वार्ता:लोधी

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लोधी राजपूत[संपादित करें]

लोधी जाति का इतिहास अत्यन्त प्राचीन तथा गौरवपूर्ण है। कहा जाता है कि सृष्टि की रचना के उपरान्त मानव सभ्यता की रचना हुई तभी परमात्मा द्वारा श्रुतिज्ञान ऋषियों ने अपने निर्मल अन्तःकरण में धारण कर प्राकृत भाषा में लिपिबबद्ध कर लोक में प्रकाशित किया। वही ईश्वरीय ज्ञान है। सार्वभौमिक विद्वानों का मत है कि वेद संसार का प्राचीनतम मानवीय साहित्य हैं वेदों का कथन झुठलाया नही जा सकता। वेदों का समय जितना प्राचीन है, आर्य जाति का इतिहास भी उतना ही प्राचीन है


परिच्छेद- एक

लोध (लोधी) शब्द की उत्पत्ति’

वैसे लोध शव्द की उत्पत्ती किन कारणों से हुवे वह अभी अध्यन की विषय अवश्य ही है। लेकिन विद्यमान प्रमाण इसे परिभाषीत करने के लिए प्रयाप्त हैं।


वेदों के प्रमाण

लोध जाती की उल्लेख वेदों गर्न्थादी मे परिभाषित स्थितियो मे व्याख्या मिल्ते है। लोध (लोधी) शब्द का उल्लेख प्राचिन ग्रन्थ तथा एक विशेष धरोहर ऋृगवेद के मंडल 3 अध्याय 4 सूत्र 53 मंत्र 23 में निम्न प्रकार से व्याख्या किया हुवा मिल्ता है।


न सायकस्य चिकिते जनोसां लोधं पशुमन्यमानाः।नवाजिनं वाजिना हासयन्ति व गर्दभं पुरो अश्वान्नयन्ति।


इस मंत्र में ‘लोध’ शब्द का उपयोग गुणवाचक विशेषण के रुप में उपयोग हुआ है। ‘लोध’ वीर रस को प्रस्तुत करता है। वेदों के प्रमुख भाष्यकार स्वामी दयानन्द जी ने ‘लोधं’ शब्द की व्याख्या साहसी, बुद्धिमान, वीरश्रेष्ठ तथा युद्ध विद्या में निपुण और व्यूह रचना करना तथा रक्षा करने में सामर्थवान हों। ‘लोधं’ मनुष्य का एक गुण विशेष है। जो कभी योद्धाओं को उनकी वीरता और कुशलता के कारण ही सेनापति व सेनानायकों को प्रदान किया जाता था। जैसे वेदमंत्रों को पढ़ने वाले को पंडित कहा जाता है उसी प्रकार जो मनुष्य युद्ध विद्या में निपुण थे वही लोध कहलाये। ऋग्वेद का उर्पयुक्त मंत्र विशेषकर उस सीन पर प्रयुक्त हुआ है जहां राजा को सेना के गठन संबधी ज्ञान कराया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि ‘लोध’ गुण विशेष वाले क्षत्रियों का नाम था। जो बाद में एक जाति के रुप में परिवर्तित हो गया। आचार्य सायणा ने अपने भाष्य में ‘लोध’ शब्द ऋषि विश्वामित्र के लिये विशेषण में प्रयुक्त किया है। जब वे अपनी तपस्या में पूर्णतया लगे हुए थे और तपस्या में लीन अपने प्राणों तक की चिन्ता नहीं थी। यदि यही मान लिया जाये कि ‘लोध’ ऋषि विश्वामित्र का नाम था, यह भी संभव हो सकता है कि उनकी प्रेरणा से उन्हीं के समान गुण वाले क्षत्रियों ने अपना नाम लोध रख लिया हो उसकी समुदाय विशेष का नाम लोध पड़ गया।


अब तक उर्पयुक्त मंत्र तथा लोध शब्द की व्याख्या पर प्रकाश डालने वाले कई विद्वान इस प्रकार हैः- 2409:4043:2113:92EC:0:0:136B:F0A0 (वार्ता) 11:09, 2 दिसम्बर 2022 (UTC)उत्तर दें[उत्तर दें]