वार्ता:शिव धर्म

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शिव धर्म ( हिन्दु) दुनिया का पहला सच्चा धर्म है जो शिव द्वारा संचालित एवं शिव शक्ति द्वारा ही उत्पन्न हुआ है। शिव ही सम्पूर्ण विश्व का निर्माण हो कर शिव मे ही विलीन हो जाते हैं। जीवन को सार्थक बनाने के लिए पाचं मुख्य पुरुषार्थों १ -धर्म । 2- अर्थ,धन 3- काम शिव के प्रति प्रेम 4- मोक्ष- 5- परम शिव जी प्रति प्रेम Sehsrar Chakra 5- पराब्रम्हा शिव शक्ति इन पाचं स्तम्भों पर ही आत्मा बीज रूप में- मोक्ष - इन तीन स्तम्भो का आधार ही मोक्ष होता है, रास्ता है शिव धर्म । यह स्तम्भ महा काली , गणेश की ऊर्जा का स्रोत हैं। काली यही से पुरी संसार की आत्माओ की जननी है। 5- परा ब्राह्म सदा शिव शक्ति सहस्रार >चक्र > प्रथम तीन पुरुषार्थ साधनरूप से तथा अंतिम साध्यरूप से व्यवस्थित था। मोक्ष परम पुरुषार्थ, अर्थात्‌ जीवन का अंतिम लक्ष्य था, किंतु वह अकस्मात्‌ अथवा कल्पनामात्र से नहीं प्राप्त हो सकता है। उसके लिए साधना द्वारा क्रमश: जीवन का विकास और परिपक्वता की आवश्यक होती है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारतीय समाजशास्त्रियों ने आश्रम संस्था की व्यवस्था की गई थी। आश्रम वास्तव में जीव का शिक्षणालय अथवा विद्यालय है। ब्रह्मचर्य आश्रम में धर्म का एकांत पालन होता है। ब्रह्मचारी पुष्टशरीर, बलिष्ठबुद्धि, शांतमन, शील, श्रद्धा और विनय के साथ युगों से उपार्जित ज्ञान, शास्त्र, विद्या तथा अनुभव को प्राप्त करता है। सुविनीत और पवित्रात्मा ही मोक्षमार्ग का पथिक्‌ हो सकता है। गार्हस्थ्य में धर्म पूर्वक अर्थ का उपार्जन तथा काम का सेवन होता है। संसार में अर्थ तथा काम के अर्जन और उपभोग के अनुभव के पश्चात्‌ ही त्याग और संन्यास की भूमिका प्रस्तुत होती है। संयमपूर्वक ग्रहण से, त्याग होता है। वानप्रस्थ तैयार होती है। संन्यास के सभी बंधनों को को शिव धर्म की ऊर्जा द्वारा काट कर , पूर्णत: मोक्षधर्म का पालन होता है। इस प्रकार आश्रम संस्था में जीवन का पूर्ण उदार, किंतु संयमित नियोजन भी हैं।मुलाधार आत्मा का आधार है। १- प्रथम है धर्म - विजय भाव ऊर्जा , की विजय केवल अन्त मे सत्य की ही होती है। शिव धर्म द्वारा ही बाकी स्तम्भों को ऊर्जा प्राप्त होती है। इस स्तम्भ बीज रूप को ऊर्जा शिव लिंग द्वारा प्राप्त होती रहती है। यहीं से मोक्ष htts://kundalinimantr.wordpress.com ">कुंडलीनी जागरण।> ओर सम्पूर्ण विश्व की सिद्धीयों , एवं जीवन आत्मा का विकास आर्थिक विकास का पहला द्वार खुलता है। २- दुसरा है अर्थ - यानी की धन, सुविधा वगैरह जो शिव धर्म की ऊर्जा से पुरुषार्थ शक्ति द्वारा प्राप्त होता है। यही से शनि भी दन्ड देता है। शनि का कार्य स्थल ब्राह्म चक्र मे भी है। वह = सूर्य स्थल से भी दन्डीत करता है। तीसरा- काम यह धर्म स्थान को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है , अगर शिव जी को इस स्थान पर जागरण कर , तीसरा नेत्र शिव " से जोड़ ले ओर शिव शक्ति के सच्चे प्रेम द्वारा ही , अधर्म से बचा जा सकता हैं। अन्यथा अधर्म कार्य करने से यहां पर आत्मा का स्तम्भ कमजोर होने लगता है। जीवन काल मे जो हम कार्य करते हैं वह यही से बनने या बिगडते हैं।

शिव धर्म[संपादित करें]

धर्म ( हिन्दु) दुनिया का पहला सच्चा धर्म है जो शिव द्वारा संचालित एवं शिव शक्ति द्वारा ही उत्पन्न हुआ है। शिव ही सम्पूर्ण विश्व का निर्माण हो कर शिव मे ही विलीन हो जाते हैं। जीवन को सार्थक बनाने के लिए पाचं मुख्य पुरुषार्थों १ -धर्म । 2- अर्थ,Lakshmi धन 3- काम शिव के प्रति प्रेम 4- मोक्ष- Shivstan (वार्ता) 04:34, 10 अक्टूबर 2020 (UTC)[उत्तर दें]

मूलाधार चक्र में ही शिव जी की शक्ति कुंडलिनी साढे तीन फेरे लगाये सुप्त अवस्था में रहती है. Shivstan (वार्ता) 04:34, 10 अक्टूबर 2020 (UTC)[उत्तर दें]