वार्ता:मूल अधिकार (भारत)

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संविधान[संपादित करें]

संवीधान की साईज बहोत हो गयी है । अतः उसके महत्व के प्रकरण वहांसे नीकालकर अलग अलग कीया जाये ।

भारतीय संविधान पश्चिमी पूंजीवादी उद़देश्‍यों के संविधानों से थोक भाव से जुमले उधार लेने और धुंआधार लफ्फाजी करने के बावजूद इस सच्चाई को छुपा नहीं पाता कि यह संविधान भारतीय जनता को अत्यंत सीमित जनवादी अधिकार प्रदान करता है और उन्हें भी छीन लेने के प्रावधान इसी के भीतर मौजूद हैं। शासक वर्ग के लिए आपातकाल के असीमित अधिाकारइसी संविधान के भीतर मौजूद हैं और घोषित मूलभूत अधिकारों को सीमित करने के रास्ते भी इसी के भीतर हैं। नीति निर्देशक सिध्दांतों के रूप में समाजवादी रंग-रोगन लगाते हुए संविधान में ”कल्याणकारी राज्य” के पश्चिमी पूंजीवादी मॉडलों की थोड़ी बहुत नकल भी की गई है, पर इन नीति निर्देशक सिंध्दांतों को मानने की कोई भी बाध्यता या लागू करने का कोई समयबध्द लक्ष्य शासक वर्ग के सामने नहीं रखा गया है और अब, आधी सदी बाद इन नीति-निर्देशक सिंध्दांतों को पढ़कर केवल ठठाकर हंसा ही जा सकता है। संविधान का मूल ढांचा वही है जो ब्रिटिश औपनिवेशक सत्ता ने तैयार किया था। वही आई.पी.सी, सी.आर.पी.सी, सम्पत्ति व उत्तराधिकार के वही कानून, कोर्ट-कचहरी का वही ढांचा, वही वकील-पेशकार, वही नजराना-शुकराना। आम नागरिक की स्थिति कानून व्यवस्था के सामने पुराने रैयतों जैसी ही है। और कानून-व्यवस्था से भी छन-रिसकर कुछ जनवादी और नागरिक अधिकार बचजाते हैं तो वे नौकरशाही और थाना-पुलिस की जेब में अटक जाते हैं।

मुझे दुख होता है की ऐसी बात कोई छ्द्म (छुप कर कैसे करता है बिना लाग्-इन करे और बिना ह्स्ताक्षर छोडे) । खैर मेरे अनुमान से यह वी के वोहरा हो सकता है या दाडीकेश । मेरे पास जवाब है और बहुत जोरदार लेकिन पहले सवाल पूछने वाले अपने को सामने लाएं --Dr. Jain ०५:४०, १४ मार्च २००८ (UTC)

तीन अलग-अलग लेख बनाना ठीक रहेगा[संपादित करें]

तिवारी जी, आप इस लेख पर कुछ काम कर रहे हैं। मेरा विचार है कि इस लेख का शीर्षक बहुत बड़ा हो गया है और इससे सम्बन्धित सामग्री भी अधिक हो जाएगी। अतः तीन अलग-अलग लेख बनाना अधिक अच्छा रहेगा।

(१) भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकार (२) भारतीय नागरिकों के मूल कर्तव्य (३) भारतीय संविधान के नीति-निर्देशक तत्व

-- अनुनाद सिंहवार्ता 04:34, 12 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

बेहतर सुझाव है। (१) भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकार, विषय पर फिलहाल काम कर लेता हूँ। धन्यवाद। आपके सुझाव अपेक्षित हैं। -- अजीत कुमार तिवारी वार्ता 04:49, 12 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]