वार्ता:भारतीय सिनेमा का इतिहास

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मितुल १५:३०, २९ सितम्बर २००६ (UTC)

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भारतीय सिनेम दुनिया भर मेइन मशहूर हैन और बोल्लिवुड दुनिया भर मेइन लोक्प्रिय माना जाता है। भारत में १००० से भी ज़्यादा फिल्मे निक्लते है । श्रि दादासाहेब फाल्के हिन्दि सिनेम के बहुत प्रसिध निर्देशक है। ये भार्तीय चलचित्र के पिता माने जाते है और इन्के नाम से एक बहुत मह्त्वपूर्न पुरस्कार भी हे।सन २०१० में यह पता चला कि बोल्लिवुड , हॉलीवुड से भी ज़्यादा कमाई कर रहा थ । २०११ में, बॉलीवुड ने लगभग ९३ अरब डॉलर की कमाई कि थी । नई प्रौद्योगिकियों की शुरुआत के कारण फिल्मों के प्रकार में सुधार हुआ है जिसके कारण फिम्ले और भी लोक्प्रिय हो गये हे । दृश्य प्रभाव पर आधारित, रावन , ईगा और क्रिश 3 की तरह सुपर हीरो और विज्ञान कथा फिल्मों की सुपर हिट फिल्मों के रूप में उभरा। आज्कल भार्तीय सिनेम ९० देशो मेइन दिखाया जाता हे । अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों मे भार्तीय सिनेम दिखया जाता है । प्रसिद्ध निर्देशक जैसे कि सत्यजीत रे, घटक, यश चोपड़ा, मृणाल सेन आदि के फिल्मे इन अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों मे दिखये जाते है ।शेखर कपूर, मीरा नायर, दीपा मेहता, नागेश कुकनूर और करण जौहर के रूप में अन्य भारतीय फिल्म निर्माताओं ने भी विदेशों में सफलता पाई है । शिवाजी गणेशन, और एसवी रंगा राव १९५९ और १९६३में फिल्मों वीरापन्दीया क्तटबोमन् और नार्थनसला के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीता । भारत हर साल इतनी सारी फिल्मों का निर्माण करने के लिए दुनिया का एकमात्र देश है । २००९ में भारत ने २९६१ फिल्मे निकाली । इस तरह 20 वीं सेंचुरी फॉक्स, सोनी पिक्चर्स, वाल्ट डिज्नी पिक्चर्स और वार्नर ब्रदर्स के रूप में विदेशी उद्यमों ने भार्तीय मारकेट में कदम रखा । २००३ में ३० फिल्म निर्माण कंपनियों को भारत के नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में शामिल कर लीया गया था । दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग , दक्षिण भारत के चार फिल्म संस्कृतियों को परिभाषित करता है । इन्में कन्नड़, मलयालम, तमिल और तेलुगू उद्योगों हैं । बाह्रर रेहने वाले भार्तीयो के लीये दिवीदी और सिनेमा हॉल है जिसके द्वारा वे भार्तीय सिनेमा देख सकते है । भार्तीय सिनेमा का एक मह्त्वपूर्न हिस्सा है उसका नाच - गाना है जिसके कार्ण फिल्मे और भी ज़्यादा प्रसिद्ध हो जाते है ।

मुंबई में हैंगिंग गार्डन में एचएस भटाव्देकर ने भारत की पेहली वृत्तचित्र फिल्म , 'पहलवान' (१८९९) में ब्नाया था । भारत में जारी पहली भारतीय फिल्म दादासाहेब तऑर्ने द्वारा मराठी में एक मूक फिल्म 'श्री पुन्डलिक' था ।इस फिल्म के कैमरामैन एक अंग्रेजी आदमी था । पेहली पूरी फिल्म दादासाहेब द्वार बनाया गया था । ये एक मराटी मूक फिल्म है जिस्का नाम है राजा हरीशचंद्र । इस में महिलाओ का किरदार भी आदमियो ने निभाया । येह एक एक ऐतिहासिक फिल्म माना जाता है । जमशेदजी मदन ने सिनेमा थियेटरों के पहले भारतीय श्रृंखला शुरु की । उन्होंने १९१७ में सतयावादि राजा हरिश्चंद्र, फाल्के के राजा हरिश्चंद्र की रीमेक का उत्पादन किया । रघुपति वेंकैया नायडू ने अनेक मूक फिल्म बनाये । वेंकैया नायडू पुरस्कार तेलुगू फिल्म उद्योग में उनके योगदान के लिए लोगों को पहचान करने के लिए नंदी पुरस्कार में शामिल एक वार्षिक पुरस्कार है । २० सदि के शुरुवात से ही भारतीय सिनेमा और ज़्यादा प्रसिद्ध हो गया है । टिकटों की कीमतों सस्ते थे और इसलिए लोग ज़्यादा फिल्मे देख्ते थे । एक टिकट क दाम ४ आना था । फिल्मे उन चीज़ो के बारे में होत था जिस्से आम आदमी प्रस्न होता था । कुछ निर्देश्को ने बहर कि स्न्स्क्रिति को फिल्मो में डाला और सिनेमा की वृद्धि की ।यह भी समय था जब वैश्विक दर्शकों और बाजार में भारत के फिल्म उद्योग के बारे में पता बन गया था ।आर्देशिर ईरानी ने १९३१ में, पहले भारतीय बात कर रहे फिल्म 'आलम आरा' थी उसे जारी की । 'भक्त प्रहलाद' और 'कालीदास्' के निर्माण और निर्देशक एच.एम. रेड्डी थे । येह दोनो फिल्मे दक्षिण भारत के पेहले बोल्ने वाले फिल्म हाइ । १९३३ में ईस्ट इंडिया कंपनी ने पेहली फिल्म बनाई , इस फिल्म को वेनिस फिल्म फेस्टिवल में पुर्स्कार भी मिला । नाच - गाना पेहले इंद्र सुबह और् देवी देवयानी में था ।

भारतीय सिनेमा का सुवर्ण काल[संपादित करें]

भारत के स्वतन्त्रता के ठीक बाद, सन् १९४४ से ले कर सन् १९६० तक के काल को भारत सिनेमा का सुवर्ण काल माना जाता है। इस सदी मे बंगाली सिनेमा के द्वारा पेरलेल (parallel) सिनेमा आन्दोलन् शुरु हो गया था। चेतन आनंद द्वारा 'नीचा नगर' (१९४६), रित्विक घटक द्वारा 'नागरिक' (१९५२) और बिमल रोय द्वारा 'दो बिघा ज़मीन', आदि इस सदी के कुछ प्रिय और प्रसिद्ध चलचित्र है। सत्यजीत रे भी इस सदी के लोकप्रिय निर्देशक थे। 'पाथेर पांचाली', इस चलचित्र के द्वारा उन्होंने भारतीय सिनेमा मे प्रवेश किया। सत्यजीत रे और रित्विक घटक ने बहुत प्रसिद्ध आलोचनात्मक चलचित्रोंका निर्देशन किया। म्रिणल सेन, अदूर गोपालक्रिष्णन, बुड्ढादेब दासगुप्ता, आदि कुछ प्रसिद्ध अनुयायि थे जो उनके पदचिन्हो पर चल पडे। वाणिज्यिक हिन्दी सिनेमा भी सम्पन्न होने लगा और इसके शुरु होने के साथ ही, गुरुदत्त द्वारा 'प्यासा', राज कपूर द्वारा 'श्री ४२०', आदि जैसी फिल्में सिनेमा-घरों में दाखिल होने लगी। इसी दोहरान, मेहबूब खान का चलचित्र 'मदर इंडिया', अकादमी पुरस्कार के लिये चुनी गई। ऐसा भी माना जाता है कि वी शान्ताराम का सिनेमा 'दो आन्खे बारह हाथ' ने हॉलीवुड फिल्म 'दी डिर्टी डज़न्' के निर्माण को प्रेरित किया था। संक्षेप मे बताया जाए तो, भारतीय सिनेमा तेज़ी से सम्रुद्धशालि होते हुए पुरी दुनिया पर अपनी निशानी छोड्ने की तय्यारी मे था। जब से चेतन आनन्द की फिल्म 'नीच नगर' ने कैन्नेस (Cannes) फिल्म फेस्टिवल मे 'ग्रेन्ड प्राईज़' (पुरस्कार) जीता था, तब से भारतीय फिल्में सन् १९५० से लेकर १९६० तक, अक्सर इस प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बने रहे और कुछ फिल्मों ने प्रमुख तथा मुख्य पुरस्कार भी जीत लिये थे। वेनिस् फिल्म फेस्टिवल् मे 'गोल्डन् लायन' पुरस्कार जीतने के साथ ही साथ, सत्यजीत रे द्वारा 'अपराजितो' इस फिल्म ने, बर्लिन् फिल्म फेस्टिवल् मे उत्तम निर्देशन के लिये एक 'गोल्डन् बेर' तथा दो 'सिल्वर बेर' भी जीते थे। इस युग मे भारत देश के अनेक क्षेत्रों की फिल्में भी लोकप्रिय हुई और यह फिल्में उस काल की सर्वश्रेष्ठ सिनेमाओं की सूची मे भी शामिल रही। इस काल को तेलुगु और तमिल सिनेमा का भी सुवर्ण युग माना जाता है।

आधूनिक सिनेमा[संपादित करें]

१९७० के समय, भारतीय सिनेमा तेज़ी से प्रसिद्धि प्राप्त कर रहा था और तीव्र गति से लोकप्रियता भी हासिल कर रहा था। 'शोले' जैसी अद्भुत फिल्में सिनेमाघरों में चित्रित की गई। इस चित्रपठ के द्वारा श्री अमिताभ बच्चन की लोकप्रियता अधिक बढ् गई थी। एक और उत्तम तथा महत्वपूर्ण फिल्म् 'दीवार' थी, जिसके निर्देशक यश चोप्रा थे। यह फिल्म 'हाजि मस्तान' नामक एक तस्कर के जीवन पर आधारित है जिसमे अमिताभ बच्चन ने मुख्य भूमिका निभाई है। तेलुगु फिल्म 'संकरभरणम' और कन्नड चलचित्र 'तबरन कथे', आदि भाषाओं की फिल्मों ने भी प्रसिद्धि प्राप्त की थी। सन् १९८० और १९९० के दोहरान, केरल के मलयालम सिनेमा का सुवर्ण काल चल रहा था। अदूर गोपालक्रिष्णन, अरविंदन, टी वी चंद्रन, आदि उस क्षेत्र के प्रसिद्ध निर्देशक थे। अदूर गोपालक्रिष्णन, सत्यजीत रे के आध्यात्मिक वारिस माने जाते है। १९८० और १९९० के समय, हिन्दी सिनेमा भी कुछ अधिक बढ्कर महिमाशाली बन गया था। 'कयामत से कयामत तक', Mr. इंडिया, चांदनी, मैने प्यार किया, बाज़ीगर, दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे, कुछ कुछ होता है, आदि जैसे प्रसिद्ध फिल्में बनाई गई जिनमे श्रीदेवी, शाहरुख खान, आमिर खान, सलमान खान जैसे अभिनेताओं ने भूमिकाएं निभाईं थीं।

प्रेरणाएँ[संपादित करें]

पुराने काल मे फिल्मों की सोच और कल्पना, भारतीय पुराणों की कहानियों पर आधारित थी। जैसे समय बीतता गया, चलचित्रों ने संस्क्रुत नाटकों से भी प्रेरणा लेना प्रारंभ किया जिसके कारण फिल्मों मे नाचना, गाना, आदि, के तत्व प्रदर्शित होने लगे। भारतीय सिनेमा को तीसरी प्रेरणा, भारतीय फोक् थिएटर से मिली थी जो १०वी सदी मे संस्कुत थिएटर के घटने के बाद ही अधिक लोकप्रिय हो उठी थी। पारसी थिएटर भी भारतीय सिनेमा पर बहुत प्रभाव्शाली रहा है। मनमोहन देसाई के चलचित्र 'कूली' मे भी इसका प्रभाव दिखाई पडता है। भारतीय सिनेमा को पाँचवी और आखरी प्रेरणा, हॉलीवुड से मिली थी और इस वजह से भावनाओं को भी दर्शाने के लिए संगीत का उपयोग करने मे आया था।