वार्ता:पंचशील (बौद्ध आचार)

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पंचशील ये बौद्धों के 5 शील है जिनकी इस धम्म में आने के बाद हर व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है।

एक बौद्धिस्ट उपासक ये इन 5 शीलों का अनुसरण करता है। जिनकों कि वह नियति रूप से बुद्ध मूर्ती के समझ पूजा वंदना के प्रारम्भ बोलता है। इन पांच शीलों का अर्थ उसे भली भाँति ज्ञात होता है। किसी भी नवबौद्ध को इन पांच शीलों से भली भांती परिचित होना आवश्यक बताया गया है। ये पांच शील व्यक्ति को उन्नति मार्ग की ओर ले जाते हैं। विभिन्न दुःखों से दूर रहने के उपाय इन पांच शीलों में निहित है। जिनसे समाज का उद्धार होता है।

पाँच शीलों का विवरण- 1. प्राणी हिंसा से विरत रहूंगा- अर्थात जीव हत्या नहीं करूंगा। ऐसा जानकर वह बे-वजह के हत्या अपराध से बच जाता है। ऐसी प्रतिज्ञा प्रतिदिन करने पर उसे शान्त भाव से जीने के लिए अग्रसर करती है।

2. चोरी न करना- चोरी न करने से समाज में होने वाली तमाम बुराईयाँ मिट जाती है। चोरी-विहीन समाज में चोरी होने का भय लोगों को नहीं सताता तथा लोगों में अपने लिए जीवन उपयोगी वस्तुओं को एकत्र करने के लिए चोरी का सहारा नहीं लेना होता। उसे कर्म ही करना पड़ेगा। ये एक अच्छे समाज के लिए आवश्यक भी है।

3. मैं व्यभिचार नहीं करूंगा- अर्थात परस्त्री गमन नहीं करूंगा। इस शील के कारण उसके मन में पर स्त्री से विमुख हो ज्ञान की ओर ही अपने मस्तिष्क को लगाये रखने में मदद मिलती है़, और वह सन्मार्ग पर चलता रहता है।