वार्ता:वाटर (२००५-चित्र)

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  • संक्षेप
  • अभिनेता
  • रिहाई



संक्षेप[संपादित करें]

यह चित्र सन् १९३८ पर निर्धारित है जब भारत अंग्रेज़ॊ के शासन में था। तब बालविवाह एक सामान्य प्रथा थी। समाज में विध्वाओं का स्थान बहुत क्षीण था और उन्से सिर्फ एक गरीबी और भग्वान के प्रति भक्ति का ही उम्मीद रखा जाता था। कानूनी तौर पर विध्वाओं का पुनर्विवाह लागू तो था लेकिन भारतीय समाज उसे निषिद्ध घोषित कर्ती थी।

जब चुहिया (सरला करियास्वामी), साथ वर्ष की एक लड्की का पति मर जाता है, अपनी वैधव्य के प्रथा के अनुसार एक भारी सा सफेद सारी में, सिर को मुँड्वाकर, अपनी बाकी के ज़िंद्गी एक हिन्दू आक्ष्रम में परित्याग्ता के साथ बिताने आती है। वहाँ चौदह विध्वायें थी, जो एक छोटी सी टूटे- फूटे दुमंज़िले घर में रह्ती थी, अपने बुरे कर्म की क्षतिपूर्ती कर्ने के लिये और अपने परिवार को आर्थिक एवं मानसिक बोझ से मुक्त कर्ने के लिये रह्ती थी। उस आक्ष्रम में मधूमती (मनोरमा), एक ७० वर्ष की भारी शरीर वालि आडंबर्पूण विध्वा की हुकूमत चलती थी। उसकी दोस्त सिर्फ एक ही था, गुलाबी (रघूवीर् यादव) एक हिज्रा, जो दलाली कर्ता था, मधूमती को सारे नए खबर लाके देना और उसे गाँजे का उपलप्दी कराता था। गुलाबी, मधूमती की मदद कर्ता था,कल्याणी (लीसा रेय) जो सबसे जवान थी, को वेश्यावव्रुत्ति में साथ देता था, उसे नदी के दूसरी ओर ग्राहक के पास ले जाने के लिये। कल्याणी को बचपन में ही इस् काम मे अक्ष्रम की सहायता करर्ने के लिये डाला गया था।

शकुन्तला (सीमा बिस्वास) बाकी विध्वाओं से सबसे रहस्यमय थी। और एक होशियार, समझदार, आकर्शक और विनोद्पूर्ण विध्वा थी। वह उन कुछ विध्वाओं में थी जो पढ सक्ती थी। उसके गुस्से के आगे तो मधूमती भी उस्का पीछा छोड देती थी। शान्त और एक संकोची शकुन्तला, अपने वैधव्य के प्रति नफ्रत और अपने उस्के प्रति अपने कर्तव्य को बराबर से ना निभा पाने की मन की इस लडाइ मे जूंज्ती रह्ती थी। वह बहुत धार्मिक थी और हमेशा सदानन्द (कुलभूशन खर्बन्धा), एक चालिस वष॔ का शरीफ पन्डित का सलाह लेती थी और परामर्श करती थी। उसी पन्डित ने शकुन्तला को यह एह्सास कर्वाया की उसे अपनी सच्ची आस्था और झूटी चरित्र के बीच ना फसे और दूसरे विध्वाओ का ज़िंद्गी को बर्बाद ना करे। शकुन्तला को चुहिया से बहुत लगाव था, क्यूंकी वह उसमे अपने आपको देखती थी और चुहिया की हर ख्वायिशों को पूरा कर्ने की कोशिश् कर्ती थी।

चुहिया हमेशा यही सोचती रह्ती थी की वह उस आश्रम में कुछ दिनों के लिये ही रहेगी और बादमें उसकी माँ उसे वापस ले जायेंगी। इसी सोच में रह्ते-रह्ते और समय के बीत्ते वह उस आश्रम में सबके साथ घुल-मिल जाति है। मधूमती ने उसमे वैधव्यता को बहुत मुश्किल से लागू कराती है। उसी बीच चुहिया ने कल्याणी से दोस्ती कर लेती है, जो सबसे जवान, सुंदर और ज़िंदादिली थी। चुहिया, कल्याणी की नारायण (जोह्न एब्रहाम), एक ऊँची वर्ग का आकर्श्क और जवान लड्के के प्रती बढ्ते प्रेम की एक मात्र गवाह थी। नारायण महात्मा गान्धीजी का अनुयायी था। शुरुवाद मे तो कल्याणी ने अपने मन को रोकने की बहुत कोशिश किया मगर हार गयी। वह नारायण के साथ अपने विवाह का सपने देखने लगी और उसके साथ कलकत्ता जाने के लिए भी मान गयी।

उसकी यह योजना विफल हो जाती है, जब एक शाम चुहिया मधूमती को मालिश देते समय बिना सोचे- समझे कल्याणी की प्रेम सम्बन्ध के राज़ के बारे मे बोल देति है। समाज की शर्म और आश्रम के एकमात्र आय के जड को खो देने के डर से मधूमती कल्याणी को बन्ध कर देती है। आशचर्य की बात तो यह थी की शकुन्तला, जो एक धार्मिक विचारो वालि थी, उसी ने जाकर कल्याणी को छुडाया और उसे नारायण के साथ जाने के लिये छोड दिया। नारायण कल्याणी को नौके में बिटाकर नदी के उस पार अपने घर ले जाता है। लेकिन इस् यात्रा का अंत खुशी के साथ नही होता है, क्योंन्की जब कल्याणी नारायण के बंगले को देखति है, उसे यह बोध होता है की उस बंगले में वह पहले जा चुकी है अपने ग्राहक से मिलने, जो और कोई नही बल्की नारायण का पिता था जिसके साथ वह रात गुज़र चुकी है। हैरान होकर वह नौके को वापस घुमाने की ज़िद्द करने लगी और लौट जाने के लिये कहने लगती है। जब नारायण का सामना अपने पिता के साथ हुआ तब उसे कल्याणी का इरादा बदलने का वजह पता चला। घृणापूर्वक वह अपने पिता को छोड देता है और गान्धीजी के दल मे मिल जता हे। जब वह आश्रम में वापस कल्याणी को लेने जाता है उसे यह पता चलता है कि, वह दु:ख को सेहेन ना कर पाकर नदी मे डूबकर मर गयी।

इसी बीच मधूमती चुहिया को कल्याणी के बद्ले गुलाबी के साथ अपने एक ग्राहक के पास भेज देती है। शकुन्तला इसे रोखने के लिये भागती है, मगर किनारे पर चुहिया को वापस आते पाति है। वह बच्ची बहुत गहरे बलत्कार की सदमें मे थी और कोई जवाब नहीं दे रही थी। शकुन्तला उस रात को चुहिया के साथ उस तट पर ही रही। जब उसे पता चला की गान्धीजी आए थे रेलवे स्टेशन में, तब् वह चुहिया को गोंद मे लेकर भागी। जब रेल छूट्ने लगी तो अचानक् शकुन्तला लोगों से चुहिया को ले जाने के लिये विन्ती करने लगी। उसी वक्त वह नारायण को देखती है और बहुत कोशिशो के बाद चुहिया को उसके पास सौंप देती है। रेल निकल पढ्ता है और शकुन्तला चुहिया को एक उज्ज्वल भविश्य की ओर जाते हुए देखती रह जाती है। --Rumad.124 (वार्ता) 14:11, 30 जनवरी 2014 (UTC)[उत्तर दें]

अभिनेता[संपादित करें]

सीमा बिस्वास शकुंतला के भूमिका में; लिसा रे कल्याणी के भूमिका में; जॉन अब्राहम नारायण के भूमिका में; वहीदा रहमान, भगवती नारायण के माँ के भूमिका में; सरल करियावासम चुइया के भूमिका में; बुद्धि विक्र्मा बाबा के भूमिका में; रोनिका सजनानी कुंती के भूमिका में; मनोरम मधुमती के भूमिका में; रिश्मा मल्लिक स्नेहलता के भूमिका में; सीमा बिस्वास ज्ञानवती के भूमिका में; विदुला जावलकर पतिरजी के भूमिका में; दया एल्विस सेडूराम के भूमिका में; रघुवीर यादव गुलाबी के भूमिका में; विनय पाठक रबिंदर के भूमिका में; खुलबुशन खरबंदा सदानंदा के भूमिका में; गेरसों दे कुन्हा सेट द्वारकानाथ के भूमिका में; मोहन जांगिनी महात्मा गांधी के भूमिका में; ज़ुल विलानी महात्मा गांधी के आवाज के भूमिका में;

पुरस्कार[संपादित करें]

  1. २००६ की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री की पुरस्कार सीमा बिस्वास को मिला
  2. २००६ की छायांकन में उत्कृष्ट उपलब्धि की पुरस्कार गिलेस नुत्गेंस को मिला
  3. २००६ की सर्वश्रेष्ठ मूल स्कोर की पुरस्कार मिचैल दन्ना को मिला
  4. २००६ की सुवर्ण किन्नरी पुरस्कार, बैंकाक अंतरास्ट्रीय फ़िल्म उत्सव में सर्वश्रेष्ठ फिल्म को मिला
  5. २००६ की सिल्वर मिरर पुरस्कार , फेस्टिवल फिंस ओस्लो में सर्वश्रेष्ठ फिल्म को मिला



महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया[संपादित करें]

फ़िल्म लॉस एंगेल्स टाइम्स की लेखक, केविन थॉमस से उव्वह प्रसंसा प्राप्त की।


[1]

सन्दर्भ[संपादित करें]