द दरवाजा़
बुलन्द दरवाज़ा, भारत के उत्तर प्रदेश प्रांत में आगरा शहर से ४३ किमी दूर फतेहपुर सीकरी नामक स्थान पर स्थित एक दर्शनीय स्मारक है। इसका निर्माण अकबर ने १६०२ में करवाया था। बुलन्द शब्द का अर्थ महान या ऊँचा है। अपने नाम को सार्थक करने वाला यह स्मारक विश्व का सबसे बडा़ प्रवेशद्वार है। हिन्दू और फारसी स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण होने के कारण इसे "भव्यता के द्वार" नाम से भी जाना जाता है। अकबर द्वारा गुजरात पर विजय प्राप्त करने की स्मृति में बनवाए गए इस प्रवेशद्वार के पूर्वी तोरण पर फारसी में शिलालेख अंकित हैं जो १६०१ में दक्कन पर अकबर की विजय के अभिलेख हैं। ४२ सीढ़ियों के ऊपर स्थित बुलन्द दरवाज़ा ५३.६३ मीटर ऊँचा और ३५ मीटर चौडा़ है। विस्तार में...

२२ अगस्त २००९[संपादित करें]

विक्रमशिला विश्वविद्यालय़
विक्रमशिला विश्वविद्यालय़
विक्रमशिला विश्वविद्यालय बिहार राज्य के भागलपुर जिले में स्थित था। इस विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल ने ७७५-८०० ई० में की। इस विश्वविद्यालय ने शीघ्र ही अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त कर लिया। विक्रमशिला विश्वविद्यालय के प्रख्यात विद्वानों की एक लम्बी सूची है। तिब्बत के साथ इस शिक्षा केन्द्र का प्रारम्भ से ही विशेष सम्बंध रहा है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय में विद्याध्ययन के लिए आने वाले तिब्बत के विद्वानों के लिए एक अलग से अतिथिशाला थी। विक्रमशिला से अनेक विद्वान तिब्बत गए थे तथा वहाँ उन्होंने कई ग्रन्थों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया। इन विद्वानों में सबसे अधिक प्रसिद्ध दीपंकर श्रीज्ञान थे जो उपाध्याय अतीश के नाम से विख्यात हैं। विक्रमशिला का पुस्तकालय बहुत समृद्ध था। विक्रमशिला विश्वविद्यालय में बारहवीं शताब्दी में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों की संख्या ३००० थी। विश्वविद्यालय के कुलपति ६ भिक्षुओं के एक मण्डल की सहायता से प्रबंध तथा व्यवस्था करते थे। कुलपति के अधीन ४ विद्वान द्वार-पण्डितों की एक परिषद प्रवेश लेने हेतु आये विद्यार्थियों की परीक्षा लेती थी। विस्तार में...

२३ अगस्त २००९[संपादित करें]

पुणे में एक नुक्‍कड़ नाटक
पुणे में एक नुक्‍कड़ नाटक
नुक्‍कड़ नाटक एक ऐसी नाट्य विधा है, जो परंपरागत रंगमंचीय नाटकों से भिन्न है। यह रंगमंच पर नहीं खेला जाता तथा आमतौर पर इसकी रचना किसी एक लेखक द्वारा नहीं की जाती, बल्कि सामाजिक परिस्थितियों और संदर्भों से उपजे विषयों को इनके द्वारा उठा लिया जाता है। जैसा कि नाम से जाहिर है इसे किसी सड़क, गली, चौराहे या किसी संस्‍थान के गेट अथवा किसी भी सार्वजनिक स्‍थल पर खेला जाता है। इसकी तुलना सड़क के किनारे मजमा लगा कर तमाशा दिखाने वाले मदारी के खेल से भी की जा सकती है। अंतर यह है कि यह मजमा बुद्धिजीवियों द्वारा किसी उद्देश्‍य को सामने रख कर लगाया जाता है। भारत में आधुनिक नुक्कड़ नाटक को लोकप्रिय बनाने का श्रेय सफ़दर हाशमी को जाता है। उनके जन्म दिवस १२ अप्रैल को देशभर में राष्ट्रीय नुक्कड़ नाटक दिवस के रूप में मनाया जाता है। विस्तार में...

२४ अगस्त २००९[संपादित करें]

भारतीय सर्वेक्षण विभाग, भारत की नक्शे बनाने और सर्वेक्षण करने वाली केन्द्रीय एजेंसी है। इसका गठन १७६७ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के क्षेत्रों को संगठित करने हेतु किया गया था। यह भारत सरकार के पुरातनतम अभियांत्रिक विभागों में से एक है। इसकी स्थापना कैप्टन टी जी मोंटोगोमरी के निर्देशन में की गई थी। देश की मुख्य मैपिंग एजेंसी के रूप में यह संस्थान प्रशंसनीय भूमिका निभाता आ रहा है। सर्वे ऑफ इंडिया ट्राइगोनोमेट्रीकल सर्वे, रेवेन्यू सर्वे और मैपिंग सर्वे नामक तीन संस्थानों का एक संयोग है। भारत के पहले सर्वेयर जनरल कर्नल विलियम लेम्बटन को १८०२ में ट्राइगोनोमेट्रीकल सर्वे ऑफ इंडिया की स्थापना का श्रेय जाता है। इसे पूरा करने में ४० साल लगे और यह २४०० मील के क्षेत्र पर फैला हुआ है। इसका मुख्यालय देहरादून, उत्तराखंड में स्थित है। इसमें १८ नागर अभियांत्रिकी मंडल हैं, और भारत पर्यन्त २३ भूगर्भ-स्पेशियल आंकड़े केन्द्र हैं, प्रत्येक अपने प्रशासनिक क्षेत्र से जुड़ा है।  विस्तार में...

२५ अगस्त २००९[संपादित करें]

धब्बेदार घृत कुमारी
धब्बेदार घृत कुमारी
घृत कुमारी या अलो वेरा, जिसे क्वारगंदल या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है, एक औषधीय पौधे के रूप में विख्यात है। इसकी उत्पत्ति संभवतः उत्तरी अफ्रीका में हुई है। विश्व में इसकी २७५ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसे सभी सभ्यताओं ने एक औषधीय पौधे के रूप मे मान्यता दी है और इस प्रजाति के पौधों का इस्तेमाल पहली शताब्दी ईसवी से औषधि के रूप में किया जा रहा है। इसका उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों मे मिलता है। घृत कुमारी का पौधा बिना तने का या बहुत ही छोटे तने का एक गूदेदार और रसीला पौधा होता है जिसकी लम्बाई ६०-१०० सें.मी तक होती है। इसका फैलाव नीचे से निकलती शाखाओं द्वारा होता है। इसकी पत्तियां भालाकार, मोटी और मांसल होती हैं जिनका रंग, हरा, हरा-स्लेटी होने के साथ कुछ किस्मों मे पत्ती के ऊपरी और निचली सतह पर सफेद धब्बे होते हैं। पत्ती के किनारों पर की सफेद छोटे कांटों की एक पंक्ति होती है। ग्रीष्म ऋतु में पीले रंग के फूल उत्पन्न होते हैं।विस्तार में...

२६ अगस्त २००९[संपादित करें]

मोदीनगर
मोदीनगर
मोदीनगर उत्तर प्रदेश राज्य के गाजियाबाद जिले में एक तहसील है जो दिल्ली से लगभग ५० कि॰मी॰ उत्तर दिशा में स्थित है। यह निकटवर्ती शहरों मेरठगाजियाबाद से २४ कि॰मी॰ दूर है। यह उद्योगपति मोदी का गृह स्थान है और यहीं पर शहर के संस्थापक रायबहादुर गूजर मल मोदी ने १९३३ में मोदी उद्योग की नींव रखी थी। इस कारण यह एक बड़ा औद्योगिक क्षेत्र रहा है। पिछले कुछ वर्षों में मोदीनगर की उन्नति शिक्षा के क्षेत्र में भी द्रुत गति से हुई है। मोदीनगर में औद्योगिक क्रांति तो आई, किंतु शहर हरे भरे खेतों एवं बागों आदि से घिरा रहने के कारण यहां पर्यावरण का सान्निध्य भी भरपूर मिलता है। शहर में बड़े इंजीनियरी कॉलिज व प्रबंधन संस्थान हैं, जो मोदी उद्योग-गृह द्वारा १९८० के दशक में स्थापित किए गए थे। मोदीनगर का प्रसिद्धतम स्थान है, लक्ष्मी नारायण मंदिर, जिसे स्थानीय लोग मोदी मंदिर कहते हैं।  विस्तार में...

२७ अगस्त २००९[संपादित करें]

अंकोरवाट मंदिर का आकशीय दृश्य
अंकोरवाट मंदिर का आकशीय दृश्य
कंबोडिया स्थित अंकोरवाट मंदिर का निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (१११२-५३ई.) के शासनकाल में हुआ था। मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बना यह मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है। राष्ट्र के लिए सम्मान के प्रतीक इस मंदिर को १९८३ से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है। यह मन्दिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है। इसकी दीवारों पर भारतीय धर्म ग्रंथों के प्रसंगों का चित्रण है। इन प्रसंगों में अप्सराएं बहुत सुंदर चित्रित की गई हैं, असुरों और देवताओं के बीच अमृत मन्थन का दृश्य भी दिखाया गया है। विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही यह मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। पर्यटक यहाँ केवल वास्तुशास्त्र का अनुपम सौंदर्य देखने ही नहीं आते बल्कि यहाँ का सूर्योदय और सूर्यास्त देखने भी आते हैं। सनातनी लोग इसे पवित्र तीर्थस्थान मानते हैं। विस्तार से पढ़ें

२८ अगस्त २००९[संपादित करें]

तीन मूर्ति भवन
तीन मूर्ति भवन
तीन मूर्ति भवन में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू का आवास था। उनके बाद में उनकी स्मृति में इसे संग्रहालय के रूप में बदल दिया गया है। उनके जीवन की झलक आज भी यहां उनके छाया चित्रों में देखी जा सकती है। सीढ़ीनुमा गुलाब उद्यान एवं एक दूरबीन यहां के प्रमुख आकर्षण हैं। इसी गुलाब उद्यान से नेहरु जी अपनी शेरवानी का गुलाब चुना करते थे। यहां हर शाम ध्वनि एवं प्रकाश कार्यक्रम का आयोजन भी होता है जिसमें उनके जीवन और स्वतंत्रता के इतिहास के बारे में बताया जाता है। नेहरु जी के जीवन से संबंधित बहुत सी वस्तुएं यहां संरक्षित रखी हुई हैं। इतिहास के साक्षी बहुत से समाचार पत्र, जिनमें ऐतिहासिक समाचार छपे हैं, उनकी प्रतियां, या छायाचित्र भी यहां सुरक्षित हैं। इन सबके साथ ही पंडित नेहरू को मिला भारत रत्न भी प्रदर्शन के लिए रखा हुआ है। तीन मूर्ति भवन के परिसर में ही नेहरू तारामंडल बना है।  विस्तार में...

२९ अगस्त २००९[संपादित करें]

तीन रंगों के एलईडी
तीन रंगों के एलईडी
प्रकाश उत्सर्जक डायोड एक अर्ध चालक-डायोड होता है, जिसमें विद्युत धारा प्रवाहित करने पर यह प्रकाश उत्सर्जित करता है। यह प्रकाश इसकी बनावट के अनुसार किसी भी रंग का हो सकता है-लाल,नारंगी, हरा, पीला, नीला या श्वेत। एल.ई.डी कई प्रकार की होती हैं। इनमें मिनिएचर, फ्लैशिंग, हाई पावर, अल्फा-न्यूमेरिक, बहुवर्णी और ओ.एल.ई.डी प्रमुख हैं। यह एक इलेक्ट्रॉनिक चिप है जिसमें से बिजली गुज़रते ही उसके इलेक्ट्रॉन पहले तो आवेशित हो जाते हैं और उसके बाद ही, अपने आवेश वाली ऊर्जा को प्रकाश के रूप में उत्सर्जित कर देते हैं। इसका मुख्य प्रकाशोत्पादन घटक गैलियम आर्सेनाइड होता है। इसके प्रमुख लाभ ऊर्जा की कम खपत, लंबा जीवनकाल, उन्नत दृढ़ता, छोटा आकार और तेज स्विचन आदि हैं। इसके आविष्कारक निक होलोनिक को एलईडी के पितामह के रूप में जाना जाता है।  विस्तार में...

३० अगस्त २००९[संपादित करें]

पुरन पोली सजी हुई
पुरन पोली सजी हुई
पुरन पोली पश्चिम भारत का प्रसिद्ध मीठा पकवान है। यह हरेक तीज त्योहार आदि के अवसरों पर बनाया जाता है। गुड़ीपडवा पर्व पर इसे विशेष रुप से बनाया जाता है। पुरन पोली की मुख्य सामग्री चना दाल होती है और इसे गुड़ या शक्कर से मीठा स्वाद दिया जाता है। पूरणपोळी चने की दाल को शक्कर की चाशनी में उबालकर बनाई गयी मीठी पिट्ठी से बनती है। इसमें जायफल, इलायची, केसर और यथासंभव मेवा एवं पीले रंग के लिए चुटकी भर हल्दी डाल कर सुस्वादु बनाया जाता है। चूंकि इसे ही मैदा या आटे की लोई में पूरा या भरा जाता है इसलिए पूरण नाम मिला। मराठी में रोटी के लिए पोळी शब्द है। भाव हुआ भरवां रोटी। इसे तेल या शुद्ध घी से परांठे की तरह दोनों तरफ घी लगाकर अच्छी तरह लाल और करारा होने तक सेक लेते हैं। सिकने के बाद इसे गर्म या सामान्य कर परोसा जाता है। इसके साथ आमटी या खीर भी परोसी जाती है।  विस्तार में...

३१ अगस्त २००९[संपादित करें]

पंडित शिवकुमार शर्मा १९८८ में वादन करते हुए
पंडित शिवकुमार शर्मा १९८८ में वादन करते हुए
पंडित शिवकुमार शर्मा प्रख्यात भारतीय संतूर वादक और गायक हैं। इन्होंने पांच वर्ष की आयु से ही संगीत अध्ययन और १३ वर्ष की आयु से ही संतूर बजाना आरंभ किया था। इन्होंने अपना पहला कार्यक्रम बंबई में १९५५ में किया था। इनका प्रथम एकल एल्बम १९६० में आया। १९६५ में इन्होंने निर्देशक वी शांताराम की नृत्य-संगीत के लिए प्रसिद्ध हिन्दी फिल्म झनक झनक पायल बाजे का संगीत दिया। १९६७ में इन्होंने प्रसिद्ध बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और पंडित बृजभूषण काबरा की संगत से एल्बम कॉल ऑफ द वैली बनाया, जो शास्त्रीय संगीत में बहुत ऊंचे स्थान पर गिना जाता है। इन्होंने पं.हरि प्रसाद चौरसिया के साथ कई हिन्दी फिल्मों में शिव-हरि नाम से संगीत दिया है। जिसमें सिलसिला, फासले, चाँदनी, लम्हे, और डर उल्लेखनीय हैं। इन्हें १९९१ में पद्मश्री, एवं २००१ में पद्म विभूषण से भी अलंकृत किया गया था।  विस्तार में...